एक पंडित जी पूजा पाठ करा कर अपना जीवन यापन कर रहे थे। पूजा पाठ करा कर उन्हें जो पैसा मिलता, उनमें से कुछ पैसा वह कई वर्षों से जमा कर रहे थे की एक दिन वह चारधाम यात्रा पर जाएंगे। कई बरसों बाद उन्होंने अपने जमा किए हुए पैसों को गिना तो उन्हे पता चला कि काफी पैसा जमा हो चुका है और अब वह चार धाम यात्रा कर सकते हैं।
लेकिन उसी समय गांव में भीषण बाढ़ आया था और गांव के बहुत से गरीब लोगों बेघर और असहाय हो गए थे। पंडित जी ने देखा की गरीब लोगों के पास ना तो रहने की व्यवस्था है और ना ही खाने की व्यवस्था है। पंडित जी के पास मंदिर के पीछे काफी जगह थी, उन्होंने अपने पास जमा सारे पैसे, उन बेसहारा हो चुके गरीब लोगों की सेवा में लगा दिए और उन्हें रहने का स्थान दिया तथा दो समय के खाने की व्यवस्था की।
उन्होंने चारधाम यात्रा के सपने छोड़ दिए, चार धाम की यात्रा करने वाले को पुण्य लाभ मिलता है और वह जीवन मरण के इस चक्र से छूटकर भगवान विष्णु के दिव्य ज्योति में समा जाता है। लेकिन पंडित जी ने तीर्थ यात्रा को ना चुनकर गरीब लोगों की सहायता करने का फैसला लिया था। उनकी मृत्यु हो जाने के बाद जब देवदूत उनकी आत्मा को इस लोक से दूसरे लोग ले जा रहे थे, तो उन्हें संदेह था कि पंडित जी को किस लोक भेजा जाए। क्योंकि देवदूतो के पास जो कर्म लेख था, उसमें पंडित जी की तीर्थ यात्रा का वर्णन नहीं था। इस लिए वो पंडित जी की आत्मा को बैकुंठ नहीं ले गए। और अपनी शंका का समाधान हेतु यमराज के पास गए। और उनसे पूछा की भगवान पंडित जी को किस लोक भेजा जाए, इन्होने तो चारधाम की यात्रा नहीं की हैं।
देवदूतो की समस्या जानकर, धनराज ने देवदूतों से कहा कि लोग चारधाम की यात्रा अपने पाप को नष्ट करने के लिए करते हैं और जन्म मरण के चक्र से बचने के लिए करते हैं। इतने महत्वपूर्ण इस यात्रा को न करने का फैसला कर पंडित ने लोगो की सेवा करने का फैसला लिया, और यह गुण किसी सचरित्र और निष्पाप आत्मा वाला व्यक्ति ही कर सकता हैं। इस लिए पंडित जी के लिए बैकुंठ के दरबाजे, उनकी स्वागत के लिए खुले हुये हैं और उनके इंतेजार मे हैं। इस लिए पंडित जी का सही स्थान बैकुंठ ही हैं।
देवदूतों को समझ आ गया की भगवान ने सबसे पहले कर्म को प्राथमिकता दी हैं जिसके अंतर्गत जरूरतमन्द की सेवा, अनाचार का विरोध, आतंकवाद का खत्मा, लोगो को शिक्षित, धर्म फिर राष्ट्र के प्रति ईमानदार रहना आदि शामिल हैं।
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