Vienna Congress in Hindi : वाटरलू के युद्ध में नेपोलियन बुरी तरह से हार गया था। इस युद्ध के बाद नेपोलियन सेन्टहेलैना के सुनसान और निर्जन द्वीप में चला गया और फ्रांस के राजगद्दी में लुई 18वें को बैठा दिया गया। इसके बाद यूरोप के सभी राजनीतिज्ञ उस समय की समस्याओं के हल को ढूँढने के लिये आस्ट्रिया की राजधानी वियना में एकत्रित हुए थे। इस कांग्रेस के सामने सबसे प्रमुख प्रश्न नेपोलियन द्वारा निर्मित साम्राज्य की पुनर्स्थापना का था। इस समय अधिकांश राजनीतिज्ञ प्रतिक्रियावादी थे और वे क्रांति का चिन्ह यूरोप से मिटाने के लिये उत्सुक थे। इस सम्मेलन में यूरोप के छोटे तथा बडे सभी राष्ट्रों के प्रतिनिधि सम्मिलित हुए। फ्रांस का प्रतिनिधित्व वहा के प्रमुख नेता तालेरा ने किया। इस कांग्रेस का प्रधान आस्ट्रिया का प्रधानमंत्री मैटरनिख को बनाया गया और अधिकांशत: उसी की इच्छाओं का पालन इस कांग्रेस में किया गया।
वियना कांग्रेस की प्रमुख समस्याएँ
वियना की कांग्रेस के समक्ष निम्नलिखित प्रमुख समस्याएँ उपस्थित हुई थीं-
- विजित प्रान्तों की पुन: स्थापना– 1815 तक यूरोप की राजनैतिक व्यवस्था में महान् राजनैतिक परिवर्तन हो गया था। नेपोलियन ने अपनी विजयों द्वारा यूरोप के राष्ट्रों की सीमाओं में घोर परिवर्तन कर दिया था और जब तक वह जीवित रहा निरन्तर यूरोप के मानचित्र में उलट-फेर होता रहा। उसके द्वारा विजित देशों में क्रांतिकारी भावनाओं के प्रसार से वहाँ के शासकों को राज्य करना असम्भव प्रतीत हो रहा था। वियना की कांग्रेस के सामने इन्हीं विजित प्रान्तों की पुन: स्थापना का प्रश्न था।
- क्रांतिकारी विचारधाराओं को रोकना– क्रांति ने यूरोप में क्रांतिकारी सिद्धान्तों का प्रसार कर दिया था और वियना की कांग्रेस के राजनीतिज्ञों के लिये इनका अन्त करना असम्भव था। इन भावनाओं ने स्थायी रूप से जनसाधारण के हृदय में घर कर लिया था। क्रांतिकारियों के प्रयत्नों के फलस्वरूप सारे यूरोप की दीर्घकालीन व्यवस्था समाप्त हो चुकी थी। जनता लोकप्रिय शासन प्रणाली के लाभों से अवगत हो चुकी थी। जनता उसी शासन प्रणाली को स्थायी बनाने के लिये उत्सुक थी किन्तु वियना का प्रधान मैटरनिख घोर प्रतिक्रियावादी था। वह लोकप्रिय शासन रूपी छूत की बीमारी को यूरोप में फैलाने नहीं देना चाहता था क्योंकि उसे भय था कि कहीं आस्ट्रिया व रूस जैसे निरंकुश देशों की जनता अपने शासकों का दमन न कर डाले। दूसरी ओर प्रजा अपने अधिकारों को इतनी जल्दी छोड़ने को तैयार नहीं था। अत: क्रांतिकारी व प्रतिक्रियावादी सिद्धान्तों के संघर्ष का फैसला करना भी वियना की कांग्रेस के लिये अत्यन्त आवश्यक था। इसकों सुलझाने के लिये राजनीतिज्ञों ने अनुचित मार्ग अपनाया जिसके कारण इस कांग्रेस के निर्णय स्थायी न रह सके।
- चर्च की समस्या– चर्च की समस्या भी कांग्रेस के सम्मुख उपस्थित थीं। क्रांति से पहले समस्त यूरोप का धार्मिक नेता पोप था। सभी राज्यों के चर्च की भूमि अलग होती थी जिसकी आय से खर्च चलता था। धार्मिक झगड़ों का निपटारा करने के लिये प्रत्येक देश में धार्मिक न्यायालय थे। क्रांति के आरम्भ में राष्ट्रीय सभा ने चर्च की समस्त भूमि छीनकर राज्य पर उसका अधिकार घोषित कर दिया। क्रांति के विस्तार के साथ-साथ अन्य देशों में भी चर्च की भूमि को जब्त कर लिया गया। नेपोलियन के समय में चर्च राज्य पर की एक संस्था मात्र बन गया। इन परिवर्तनों ने पोप को क्रुद्र कर दिया। अन्त में पोप नेपोलियन द्वारा बन्दी बना लिया गया। इससे यूरोप के अन्य कैथोलिक राज्य नेपोलियन के विरोधी बन गये। नेपोलियन के बाद कांग्रेस के सम्मुख यह समस्या उत्पन्न हुई कि पोप व उसके राज्य को पुन: स्थापित किया जाये अथवा नहीं। क्रांति के परिणामस्वरूप पोप को आवश्यक समझने वाला एक दल यूरोप में उत्पन्न हो गया था, किन्तु प्रतिक्रियावादी कांग्रेस पोप के पुन: स्थापन को आवश्यक समझती थी।
- पोलैण्ड एवं सेक्सनी की समस्या- सबसे पहले कांग्रेस को जिस समस्या का सामना करना पड़ा वह पोलैण्ड एवं सेक्सनी के विषय में थी। 1810 में राष्ट्रो के युद्ध के पूर्व रूस के जार ने वारसा की डची को आस्ट्रिया प्रशा व रूस में विभाजित करने का वचन दिया था, किन्तु युद्ध के बाद उसने सारे प्रदेश को रूस में मिलाने की इच्छा प्रकट की । पोलैण्ड के पुनर्निर्माण को वह स्थापित रहने देना चाहता था। वह अप्रत्यक्ष रूप से हस्तक्षेप करके पोलैण्ड के द्वारा रूस की आर्थिक व सैनिक शक्ति को दृढ़ बनाने का इच्छुक था। इसलिये उसने प्रस्ताव रखा कि पोलैण्ड के स्थान पर आस्ट्रिया को इटली का कुछ भाग दे दिया जाय और सेक्सनी का राज्य प्रशा करे। उसने वारसा की डची की अपनी सेना द्वारा घेरने के उपरान्त कांग्रेस के सम्मुख अपना यह प्रस्ताव रखा। प्रशा के शासक ने तो यह स्वीकार कर लिया किन्त्ुा आस्ट्रिया व इंग्लैण्ड दोनों ने मिलकर इसका घोर विरोध किया। इस प्रकार दोनों पक्षों में दलबन्दी हो गयी। ऐसा प्रतीत होता था। कि इनमें परस्पर युद्ध छिड़ जाएगा। किन्त्ुा तालेरा के हस्तक्षेप के द्वारा प्रशा को सेक्सनी का एक भाग मिल गया और पोलैण्ड का अधिकांश भाग रूस को प्राप्त हुआ। गैलोशिया आस्ट्रिया को दे दिया गया। इस प्रकार इस भंयकर समस्या को हल किया गया।
वियना कांग्रेस के सिद्धान्त
वियना की कांग्रेस में सम्मिलित होने वाले अधिकतर राजा व उसके मंत्री दैवी अधिकारों के सिद्धान्त के पोषक थे। उनका मुख्य उद्देश्य राजतंत्र को पुन: स्थापित करना था। अत: उन्होंनें समस्याओं के हल के लिये वैध सिद्धान्त को अपनाया (क्रांति के पूर्व की अवस्था की पुनर्स्थापना)। नेपोलियन द्वारा विजित राष्ट्रों को पुन: प्राचीन राजवंशों के अधीन कर दिया जाए। मैटरनिख पहले जैसी अवस्था मे सबको ला देना चाहता था। फ्रांस, स्पेन, पुर्तगाल, हॉलैण्ड, इटली व जर्मनी के लगभग सभी राज्य उनके पुराने शासकों को लौटा दिये गये। और निरंकुश राजसत्ता की पुर्नस्थापना कर दी गई। कांग्रेस यूरोप में शक्ति सन्तुलन बनाये रखना चाहती थी। इसी के अनुसार सारा सेक्सनी प्रशा को नहीं दिया गया। फ्रांस के चारों ओर शक्तिशाली राज्य स्थापित किये गये जिससे वह यूरोप के संकट न उत्पन्न कर सके। इस सिद्धान्त द्वारा बहुत से छोटे-छोटे राज्य समाप्त हो गए। बैल्जियम बलपूर्वक हॉलैण्ड में मिला दिया गया। कांग्रेस के राजनीतिज्ञ राष्ट्रीयता की भावना को नष्ट कर देना चाहते थे।
वियना कांग्रेस की कार्य प्रणाली
कांग्रेस की कोई निश्चित कार्य प्रणाली नहीं थी। कहीं भी अवकाश के समय गम्भीर समस्याओं के विषय में निर्णय कर दिया जाता था। जनता की इच्छा व अनिच्छा का इन निर्णयों में कोई ध्यान नहीं रखा जाता था। चारों बड़े राष्ट्र-रूस, इंग्लैण्ड, प्रशा व आस्ट्रिया इस संधि से अधिक से अधिक लाभ उठाने का निश्चय किये हुए थे। क्रांति के फूलों को नष्ट करने का प्रयत्न किया गया। सभी अपने-अपने स्वार्थ को पूरा करने में लगें थे। अन्त में 2 जून 1815 को अन्तिम कानून पास कर दिया गया जो वियना की कांग्रेस के नाम से इतिहास में प्रसिद्ध हुआ।
मुख्य निर्णय
वियना की संधि की धाराएँ-
- वैध अधिकार के सिद्धान्त द्वारा राष्ट्रों को हर्जाना दिया गया। इंग्लैण्ड को यूरोप में माल्टा आयोनियम द्वीप समूह का संरक्षण प्राप्त हुआ और इसी के साथ-साथ हेलीगीलैण्ड का द्वीप भी उसे प्राप्त हो गया। यही नहीं उसका औपनिवेशिक साम्राज्य भी विस्तृत कर दिया गया। ट्रिनिडाड, टोबेगा, मारिशस, सेन्ट लूसिया, उत्तमाशा अन्तरीप एवं लंका, इंग्लैण्ड को दे दिये गये।
- हॉलैण्ड में ऑरेन्ज वंश की पुन:स्थापना हो गई। इसे शक्तिशाली बनाने के लिये बेल्जियम को इसके साथ मिला दिया गया। बेल्जियम के विरोध की तनिक भी परवाह नहीं की गई। इस तरह इंग्लैण्ड का शासक संगठित नीदरलैण्ड का शासक बना दिया गया।
- बेल्जियम के बदले में आस्ट्रिया को इटली का बहुत-सा प्रदेश दे दिया गया। लोम्बार्डी एवं वेनीशिया आस्ट्रिया को दिए गए और इलीरिया का सूबा भी उसके अधिकार में आ गया। पोलैण्ड से गेलिशिया व बबेरिया से टाइरोल लेकर आस्ट्रिया को दे दिया गया । इससे आस्ट्रिया की शक्ति बहुत बढ़ गयी। यह मैटरनिख की राजनीतिज्ञता का परिणाम था।
- स्वीडन को फिनलैण्ड का प्रदेश रूस को पोमेरेनिया प्रशा को देना पड़ा। डेनमार्क से नार्वे का प्रदेश छीनकर स्वीडन को दे दिया गया। इस तरह स्वीडन व नार्वे का संगठन हो गया । अत: डेनमार्क को नेपोलियन का साथ देने के कारण दंडित किया गया।
- नेपोलियन द्वारा विजित जर्मनी के सभी प्रदेश प्रशा को मिल गये। स्वीडन से उसे पोमेरेनिया का प्रदेश मिला। सेक्सनी का 2/5 भाग उसके अधिकार में आ गया। वेस्टफेलिया का पूरा प्रदेश तथा राइन का अधिकांश भाग उसकों मिल गया। प्रशा को इतना अधिक शक्तिशाली बनाने का उद्देश्य फ्रांस पर अंकुश रखना था। यही नही प्रशा जो अब तक कृषि प्रधान देश था खनिज पदार्थ वाले प्रदेशों के मिल जाने से औद्योगिक देश बन गया।
- फ्रांस के दक्षिण में स्थिति सार्डिनिया का जो क्रांति से पूर्व इटली का भाग था। विशाल एवं सुदृढ़ राज्य के रूप में परिवर्तित करने का निश्चय किया गया। उसमें पीडमाण्ट, जेनोआ, सेवाय मिला दिये गये और सार्डिनिया के पुराने राजवंश को ही वहाँ का शासक स्वीकार कर लिया गया। इस प्रकार वियना क कांग्रेस ने अप्रत्यक्ष रूप से इटली के एकीकरण मे सहयोग दिया।
- जर्मनी की पुन: स्थापना मे वैध अधिकार के सिद्धान्त का पालन नहीं किया गया वरन् जर्मनी का एक ढीला ढाला संघ की स्थापना कर दी गई। इस संघ में एक परिषद् होती थी। जिसमें विभिन्न राज्यों के प्रतिनिधित्व सम्मिलित होते थे और राज्य परिषद का प्रधान आस्ट्रिया बना दिया गया राज्य परिषद की अनुमति प्राप्त करके ही संघ के सदस्य विदेशी से संधि या युद्ध कर सकते थे। राज्य परिषद शासकों द्वारा चुनी जाती थी। जनता द्वारा नहीं अत: वे लोग शासकों के प्रति उत्तरदायी थे। यह संघ केवल एक बहकावा मात्र था।
- स्विट्जरलैण्ड में कांग्रेस को स्वतंत्र संघात्मक प्रजातंत्र शासन प्रणाली स्वीकार करनी पड़ी। इसको शक्ति सम्पन्न बनाने के लिये इसमें तीन प्रदेश और जोड दिये गये।
- स्पेन और नेपिल्स के राज्य पुन: वहाँ के शासकों को दे दिये गये और उनकी सीमाएँ 1789 से पहले की ही तय कर दी गयी।
- रूस को वारसा को डची का अधिकांश भाग दे दिया और स्वीडन से छीना हुआ फिनलैण्ड भी उसके ही पास रहने दिया गया। टर्की से छीना हुआ बेसारेबिया का प्रदेश भी उसी के पास जोड़ दिया गया।
- इटली को दुबारा विभिन्न भागों में विभाजित कर दिया गया। पोप का राज्य पोप को दे दिया गया। लोम्बार्डी, वेनीशिया तथा इलीरिया के प्रदेश आस्ट्रिया को मिल गये। टस्कनी व मोडेना हैप्सबर्ग वंशीय राजकुमारी को दिये गये।
कांग्रेस के अन्य निर्णय
इस नवीन राजनैतिक व्यवस्था के अतिरिक्त वियना की कांग्रेस ने दो महत्वपूर्ण कार्य दास प्रथा का अन्त एवं अन्तर्राष्ट्रीय संविधान का निर्माण किया-
- दास प्रथा का अन्त– 17वीं व 18वीं शताब्दी में समस्त यूरोप में दास प्रथा का प्रचलन था। संसार के अनेक भागों से विशेष रूप से अफ्रीका से जहाज भर-भर कर दास लाये थे और उनका यूरोप के सीमान्त खरीद लेते थे। तथा ये लोग आजीवन दासत्व के बंधन के जकड़े रहते थे। इनके स्वामी इन पर घोर अत्याचार करते थे। कोड़ो द्वारा पीट-पीटकर इनकी जान निकाल दी जाती थी। 19वीं शताब्दी के शुरू होने पर समानता एवं बंधुत्व के समर्थक इस प्रथा के घोर विरोधी थे। इन्हीं उदारचित्त वाले व्यक्तियों के प्रयत्न से कांग्रेस ने दास प्रथा का अन्त करने का प्रस्ताव पास किया।
- अन्तर्राष्ट्रीय संविधान- कांग्रेस ने अन्तर्राष्ट्रीय की भावना का सम्मान किया। यह अन्तर्राष्ट्रीयता केवल यूरोप तक ही सीमित थी किन्त्ुा फिर भी यह आधुनिक अंतर्राष्ट्रीयता की आधारशिला अवश्य थी। यूरोप में भयंकर युद्धों को रोकने के लिये अंतर्राष्ट्रीय संविधान का निर्माण किया गया। सभी व्यापारिक जहाज सभी राष्ट्रों द्वारा समुद्र पर चलाये जा सकते थे। सभी को समान व्यापार सुविधाएँ दी गई। इस संविधान में एक राज्य के प्रति व्यवहार करने की रीति बतलाई। इस संविधान का इंग्लैण्ड ने घोर विरोध किया क्योंकि व्यापारिक प्रतिबंधों के हटने से उसके व्यापार को धक्का पहुँचता था। अत: यह संविधान कभी कार्यान्वित न हो सका।
वियना कांग्रेस के प्रमुख दोष या आलोचनाएँ
वियना की कांग्रेस के अधिकांश निर्णय अस्थायी थे। पूरी 19 वीं शताब्दी इस कांग्रेस द्वारा की गई भूलों को सुधारने मे व्यतीत हुई। कांग्रेस ने कुछ ऐसी सैद्धान्तिक भूले की थी जिन्होनें उसके निर्णयों को सफल नहीं होने दिया। कांग्रेस ने राष्ट्रीयता भावना का अनादर करके प्रोस्टैण्ड हॉलैण्ड को कैथोलिक बेल्जियम साथ जोड़ दिया।15 वर्ष के बाद ही बेल्जियम स्वाधीन हो गया। इसी प्रकार 50 वर्ष बाद इटली व जर्मनी में संगठन की लहर उठी और कांग्रेस के निर्णय रद्द कर दिये गये। पोलैण्ड निरन्तर रूस के प्रति विद्रोह करता रहा और अन्त में सौ वर्ष बाद अपने उद्देश्य में सफल हुआ। वियना की कांग्रेस ने राष्ट्रीयता की भावना एवं जनता की इच्छा की परवाह किये बिना ही एक बार पुन: प्राचीन युगीन व्यवस्था स्थापित करने का प्रयत्न किया। इसके अतिरिक्त कांग्रेस ने उदार विचारधारा का ध्यान नही रखा। लूट का अधिक से अधिक माल हड़पने की कोशिश की और उदार विचारधारा को अनसुना कर दिया। युद्धों को रोकने के विचार से क्रांति के तत्वों को पूर्णत: दबाने की कोशिश की गई। परिणाम यह हुआ कि शांति एक स्वप्न बन गई। नार्वे, बेल्जियम, पोलैण्ड को कब तक दबाया जा सकता था। कुछ समय बाद जनता द्वारा ये निर्णय रद्दी की टोकरी में फेंक दिये गये। फ्रांस का साम्राज्य तो नष्ट किया जा सकता था। किन्तु जनता के हृदय में प्रविष्ट क्रांति की भावनाओं को भला कैसे नष्ट किया जा सकता था। कुछ भी हो कांग्रेस द्वारा यूरोप को कई लाभ हुए। इस कांग्रेस के साथ ही यूरोप मे एक नवीन युग का सूत्रपात हुआ और इसके अलावा कांग्रेस ने यूरोप मे अन्तर्राष्ट्रीयता के विचार का विकास किया।
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