महाभारत काल में पांडु के पांचों पुत्र जिनहे पांडव के नाम से जाना जाता हैं, उन्होने कई राजाओं को हराया जिसकी वजह से पांडव चक्रवर्ती सम्राट बन चुके थे। इसके बाद उन्होंने एक राजसूय यज्ञ नामका यज्ञ का आयोजन किया था, इस यज्ञ मे कई राजाओं एवं महाराजाओं को आमंत्रित किया गया था।
इस राजसूय यज्ञ को व्यवस्थित तरीके से आयोजित किया जाए इसकी पूरी तैयारी की गई थी। हर व्यक्ति का काम निर्धारित किया गया था। कौन व्यक्ति क्या काम करेगा, इस बात का अच्छे से बंटवारा किया गया था। पांचों पांडव भगवान श्रीकृष्ण का बहुत आदर एवं सम्मान करते थे। इसलिए पांडव सोचने लगे कि अब श्रीकृष्ण को किस तरह की जिम्मेदार दी जाए? लेकिन किसी को इसका जवाब नहीं सुझा इसलिए सभी ने निश्चय किया कि भगवान श्रीकृष्ण से ही इस विषय में पूछा जाए।
सभी पांडव श्री कृष्ण के पास आए, और उनसे अपनी समस्या का हल पूछ। भगवान श्रीकृष्ण ने पांडवों की समस्या को समझते हुए पांडवो से पूछा की, ‘आप लोग बताइए कि अभी इस समय ऐसा कौनसा काम हैं जो बचा हुआ हैं और अभी उसे करने के लिए किसी को ज़िम्मेदारी नहीं दी गई हैं?
श्री कृष्ण की बात सुन कर सभी पांडव चिंतन करने लगे।
कुछ देर बाद श्रीकृष्ण ने चुप्पी के माहोल को तोड़ कर बोले, ‘मैं दो कार्यो की ज़िम्मेदारी ले लेता हूँ। पहला, ब्राह्मण और ऋषि-मुनियों के चरण को मैं ही धोऊंगा और दूसरा यह की भोजन के बाद जो जूठे बर्तन और पत्तल होंगे, वो सब मैं उठाऊंगा।’
राजसूय यज्ञ प्रारम्भ हुआ और कृष्ण भगवान ने अपने कहे के अनुसार यही दो काम किए भी। बाद में किसी राजा ने श्रीकृष्ण से किसी ने पूछा कि आपने इस तरह का काम करने की जिम्मेदारी क्यों ली? आप तो कोई बड़ा काम भी कर सकते थे।’
श्रीकृष्ण बोले, ‘कोई काम बड़ा या छोटा नहीं होता है। बड़ी या छोटी नीयत होती है। हमें वह काम करना चाहिए, जिसमें सचमुच सेवा का ही भाव हो।
सीख – हम उम्र में और पद में बड़े हों या छोटे, हमेशा ऐसे काम करें, जिनमें सेवा का भाव ही होता है।
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