एक बार एक पिता और पुत्र व्यापार के सिलसिले में कहीं दूर देश पानी के जहाज में यात्रा करने निकल पड़े। यह पानी का जहाज उनका निजी था और बहुत बड़ा नहीं था। जहाज में मात्र 2 लोग थे, रात को समुद्र में तूफान आया जिसकी वजह से पिता और पुत्र रास्ता भटक गए और एक वीरान टापू पर जाकर इनकी जहाज रुकी, टापू के किनारे मौजूद नुकीले एवं बड़ी-बड़ी चट्टानों से जहाज जाकर टकरा गई और क्षतिग्रस्त हो गई।
पिता और पुत्र दोनों टापू में फस गए, क्षतिग्रस्त नाव समुद्र के पानी के थपेड़ों से और ज्यादा क्षतिग्रस्त हो गई और उसका जीर्णोद्धार करना असंभव हो गया।
अब दोनों पिता-पुत्र को उस द्वीप से निकलने का कोई रास्ता नहीं दिख रहा था। तब पिता ने अपने पुत्र से कहा – “बेटा अब हमारा यहां से निकल कर, घर वापस लौटना बहुत ही कठिन लग रहा है। भगवान की कृपा होगी, तभी कोई नाव या जहाज यहाँ भटकते हुए, इस निर्जन द्वीप पर आएगा, तब जा कर हम बच पाएंगे। वरना कोई रास्ता अब नजर नहीं आ रहा हैं। ”
पीटना ने आगे कहा- “इसलिए क्यों ना अब हम भगवान को नमन करें। उनसे प्रार्थना करें कि वह हमारी रक्षा करें”
ऐसा सोच कर पिता और पुत्र ने पूरे द्वीप को आधे हिस्से में बांट लिया। एक हिस्से में पुत्र जाकर रहने लगा और दूसरे हिस्से में पिता जाकर रहने लगा और दोनों अपने-अपने स्थान से भगवान से प्रार्थना करने लगे।
लड़के ने भगवान से प्रार्थना की कि इस द्वीप में खाने पीने के लिए स्वादिष्ट फल फूल के पौधे लग जाएं, थोड़ी ही देर में भगवान ने उस लड़के की प्रार्थना सुन ली और पूरा जंगल स्वादिष्ट फलों के पेड़ों से भर गया। लड़के को यह देखकर बहुत ही आश्चर्य हुआ। उसे लगा कि उसे और कुछ प्रार्थना करके देखना चाहिए कि क्या वह भी पूरा हो सकता है।
उसने भगवान से प्रार्थना की कि हे भगवान एक सुंदर स्त्री यहां पर आ जाए, जिससे मैं उसके साथ घर बसा सकू और यहां आनंद पूर्वक रह सकूं। थोड़ी ही देर में वहां एक सुंदर स्त्री प्रकट हो गई और वह उस लड़की की सेवा करने लगी। कुछ दिन बीतने के बाद लड़के के मन में यकायक फिर ख्याल आया कि क्यों ना भगवान से कुछ और प्रार्थना करके देखो शायद वह भी पूरा हो जाए। और उसने आंख मूंदकर भगवान से प्रार्थना की कि – “हे भगवान मुझे एक नाव भेज दो, जिसका इस्तेमाल करके मैं अपने गांव जा सकू। थोड़ी ही देर में एक नाव समुद्र के किनारे दिखने लगी, लड़का बहुत प्रसन्न हुआ और अपनी स्त्री को लेकर वह जहाज में चल गया। और उस जहाज को गांव की दिशा की ओर चलाने की कोशिश करने लगा। तभी आकाशवाणी हुई और उसने उस लड़के से पूछा कि तुम अकेले अकेले कहां जा रहे हो। क्या तुम अपने पिता को अपने साथ लेकर नहीं जाओगे।
लड़के ने कहा कि -“यह सब मेरी प्रार्थनाओं की वजह से हुआ है, पिता की कोई प्रार्थना को भगवान ने नहीं सुना। इसका मतलब है की मेरे पिता ने बहुत पाप किए थे और भगवान नहीं चाहता कि वह यहां से कहीं जा सके। अगर भगवान उनकी भी मदद करना चाहता तो निश्चित रूप से उनकी भी प्रार्थना सुनता। इसलिए मैं उनके कर्मों के अनुसार उन्हें उनके हाल में छोड़ कर जा रहा हूं।
आकाशवाणी ने कहा -“क्या तुम्हें पता है? तुम्हारे पिता ने क्या मांगा।
लड़के ने कहा – “नहीं! मुझे नहीं पता।”
तब आकाशवाणी ने कहा कि – “तुम्हारे पिता ने प्रार्थना में सिर्फ इतना ही मांगा कि हे भगवान मेरा पुत्र जो भी तुमसे मांगे उसे पूरा कर देना, उसे दुखी मत होने देना और अगर प्राण छोड़ने की बारी आई तो उससे पहले मेरे प्राण ले लेना।”
आकाशवाणी ने आगे कहा- “तुम्हें पता है, तुम्हारे सभी प्रार्थना को सिर्फ इसलिए सुना गया था क्योंकि तुम्हारे पिता ने भगवान से यह प्रार्थना मांगी थी कि मेरा पुत्र जो भी मांगे उसे वह दे देना। इसलिए भगवान तुम्हारे पिता के प्रार्थना के अनुसार ही तुम्हारी प्रार्थना को स्वीकार कर रहा है।”
यह सुनकर पुत्र को बहुत ग्लानि हुई। उसे बहुत दुख हुआ, वाह दौड़ते दौड़ते अपने पिता के पास गया और उनके चरणों में गिरकर उनसे क्षमा याचना की। और पुत्र अपने पिता और स्त्री के साथ अपने गांव को लौट आए। और सुखपूर्वक अपना जीवन बिताया।
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