नेपोलियन के पतन के समय यूरोपीय रंचमंच पर मैटरनिख का आविर्भाव एक प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ के रूप में हुआ। जिस समय तक वह आस्ट्रिया का प्रधानमंत्री रहा यूरोप की राजनीति उसी के इशारे पर नाचती रही। यही कारण है इतिहासकार उस समय को मैटरनिख युग के नाम से पुकारते हैं। चूँकि मैटरनिख की विचारधारा प्रतिक्रियावादी थी इसलिये उसके युग को प्रतिक्रियावादी युग भी कहते है।
प्रारम्भिक जीवन | mettenich ke patan ke karan
मैटरनिख का पूरा नाम काउन्ट क्लीमेंस वान मैटरनिख था। उसका जन्म 15 मई 1773 को कोब्लेंज नामक नगर में हुआ था। उसके पिता आस्ट्रिया राजनयिक सेवा में उच्च पद पर आसीन थे। मैटरनिख ने उच्च शिक्षा स्ट्रासबर्ग तथा मेंज विश्वविद्यालयों में प्राप्त की तथा इसी समय फ्रांस की क्रांति के विषय में सुना। जेकोबिन दल के कार्यो ने उसके हृदय में क्रांति विरोधी बीज बो दिये। 1795 में मैटरनिख का विवाह आस्ट्रिया के चांसलर कनिज की पौत्री से हुआ। इस विवाह का उसके जीवन पर अच्छा प्रभाव पड़ा तथा उसकी प्रतिष्ठा में अपार वृद्धि हुई। 1801 से 1806 के मध्य वह यूरोप के अनेक देशों के राजदूत के रूप में नियुक्त हुआ। उसकी योग्यता से प्रभावित होकर आस्ट्रिया के सम्राट फ्रांसीसी 1 ने 1809 में उसे आस्ट्रिया का प्रधानमंत्री (चांसलर) नियुक्त किया। इस पद पर वह 30 वर्ष तक कार्य करता रहा। 1809 से 1815 के मध्य मैटरनिख ने नेपोलियन की महत्वाकांक्षाओं से आस्ट्रिया की रक्षा की किन्तु यूरोप पर उसका वास्तविक प्रभाव 1815 से होना प्रारम्भ हुआ।
मैटरनिख के समय का आस्ट्रिया
मध्यकाल से आस्ट्रियन साम्राज्य के शासक हेप्सबर्ग वंश के राजकुमार होते थे। इस साम्राज्य के अन्तर्गत तीन देश इटली हंगरी एवं बहोमिया थे। इटली के प्रदशों में भी आस्ट्रिया था। आस्ट्रिया तथा हंगरी में अगणित जातियाँ निवास करती थीं। अत: आस्ट्रियन साम्राज्य विभिन्न जातियों का अजायबघर था। क्रांति के बाद नेपोलियन के कारण राष्ट्रीय भावनाओं का प्रसार हो जाने के कारण आस्ट्रियन साम्राज्य की विभिन्न जातियाँ विदेशी स्वेच्छाचारी शासन के अधीन रहने के तैयार नहीं थीं। पवित्र रोमन सम्राट के पद के कारण उसका राज्य एक विशाल साम्राज्य के रूप में परिणित हो गया। 19वीं शताब्दी में राष्ट्रीय भावनाओं के प्रसार के कारण तथा पवित्र रोमन सम्राट की उपाधि का अन्त हो जाने से अब जर्मनी के विशाल राज्यों को वश में रखना आस्ट्रिया के लिये प्रमुख समस्या थीं।
आस्ट्रिया की शासन प्रणाली-
मैटरनिख के आगमन के समय आस्ट्रिया में निरंकुश एवं स्वेच्छाचारी एकतंत्र शासन प्रणाली का प्रचलन था। मंत्री राजा के प्रति उत्तरदायी होते थे। राजा को कानून बनाने कर लगाने तथा धन व्यय करने का पूर्ण अधिकार था। लेखनी एवं भाषण का कठोर नियंत्रण था, कुलीनों एवं उच्च पुरोहित विशेषाधिकारों से सुशोभित थे। किसान तथा व्यापारी अत्यन्त हीन दशा में थे। राजा अपने अधीन राज्यों के प्रति अत्याचारपूर्ण व्यवहार करता था। कैथोलिक धर्म राज्य धर्म या अन्य धर्मावलम्बियों पर नाना प्रकार के अत्याचार किये जाते थे। केन्द्रीयकरण् की भावना नाममात्र के लिये भी नहीं थीं। कुलीन वर्ग से सम्बंधित व्यक्ति ही साम्राज्य में उच्च पद प्राप्त कर सकता था। साधारण एवं निम्न वर्ग की दशा अत्यन्त शोचनीय थी। राजा कुलीन वर्ग का खिलौना मात्र था। वे उसे अपनी उंगलियों पर नचाते थे। आस्ट्रिया में जनसाधारण का पक्ष लेने वाला कोई नहीं था।
मैटरनिख की विचारधारा
मैटरनिख परम्परावादी एवं पुरातन व्यवस्था का समर्थक था। सौभाग्य से उसका सम्राट फ्रांसीसी प्रथम भी उसी के समान विचारधारा वाला था। फ्रांस की क्रांति के कारण यूरोप में उस समय ‘स्वतंत्रता समानता तथा भ्रातृत्व’ के विचार बलवती होते जा रहे थे। मैटरनिख इन सिद्धान्तों और क्रांति का घोर विरोधी था। मैटरनिख का विचार था कि ये विचार छूत के रोग के समान है जिसका समय से इलाज करना आवश्यक था। उसका विचार था कि प्रतिक्रियावादी नीतियों के द्वारा ही नीतियों में शांति बनाये रखी जा सकती थी। आस्ट्रिया के सम्राट फ्रांसीस1 का कहना था। ‘शासन करो किन्त्ुा कोई परिवर्तन न करो’। मैटरनिख भी इसी सिद्धान्त का समर्थक था तथा यूरोप में यथास्थिति बनाए रखना चाहता था। वह कहा करता था। ‘सब वैसे ही रहने दो जैसा है। नवीन परिवर्तन लाना पागलपन है’। उसका विचार था कि ऐसा निरंकुश राजतंत्र के द्वारा भी सम्भव था, अत: वह सदैव प्रतिक्रियावादी नीतियों को अपनाता रहा तथा उसका समर्थन करता था।
मैटरनिख की वैदेशिक नीति-
मैटरनिख ने अपनी प्रतिक्रियावादी नीति को विदेशों में लागू करने का प्रयास किया। उसने स्पेन, इटली तथा जर्मनी के राष्ट्रीय आन्दोलनों का कठोरता से दमन किया। उसकी वैदेशिक नीति का सम्बंध अग्र देशों से था।
- जर्मनी के प्रति- वियना कांग्रेस से जर्मनी को 39 राज्यों का एक ढीला-ढाला संघ बना दिया था। मैटरनिख ने 1819 में काल्सवाद नामक स्थान पर यूरोपीय शासकों का एक सम्मेलन बुलाया जिसमें प्रेस, आध्यापकों, छात्रों आदि पर कड़े प्रतिबंध लगाये। मैटरनिख ने कड़े नियम बनाकर राष्ट्रीय भावनाओं को ठेस पहुँचायी।
- स्पेन के प्रति- मैटरनिख ने 1822 के सैनिक विद्रोह का दमन करवाया। वहाँ पर फर्डीनेण्ड की निरंकुश सत्ता स्थापित करवा दी।
- इटली- वियना की समझौते के अनुसार इटली के वेनिस और लम्वार्डी प्रदेशों पर आस्ट्रिया का शासन स्थापित हो गया था। इस पर इटली के नेपल्स और पीटमाण्ड नामक राज्यों में विद्रोह हो गया। 1848 में इटली के राज्यों ने आस्ट्रिया के विरूद्ध विरोध किया। पर आस्ट्रियन सेनाओं ने विद्रोह को कुचलकर इटली से आस्ट्रिया की संधि कर ली। युद्ध का हर्जाना देने पर उसे बाध्य किया।
- फ्रांस के प्रति- मैटरनिख फ्रांस की राज्य क्रांति से घृणा करता था। नेपोलियन के पतन के बाद उसने वियना सम्मेलन में फ्रांस की भावनाओं को नष्ट करने का हर सम्भव प्रयत्न किया।
- रूस की प्रति- 1815 के पश्चात रूस में भी क्रांति की भावनाओं का प्रसार हुआ। जब ग्रीस की जनता ने टर्की से सुल्तान के शासन का विरोध किया तो रूस ने ग्रीस को सहायता नहीं दी।
- इंग्लैण्ड के प्रति- शुरू में आस्ट्रिया और इंग्लैण्ड में शत्रुता न थी पर 1818 में अन्य देशों के आन्तरिक विषयों मे हस्तक्षेप करने की नीति पर दोनों देशों मे मतभेद हो गया।
- वोहमिया तथा हंगरी के प्रति- आस्ट्रिया के शासन के विरूद्ध 1848 में वोहेमिया में स्लाब और हंगरी में मौदियोर्ज जातियों ने विद्रोह कर दिया। मैटरनिख ने इन सबका दमन किया।
मैटरनिख की गृह नीति-
मैटरनिख प्राचीन व्यवस्था का पक्षपाती था। वह जनता के अधिकारों का कट्टर विरोधी था। रूढि़वादी प्रवृत्तियों के पोषक और प्रतिक्रियावादी के अवतार मैटरनिख ने आस्ट्रिया को क्रांतिकारी व उतारवादी विचारों से सुरक्षित रखने के लिये बड़ी सक्रिय नीति अपनाई। उसने 1814-15 से 1843 तक प्रतिक्रियावाद को आस्ट्रिया में एवं आस्ट्रिया को यूरोप में प्रभावशाली बनाने का प्रयत्न किया। उसका विश्वास यथास्थिति या साम्यावस्था में था। इसके अतिरिक्त उसने आस्ट्रिया-हंगरी साम्राज्य के उदार विचारों के दमन और कठोर नियंत्रण की नीति अपनायी तथा अपने देश में राष्ट्रीयता स्वतंत्रता आदि के प्रगतिशील और क्रांतिकारी विचार न पनपने देने एवं स्वेच्छाचारी तथा निरंकुश शासन करने के लिये अपने प्रधानमन्त्रित्व काल में अनेक प्रतिक्रियावादी कार्य किये। गृह नीति में उसका प्रधान लक्ष्य प्रतिरोध का था। मैटरनिख ने अपने आपकों सनातनवाद या रूढि़वाद का महान पुजारी सिद्ध किया।
उसने आस्ट्रिया में पुलिस राज्य कायम कर दिया। उसने उदार दलों का बलपूर्वक दमन किया और स्वायत्त शासन के स्थान पर निरंकुश शासन की पुन: स्थापना कर दी। अध्ययन अध्यापन मुद्रण एवं आमोद-प्रमोद आदि से सम्बंधित सभी संस्थाओं पर पुलिस और गुप्तचरों की कठोर दृष्टि रखी गई। इस दृष्टि से उसकी नीति ध्वंसात्मक थी उसकी सम्पूर्ण कार्यप्रणाली इस बात में निहित थी कि दृढ़ता से शासन किया जाए और परिवर्तन रोका जाए। अपनी नीति की व्याख्या करते हुए एक बार मैटरनिख ने कहा था- ‘जहाँ तक नीति का प्रश्न है, आस्ट्रिया की कोई नीति नहीं है। हमारी नीति की सीमा केवल यही है कि शांति स्थापित रखी जाए और संधि प्रतिज्ञाओं का पालन किया जाये। पुननिर्माण के रचनात्मक कार्यो में न उलझकर उसने पुरातन व्यवस्था को फिर से संवारने में अपना जीवन खपाया’। मैटरनिख की अनुदार नीति से आस्ट्रिया को भारी हानि उठानी पड़ी। आस्ट्रिया नवीन विचारों से वंचित रह गया। उसकी नीति ने आस्ट्रिया को प्रगतिशील नहीं होने दिया। देश में शांति अवश्य स्थापित हो गई। लेकिन आर्थिक स्थिति अत्यन्त खराब हो गई। आस्ट्रिया सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक तथा व्यापारिक क्षेत्र में यूरोप के अन्य देशों से पीछे रह गया।
मैटरनिख का पतन और उसके कारण
सन् 1815 से 1848 तक मैटरनिख क्रांतियों को रोकने और उसक दमन में रत रहा परन्त्ुा 1848 की क्रांति ने उसकी जड़े हिला दी। मार्च 1848 मे वियना की सड़के ‘मैटरनिख का नाश हो’ के नारों से गूँजने लगी थी और फलस्वरूप आस्ट्रिया के चांसलर, मैटरनिख को घबराकर अपने पद से त्यागपत्र देना पड़ा और अपना जीवन बचाने के लिये इंग्लैण्ड भाग जाना पड़ा। इस प्रकार एक कट्टर राज सत्ताधारी की करूणाजनक अन्त हुआ। उसके पतन से यूरोपीय इतिहास का एक युग समाप्त हो गया। उसके पतन निम्नलिखित कारण है।
- मैटरनिख की शासन प्रणाली- मैटरनिख की शासन की प्रणाली पूर्णता प्रतिक्रियावादी और क्रांतिजनित विचारों की विरोधी थी और परिणामस्वरूप उसका शासन विचारशील लोगों और देशभक्तों के लिये असहृ हो गया।
- दमनकारी नीति- मैटरनिख की दमनकारी नीति के कारण समस्त यूरोप में आतंक छा गया और प्रत्येक राज्य की जनता उसकी विरोधी हो गई।
- समाजवादी भावना का जन्म- यूरोप में समाजवादी भावना का जन्म होने से वहाँ की जनता अपने अधिकारों के लिये संघर्ष करने लगी और श्रमिकों एवं पूँजीपतियों का विरोध बढ1 गया और उसका भी मैटरनिख के शासन पर व्यापक प्रभाव पड़ा।
- प्रगति के विरूद्ध- उकसा शासन प्रगति के विरूद्ध था। उसमें विकास के लिये कोई स्थान नहीं था। ऐसा शासन अधिक समय तक नहीं चल सका। वह समाजवादी, उदारवादी, राष्ट्रवादी तीन आन्दोलनों के खिलाफ था। इसलिये वह सफल नहीं हो सका।
- कठोर नीति व प्रतिबंध- शिक्षा के क्षेत्र में उसने कठोर नीति और प्रतिबंध लागू किये फलस्वरूप शिक्षक और बौद्धिक वर्ग मैटरनिख का विरोधी बन गया।
- आस्ट्रिया में राष्ट्रीय आन्दोलन- आस्ट्रिया के राष्ट्रीय आन्दोलन ने मैटरनिख को पतन की राह पर पहुँचाया।
- अन्य कारण- यूनानी स्वतंत्रता संग्राम, इंग्लैण्ड की विदेशी नीति और 1830 और 1848 की फ्रांस की क्रांति ने उसके पतन का रास्ता खोल दिया।
मैटरनिख का इतिहास में स्थाल
मैटरनिख का पतन करूणाजनक था। फिर भी उसे यूरोप के इतिहास में एक बड़ा स्थान प्राप्त है। उसका युग मैटरनिख युग के नाम से जाना जाता है।
- मैटरनिख युग- उसका प्रभाव आस्ट्रिया में ही नहीं सम्पूर्ण यूरोप में था। वह वियना सम्मेलन का अध्यक्ष भी था। उसके कारण आस्ट्रिया में 1830 तक किसी प्रकार के विद्रोह नहीं हुए।
- लम्बे समय तक शांति- उसके कारण यूरोप में एक लम्बे समय तक शांति रही। उसने कहा थ कि यूरोप में शांति रखने के लिये मेरी नीति आवश्यक और अनिवार्य साधन है। उसका जन्म यूरोप के ढाचें को ठीक करने के लिये हुआ था। वास्तव में वह यूरोप में शांति स्थापित करने के लिये अथक प्रयास करता रहा।
- प्रतिक्रियावादी नीति- उसकी प्रतिक्रियावादी नीति तो आस्ट्रिया के और न यूरोप के निरंकुश शासकों के हित में थी।
- महान कूटनीतिज्ञ- यूरोप में मैटरनिख का स्थान महान् कूटनीतिज्ञों में लिया जाता है। वह यूरोप की राजनीति का केन्द्र था। उसके काल में प्रगतिवादी और प्रतिक्रियावादी शक्तियों का संघर्ष रहा। इसलिये उसका पतन हुआ क्योकि वह प्रतिक्रियावादी था। उसमें अनेक गुण भी मौजूद थे।