राजतंत्र की पुनर्स्थापना | 1688 ki gauravpurn kranti
इंग्लैण्ड में गृहयुद्ध के पश्चात प्रजातंत्र शासन प्रणाली का प्रयोग असफल रहा। इसकी असफलता का कारण पूर्ण प्रजातांत्रिक शासन का अभाव था। रम्प पार्लियामेंट में कुलीन वर्ग का वर्चस्व था। इंग्लैण्ड का शासन स्वच्छन्द रूप से क्रामवेल के निरंकुश हाथों में चला गया था। क्रामवेल की शासन नीति में चार्ल्स के सर्मथकों को दण्ड देना तथा प्रजा पर अत्याचार निहित थे। क्रामवेल की विदेश नीति हॉलैण्ड, अन्य प्रोटेस्टेंट देशों तथा स्पेन के सम्बंध में सफल रही थी।
क्रामवेल की मृत्यु 1658 के पश्चात उसका पुत्र रिचर्ड संरक्षक घोषित किया गया। अयोग्यता तथा पार्लियामेंट से संघर्ष के कारण रिचर्ड ने पद त्याग कर दिया। नई पार्लियामेंट सन् 1660 के गठन पर चार्ल्स द्वितीय ने नियमित शासन का वचन दिया तथा पार्लियामेंट ने कुछ शर्तो पर चार्ल्स द्वितीय को राजा स्वीकार कर लिया। अत: सन् 1660 में गणतंत्र की विफलता पर इंग्लैण्ड में पुन: राजतंत्र स्थापित हो गया था। चार्ल्स द्वितीय दिवंगत सम्राट चार्ल्स प्रथम का पुत्र था।
चार्ल्स द्वितीय (1660 से 1685)
राज्य प्राप्ति के समय चार्ल्स द्वितीय पार्लियामेंट की सहमति से शासन कार्य का वचन दिया था। चार्ल्स का झुकाव कैथोलिकों के प्रति था। अत: पार्लियामेंट सशंकित हो गई। चार्ल्स ने सन् 1672 में धार्मिक स्वतंत्रता की घोषणा कर कैथोलिकों को धर्म सम्बंधी पूर्ण स्वतंत्रता दे दी थी। पार्लियामेंट ने चार्ल्स द्वितीय की घोषणा का विरोध किया। चार्ल्स द्वितीय तथा पार्लियामेंट में मतभेद के कारण सन् 1678 में पार्लियामेंट भंग हो गई थी। इसके पश्चात चार्ल्स ने तीन वर्षो में पार्लियामेंट के तीन अधिवेशन आयोजित किए और भंग करता रहा।
पार्लियामेंट मे इस समय दो दल हो गए थे। प्रथम टोरी दल जो राजा का समर्थक था तथा दूसरा व्हिग दल जो राजा का विरोधी था। चार्ल्स द्वितीय ने पार्लियामेंट भंग कर निरंकुश शासन किया था। चार्ल्स द्वितीय की प्रतिक्रियात्मक धार्मिक नीति, असफल विदेश नीति तथा पार्लियामेंट की उपेक्षा से इंग्लैण्ड की जनता में असन्तोष व्याप्त हो गया तथा गौरवपूर्ण राज्य क्रांति की भूमिका तैयार हो गई।
गौरवपूर्ण क्रांति (1688)
इंग्लैण्ड के इतिहास में सन् 1688 विशेष रूप से राजनीतिक तथा वैज्ञानिक महत्व का वर्ष था। सन् 1685 में चार्ल्स द्वितीय की मृत्यु के पश्चात उसके भाई जेम्स द्वितीय का राज्यारोहण हुआ था। जेम्स द्वितीय का पिता चार्ल्स प्रथम था तथा उसकी माता का नाम मेरिया हेनरिटा था। वस्तुत: वह चार्ल्स द्वितीय का भाई था। चार्ल्स द्वितीय के राज्यकाल में जेम्स स्काटलैण्ड का शासक तथा नौसेना अध्यक्ष था। जेम्स द्वितीय की विचारधारा कैथोलिक थी अत: व्हिग दल ने उसके उत्तराधिकार का विरोध किया था।
टोरी दल जेम्स का समर्थक था अत: वह राज्य प्राप्त कर सका। जेम्स ने वचन दिया, “यद्यपि में कैथोलिक हूँ किन्तु चर्च या संविधान में कोई परिवर्तन नहीं करूँगा”। जेम्स द्वितीय केवल कैथोलिक ही नहीं था, वरन उसके मन-मस्तिष्क में उसके पिता चार्ल्स प्रथम की भाँति राजा के दैवी अधिकार छाए हुए थे। राज्य क्रांति की पृष्ठभूमि चार्ल्स द्वितीय के शासनकाल में ही तैयार हो गई थी। जेम्स द्वितीय के धार्मिक अनुदारतापूर्ण कार्य न्यायिक स्वेच्छाचारिता तथा निरंकुश शासन पुन: थोपने के कारण जनता त्रस्त थी। इंग्लैण्ड की जनता ने तीव्र विरोध कर एकमत होकर जेम्स के दामाद हॉलैण्ड के शासक विलियम ऑफ ऑरेन्ज तथा उसकी पत्नी मेरी ( जेम्स की पुत्री ) को इंग्लैण्ड का शासक बनने हेतु निमन्त्रण भेज दिया।
गौरवपूर्ण क्रांति का कार्यान्वयन
विलियम ऑफ ऑरेन्ज को राजा बनाने में बिना किसी अवरोध या रक्तपात के इंग्लैण्ड के शासन में परिवर्तन हो गया। सन् 1688 की यह घटना केवल इंग्लैण्ड के इतिहास के लिये नहीं वरन् समस्त यूरोप के राजनीतिक इतिहास की महत्वपूर्ण घटना थी। अत: यह घटना ‘गौरवपूर्ण क्रांति’ अथवा रक्तहीन क्रांति के नाम से प्रसिद्ध है। इतिहासकारों के अनुसार, शायद इतिहास में कभी भी इतना तीव्र परिवर्तन नहीं हुआ अत: इसे रक्तहीन राज्य क्रांति कहते है।
गौरवपूर्ण राज्य क्रांति के कारण
- जेम्स में राजनीतिक दूरदर्शिता का अभाव- जेम्स द्वितीय में अपने भाई चार्ल्स द्वितीय के समान राजनीतिक दूरदर्शिता नहीं थी। चार्ल्स द्वितीय ने अपनी योग्यता तथा राजनीतिक दूरदर्शिता के आधार पर इंग्लैण्ड पर 25 वर्षो तक राज्य किया था। किन्तु जेम्स द्वितीय इन गुणों के अभाव से तीन वर्ष भी राज्य नहीं कर सका। जेम्स द्वितीय में समय के अनुकूल निर्णय लेने की क्षमता नहीं थी। अत: उसने जनता तथा पार्लियामेंट दोनों का विश्वास शीघ्र खो दिया था।
- मन्मथ (मनमाऊथ) के विद्रोह का दमन- मनमाऊथ का ड्यूक, चार्ल्स द्वितीय का अवैध पुत्र था। व्हिग दल के नेता ड्यूक का चार्ल्स द्वितीय का उत्तराधिकारी बनाना चाहते थे। चार्ल्स द्वितीय ने यह स्वीकार नहीं किया था। चार्ल्स द्वितीय की मृत्यु और जेम्स द्वितीय के राज्यारोहण के पश्चात व्हिग दल के प्रोत्साहन पर ड्यूक ने इंग्लैण्ड पर तथा स्काटलैण्ड पर आर्गाइल ने हमला कर दिया। जेम्स द्वितीय तथा ड्यूक की सेना के मध्य सेजमूर नामक स्थल पर युद्ध में जेम्स की सेना को विजय प्राप्त हुई थी। जेम्स ने ड्यूक तथा विरोधियों के दमन के लिये विशेष न्यायालय की स्थापना की थी। विद्रोहियों में अधिकतर प्यूरिटन थे। जेम्स द्वितीय कैथोलिक था अत: प्यूरिटन से घृणा करता था। ड्यूक को बन्दी बना लिया गया तथा मृत्युदण्ड दिया गया। विद्रोहियों को फॉसी की सजा देने के लिये पार्लियामेंट भवन के पास फॉसी के खम्बे खड़े किए गए थे। लगभग 300 प्यूरिटन विद्रोहियों को फॉसी पर लटका दिया गया। सैकड़ों प्यूरिटनों को दास बनाकर पश्चिमी द्वीप समूह निर्वासित किया गया। विशेष न्यायालय ‘जेफरीन’ को लोगों ने ‘रक्तमय (खूनी) न्यायालय’ की संज्ञा दी थी। जेम्स के न अत्याचारों से उसके समर्थकों मे भी दहशत फैल गई।
- इंग्लैण्ड में कैथोलिकों के लिये राज्य के उच्च पर ‘टेस्ट नियम’ के अन्तर्गत प्रतिबन्धित थे। जेम्स ने टेस्ट नियम समाप्त कर कैथोलिकों को उच्च पदों पर नियुक्यिाँ दी थी। पार्लियामेण्ट के विरोध करने पर पार्लियामेण्ट भंग कर दी।जेम्स ने टेस्ट एक्ट की अवहेलना कर थल तथा जल सेना के प्रमुख पदों कर कैथोलिकों की नियुक्यिाँ की थी। दीवानी और फौजदारी न्यायालयों में न्यायाधीश के पदों पर भी कैथोलिकों को नियुक्त किया। कैथोलिकों को सेना में भर्ती किया तथा आयरलैण्ड और स्काटलैण्ड में भी इसी प्रकार के कार्य किए। देश की संसद ने सेना में कमी की मॉंग की थी। सम्राट ने इस माँग को ठुकराकर संसद भंग कर दी। ग्राण्ट के अनुसार, “संसद तुरन्त भंग कर दी गई और सम्राट ने अपनी अवनति की दिशा में एक महान् त्रुटि कर डाली”। कैथोलिकों की उच्च पदों पर नियुक्ति में जेफरेज तथा फादर पीटर सन्डरलैण्ड के नाम उल्लेखनीय हैं। कैथोलिक स्ट्रिकलैण्ड को नौसेना का सेनापति नियुक्त किया। जेम्स ने हेलिपेक्स तथा रोबेस्टर प्रोटेस्टेन्टों को उच्च पदों से हटा दिया था। इन कारणों से जनता में तीव्र असंतोष व्याप्त हो गया था।
- जेम्स द्वितीय के फ्रांस के लुई चौदहवें से मधुर सम्बंध- जेम्स द्वितीय कैथोलिक था तथा फ्रांस का सम्राट लुई चौदहवाँ भी कैथोलिक था। जेम्स ने फ्रांस सं प्रगाढ़ सम्बंध स्थापित करने का प्रयत्न किया था। इंग्लैण्ड की जनता लुई चौदहवें को पसन्द नहीं करती थी। अत: इंग्लैण्ड की जनता को प्रतीत हुआ कि जेम्स की कैथोलिक समर्थन की पृष्ठभूमि में फ्रांस के लुई चौदहवें की मित्रता है। इतिहासकार साउथगेट के अनुसार जेम्स द्वितीय के पतन का कारण उसकी असफल गृह नीति नहीं अपितु जनभावनाओं के प्रतिकूल विदेश नीति थी।
- महाविद्यालयों के विधान में हस्तक्षेप- जेम्स ने अपनी कैथोलिक समर्थक नीति के अन्तर्गत विश्वविद्यालयों के विधान में भी हस्तक्षेप किया था। इंग्लैण्ड के कैम्ब्रिज और ऑक्सफोर्ड विद्यालयों में एंग्लिकन चर्च का प्रभाव अधिक था। जेम्स ने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के कुलपति की सेवाएँ इसलिये समाप्त कर दी। क्योंकि कुलपति ने नियमानुसार कैथोलिक साधु को डिग्री देने में अवरोध उत्पन्न किया था। जेम्स ने मैकडालेन महाविद्यालय ( ऑक्सफोर्ड ) के सदस्यों को आदेश दिया कि वह कैथोलिक मतानुयायी व्यक्ति को अध्यक्ष निर्वाचित करे। सदस्यों द्वारा आदेश का पालन नहीं करने पर जेम्स ने सदस्यों को बर्खास्त कर कैथोलिक अध्यक्ष की नियुक्ति कर दी। इंग्लैण्ड के प्रबुद्ध शिक्षक वर्ग ने शिक्षा संस्थाओं में जेम्स के अनुचित हस्तक्षेप की कटु आलोचना की थी।
- धार्मिक स्वतंत्रता की द्वितीय घोषणा तथा सात पादरियों पर अभियोग (सन्1688)- सन् 1687 में जेम्स ने धार्मिक सुविधाओं की प्रथम घोषणा कर कैथोलिक समर्थक कई कार्य सम्पन्न किए थे। जेम्स को प्रथम घोषणा से संतोष नहीं था। अत: द्वितीय बार सन् 1688 में पुन: घोषणा कर उन्हें सभी गिरजाघरों में पढ़ने का आदेश दिया। कैटरबरी के प्रधान न्यायाधीश के नेतृत्व में सात पादरियों ने जेम्स से आग्रह किया कि इन धार्मिक सुविधाओं की घोषणा को गिरजाघर में पढ़ने के लिये उन्हें बाध्य नही किया जाए। राजा ने इन पादरियों पर राजद्रोह का अभियोग लगाकर प्रकरण न्यायालय के सुपुर्द कर दिया। निर्णय के दिन न्यायालय के सम्मुख अपार भीड़ एकत्रित हो गई थी। न्यायालय द्वारा पादरियों को दोषमुक्त घोषित करने पर जनसमूह ने प्रसन्नता जाहिर की तथा पादरियों का खूब सम्मान किया। यह राजा के प्रति जनआक्रोश एवं असंतोष का प्रतीक था।
- राजकुमार का जन्म विरोध का तात्कालिक कारण- जेम्स की नीतियों को जनता सहन कर रही है। जेम्स वृद्ध हो चुका था तथा उसकी कोई सन्तान नहीं थी। अत: जनता को विश्वास था कि जेम्स थोड़े समय का मेहमान है और उसकी मृत्यु के पश्चात कोई प्रोटेस्टेंट शासक बन जाएगा। किन्तु 10 जून 1688 को घोषणा की गई कि राजा को पुत्र उत्पन्न हुआ है। इस घोषणा से प्रजा का धैर्य समाप्त हो गया। इतिहासकार शैविल के कथनानुसार, पुत्र का जन्म और सात पादरियों का मुकदमा एक ही समय ( जून 1688 ) हुआ। इंग्लैण्ड में अब अधीरता व्याप्त हो गई। अवसर का लाभ उठाकर देशभक्तों ने विलियम ऑफ ऑरेन्ज तथा उसकी पत्नी मेरी को निमंत्रण भेजा कि आकर इंग्लैण्ड को बचाएँ।
- क्रांति का आरम्भ-विलियम ऑफ ऑरेन्ज का आगमन- उत्तेजना और अशांति की स्थिति में इंग्लैण्ड के साथ प्रमुख व्यक्तियों ने ( जिनमें व्हिग और टोरी दल के सदस्य थे ) जेम्स द्वितीय के शासन से मुक्ति हेतु हॉलैण्ड के विलियम ऑफ ऑरेन्ज को निमंत्रण पत्र भेजा। विलियम धार्मिक स्वतंत्रता का पोषक था। वह जेम्स का दामाद था तथा फ्रांस से उसकी शत्रुता थी। फ्रांस उस समय जर्मनी से युद्ध में उलझा हुआ था। अत: विलियम ने निमंत्रण स्वीकार कर लिया।
20 अक्टूबर 1688 को विलियम पाँच सौ जहाज तथा चौहद हजार सैनिक लेकर इंग्लैण्ड के लिये प्रस्थित हुआ। उसके ससैन्य इंग्लैण्ड पहुँचने पर देश की अधिकांश जनता ने उसका स्वागत किया। जेम्स ने अपने परिवार को फ्रांस भेज दिया तथा युद्ध की तैयारी में लग गया। किन्तु स्थिति को देखकर 11 अक्टूबर को स्वयं भी फ्रांस के लिये पलायन कर गया।
औपचारिक पार्लियामेंट का अधिवेशन आयोजित कर विलियम तथा मेरी को इंग्लैण्ड का संयुक्त शासक घोषित किया गया। सन् 1689 में विलियम ने अधिकारों का घोषणा पत्र स्वीकार किया जिसमें जेम्स द्वितीय के अवैधानिक कार्यो का उल्लेख था। इसमें उन सिद्धान्तों का भी उल्लेख था, जिनके आधार पर भविष्य में इंग्लैण्ड का शासन संचालित करना था। यह शासन परिवर्तन गौरवपूर्ण राज्य क्रांति के नाम से इंग्लैण्उ के इतिहास में प्रसिद्ध है। इस शासन परिवर्तन में रक्तपात नहीं हुआ था। अत: इसे रक्तहीन क्रांति भी कहा जाता है।
वैभवपूर्ण क्रांति की घटनाएँ
जिस दिन सात पादरियों को मुक्त किया गया था उसी राज को एक सभा का आयोजन किया गया था जिसमें पादरियों, टोरियों तथा ह्गिों ने भाग लिया। इस सभा मे निर्णय लिया गया था कि जेम्स द्वितीय के दामाद विलियम ऑफ ऑरेन्ज, जो हॉलैण्ड का राजा था को इंग्लैण्ड के राजसिंहासन के लिये आमत्रिंत किया जाए। इस निर्णय के अनुसार विलियम को निमन्त्रित किया गया। विलियम उन दिनों फांस से युद्ध मे व्यस्त था। फांस, हॉलैण्ड से कहीं अधिक शक्तिशाली था अत: विलियम ने इस अवसर से लाभ उठाने का निश्चय किया क्योकि फ्रांस, इंग्लैण्ड तथा हॉलैण्ड की सम्मिलित शक्ति का सामना नहीं कर सकता था। अत: विलियम इंग्लैण्ड आने के लिये राजी हो गया।
लुई चौदहवें ने जेम्स को इस खतरे से अवगत कराया अत: जेम्स ने अपनी नीति में परिवर्तन किया तथा धार्मिक न्यायालय को भंग कर दिया। जिन गिरजाघरों, विश्वविद्यालयों, न्यायालयों, नगर-निगमों तथा सेना के अधिकारियों को उनके पदों से च्युत किया था उन्हें पुन: उनके पदों पर नियुक्त कर दिया। कुछ अन्य प्रोटेस्टेंट व्यक्तियों को भी उच्च पदों पर नियुक्त् किया, किन्तु जेम्स अपनी गलती अत्यंत देर से समझा था तथा अब तक जनता का विश्वास खो चुका था।
विलियम ऑफ ऑरेन्ज पन्द्रह हजार सेना के साथ 5 नवम्बर 1688 ई. टोरबे के बन्दरगाह पर उतरा। विलियम के इंग्ल्ैाण्ड आगमन के समय जेम्स की स्थिति पर्याप्त अच्छी थी। जेम्स के अधीन चालीस हजार सेना थी तथा नौ-सेना भी उसके प्रति स्वामिभक्ति रखती थी। जेम्स की तुलना में विलियम की सेना अत्यन्त कम थी तथा विभिन्न राष्ट्रों के सैनिक होने के कारण संगठित भी न थी। इस समय यदि जेम्स एक स्वतंत्र संसद के निर्वाचन और उसकी इच्छानुसार शासन कने का आश्वासन देता तो सम्भवत: यह क्रांति न होती क्योंकि इंग्लैण्ड की प्रतिक्रियावादी जनता विलियम की अपेक्षा जेम्स को ही समर्थन देती, किन्तु जेम्स ने ऐसा नहीं किया। विलियम अपनी सेना के साथ लन्दन की ओर अग्रसर हुआ। जेम्स भी अपनी सेना के साथ विलियम का सामना करने आगे बढ़ा, किन्तु रास्तें में उसके साथी उसका साथ छोड़ने लगे तथा विलियम की ओर मिल गए। यहाँ तक कि उसका प्रमुख एवं विश्वासपात्र सेनापति जॉन चर्चिल तथा जेम्स की छोटी पुत्री ऐन भी उसका साथ छोड़कर विलियम से जा मिले। इस प्रकार जेम्स की सेना छिन्न-भिन्न हो गयी तथा वह अत्यन्त निराश हो गया। निराशा में उसने कहा था- ‘ईश्वर दया कर मेरे अपने ही बच्चे मेरा साथ छोड़ चुके है’।
जेम्स प्रत्येक दिशा से निराश हो 23 दिसम्बर 1688 ई. राजमुहर को टेम्स नदी में फेंककर फ्रांस भाग लिया। इस प्रकार एक बूंद भी रक्त की बहाए बिना इंग्लैण्ड के क्रांति हुई। इस क्रांति के महत्वपूर्ण परिणाम हुए।
जेम्स के फ्रांस भागने के पश्चात इंग्लैण्ड की राजगद्दी रिक्त हो गयी। संसद ने मेरी को रानी तथा विलियम को संरक्षक नियुक्त करना चाहा, किन्तु विलियम इस बात के लिये तैयार न हुआ, क्योंकि उसे हॉलैण्ड की रक्षा करने के लिये शक्ति की आवश्यकता थी। 22 जनवरी 1689 ई. को संसद की पुन: बैठक हुई, जिसमें संसद ने विलियम के समक्ष कुछ शर्ते रखीं जिनकों मेरी तथा विलियम ने स्वीकार किया। इस प्रकार जेम्स द्वितीय के पश्चात इंग्लैण्ड के सिंहासन पर विलियम तता मेरी संयुक्त रूप से आसीन हुए।
1688 की गौरवपूर्ण क्रांति के परिणाम एवं महत्व
इंग्लैण्ड के इतिहास में गौरवपूर्ण क्रांति सत्रहवी शताब्दी की महत्वपूर्ण घटना थी। स्टुअर्ट वंश के शासनकाल में सम्राट तथा संसद के मध्य लगातार संघर्ष चलता रहा। इस संघर्ष के तीन मुद्दे है।
- इंग्लैण्ड की शासन प्रणाली। 2. इंग्लैण्ड की धार्मिक नीति। 3. इंग्लैण्ड की विदेश नीति।
इन सभी विषयों से संलग्न घटनाओं एवं समस्याओं का गौरवपूर्ण क्रांति से समाधान हो गया था।
गौरवपूर्ण क्रांति के परिणाम
- निरंकुशता तथा राजा की दैवी शक्ति के सिद्धान्त का अन्त- राजा के देश से पलायन कर जाने के कारण निरंकुशता का अन्त हो गया। इस क्रांति से प्यूडर तथा स्टुअर्टकालीन राजाओं के दैवी सिद्धान्तों को सदैव के लिये दफन कर दिया। अब सीमित तथ वैधानिक राजतंत्र का प्रारम्भ हो गया था। रेम्जेम्योर के कथनानुसार, “इस स्मरणीय तथा नवीन युग निर्मात्री घटना के फलस्वरूप इंग्लैण्ड के लोकप्रिय सरकार का युग प्रारम्भ हुआ और सत्ता निरंकुश राजा के हाथ से निकलकर संसद के हाथों में चली गयी”।
- संसद की सर्वोच्चता को मान्यता- इस क्रांति द्वारा राजा और संसद के दीर्घकालीन संघर्ष की समाप्ति हुई। राज्य शासन में पार्लियामेंट की सर्वोच्च सत्ता निश्चित रूप से स्थापित हो गई। शासन की सम्पूर्ण शक्तियाँ पार्लियोमेंट में निहित हो गई। राजा की शक्ति पर कई प्रकार के प्रतिबन्ध शासन लग गए। कार्यपालिका की शक्ति पर भी राजा का वर्चस्व समाप्त हो गया। राजा जनता तथा पार्लियामेंट की स्वीकृति के बिना कर नहीं लगा सकता था और न ही शक्ति के समय सेना में वृद्धि कर सकता था। विल ऑफ राइट्स ने राजा की शक्तियों को सीमित कर सम्पूर्ण शक्ति पार्लियामेंट का दे दी थी।
- धार्मिक परिणाम- इस क्रांति से इंग्लैण्ड के धार्मिक जीवन पर व्यापक प्रभाव पड़ा था। कैथोलिक धर्म का विकास इंग्लैण्ड में थम गया। सन् 1689 के अधिकार पत्र के पारित होने पर इंग्लैण्ड के राजसिंहासन पर कैथोलिकों के उत्तराधिकार को समाप्त कर दिया गया। इस अधिकार पत्र में घोषित किया गया था, कोई कैथोलिक या कैथोलिक से विवाहित व्यक्ति भविष्य में इंग्लैण्ड का शासक नहीं बनेगा। इंग्लैण्ड का राजमुकुट मेरी और विलियम को देते समय भी यह निर्धारित किया गया कि उनके बाद उनके बच्चे या विलियम के देसरे विवाह से होने वाले बच्चे ही इंग्लैण्ड के सिंहासन पर बैठेगे। यदि विलियम या मेरी किसी के बच्चे नहीं हुए तो मेरी की छोटी बहन राजकुमारी ‘ऐन’ साम्राज्ञी बनेगी। एक्ट ऑफ सेटलमेंट 1701 द्वारा यह निर्णय हो गया कि भविष्य में इंग्लैण्ड का शासक प्रोटेस्टेंट ही होगा।
- सम्राट की स्थायी सेना तथा हाई कमीशन न्यायालय की समाप्ति- संसद ने सस्पेंडिग पावर को अवैध घोषित कर सम्राट की स्थायी सेना तथा हाई कमीशन न्यायालय को समाप्त कर दिया।
- व्यक्तिगत स्वतंत्रता का संरक्षण- व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधीन किसी भी व्यक्ति को राजा के सम्मख आवेदन पत्र प्रस्तुत करने का राजनीतिक अधिकार मिल गया। प्रजा को स्वतंत्रतापूर्वक निर्वाचन में भाग लेने का अवसर प्राप्त हुआ। पार्लियामेंट के अधिवेशन में बिना किसी प्रभाव भय अथवा दबाव के सदस्यों को स्वतंत्रतापूर्वक भाषण देने का अधिकार दिया गया। भविष्य में प्रजा पर अमानुषिक अत्याचार अथवा भारी दण्ड की सम्भावना समाप्त हो गई।
- प्रेस पर नियंत्रण समाप्त- क्रांति के फलस्वरूप प्रेस पर लगे नियंत्रण समाप्त हो गए। इससे साहित्य सृजन में आशातीत प्रगति होने लगी।
- अन्तराष्ट्रीय स्तर पर इंग्लैण्ड का प्रभाव- हॉलैण्ड तथा इंग्लैण्ड के मध्य मित्रता स्थापित होने से इंग्लैण्ड यूरोपीय महाद्वीय में प्रथम श्रेणी का राष्ट्र बन गया। यूरोप के राजनीतिक समीकरण में नवीन समीकरण स्थापित हो गया। क्रांति का प्रभाव महाद्वीपीय राजनीति पर भी व्यापक रूप से पड़ा।
गौरवपूर्ण क्रांति का महत्व
बर्क के अनुसार 1688 की क्रांति शानदार क्रांति थी। बिना रक्त बहाए इस क्रांति से इंग्लैण्ड का गौरव बढ़ा था। बर्क, मेरियट तथा मैकाले ने इस क्रांति को रूढि़वादी कहा है। ट्रेवेलियन के अनुसार इस क्रांति का लक्ष्य परिवर्तन नहीं वरन् संरक्षण था। लार्ड एक्टन के अनुसार भी यह क्रांति क्रांतिकारी नहीं वरन् रूढिवादी थी।
क्रांति की प्रगति से राजा का दैवी अधिकार समाप्त होकर प्रभुसत्ता पार्लियामेंट निहित हो गई थी। प्रोटेस्टेंट मत की विजय तथा प्रेस की स्वतंत्रता से जनमत का प्रभाव स्पष्ट स्थापित हो गया। जनता को राजनीतिक स्वतंत्रता तथा स्वतंत्र न्यायप्रणाली प्राप्त हो गई। सेना पर राजा के स्थान पर जनता का अधिकार स्थापित हो गया।
यह क्रांति कम से कम हिंसात्मक तथा अधिक से अधिक उपयोगी सिद्ध हुई। व्हिग तथा टोरी दल में समन्वय तथा समझौता स्थापित हो गया। इस क्रांति ने इंग्लैण्ड के क्रांतिकारी परिवर्तन नहीं किए किन्त्ुा प्राचीन सिद्धान्तों को पुन: स्थापित किया था।
इस क्रांति का प्रभाव विश्व के अन्य राष्ट्रों पर भी गिरा था विशेषकर फ्रांस पर। इंग्लैण्ड में वैधानिक शासन तथा कैबिनेट प्रणाली का विकास हुआ। इस क्रांति के आलोचकों का कथन है कि आधुनिक दृष्टिकोण से यह क्रांति रूढि़वादी थी। इस क्रांति ने पोप के प्रभाव को समाप्त कर बिना खूनखराबे के आमूल परिवर्तन किए थे। इस क्रांति से इंग्लैण्ड की गृह तथा विदेश नीति प्रभावित हुई थी।
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