काफी समय पहले की बात है, हालैण्ड देश में एक लड़का रहता था। जिसका नाम था हेन्स। उसकी उम्र उस समय आठ साल की थी।
इस बात की जानकारी करीब-करीब सभी को है कि हॉलैण्ड देश समुन्द्र के किनारे पर स्थित है और उसकी जमीन का बहुत-सा भाग समुन्द्र तल से नीचा है। समुन्द्र के किनारे पर स्थित स्थानों को सुरक्षित रखने के लिए हॉलैण्ड के निवासियों ने बड़ी-बड़ी पत्थरों की दीवारें बनवाई थीं जिन्हें डायक कहा जाता है।
इन दीवारों की डच लोग बड़ी हिफाजत रखते हैं क्योंकि इन में एक भी छोटा-सा छेद खतरनाक स्थिति को पैदा कर सकता है। यह छेद धीरे-धीरे काफी बड़ा भी हो सकता है और फिर उसके बाद समुन्द्र का पानी पूरे गांव या नगर को बाढ़ की चपेट में लेकर नुकसान पहुंचा सकता है।
इसी प्रकार के एक गांव में ही हेन्स रहता था, जो समुन्द्र-तल से नीचे था और जिसके पास बड़ी-बड़ी डायक बनी हुई थीं। एक रोज शाम के वक्त हेन्स ने अपनी मां से कहा- “मां, क्या मैं कुछ देर के लिए बाहर खेल सकता हूं। मेरा मन बाहर खेलने को बहुत कर रहा है।
मां ने कहा- “जाओ बेटा, जरूर खेलो! लेकिन समय से वापस घर लौटकर आ जाना। आसमान में काफी काले-काले बादल छाये हए हैं। हो सकता है कि बारिश हो जाए।”
मां की आज्ञा पाकर हेन्स अपने दोस्त को साथ लेकर खेलने के लिए चला गया। खेलते-खेलते शाम हो गई। अपने दोस्त से विदा लेकर वह घर की ओर लौटने लगा। उसका घर वहां से काफी दूर पड़ता था। वह गुनगुनाता हुआ घर की तरफ बढ़ रहा था।
अचानक वह चलते-चलते रुक गया। यह क्या है? यह तो पानी की पतली सी धार बह रही है। लेकिन यह पानी कहां से आ रहा है? उसने मन में सोचा।
जब वह उस पानी के साथ-साथ आगे बढ़ा तो उसने देखा कि डायक के एक छोटे-से छेद से पानी निकल रहा है। हेन्स को बड़ी फिक्र हो गई। हेन्स जानता था कि समुद्र के पानी के दबाव से वह छेद और भी बड़ी हो जाएगा।
हेन्स सोचने लगा कि अब क्या किया जाए। इतना समय भी नहीं था कि किसी को मदद के लिए बुलाया जाए क्योंकि तब काफी देर हो जाती और इस बीच समुद्र का पानी पूरे गाँव में फैल सकता था और बाढ़ की भी आशंका थी।
“मैं खुद इस छेद को बंद कर सकता हूं।” उसने सोचा-“मैं जानता हूं कि मुझे क्या करना है।”
वह डायक के साथ झुककर बैठ गया और अपनी अंगुली उस छेद में डाल दी। इस तरह पानी रिसना बन्द हो गया। यह भी अच्छा था कि वह छेद छोटा ही था।
सरज छिप चका था। ठण्डी हवा चलने लगी थी। आसमान में काले बादल छाये हुए थे। हेन्स ने आसमान की तरफ देखा, उसकी मां ठीक कह रही थी कि बारिश आ सकती है। हेन्स को अब ठन्ड लग रही थी। वह सोच रहा था कि काश कोई सहायता के लिए इधर आ जाए लेकिन ऐसा नहीं हुआ। डायक के साथ वाली सड़क एकदम सुनसान पड़ी हुई थी। हेन्स को डर लग रहा था।
एक घण्टा बीत चुका था। फिर समय गुजरता था। अब रात भी हो चुकी थी। चारों तरफ अन्धेरा था। आसमान में चांद भी दिखाई नहीं दे रहा था । चारों तरफ आंधी-तूफान, लहरों का शोर और कड़ाके की ठन्ड पड़ रही थी।
हेन्स ठन्ड के मारे ठिठुर रहा था। फिर भी वह वहां से हिला तक नही। उसने अपनी उंगली डायक के छेद से बाहर नहीं निकाली।
‘मैं तो इस तरह ठन्ड से मर जाऊंगा।’ हेन्स ने सोचा- ‘हे भगवान! किसी को मेरी मदद को भेज दो। मेरे मां-बाप को ही भेज दो।’
और कोई घर से बाहर हो या न हो, लेकिन हां कोई-न-कोई हेन्स को तलाश कर रहा था। वे कौन थे? वे लोग हेन्स के दोस्त और दूसरे उसके पिताजी।
वे जोर-जोर से आवाज देकर पूछ रहे थे कि ‘हेन्स तुम कहां पर हो?’
तब तक हेन्स ठन्ड और भूख की वजह से बेहोश हो चुका था। उसे उनकी आवाजें भी सुनाई नहीं पड़ रही थीं। दूसरे, समुन्द्र की लहरों और हवाओं ने इतना शोर मचा रखा था कि उनकी आवाजें काफी धीमी सुनाई पड़ रही थी।
उसने चिल्लाकर कहा- “मैं यहां हूं….।”
लेकिन किसी ने भी उसकी आवाज को नहीं सुना था। वे लोग अब उसे बड़ी-बड़ी लालटेन लेकर डायक के किनारे ढूंढ रहे थे। उन में से किसी को डायक के किनारे कोई चीज नजर आई। उसने अपनी लालटेन को जरा पास लाकर देखा तो वह हेन्स ही था। वह बिल्कुल जम चुका था लेकिन उसने डायक के छेद से अपनी उंगली को बाहर न निकाला था।
प्रसन्नतापूर्वक चिल्लाते हुए उसने हेन्स को उठाया। जब उन्हें वह छेद दिखाई दिया जिसमें हेन्स ने अपनी उंगली डाल रखी थी तो उनके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा।
फौरन ही कुछ लोग उसे ठीक करने में लग गए। दूसरे लोगों ने हेन्स को कम्बल में लिपटा लिया और घर उठाकर ले गये।
हेन्स को देखकर उसकी मां बहुत खुश हुई और जब उसे अपने बेटे की इस वीरता के कार्य के विषय में पता चला तो उसकी खुशी का ठिकाना न रहा।
आज भी हेन्स को हॉलैण्ड के लोग अपनी कहानियों में जिन्दा रखते हैं और उसकी वीरता की कहानी सुनाते है।
प्यारे बच्चो! इसकहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि प्रत्येक बच्चे को इतना साहसी और वीर होना चाहिए कि लोग उसे वर्षों तक याद रख सके।