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धर्म सुधार आंदोलन क्या हैं और उसके कारण | Dharm sudhar Andolan

16वीं सदी के प्रारम्‍भ में यूरोप में एक ऐसा आन्‍दोलन प्रारम्‍भ हुआ जिससे धार्मिक क्षेत्र में रोमन चर्च की सैकडों वर्षो से चली आ रही सार्वभौम सत्‍ता छिन्‍न-छिन्‍न हो गई। ईसाई धर्म की एकता भंग हो गई एवं वह कई सम्प्रदायों में विभाजित हो गया। इस व्‍यापक एवं प्रभावपूर्ण आन्‍दोलन को धर्म सुधार आन्‍दोलन (Dharm sudhar Andolan) कहा जाता था।

इतिहासकार ‘गीजो’ ने लिखा है कि “इस आन्‍दोलन ने मानसिक एवं आध्‍यात्मिक क्षेत्रों मे प्रतिष्ठित‍ निरंकुशता का अन्‍त कर मानव मस्तिष्‍क की स्‍वतंत्रता स्‍थापित की”।

एच.ए.एल.फिशर ने लिखा है- “साधारण: धर्म सुधार की संज्ञा 16वीं शताब्‍दी की धार्मिक क्रान्ति को दी जाती है, जिसने यूरोप ने अनेक राष्‍ट्रों को रोम के चर्च से अलग कर दिया”। इस प्रकार यह साधारण सुधार आन्‍दोलन होकर क्रान्ति कही जा सकती है। आधुनिक युग के प्रारम्‍भ में धर्म सुधार आन्‍दोलन एक बड़ी महत्‍वपूर्ण घटना मानी जाती है। 1517 से  1648 ई. तक का काल वस्‍तुत: धर्म सुधार का युग था। इस युग का प्राय: सभी घटनाएँ धर्म सुधार आन्‍दोलन द्वारा किसी न किसी रूप मे प्रभावित हुई।

धर्म सुधार आन्‍दोलन के कारण

धर्म सुधार आन्‍दोलन के कारणों का निम्‍नलिखित शीर्षकों के अन्‍तर्गत अध्‍ययन किया जा सकता है-

(i) धार्मिक कारण

  1. पोप के अधिकार- मध्‍य युग चर्च की पराकाष्‍ठा का युग कहा जाता है। पोप का अपना निजी न्‍यायालय होता था और उसके कानून भी उसी के बनायें हुए होते थे। उसकी शक्तियाँ असीम थी। अपनी इन शक्तियों के आधार पर वह प्रत्‍येक कार्य कर सकता था। दण्‍ड देने के क्ष्‍ोत्र में उसे मृत्‍यु दण्‍ड तक देने का अधिकार था। पोप ने अब अपने अधिकारों का अनुचित उपयोग प्रारम्‍भ कर दिया था। अत: उसका विरोध स्‍वाभाविक था।
  2. चर्च में भ्रष्‍टाचार- चर्च में भ्रष्‍टाचार फैल रहा था। चर्च को जनता पर कर लगाने का अधिकार था। रोम के पोप ने सेन्‍ट पीटर के गिरजाघर का पुनर्निमाण करने के लिये राशि जुटाना शुरू किया था। इसलिये धर्म सुधारकों ने अवाज उठाई। इंग्‍लैण्‍ड मे जान विक्लिफ और बोहिमिया में जानइस ने चर्च में सुधार पर बल दिया।
  3. कैथोलिक चर्च की बुराइयाँ- कैथोलिक चर्च की बुराइयों को दूर करने की कोशिश की गई परन्‍त्‍ुा पोप ने प्रस्‍तावों को नहीं माना।

(ii)  राजनैतिक कारण

  1. राष्‍ट्रीय भावना का उदय- मध्‍यकाल तक चर्च का प्रभुत्‍व राज्‍य पर छा चुका था, परन्‍तु पुनर्जागरण काल में वस्‍तु स्थिति के प्रति सजग विद्वानों ने राजनीति से चर्च को पृथक कर दिया। इस समय लोगों में राष्‍ट्रीय भावना उदित हो रही थी। इससे शासन भी वंचित न थे अपितु वे भी यह सोचने लगे थे कि धार्मिक नियमों के निर्माण में यदि राज्‍य हस्‍तक्षेप ने करे तो चर्च को भी राज्‍य से पृथक रहना चाहिए। इस भावना ने पोप एवं शासकों में अधिकारों के प्रति संघर्ष उत्‍पन्‍न कर दिया जिसमें जनसाधारण चर्च के विरोधी थे।
  2. कर-वृद्धि- प्रत्‍येक ईसाई धर्म को मानने वाले व्‍यक्ति पर चर्च का ‘टाईथ’  नामक कर लगाना जाता था। इसके अनुसार व्‍यक्तगत आय का दशमांश प्रत्‍येक व्‍यक्ति को चर्च को देना होता था। इसके अतिरिक्‍त प्रायश्चित कर, क्षमा पत्र कर आदि अनेक आवश्‍यक कर भी लिये जाते थे। लोगों ने वास्‍तुविकता से परिचित होकर इन करों का तीव्र विरोध किया जिससे धर्मधिकारियों को धर्म सु‍धार करना आवश्‍यक हो गया।

(iii) आर्थिक कारण

  1. चर्च की अतुल धन-सम्‍पत्ति में वृद्धि- आधुनिक काल के प्रारम्‍भ मे कैथोलिक चर्च के पास अत्‍यधिक धन-सम्‍पत्ति एकत्रित हो गई थी। चर्च के अधीन असंख्‍य जागीरें थी जिनसे कर के रूप में बहुत धन प्रतिवर्ष प्राप्‍त होता था। कहा जाता है कि जर्मनी मे भूमि का एक-तिहाई भाग जागीरें के रूप में चर्च के अधीन था। इसी प्रकार फ्रांस मे भूमि का एक चौथाई भाग चर्च के अधीन था। ऐसी ही स्थिति अन्‍य देशो में थी।
  2. पूँजीवाद का प्रादुर्भाव- उपनिवेशवाद, वैज्ञानिक आविष्‍कार एवं भौगोलिक खोजों ने व्‍यापारिक वृद्धि में महत्‍वपूर्ण कार्य किया। पुनर्जागरण काल मे उद्योग-धन्‍धों ने आशातीत उन्‍नति की। अत: औद्योगि‍क प्रगति के लिये धन संचय आवश्‍यक हो गया। दूसरी ओर अनुचित करो का विरोध भी आरम्‍भ हो गया था। परिणामत: एक प्रभावशाली पूँजीवादी वर्ग का निर्माण होने लगा। जिसने चर्च का तीव्र विरोध किया। आर्थिक क्षेत्र में अनेक परिवर्तन उपस्थित हुए और पोप को धार्मिक अधिकार सीमित करने पड़े। इस प्रकार आर्थिक व्‍यवस्‍था चर्च से पर्याप्‍त स्‍वतंत्र रहने लगी।

(iv) सांस्‍कृतिक कारण

  1. नवीन आविष्‍कार- नवीन आविष्‍कारों ने यूरोपियनों के साहस और उत्‍साह को सतत् प्रवाहित किया। छापखाने के आविष्‍कार ने विद्वानों की सम्‍मतियों को दूर-दूर तक सुरक्षित रूप में एवं अधिक मात्रा मे पहुँचाने का कार्य किया। परिणाम यह हुआ कि चर्च विरोधी अनेक ग्रन्‍थ विश्‍व के कोने-कोने में पहुँचने लगे और जनता ने सही मार्ग का प्रकाध देखा।
  2. बौद्धिकवाद का विकास- मानववाद प्रोटेस्‍टेन्‍ट धर्म के उत्‍थान में मानववाद का प्रभाव पड़ा। मानववाद ने बौद्धिकवाद को जगाया।

(v) तात्‍कालिक कारण

  1. इतिहासकार शेविल ने लिखा है कि क्षमा पत्रों की बिक्री ही चर्च के विरोध का तात्‍कालिक कारण था।
  2. मार्टिग लूथर ने 95 धार्मिक प्रसंगों की सूची तैयार की जिसमें क्षमा पत्रों का विरोध भी शामिल था। मार्टिग लूथर आन्‍दोलन जो समूचे यूरोप में फैल गया।

संक्षेप मे हम सकते हैं कि धर्म सुधार आन्‍दोलन जो यूरोप को आधुनिक रूप प्रदान करने वाला एक महत्‍वपूर्ण कारण था, धार्मिक, राजनैतिक, आर्थिक एव तात्‍कालिक समस्‍याओं का परिणाम था। इसने धर्म को प्रशासन से पूर्णत: अलग कर दिया तथा जनमानस के स्‍वतंत्र विकास का सुअवसर प्रदान किया। इन सभी के कारण यूरोप में धर्म सुधार आन्‍दोलन एक महत्‍वपूर्ण घटना थी।

जर्मनी में धर्म सुधार आन्‍दोलन

16वीं सदी के प्रारम्‍भ में कैथेलिक चर्च के घोर अनैतिकता, आदर्शहीनता एवं अन्‍य बुराइयाँ व्‍याप्‍त थीं। इस कारण धर्म सुधार आन्‍दोलन अनिवार्य था। यदि समय रहते चर्च के दोषों को दूर कर पोप एवं राजकीय सत्‍ता में सन्‍तोषजनक समझौता हो जाता तो सम्‍भवत: आन्‍दोलन टल जाता। उस समय समस्‍त शासक वर्ग कैथोलिक चर्च का सहयोग चाहते थे। इसी अभिप्राय से 1516 ई. मे पोप एवं फ्रांसीसी नरेश फ्रांसीस प्रथम में एक धार्मिक सहझौता हुआ था, परन्‍त्‍ुा जर्मनी में धर्म सम्‍बंधी दोष अधिक व्‍यापक थे। वहाँ कोई सार्वभौम सत्‍ता भी नहीं थी जिससे चर्च सम्‍बंधी समझौता हो सकता। जर्मनी छोटे-बडें तीन सौ राज्‍य का समूह था। इसमें कुछ राज्‍य तो समझौते के पक्ष में थे, परन्‍तु अधिक राज्‍य पोप की  सत्‍ता से मुक्‍त हो चर्च की सम्‍पत्ति पर अधिकार करने, पवित्र रोमन सम्राट के विरूद्ध शक्ति संचय करने एवं अपनी जनता की सुधार सम्‍बंधी माँगों को दूर करने में तत्‍पर थे। इन कारणों से आन्‍दोलन का विस्‍फोट जर्मनी में ही हुआ।

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मार्टिन लूथर ( 1483- 1546 ई.)

मार्टिन लूथर का परिचय- लूथर का जन्‍म 1483 ई. में यूर्रिजया नामक स्‍थान में हुआ था। उसने कानून और धर्म की शिक्षा एरफर्ट विश्‍वविद्यालय में प्राप्‍त की। कालान्‍तर में वह एक भिक्षु हो गया। 1510 ई. में वह रोम गया और वहाँ पर उसने पोप तथा पादरियों के भ्रष्‍ट जीवन का प्रत्‍यक्षीकरण किया। इस भ्रष्‍टाचार को देखकर उसके हृदय पर गहरी ठेस लगी। उसने तुरन्‍त ही निश्‍चय कर लिया कि वह पोप के विरूद्ध एक धार्मिक क्रान्ति करेगा। इसी भावना से प्रेरित होकर 1517 ई. में उसने विटेनबर्ग में पोप के क्षमा पत्रों के विक्रय का खुलकर विरोध किया। उसने क्षमा पत्रों के विरोध में 95 अकाट्य तर्क लिखकर गिरजाघर के फाटक पर टाँग दिये। इनमें पोप तथा तैत्‍सेल का घोर विरोध किया गया था। जर्मन जनता लूथर के इन तर्को से अत्‍यधिक प्रभावित हुई और धार्मिक संघर्ष को तीव्र गति मिली। परिणामत: जर्मनी में ही प्रोटेस्‍टेन्‍ट चर्च की स्‍थापना की गई। मार्टिन लूथर के 95 सूत्रों के महत्‍व के सम्‍बंध में हेज ने लिखा है, “लूथर के 95 सिद्धान्‍तों ने जो कि क्षमा पत्रों के विरोध में लिखे गये थे, एक प्रकार की सार्वभौमिक क्रान्ति जर्मनी में पोप और उसके कैथोलिक धर्म के विरूद्ध प्रारम्‍भ कर दी और एक प्रकार से प्रोटेस्‍टेन्‍ट धर्म की नींव को सुदृढ़ कर दिया”।

लूथर के सिद्धान्‍त- संक्षेप में लूथर ने धार्मिक क्षेत्र में जो सिद्धान्‍त प्रतिपादित किये थे वे इस प्रकार है।

  1. बाह्माडम्‍बर, कृत्रिम उपवास, प्रायश्चित, ती‍र्थयात्रा आदि का कोई भी महत्‍व नहीं है।
  2. पापों का प्रायश्चित करने के लिये ईश्‍वर में विश्‍वास ही पर्याप्‍त है। पोप के द्वारा प्रदत्‍त क्षमा पत्र धनोपार्जन की ही एक नीति है। लूथर का कथन था, “यदि मनुष्‍य में विश्‍वास है तो वह इस संसार सागर को पार कर सकता है, चाहे उसमें कितने ही जन्‍मजात दोष क्‍यों न हो”।
  3. वैपितिस्‍मा हो जाने वाले ईसाई पुरोहितों के समान ही होते हैं। पुरोहितों को पाणिग्रहण का अधिकार नहीं होना चाहिए। 
  4. धर्मधिकारियों के विशेषाधिकारों को समाप्‍त कर देना चाहिए तथा राष्‍ट्रीय चर्च की स्‍थापना करनी चाहिए। विश्‍वास पोप में नहीं अपितु बाइबिल मे करना चाहिए।
  5. मानव के लिये अधिक संस्‍कारों की आवश्‍यकता नहीं हैं केवल जन्‍म, प्रायश्चित और पवित्र यूकारिस्‍ट संस्‍कार ही करने चाहिए।
  6. संसार में ईश्‍वर की दया उतनी ही सत्‍य है जितना कि स्वर्ग,अत: ईश्‍वर की दया में श्रद्धा रखनी चाहिए। 
  7. लूथर का मत था कि संसार त्‍यागकर चारित्रिक विकास से ही आध्‍यात्मिक जीवन नहीं मिल सकता, अपितु कर्तव्‍य एवं प‍रहित साधन करके ही मानव आध्‍यात्मिक जीवन प्राप्‍त कर सकता है।
  8. लूथर शांतिपूर्ण साधनों के द्वारा ही अपने विचारों का प्रचार करना चाहता था। वह क्रान्तिकारी साधनों का विरोधी था।

लूथर तथा जर्मनी का धार्मिक आन्‍दोलन

लूथर के धार्मिक आन्‍दोलन के प्रसार काल में किसानों को भू-स्‍वामियों के अनुचित कर-भार का शिकार होना पड़ रहा था। उनसे बेगार भी ली जाती थी। लूथर के सिद्धान्‍तों ने कृषकों में यह प्रेरणा उत्‍पन्‍न कर दी कि भू-स्‍वामियों के अत्‍याचारों को समाप्‍त कर देना चाहिए। उनका यह विश्‍वास था कि लूथर इस कार्य में उनका सहायक बनेगा। परिणामत: कृषकों ने भूपतियों के विरूद्ध प्रारम्‍भ कर दिया और जर्मनी में गृह युद्ध की समस्‍या ने विकराल रूप धारण कर लिया। लूथर इन विद्रोही कृषकों का सा‍थ न दे सका। क्‍योंकि वह विरोध की उग्रता को नापसन्‍द करता था। और शांतिपूर्ण साधनों का अनुगमन करना चाहता था। वह धर्म को साधन बनाने वालों का घोर विरोधी था और इसे साध्‍य के रूप में ही रखना चाहता था। इसी कारण लूथर ने कृषकों का साथ न देकर आन्‍दोलन को शां‍त करने के लिये सामन्‍ती भू-स्‍वामियों और राजा का साथ दिया। उसके इस व्‍यवहार से किसानों का आन्‍दोलन असफल रहा और उसकी इस नीति ने स्‍वयं अपने आन्‍दोलन को भी अशक्‍त बना दिया। इससे लूथर की प्रतिष्‍ठा को भी धक्‍का लगा। अब वह मध्‍यम वर्ग एवं राज शक्ति के ऊपर ही निर्भर रहने लगा। ग्रान्‍ट महोदय के ये शब्‍द उसकी वास्‍तविक स्थिति पर स्‍पष्‍ट प्रकाश डालते हैं, “लूथर ने एक जन प्रिय नेता के रूप में अपनी ख्‍याति खो दी और उसका आन्‍दोलन अति निर्धन जनता के विशाल समूह के कन्‍धों से पृथक हो गया। इस समय से उसे मध्‍यम वर्ग और नियुक्‍त अधिकारियों के ऊपर अधिक निर्भर रहना पड़ा”।

जिस समय जर्मनी की जनता अनेक आन्‍दोलनों में व्‍यस्‍त थी उसी काल में सम्राट चार्ल्‍स V फ्रांस में युद्धरत था। चार्ल्‍स V ने फ्रांस के शासक फ्रांसिस I को पराजित तो कर दिया था, परन्‍तु संधि की धराएँ अधिक कठोर होने के कारण फ्रांस का सम्राट उन्‍हें स्‍वीकार न कर रहा था। उसने पुन: विद्रोह कर दिया तथा इंग्‍लैण्‍ड के राजा हेनरी VIII तथा पोप को अपने पक्ष में कर लिया। मार्टिन लूथर ने इस समय चार्ल्‍स V की डटकर सहायता की। उसने 1527 ई. में रोम पर अभियान प्रारम्‍भ कर दिया और आक्रमण के द्वारा पोप तथा फ्रांसिस I को नत शिर होने के लिये विवश कर दिया। इस राजनैतिक परिस्थितियों ने जर्मनी के धर्म सुधार आन्‍दोलन मे महत्‍वपूर्ण परिवर्तन उपस्थि‍त किए।

जर्मनी में वहाँ की स्थिति पर विचार करने के लिये 1526 ई. मे एक सभा की गई जिनमें धार्मिक आन्‍दोलन के विषय में कोई भी निर्णय नहीं लिया गया। यह सभा स्‍पीयर में हुई थी। दूसरी सभा 1526 ई. में की गई, जिसमें लूथर के मित्र ‘किलित मेला कथन’ ने कुछ सिद्धान्‍त प्रस्‍तुत किए जिनके द्वारा समझौता सम्‍भव था, परन्‍तु कट्टर पोपवादी कैथो‍लिकों की दुराग्रहपूर्ण शर्तो के कारण कोई भी निर्णय न लिया जा सका। कैथोलिकों ने वामर्स के  निर्णय का प्रमाणीकारण किया, परन्‍तु लूथर के समर्थकों ने उनके प्रमाणीकरण का विरोध किया। इसी विरोध के कारण लूथर का आन्‍दोलन ‘प्रोटेस्‍टेंट’ कहलाया। इस आन्‍दोलन के सिद्धान्‍त फिलिप मेला कथन के सिद्धान्‍तों पर आधारित थे।

जर्मनी का सम्राट चार्ल्‍स V प्रोटेस्‍टेंट सम्‍प्रदाय के विपक्ष में था। अत: इस सम्‍प्रदाय के समर्थकों ने अपना एक संघ बनाया जिसे ‘माल कालडेन’ का संघ कहते थे। इधर सम्राट इटली के युद्धों मे सलग्‍न था। अत: इस संघ के विरूद्ध विशेष कार्यवाही न कर सका। परिणामत: लूथर जर्मनी मे सफलता से फैलमा गया। इसी बीच मार्टिन लूथर की 1546 ई. में मृत्‍यु हो गई। यह अपने कार्य को अपने अनुयायियों पर छोड़ गया और कालांतर में होने वाले भयंकर रक्‍तपात को देखने से बच गया, जिससे वह स्‍वयं डरा करता था।

लूथर का प्रभाव-

धर्म सुधार आन्‍दोलन में भाग लेने के कारण लूथर जर्मनी मे लोकप्रिय हो गया। उसमें अदम्‍य साहस था। उसके शिष्‍य अपने दृढ़ विश्‍वास के लिये प्रसिद्ध थे। उसके सिद्धान्‍तों का परिणाम यह हुआ कि जर्मनी में नवीन चेतना की लहर दौड़ गई। विवश होकर अन्‍त में सम्राट को देश छोडना पड़ा। इस प्रकार लूथर के कारण जर्मनी में धर्म सुधार आन्‍दोलन को सफलता मिली।

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लूथर की सफलता के कारण

लूथर की सफलता के निम्‍नलिखित कारण थे-

  1. लूथर की सबसे महान् सफलता का कारण था उसका दृढ़ विश्‍वास। लूथर को अपने इसी विश्‍वास के आधार पर सफलता मिल सकी। (2) लूथरवाद के प्रयास में उसके व्‍यक्तित्‍व ने सर्वाधिक योग दिया। (3) लूथर ने अपने उपदेशों अथवा सिद्धान्‍तों को राष्‍ट्र भाषा में प्रसारित किया और जर्मनी में राष्‍ट्रीय भावना जागृत की। (4) जर्मनी की राजनैतिक स्थिति ने उसकी सफलता के लिये मार्ग प्रशस्‍त कर दिया। जर्मनी के छोटे-छोटे राज्‍यों में से अनेक ने उसका साथ दिया और जार्ज V भी उसका सफल विरोध न कर सका। (5) पोप इटली निवासी होने के कारण विरोधी समझा जाता था तथा लूथर देशवासी होने के कारण जर्मनी में अधिक जनप्रिय था। (6) सांस्‍कृतिक पुनरुत्‍थान ने अन्‍य यूरोपीय देशों की भाँति जर्मनों को भी उदार बना दिया था। वे पोप और पादरियों की सत्‍ता का विरोध करने लगे थे। फलत: लूथर को अपने सिद्धान्‍तों के प्रचार में विशेष सफलता मिली। हेज के शब्‍दों में पुनर्जागरण ने परम्‍परागत चर्च के अधिकारों तथा पोप के प्रति सम्मान को क्षीण कर दिया। इससे लूथर को जर्मनी में अपने प्रभाव विस्‍तार में अधिक योग दिया है। (7) चार्ल्‍स V जो कि लूथर को नास्तिक घोषित कर देश से निर्वासित करना चाहता था। इटली और यूरोप के क्षेत्रीय युद्धों में लगा रहा और लूथर का सक्रिय विरोध न कर सका। (8) लूथर ने अवसरवादिता से भी काम लिया। उसने कृषकों के विरूद्ध भ-स्‍वामियों एवं पूँजीपतियों का पक्ष लेकर अपनी शक्ति बढ़ाई और अपने आन्‍दोलन को प्रभावशाली बनाया उसके सहयोगियों ने भी उसकी सफलता में हाथ बँटाया।

इंग्‍लैण्‍ड में धर्म सुधार आन्‍दोलन

यूरोप के अन्‍य देशों की भॉंति इंग्‍लैण्‍ड के निवासी भी कैथोलिक धर्म के अनुयायी थे। इंग्‍लैण्‍ड के चर्च पर पोप क सत्‍ता स्‍थापित थी। उसकी आज्ञाओं का उल्‍लघंन कोई भी निवासी नहीं कर सकता था।

इंग्लैण्‍ड में 16वीं शताब्‍दी में एक नवीन चर्च की स्‍थापना हुई। इसे आंग्लिकन चर्च कहा जाता है। इसका विकास हुआ। इंग्लैण्‍ड का शासक हेनरी अष्‍टम कैथोलिक धर्म का अनुयायी हो गया। उसने कैथोलिक धर्म विरोधी पुस्‍तकें सेन्‍टपाल के गिरजाघर के मैदान में जलाने की आज्ञा दी। 1521 ई. में उसने लूथर वाद के विरोध में पुस्‍तक लिखी, परन्‍तु कुछ व्‍यक्तिगत कारणों से वह पोप विरोधी हो गया। उसने पोप से सम्‍बंध तोड़ लिये। इंग्लैण्‍ड में राष्‍ट्रीय चर्च की स्‍थापना हुई। यही से सुधार आन्‍दोलन का सूत्रपात हुआ।

इंग्लैण्‍ड में धर्म सुधार आन्‍दोलन के कारण

  1. 11वीं शताब्दी से इंग्‍लैण्‍ड के शासक पोप की सत्‍ता को समाप्‍त करना चाहते थे। नार्मन शासकों ने पोप की सत्‍ता पर अंकुश लगाना चाहा, परन्‍तु वे सफल नहीं हो पाये। एडवर्ड तृतीय ने यही कोशिश की। 2. इंग्लैण्‍ड के विद्वानों और विचारकों का एक ऐसा वर्ग था जो पोप की सत्‍ता पर प्रहार करता रहता था। ये विचारक अपनी रचनाओं के द्वारा विरोध की आवाज उठाते थे।

गोवर लांगलैण्‍ड, सौसर आदि चर्च के कट्टर विरोधी थे, परन्‍तु आलोचकों में चर्च विरोधी जानवाइक्लिफ प्रमुख था। उसने कहा दुराचारी का आदेश प्रभु का आदेश नही बन सकता, क्‍योंकि चर्च के धर्माधिकारियों का जीवन पवित्र और शुद्ध नहीं है। उसने चर्च के अनेक कर्मकाण्‍डों का विरोध किया। उसके अनुयायी लोलार्ड कहलाते थे। चर्च ने उसे विरोधी कहा परन्‍तु उसने जो ज्ञान इंग्‍लैण्‍ड को दिया उसे इंग्‍लैण्‍ड के लोग भूल नहीं सकते।

16वीं शताब्‍दी के इरासमय, थामस, मूर जान कालेट जैसे सुधारवादी हुए। 1514 में रिचर्ड ह्यूम ने इच्‍छा पत्र शुल्‍क बन्‍द कर दिया। उसे सेन्‍टपाल के गिरजाघर में बन्‍द किया गया जहाँ उसकी मृत्‍यु हुई। हेनरी अष्‍टम के शासनकाल में यह घोषित किया कि न्‍यायालयों में धर्मधिकारियों पर मुकादमा चलाया जा सकता है। चर्च के पादरी उसे भी दण्डित करना चाहते थे। वे हेनरी अष्‍टम के संरक्षण के कारण ऐसा नहीं कर सके।

  1. लूथर का मत इंग्‍लैण्‍ड में प्रचारित किया। इंग्लैण्‍ड में लोगों ने लूथर के प्रति रूचि प्रकट की। उसका प्रभाव लन्‍दन के शिक्षा केन्‍द्र आक्‍सफोर्ड पर भी पड़ा। निम्‍न वर्ग के पादरियों ने उसके मत को माना। इस प्रकार इंग्लैण्‍ड में प्रोटेस्‍टेंट धर्म का प्रसार बढ़ा और इंग्‍लैण्‍ड में लूथरवाद की पृष्‍ठभूमि स्‍थापित हुई।
  2. इंग्‍लैण्‍ड के चर्च पर इटली के उच्‍च पादरियों का एकाधिकार था। पोप इटली के निवासियों को चर्च के उच्‍च पदों पर रखता है। उनको इंग्‍लैण्‍ड के राजकोष से वेतन मिलता था। धार्मिक कर के रूप में इंग्ल्‍ैाण्‍ड का धन रोम जाता था। इंग्लैण्‍ड के लोग इसे सहन नहीं कर पा रहे थे।
  3. इंग्लैण्‍ड के देश भक्‍त विदेशी सत्‍ता के हस्‍तक्षेप के विरोधी थे। पोप इंग्‍लैण्‍ड के आन्‍तरिक मामलों मे हस्‍तक्षेप करता था।
  4. इंग्लैण्‍ड के धर्माधिकारियों का जीवन अधिक विला‍सप्रिय हो रहा था। वे सांसारिक कार्यो में लगें रहते थे। इंग्‍लैण्‍ड की जनता उनसे नाराज हो रही थी।
  5. इंग्लैण्‍ड की 1/3 भूमि पर चर्च का अधिपत्‍य था। इंग्लैण्‍ड के लोग कर के रूप में धन चर्च को देते थे। उसे यह राशि प्रतिवर्ष देनी पड़ती थी। किसान जमींदार, व्‍यापारी चर्च की भूमि पर कब्‍जा करना चाहते थे। इसलिये वे धर्म सुधार आन्‍दोलन के पक्ष में थे।
  6. चर्च के आधिकारियों को अनेक विशेषाधिकार प्राप्‍त थे। धर्माधिकारियों पर मुकादमा नहीं चलाया जा सकता था। उनको जनता की अपेक्षा कम दण्‍ड मिलता था। ये लोग अनेक पदों पर भी कार्य करते थे। चर्च के पदों की बिक्री होती थी। धर्माधिकारी ये पद अपने सम्‍बधिंयो को देते थे इंग्‍लैण्‍ड का मध्‍यम वर्ग इस विशेषाधिकार को समाप्‍त करना चाहता था।
  7. इंग्‍लैण्‍ड में 16वीं शताब्‍दी में राष्‍ट्रीय भावना बढ़ी। राष्‍ट्रीय भाषा का सृजन हुआ। इस चेतना के कारण इंग्‍लैण्‍ड के लोग विदेशी सत्‍ता को समाप्‍त करना चाहते थे।
  8. ट्यूडर वंश में हेनरी सप्‍तम ने सामन्‍तों की शक्ति को कुचल दिया था। अब सिर्फ चर्च ही रह गया था। इंग्‍लैण्‍ड के शासकों की चर्च की सम्‍पत्ति पर निगाह थी अत: धार्मिक आन्‍दोलन के लिये वे तैयार थे।
  9. इंग्‍लैण्‍ड में धर्म सुधार आन्‍दोलन मुख्‍यत: राजनैतिक कारणों से था।

1527 में हेनरी अष्‍टम ने अपनी पत्‍नी कैथोरिन का तलाक देकर ऐनीबोलन नामक प्रेमिका से विवाह करना चाहता था। उसने पोप से प्रार्थना की परन्‍तु पोप ने तलाक की अनुमति नहीं दी। अत: हेनरी अष्‍टम ने पोप से सम्‍बंध-विच्‍छेद किये। धर्म सुधार आन्‍दोलन का कारण सिर्फ कैथोरिन को तलाक ही था।

इस तरह इंग्‍लैण्‍ड में धर्म सुधार आन्‍दोलन व्‍यक्तिगत कारणों से हुआ हेनरी के उत्‍तराधिकारी एडवर्ड षष्‍टम के शासनकाल में एग्‍लीकन चर्च ने प्रोटेस्‍टेंट स्‍वरूप धारण किया। उसके संरक्षक समरसैट और क्रेमर ने नई प्राथना पुस्‍तक प्रकाशित की। चर्च ने नई उपासना और पूजा की विधि लागू की। एडवर्ड के संरक्षक नार्थम्‍बरलैण्‍ड ने सुधार के कार्य जारी रखे।

मेरी ट्यूडर के काल में धर्म सुधार आन्‍दोलन को धक्‍का लगा। उसने पोप के साथ सम्‍बंध स्‍थापित किया।

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एलिजाबेथ और धर्म सुधार आन्‍दोलन

एलिजाबेथ का शासनकाल ( 1558 से 1603 ई.) था। उसके समय में एंग्लिकन चर्च ने अपना स्‍वरूप धारण किया। उसकी नजर में राष्‍ट्रहित जरूरी था। उसने एंग्लिकन चर्च की स्‍वतंत्रता स्‍थापित की।

उसने उदार और समझौतावादी नीति के चलते हुए इंग्‍लैण्‍ड में राष्‍ट्रीय चर्च को महत्‍व दिया और कानूनी आधार प्रदान किया। प्रार्थना पुस्‍तक में से कैथोलिकों के लिये घातक परिच्‍छेद निकाल दिये। स्‍वेच्‍छानुसार लोग किसी भी धार्मिक मार्ग को अपना सकते थे। केवल पोप के प्रभुत्‍व को पूरी तरह नकारा गया था। पोप के आधिपत्‍य को मानने वाले व्‍यक्ति कठोरदण्‍ड के भागी होते थे। रोमन पोप को अस्‍वीकृत किया गया था, किन्‍तु कैथोलिक धर्म के सिद्धान्‍तों को बनाये रखा। फिशर के अनुसार, “प्रशासनिक दृष्टि से एंग्लिकन चर्च का स्‍वरूप ‘इटेस्टियन’ कर्म-काण्‍ड की दृष्टि से रोमन और सिद्धान्‍तों की दृष्टि से कैल्विनवादी थी”। यानी धर्म शास्‍त्रीय दृष्टि से इंग्‍लैण्‍ड के धर्म सुधार पर काल्विनवादी प्रभाव देखा जा सकता है। इंग्‍लैण्‍ड में राष्‍ट्रीय चर्च की स्‍थापना को आंग्लिकनवाद के नाम से पुकारा जाता है।

धर्म सुधार आन्‍दोलन के प्रभाव और परिणाम

16वीं शताब्‍दी के आरम्‍भ से 17वीं शताब्‍दी के पूर्वार्द्ध तक यूरोप में व्‍यापक धार्मिक परिवर्तन हुए। प्रोटेस्‍टेंट सम्प्रदाय का अभ्‍युदय हुआ। प्रतिक्रियास्‍वरूप कैथोलिक सुधार आन्‍दोलन हुआ। यूरोप के इतिहास में यह एक आश्‍चर्यजनक घटना मानी जाती है। यह एक उथल-पुथल का युग था। यूरोप के राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक जीवन पर धर्म सुधार आन्‍दोलन पर निम्‍नाकिंत का प्रभाव पड़ा।

  1. ईसाई धर्म- पूर्व में ईसाई धर्म को दो भागों में विभाजित था- (क) रूढि़वादी चर्च के अनुयायी, (ख) कैथोलिक चर्च के अनुयायी। 1517 ई. के बाद प्रोटेस्‍टेंट सम्‍प्रदाय के उदय के कारण कै‍थोलिक चर्च दो भागों में विभाजित हुआ। इस प्रकार ईसाई जगत तीन भागों में विभाजित हो गया- (क) रूढि़वादी चर्च (ख) प्रोटेस्‍टेंट चर्च (ग) रोमन कैथोलिक चर्च इतिहास पर गहरा प्रभाव पड़ा।
  2. यूरोप के राज्‍य- इस समय ईसाई राज्‍य तीन खेमों में बँट गये। इसका यूरोप के इतिहास पर गहरा प्रभाव पडा़।
    • रूढि़वादी चर्च में यूनान बाल्‍कन प्रायद्वीप के देश तथा रूमानिया शामिल थे। कैथोलिक चर्च के अन्‍तर्गत स्‍पेन, इटली, पुर्तगाल, बैल्जियम आदि थे। जर्मनी, डेनमार्क, नार्वे, स्‍वीडन, फिनलैण्‍ड आदि राज्‍य प्रोटेस्‍टेंट राज्‍य थे। उत्‍तरी यूरोप में प्रोटेस्‍टेंट और दक्षिण और पश्चिम यूरोप कें कैथोलिक समर्थक राज्‍य थे।
    • राज्‍यों का विभाजन- धर्म सुधार आन्‍दोलन के कारण कैथोलिक और प्रोटेस्‍टेंट में भीषण प्रतिद्वन्द्विता रही। कैथोलिक शासकों ने प्रोटेस्‍टेंट को काफी तंग किया जिसके कारण जन-धन का नुकसान हुआ।
  3. शक्तिशाली राज्‍यों का उदय- धार्मिक आन्‍दोलन के कारण शक्तिशाली राज्‍यों का उदय हुआ, क्‍योंकि मध्‍यकाल में चर्च राज्‍य की शक्ति में बाधक थे। प्रोटेस्‍टेंट जनता ने चर्च के विरूद्ध सहयोग दिया। इस कारण अनेक राज्‍य शक्तिशाली बन गये।
  4. राष्‍ट्रीय चर्चो की स्‍थापना- इस काल में राष्‍ट्रीय चर्चो की स्‍थापना हुई, क्‍योंकि शक्तिशाली राजा पोप का नियन्‍त्रण पंसद नहीं करते थे।

लूथरवाद जर्मनी राष्‍ट्रीयता कैल्विनवाद डच राष्‍ट्रीयता और आंग्‍ल ब्रिटिश चर्च राष्‍ट्रीयता के विकास में सहायक हुए।

  1. धार्मिक कट्टरता का काल- यह काल कट्टरता का था जिसके कारण यूरोप का वातावरण खराब हो गया। धार्मिक असहिष्‍णुता और कट्टरता के कारण निर्दोष लोग मारे गये।
  2. ईसाई नैतिक जीवन- इस काल मे ईसाई नैतिक जीवन समुन्‍न्‍त हुआ। पवित्र आचरण पर जोर दिया। दोनों ने ऐसा किया।
  3. शिक्षा का विकास- इस काल में शिक्षा का विकास हुआ। इसमें पोप और जेसुइट संघ का योगदान अधिक था।
  4. ईसाई जगत की एकता ध्‍वस्‍त- जर्मनी, स्विट्जरलैण्‍ड तथा इंग्‍लैण्‍ड में धर्म सुधार आन्‍दोलन के कारण ईसाई जगत की एकता ध्‍वस्‍त हो गई। मार्टिन लूथर, काल्विन तथा हेनरी अष्‍टम के प्रोटेस्‍टेंटवाद ने यूरोप की धार्मिक एकता को टुकड़ों मे बॉंट दिया। मध्‍यकालीन पादरीवाद पर यह एक प्रहार था।
  5. भाषा और साहित्‍य का विकास- धर्म सुधार के कारण आधुनिक यूरोपीय भाषाओं मे बाईबिल का अनुवाद तथा धार्मिक साहित्‍य का महत्‍व बढ़ा।
  6. वाणिज्‍य व्‍यापार को प्रोत्‍साहन- पुनर्जागरण और धर्म सुधार आन्‍दोलन ने अनेक मान्‍यताओं को समाप्‍त किया तथा भौतिक जीवन की ओर आगे बढ़े। चर्च की सम्‍पत्ति खरीदने वाले लोग मध्‍यमवर्गीय थे।
  7. सामाजिक और आर्थिक जीवन पर प्रभाव- धर्म सुधार आन्‍दोलन के कारण यूरोपवासियों के सामाजिक और आर्थिक जीवन पर प्रभाव पड़ा।
  8. सांस्‍कृतिक जीवन पर प्रभाव- गिरजाघरों में मूर्ति, सजावट और चित्र आदि का पहले विरोध किया जाता है। अब स्‍थापत्‍य और मूर्तिकला का विकास हुआ।
  9. अन्‍य परिणाम- धर्म सुधार आन्‍देालन व्‍यक्तिगत और लोकतन्‍त्र के विकास में सहायक हुए। यूरोपवासियों ने निरंकुशता के विरूद्ध सशक्‍त आवाज उठायी। इस प्रकार यूरोपवासियों पर गहरा प्रभाव पड़ा।
  10. दूरगामी परिणाम- तात्‍कालिक दृष्टि से धर्म सुधार से प्रोटेस्‍टेंटवाद तथा कैथोलिकवाद के बीच वैमनस्‍य से  धार्मिक असहिष्‍णुता के दर्शन होते है। धार्मिक मतभेदों को लेकर युद्ध भी हुए। परन्‍तु दूरगामी दृष्टि से देखे तो धर्म सुधार आन्‍दोलन से जीवन के हर क्षेत्र में मौलिक परिवर्तन आये। राष्‍ट्रीय चर्च की स्‍थापना, बाइबिल की व्‍याख्‍या, सहिष्‍णुता एवं धर्म निरपेक्षता का दृष्टिकोण अपनाना शुरू हुआ, जिसने मध्‍यमवर्गीय समाज को अधिक प्रभावित किया।

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