एक बार की बात है, एक राजा था। वह अतरी नामक नगर में राज करता था। वह बहुत की बुद्धिमान और न्यायप्रिय राजा था। वह अपनी प्रजा से बहुत प्रेम करता था और वह हर समय अपनी प्रजा को खुश देखना चाहता था। वह चाहता था कि मेरे राज्य में हर आदमी, औरत और बच्चे को इंसाफ मिले, किसी भी व्यक्ति को किसी भी तरह कष्ट न होने पाये। इसलिए सारी प्रजा उसकी जय-जयकार करती थी और उसकी प्रशंसा के डंके पीटती थी।
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एक दिन उसने अपने दरबारियों से कहा- “मैं यह चाहता हूं कि मेरे राज्य के अन्दर हर इंसान सुखी रहे। हर व्यक्ति को उचित न्याय मिले, अगर किसी व्यक्ति को कोई समस्या हो तो वह सीधा मुझसे आकर मिले। मैं नहीं चाहता कि कोई मेरे राज्य में दु:खी हो।”
मन्त्रियों ने कहा-“यह तो महाराज आपने बहुत ही अच्छा निर्णय लिया है। हम सब आपकी बात से सहमत हैं।”
इसलिए राजा ने अपने महल की एक ऊंची दीवार पर एक बहुत बड़ा घण्टा लटकवा दिया। घण्टे के साथ एक बहुत मजबूत और बड़ी रस्सी बांध दी गई,जो नीचे जमीन तक लटक रही थी।
“अगर हमारे राज्य में किसी भी व्यक्ति के साथ अन्याय हो रहा हो,” राजा ने कहा-“तो वह सिर्फ एक घण्टे को आकर बजा दे। उस व्यक्ति को इंसाफ जरूर दिया जायेगा।”
पूरे राज्य में दूर-दर तक ऐलान कर दिया गया कि हर व्यक्ति को राज्य में इंसाफ मिलेगा। जिसकी जो समस्या हो, वह राजा से आकर अपनी फरियाद करे और अपनी समस्या प्रकट करे।
राज्य की प्रजा इस बात को सुनकर बड़ी खुश हो रही थी।
“हम लोग कितने भाग्यशाली है कि हमें इतना अच्छा राजा मिला।” सभी लोग आपस में बातें कर रहे थे।
कितने सालों तक वह घण्टा उस मीनार पर टंगा रहा। इन वर्षों के अन्तर्गत वह घण्टा कई बार बजाया गया। राजा ने अपना वचन पूरा किया और आने वाले की फरियाद को सुना, उसने पूरी-पूरी कोशिश की कि लोगों की समस्याओं का समाधान हो और हर इंसान को को पूरा-पूरा इंसाफ मिले।
अब वह रस्सी काफी पुरानी हो चुकी थी, इसलिए कमजोर हो चुकी थी। राजा ने अपने सैनिकों से कहा-“आप इस पुरानी रस्सी की जगह नई रस्सी बांध दे।”
राजा के आदेश पर उस पुरानी और कमजोर रस्सी को हटा दिया गया था, लेकिन उसके स्थान पर लगाने के लिए वैसी ही मोटी रस्सी नहीं मिल सकी जैसी पहले लगी हुई थी।
सेवकों ने सोचा, क्यों न हम इसके स्थान पर मोटी-सी अंगूर की बेल लगायें, जब तक इस प्रकार की मोटी व मजबूत रस्सी आयेगी, तब तक यह लटकी रहेगी।
इसलिए उन्होंने एक लम्बी और मोटी अंगूर की बेल, जो खूब मजबूत थी, काटी और उसे घण्टे से बांध दिया। जल्दी ही उस पर छोटी-छोटी नई कोपलें निकलने लगीं। ऊपर से नीचे तक हरी-भरी हो जाने और लम्बी होकर जमीन पर फैलने की वजह से वह अब काफी खूबसूरत दिखाई दे रही थी। उसकी शोभा देखते ही बनती थी।
उसी राज्य के अन्तर्गत एक बूढ़ा सैनिक भी रहता था। उसके पास एक घोड़ा था जिसने प्रत्येक युद्ध में उसका साथ दिया था। काफी समय से वह घोड़ा उसके पास था। अब आकर वह घोड़ा भी बूढ़ा हो चुका था।
वह सैनिक अब और अधिक समय उस घोड़े को अपने पास रखना नहीं चाहता था। ‘अब तुम किसी काम के नहीं रहे। अब तुम मेरे घर से निकल जाओ।’ इतना कहकर उसने घोड़े को घर से बाहर निकाल दिया।
मरता क्या न करता! बेचारा घोड़ा दु:खी होकर मन को मसोस कर यह सोचता हुआ नगर की तरफ चल दिया कि अब क्या होगा…। अब वह कहां रहेगा, क्या खायेगा? यही सोच-सोचरक वह परेशान-सा घूम रहा था।
घूमते-घूमते वह उस मीनार के पास पहुंचा जहां घण्टा टंगा हुआ था। पहले घोड़े ने चारों तरफ देखा, बूढ़ा हो जाने की वजह से उसकी आँखें कोमजोर हो चुकी थी। उसे कुछ भी साफ-साफ दिखाई नहीं दे पाता था। वह बड़ी मुश्किल से देख पाता था।
इसलिए उसको वह अंगूर की बेल भी दिखाई नहीं दे रही थी। वह काफी मुश्किल से उसे देख पा रहा था। उसने सोचा कि यह कोई बढ़िया चीज है। इसलिए उसने उन हरी-हरी कोंपलों को खाना शुरू कर दिया। जैसे-जैसे उसके खाने के लिए बेल को खींचा, फौरन वह घण्टा बजने लगा।
सभी लोग भागते-भागते वहां आए। वे एक-दूसरे से पूछने लगे- घण्टा किसने बजाया था।
कोई कहता कि किसी के साथ बहुत बड़ा अन्याय हुआ है। उन्होंने बाहर आकर चारों तरफ देखा, लेकिन उन्हें वहाँ कोई भी नजर नहीं आया।
अब तक राजा के सारे नौकर वहां पहुंच चुके थे। उन्हें भी वहां कोई दिखाई नहीं दिया। वे बहुत ज्यादा हैरान हो रहे थे कि आखिर घण्टा किसने बजाया था।
सभी लोग हैरानी भरी नजरों से इधर-उधर देख रहे थे। तभी उनकी नजर एक घोड़े पर पड़ी जो उसी समय कोंपलें खाने के लिए आगे बढ़ रहा था और उसके कोंपलें खाने के कारण बेल खिंच जाती थी और घण्टा बजने लगता था।
“अरे, देखो तो! यह तो घोड़ा है!” सभी सैनिकों ने आश्चर्य से देखते हुए एक साथ कहा- “सिर्फ घोड़ा!” सैनिक बोले।
“कितनी विचित्र बात है कि घण्टा घोड़े ने बजाया था और हम लोग यहां पर खड़े सोच रहे थे कि न जाने किसके साथ नाइंसाफी हुई है।”
सभी सैनिक जोर-जोर से हँस रहे थे कि एक घोड़े ने सभी लोगों को बेवकूफ बना दिया।
“इस घोड़े को यहां से कहीं दर ले जाओ और नगर के बाहर खदेड़ दो।” राजा के अफसरों ने आदेश दिया। उन्हें घोड़े की इस हरकत पर गुस्सा आ रहा था।
“रुक जाओ मन्त्री जी!” राजा ने बाहर आकर अपने सभी अफसरों को आदेश दिया।
“लेकिन महाराज, इस घोड़े ने यहां आकर सब लोगों को परेशान कर दिया है।” सैनिक ने कहा।
“तम लोग ऐसा बिल्कुल नहीं करोगे।” राजा सख्त स्वर में कहा- “यह यहां से कहीं नहीं जायेगा।”
“लेकिन क्यों महाराज ?”
“मन्त्री जी! यह घोड़ा भी मेरी प्रजा है। यह बात आप लोग कैसे कह सकते हैं कि इसे कोई कष्ट नहीं है? हो सकता है कि यह अपनी कोई फरियाद करने यहां आया हो।” राजा ने कहा।
राजा की बात सुनकर लोगों को बड़ी हैरानी हो रही थी। सारे सैनिक खामोश हो गए। वह वहां खड़े राजा को आश्चर्य से देख रहे थे। उन्हें की बात बड़ी विचित्र लगी।
“यह घोड़ा किसका है?” राजा ने पूछा- “यह घोड़ा कहां से आया है? इस बात का फौरन पता लगाया जाए।”
“जैसी आज्ञा महाराज!” मन्त्री ने कहा और सैनिकों को तुरन्त राजा के आदेश का पालन करने को कहा।
राजा की आज्ञा के अनुसार सभी सैनिक घोड़े के मालिक की तलाश में निकल पड़े। और उस बूढ़े सैनिक को जो घोड़े का मालिक था, पकड़कर राजा के सामने पेश कर दिया।
“क्या यह घोड़ा तुम्हारा है?” राजा ने सख्ती से पूछा- “यह यहाँ क्यों घूम रहा है? और उसने यहाँ आकर अंगूर की बेल क्यो खाइ? तुमने इसे खाने के लिए चारा नहीं दिया।”
राजा की बात सुनकर सैनिक का सिर शर्म से झुक गया। तुम्हें बात के लिए शर्म आनी चाहिए। राजा ने कहा- “इस घोड़े ने अपनी जवानी में वफादारी से तुम्हारी बहुत सेवा की है। अब जब यह बूढ़ा हो चुका है, तुम इसका जरा भी ध्यान नहीं रखते हो?
क्या तुम्हारा इसके साथ यह व्यवहार ठीक है? अब तुम इस घोड़े को घर ले जाओ तथा इसकी अच्छी प्रकार देखभाल करो।”
इतनी बात सुनकर वह बूढ़ा सैनिक घोड़े को लेकर वहां से चला गया। लोगों ने खुशी से तालियां बजायीं और वे वाह-वाह कर उठे। अतरी का यह घण्टा एक बार फिर न्याय दिलाने में कामयाब रहा है।
प्यारे बच्चों! हमें इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि हमें भी हर किसी के साथ अच्छा सुलूक करना चाहिए। अगर कोई व्यक्ति या जानवर बूढ़ा हो गया है और हमारे किसी काम का नहीं रहा है तो उसे घर से नहीं निकालना चाहिए। बल्कि यह सोचना चाहिए कि वह किसी समय में हमारे बहुत काम आया है।