“अरे कहाँ मर गया रोबो, ऐ रोबो के बच्चे।” सोमी अपने नौकर पर चीख रहा था। वैसे उसका नाम सोमेश है, लेकिन सभी उसे प्यार से सोमी कहते हैं। रोबो सोमी के नौकर का नाम है। रोबो यानी रोबोट। सचमुच का रोबोट।
लोहे का बना है, लेकिन है एकदम आदमी जैसा। आदमी की तरह चलता है, आदमी की तरह सुनता है और आदमी की तरह ही सारे काम करता है। आदमी की तरह समझता है और बोलता तो है ही।
सोनी अपने पिता का इकलौता बेटा है। पिछले साल उसकी माँ का देहांत हो गया था। पिता ठहरे डॉक्टर, उनके पास तो सोमी से बात करने का भी टाइम नहीं था। फिर घर का खाना बनाना और अन्य काम कौन करता?
शुरू में सोमी के पिता ने गाँव से अपनी माँ को बुला लिया था, लेकिन उन्हें शहर का प्रदूषण रास नहीं आया और वे बीमार पड़ गई। इसके बाद उन्होंने एक नौकरानी रख ली, लेकिन कुछ ही दिनों में वह घर की कीमती चीजें लेकर चंपत हो गई। वो सोच ही रहे थे कि घर का कामकाज कौन करेगा कि किसी ने उन्हें बताया कि किसी कंपनी ने रोबोट के नए मॉडल बनाए हैं, जो घर का सारा काम कर सकते हैं। अतः वह दुकान से यह रोबोट खरीद लाए।
रोबोट सोमी के बराबर ही बड़ा था। उसके हाथ-पैर स्प्रिंग से चलते थे और आँखों में बड़े-बड़े लैंस लगे हुए थे। उसकी पीठ पर बैटरी लगती थी।
छह महीने में एक बार बैटरी चार्ज करानी पड़ती थी, फिर सारी चिंताएं खत्म। न कामचोरी का चक्कर और न चोरी का सिरदर्द।
रोबोट को देखकर सोमी बहुत खुश हुआ। देखने में वह एकदम खिलौने जैसा लगता था। सोमी ने सोचा अब वह उससे सारे काम करवाएगा और अपने दोस्तों को दिखाकर उन पर रोब जमाएगा।
वाकई रोबो बहुत समझदार निकला। घर के सारे कामकाज वह बड़ी होशियारी के साथ करता। समय पर चाय, नाश्ता और खाना तैयार कर लेता। भले ही घड़ियाँ लेट हो जाएं, लेकिन वह कभी किसी काम में देर नहीं करता। खाली समय में सोमी रोबोट के साथ खेलता भी था।
रोबो शतरंज में बहुत ही निपुण था सोमी जब हार जाता तो रोबो पर झूठ-मूठ के आरोप लगाने लगता। कभी-कभी हार से अपमानित होकर रोबो को मार भी बैठता। लेकिन रोबो का कुछ नहीं बिगड़ता, चोट लगती भी थी तो सोमी को।
और आज दो आवाजे लगाने के बाद भी जब रोबो नहीं आया, तो सोमी का पारा सातवें आसमान पर जा पहुँचा। इस बार वह और भी जोर से चिल्लाया, “तुमने सुना नहीं रोबो।”
लेकिन चौथी बार सोमी को चिल्लाना नहीं पड़ा, क्योंकि रोबो कमरे में दाखिल हो चुका था। सोमी गुस्से से लाल हो गया, “तुम्हें सुनाई नहीं पड़ता रोबो, मैं इतनी देर से बुला रहा हूं।”
“गैस पर दूध उबल रहा था। अगर मैं उसे यूं ही छोड़ कर आ जाता तो वह बह जाता।” रोबो ने जवाब दिया।
“बह जाए, चाहे जल जाए। मैं जैसा तुमसे कहूँ तुम वैसा ही करोगे।” सोमी ने आदेश सुनाया।
रोबो कुछ नहीं बोला। उसने सिर झुकाकर आज्ञा को सिर-माथे ले लिया।
एक दिन सोमी दोस्तों को घर लाया। पहले तो उसने रोबो को सबसे मिलवाया फिर उसे चाय बनाकर लाने को कहा।
रोबो चाय बनाने चला गया और सोनी अपने दोस्तों को रोबो के बारे में बताने लगा। वह बोला, “मेरा रोबो बहुत ही होशियार है। काम तो काम, खेल में भी एक्सपर्ट है। शतरंज में तो कभी-कभी मुझे भी हरा देता है।”
“अच्छा।” एक दोस्त ने अविश्वास से कहा।
“और क्या।” सोमी को जोश आ गया, “तुमने अभी देखा ही क्या है। काम तो यूँ चुटकी बजाते ही करता है। अभी दो मिनट में चाय हाजिर कर देगा। और चाय भी ऐसी की…”
“लेकिन यार, रोबो को गए तो तीन मिनट हो गए, और चाय अभी तक नहीं आई।” एक दोस्त ने उसकी बात काट दी। सोमी को लगा कि उसका अपमान हो गया। उसने गुस्से से आवाज दी, “रोबो, तुम क्या करने लगे। जल्दी से चाय लेकर आओ।”
पांच मिनट बीत जाने के बाद भी रोबो चाय लेकर नहीं आया, तो सोमी के दोस्त व्यंग्य से मुस्कुराने लगे। जब सोमी से दोस्तों के सामने बैठा न गया तो वह रसोई की ओर भागा। तभी उसे याद आया कि आज तो रोबोट की बैटरी बदलने का दिन है, बैटरी डाउन हो जाने की वजह से वह धीरे-धीरे काम कर रहा था। लेकिन सोमी गुस्से से भरा हुआ था। रोबो किचन में चाय तैयार कर प्यालो में लगा चुका था।
प्यालों को ट्रे मे रखकर रोबो ने पूछा, “सोमी भैया, चाय का क्या करूं?” सोमी गुस्से से बोला, “मेरे सिर पर पटक दो।” अब रोबो तो रोबो ही ठहरा। एक मशीन। वह भला सोमी की बात में छिपा व्यंग्य कैसे समझ पाता। उसने चाय की ट्रे सचमुच सोमी के सिर पर पटक दी। चाय एकदम गरम थी। सोमी का चेहरा बुरी तरह जल गया।
उसके दोस्त दौड़े हुए आए। फिर उन्होंने सोमी के पापा को फोन करके बुलाया।
पापा के आने पर सोमी बोला, “पापा, जैसे ही मैं किचन में पहुंचा रोबो चाय लेकर आ रहा था। जल्दबाजी में मैं उससे टकरा गया और जल गया।”
पापा बोले, “ओह सोमी देखकर काम किया करो बेटे। मैंने कितनी बार कहा है कि…” लेकिन सोमी ने पापा की ओर ध्यान नहीं दिया। वह रोबो की तरफ देखे जा रहा था। रोबो हैरान-परेशान था कि सोमी ने झूठ क्यों बोला।