बल्ज़ की लड़ाई , Battle of Bulge in Hindi

बल्ज़ की लड़ाई | Battle of Bulge in Hindi

बल्ज़ की लड़ाई का परिचय

बल्ज़ की लड़ाई जिसे आर्डेनेस आक्रमण के नाम से भी जाना जाता हैं, जर्मनी का अंतिम आक्रामक युद्ध अभियान था। यह युद्ध जर्मनी और मित्रा राष्ट्रो के बीच जर्मनी के पश्चिम मोर्चे पर लड़ा गया था। यह लड़ाई बेल्जियम और लक्जमबर्ग के बीच मौजूद घने जंगलो के आर्डेनेस नामके स्थान पर लड़ी गई थी। यह युद्ध 16 दिसंबर 1944 से शुरू हुआ था और 28 जनवरी 1945 तक यानि पाँच हफ़्तों तक लड़ा गया था। इस युद्ध के साथ ही यूरोप मे द्वितीय विश्व युद्ध की लड़ाइयाँ भी समाप्त हो गई थी। इस युद्ध का प्रमुख उद्देश बेल्जियम मे स्थित एंटवर्प नामके बन्दरगाह को मित्र राष्ट्रो के अधिकार से दूर रखना था। ऐसा करने से मित्र राष्ट्रो की सेना को विभाजित किया जा सकता हैं जो लगातार जर्मनी की तरफ बढ़ रही हैं। ब्रिटिश और अमेरिकी सेना लगातार जर्मनी के पश्चिम सीमा की ओर बढ़ रही थी। इसलिए हिटलर इन सेना को विभाजित करना चाहता था, जिससे इन्हे हराया जा सके, इसलिए हिटलर ने एक अभियान चलाया इस अभियान का नाम था “वॉच ऑन द राइन”, इस आपरेशन के तहत आर्डेनेस के माध्यम से एक आक्रमण करना था और यहाँ से फ्रांस से होते हुये बेल्जियम के एंटवर्प बन्दरगाह को कब्जा करना था।

हिटलर को विश्वास था की अगर उसकी सेना बेल्जियम के एंटवर्प पर कब्जा कर लेगी तो मित्र राष्ट्र को वह संधि के लिए राजी कर लेगा। और एक बार मित्र राष्ट्रो से पश्चिम फ्रंट मे संधि हो जायेगी तो वह अपना पूरा ध्यान रूस पर लगाएगा। जो उस समय जर्मनी के लिए बहुत बड़ा खतरा साबित होता जा रहा था। दिसंबर 1944 तक हिटलर के साथ साथ उसके सेनाध्यक्ष और साथियों को यह स्पष्ट हो चुका था की सोवियत सेना का वह सामना नहीं कर सकते हैं। सोवियत सेना अपनी पूरी ताकत के साथ जर्मनी के पूर्वी सीमा के अंदर आ रही थी। जर्मनी इतनी बड़ी सेना का सामना कर नहीं सकता था, खासकर जब उसके देश में  3 दिशाओ से उस पर हमला हो रहा हो। इसलिए हिटलर ने तय किया की वह अभी सोवियत से नहीं लड़ेगा और पश्चिम मे मित्र राष्ट्रो से लड़ेगा और उन्हे संधि के लिए मजबूर करेगा। इसके बाद अपनी पूरी ताकत लगाकर सोवियत सेना का सामना करेगा। इसी प्लान के तहत हिटलर ने पश्चिम मोर्चे पर ध्यान लगाया जिसे बल्ज़ की लड़ाई के नाम से जाना जाता हैं।

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बल्ज़ की लड़ाई में किसकी जीत हुई?

बल्ज़ की लड़ाई को मित्र राष्ट्रो ने जीती, इस लड़ाई मे जर्मन सैनिको ने अचानक से हमला किया था, फिर भी जर्मनी को इसका फायदा नहीं मिल पाया और जर्मनी को इस लड़ाई मे 120000 सैनिको को खोना पड़ा। जबकि जबकि अचानक हमला होने की वजह से मित्र राष्ट्रो को भी काफी नुकसान उठाना पड़ा था, इस लड़ाई मे मित्र राष्ट्रो के 75000 सैनिको का नुकसान हुआ था। इंग्लैंड के प्रधानमंत्री के अनुसार उन्होने इस युद्ध को ग्रेट वॉर ऑफ अमेरिका कहा था। यह अमेरिका के द्वारा लड़े युद्धो मे एक प्रमुख युद्ध हैं।

बल्ज की लड़ाई में हताहतों की संख्या

बल्ज की लड़ाई, द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अमेरिकी सेना के लिए सबसे अधिक खूनी युद्ध साबित हुई। अमेरिकी, ब्रिटिश और जर्मन सेनाओं ने इस लड़ाई में भारी संख्या में अपने सैनिक और उपकरण खोए। यहां हताहतों की जानकारी इस लड़ाई के विभिन्न चरणों और रिपोर्टों के आधार पर दी गई है।

मित्र राष्ट्रों (अमेरिकी और ब्रिटिश सेनाओं) का नुकसान

बल्ज की लड़ाई के दौरान अमेरिकी सेना के लिए यह अब तक का सबसे घातक और कठिन संघर्ष था। प्रारंभिक अमेरिकी सेना की रिपोर्ट के अनुसार, फर्स्ट और थर्ड यू.एस. आर्मी ने 75,482 सैनिकों का नुकसान सहा, जिसमें 8,407 सैनिक मारे गए, 46,170 घायल हुए और 20,905 लापता हो गए। अन्य आंकड़ों में अमेरिकी थल सेना ने पूरे अभियान (जिसमें “आर्डेंस-एलेस” अभियान भी शामिल है) में कुल 105,102 हताहतों की रिपोर्ट दी, जिसमें 19,246 मारे गए, 62,489 घायल हुए और 26,612 सैनिक लापता या बंदी बना लिए गए।

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इतिहासकार चार्ल्स बी. मैकडॉनल्ड की गणना के अनुसार, इस अभियान में कुल 81,000 अमेरिकी सैनिक हताहत हुए, जिनमें से 41,315 सैनिकों को रक्षा के दौरान और 39,672 सैनिकों को “बल्ज” को समतल करने के प्रयास में हानि हुई। इस अवधि में हताहतों की संख्या अमेरिकी सैनिकों के लिए बेहद हृदयविदारक और चुनौतीपूर्ण रही।

ब्रिटिश सेना के नुकसान अपेक्षाकृत कम थे, फिर भी उन्होंने बल्ज की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। ब्रिटिश XXX कोर की रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने 17 जनवरी 1945 तक 1,408 सैनिकों का नुकसान उठाया, जिनमें 200 मारे गए, 969 घायल हुए और 239 लापता रहे। इतिहासकारों के अनुसार ब्रिटिश XXX कोर की कुल हानि 1,462 थी, जिसमें 222 मारे गए, 977 घायल हुए और 263 लापता रहे।

जर्मन सेना का नुकसान

जर्मन सेना ने भी बल्ज की लड़ाई के दौरान भारी हानि झेली। जर्मन उच्च कमान के अनुसार, 16 दिसंबर 1944 से 25 जनवरी 1945 तक पश्चिमी मोर्चे पर उनकी अनुमानित हानि 81,834 से 98,024 के बीच थी। स्वीकृत आंकड़ों के अनुसार, 81,834 जर्मन सैनिक हताहत हुए, जिनमें से 12,652 मारे गए, 38,600 घायल हुए और 30,582 लापता हो गए।

कुछ अन्य अनुमानों में, जर्मन सेना की हानि 125,000 तक बताई गई है। टी.एन. डुपुई और अन्य इतिहासकारों ने जर्मन रिकॉर्ड और मौखिक गवाही के आधार पर यह बताया कि सिर्फ जर्मन डिवीजनों और ब्रिगेडों में (बिना संलग्न तत्वों और सहायता कर्मियों को जोड़े) 74,459 सैनिक हताहत हुए। इसमें 11,048 मारे गए, 34,168 घायल हुए और 29,243 लापता रहे।

युद्ध उपकरण का नुकसान

इस युद्ध में केवल मानव हानि ही नहीं हुई, बल्कि टैंक, टैंक डिस्ट्रॉयर और असॉल्ट गन जैसे महत्वपूर्ण युद्ध उपकरणों का भी भारी नुकसान हुआ। जर्मन सेना के टैंकों और अन्य उपकरणों में 527 से 554 की संख्या में नुकसान हुआ, जिनमें से 324 टैंक युद्ध के दौरान नष्ट हो गए। इनमें से 16-20 टाइगर टैंक, 191-194 पैंथर्स, 141-158 पैंजर IV, और 179-182 टैंक डिस्ट्रॉयर और असॉल्ट गन शामिल थे।

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अमेरिकी सेना ने भी इसी अवधि में लगभग 733 टैंकों और टैंक डिस्ट्रॉयर का नुकसान सहा, जिसमें 800 टैंकों की पूरी हानि बताई गई है।

बल्ज की लड़ाई ने न केवल मानव हानि बल्कि युद्ध में उपयोग होने वाले उपकरणों पर भी गहरा प्रभाव डाला। यह लड़ाई द्वितीय विश्व युद्ध में एक निर्णायक मोड़ साबित हुई क्योंकि इसने जर्मन सेना की शक्ति को कमजोर कर दिया और मित्र राष्ट्रों के लिए जीत की दिशा तय कर दी।

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