Pratham Vishwa Yuddh ka Karan : 1914 मे हुये प्रथम युद्ध विश्व के लिए एक महत्वपूर्ण घटना हैं। इतिहास के अध्ययन से पता चलता हैं की इस युद्ध का सबसे बड़ा कारण गुप्त समझौते थे। पिछले कई वर्षो से यूरोप के देश अपने मित्र एवं हितैसी देशो के साथ चोरी छिपे संधिया कर रहे थे, और यही संधिया आंगे चल कर प्रथम विश्व युद्ध का कारण बना। इन गुप्त संधियो की शुरुआत जर्मनी के प्रधानमंत्री बिस्मार्क ने की थी। जैसा की हम जानते हैं की बिस्मार्क ने खंड खंड मे टूटे हुये जर्मनी को एक करके जर्मन साम्राज्य की स्थापना की थी। इतिहास मे थोड़ा पीछे चलते हैं और बात करते हैं 1870-71 की, जर्मनी के एकीकरण मे सबसे बड़ा बाधा फ्रांस था, इसलिए बिस्मार्क ने फ्रांस से युद्ध लड़ा, इस युद्ध मे फ्रांस को बहुत नुकसान हुआ तथा फ्रांस का अपमान हुआ था। इसलिए बिस्मार्क को पता था, की फ्रांस इस हार का बदला आज नहीं तो कल जरूर लेगा। इसलिए बिस्मार्क ने जर्मनी को सुरक्षित करने के लिए अपनी विदेश नीति मे बदलाव करते हुये, यूरोप के देशो के साथ अपने व्यवहार को बढ़ा रहा था। बिस्मार्क का प्रयास था की यूरोप मे फ्रांस को अलग-थलग कर दिया जाए और जर्मनी के लिए ज्यादा से ज्यादा मित्र देश बनाए जाए।
इस कूटनीति को अंगे बढ़ाए हुये बिस्मार्क ने 1879 मे अपने पड़ोसी देश आस्ट्रिया और हंगरी से गुप्त समझौते किए। कुछ वर्ष बाद इस संधि मे इटली भी शामिल हो गया। इस प्रकार जर्मनी के नेतृत्व मे तीन देशो का एक गुट बन गया, जिसका असली मकसद था, फ्रांस की गतिविधि पर नजर और जरूरत पड़ने पर उसे नियंत्रित करना।
बिस्मार्क जर्मनी को ज्यादा से ज्यादा सुरक्षित करना चाहता था इसलिए उसने रूस से मित्रता का प्रयास किया। बिस्मार्क अच्छे से जनता था की यूरोप मे रूस जैसी शक्ति को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता। रूस से मित्रता करने के लिए बिस्मार्क ने रूस, आस्ट्रिया और जर्मनी का एक संघ बनाया, इस संघ को “तीन सम्राटों का संघ” कहा गया। लेकिन बालकन क्षेत्र मे अधिकार को लेकर आस्ट्रिया और रूस एक दूसरे के दुश्मन बन गए और ये संघ कायम न रह सका। लेकिन बिस्मार्क ने हार नहीं मनी औए 1887 मे बिस्मार्क ने फिर से रूस के साथ एक गुप्त संधि की।
लेकिन कुछ कारणो से बिस्मार्क ने 1890 मे अपने पद से इस्तीफा दे दिया। बिस्मार्क के बाद जर्मनी की विदेश नीति जर्मनी के सम्राट कैजर विलियम ने अपने हाथो मे ली। जर्मनी के सम्राट ने रूस के साथ मित्रता को आगे बढ़ाने मे कोई रुचि नहीं ली और रूस के खिलाफ आस्ट्रिया का पक्ष लेकर उसने बिस्मार्क के समय की गई पुनराश्वासन संधि को तोड़ दिया। इस संधि के टूटने का बाद रूस और फ्रांस निकट आ गए, और 1894 मे रूस और फ्रांस के बीच गुप्त संधि हुई, इस संधि का मकसद था, जर्मनी को यूरोप मे नियंत्रित करना। इस संधि के बाद यूरोप 1895 तक स्पष्ट रूप से दो खेमो मे बट चुका था।
जर्मनी ने इंग्लैंड को भी दुश्मन बना लिया
इसी समय जर्मनी ने उपनिवेश के क्षेत्र मे तथा नौ-सेना के क्षेत्र मे अपनी शक्ति को बढ़ाने लगा, अभी तक ब्रिटेन नौ-सेना और उपनिवेश मे अपने को सबसे अग्रिणी देश मान रहा था लेकिन जर्मनी भी अब इन क्षेत्रो मे अपनी ताकत बढ़ाने लगा था। जिससे इंग्लैंड को जर्मनी से चुनौतियाँ मिलने लगी। अभी तक इंग्लैंड यूरोप की राजनीति से दूर था, लेकिन अब वह जर्मनी के बढ़ते प्रभाव को रोकना चाहता था। इसलिए उसने फ्रांस और रूस से अपनी नजदीकी बढ़ाने लगा। फलस्वरूप 1904 मे इंग्लैंड ने फ्रांस के गुप्त संधियाँ किया, इसके कुछ साल बाद 1907 मे इंग्लैंड ने रूस के साथ भी खुफिया समझौते किए। इन समझौतो का मुख्य उद्देश्य औपनिवेशिक झगड़ो को रोकना था। इससी उद्देश्य की पूर्ति के लिए इंग्लैंड ने फ्रांस और रूस से अपनी नजदीकी बढ़ा ली। अब जर्मनी के खिलाफ त्रिपक्षीय गुट तैयार हो गया। इस तरह से यूरोप दो खेमो मे विभाजित हो गया, जिसकी वजह से अंतर्राष्ट्रीय कटुता बढ़ गई और युद्ध की पट कथा की शुरुआत हो गई।
साम्राज्य विस्तार की चाह और प्रीतिद्वंदिता
यूरोप के देशो का प्रथम युद्ध मे शामिल होने का मौलिक कारण था साम्राज्य विस्तार की सोच जिसके कारण यूरोपीय देश का एक दूसरे से टक्कर मिलने लगा था। 1870 के दशक मे यूरोप ने नए साम्राज्यों के उदय को देखा था। इस समय जर्मनी, इटली और औस्ट्रिया का उदय हो रहा था। इन साम्राज्यों के उदय से अब अफ्रीका के बटवारे, चीन के बटवारे, प्रशांत सागर के अनेक द्वीपो पर अधिकार करने की लालसा ने यूरोप मे साम्राज्यवादी राष्ट्रो के बीच मे दुश्मनी को जन्म दिया था।
साम्राज्यवाद के विस्तार मे हो रहे टकराव को रोकने के लिए शुरुआती समय पर यूरोपीय राज्यों ने इसे शांतिपूर्ण ढंग से निपटारा करने के लिए एक समझौता किया। जिसके तहत अफ्रीका को यूरोपीय देशो ने आपस में बांट लेने की योजना बनाई और इस योजना से संबंधित सिद्धांतों का निर्धारण करने के लिए बर्लिन में 1884 में एक सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस आयोजन को बर्लिन सम्मेलन कहां गया। लेकिन इस सम्मेलन में जिन बातों पर सहमति बनी थी, कुछ दिन बाद ही उनका पालन करना छोड़ दिया गया और यूरोपी राज्यों के बीच टकराव बढ़ गए। प्रथम विश्व युद्ध होने के पहले, कुछ महत्वपूर्ण टकराव हुये जिन्हें कहीं ना कहीं प्रथम विश्व युद्ध के लिए जिम्मेदार माना जाता है।
- पहला टकराव ब्रिटेन और जर्मनी के बीच दक्षिण अफ्रीका में बोअर युद्ध के नाम से जाना जाता है।
दूसरा टकराव इंग्लैंड और फ्रांस के बीच हुआ था और यह टकराव युद्ध का रूप लेते लेते रुक गया था। इंग्लैंड और फ्रांस के बीच ये टकराव सूडान को लेकर हुआ था, इस टकराव को फासौदा कांड के नाम से जाना जाता है। -
लेकिन युद्ध का तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण टकराव, यह टकराव था ऑस्ट्रिया और रूस के बीच। यह टकराव बाल्कन प्रायद्वीप में था, इस क्षेत्र में तुर्की का अधिकार था और इस अधिकार को खत्म करके रूस और ऑस्ट्रिया दोनों ही अपना अधिकार वहां पर करना चाहते थे, इसी कारण ऑस्ट्रिया और रूस के बीच घनघोर तनाव उत्पन्न हो गया तथा आस्ट्रिया का यही साम्राज्यवाद नीति, तत्कालीन प्रथम विश्व युद्ध का मुख्य कारण बनी।
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चीन को लेकर भी यूरोपी राज्यों के बीच टकराव की स्थिति थी। चीन की दुर्बलता की वजह से यूरोपी राज्यों ने चीन को विभिन्न क्षेत्रों में बांट लिया और चीन की स्वतंत्रता को लगभग समाप्त कर दिया। इसके अलावा चीन को जापानी साम्राज्यवाद का भी शिकार होना पड़ा।
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1894-95 में जापान की विस्तार वादी गतिविधियों की वजह से रूस और जापान में प्रतिद्वंदिता बढ़ गई। जिसके फलस्वरूप 1904-05 में रूस और जापान के बीच युद्ध हो गया, यह युद्ध जापान ने रूस को हारा कर जीत लिया और अपनी साम्राज्यवादी नीव को स्थापित कर लिया। रूस और जापान के बीच हुए युद्ध में रूस की हार हुई, जिसके बाद यूरोपी राजनीति पर भी इसका प्रभाव पड़ा तथा रूस को यूरोपी राजनीति में कमजोर देश के रूप में देखा जाने लगा। ऑस्ट्रिया लगातार रूस के साथ बाल्कन क्षेत्र को लेकर आक्रामक रवैया अपना रहा था और दोनों देश के बीच तनाव एवं विरोध की स्थिति थी।
युद्ध के हथियारों की होड़
यूरोप के राज्यों के बीच सैनिक की संख्या बढ़ाने तथा हथियारों के निर्माण एवं खरीदी में होड लगी हुई थी। जब कोई देश सैनिक संख्या बढ़ाने लगे और हथियारों का निर्माण तेजी से करने लगे तो यह क्षेत्र के दूसरे देशों को डराने वाला कदम माना जाता है और तब डर और सुरक्षा की दृष्टि से दूसरे देश भी आत्मरक्षा के लिए अपने सैनिक संख्या और हथियारो की संख्या बढ़ाने लगता है। यही काम उस समय यूरोप में होने लगा था, यूरोप का हर राज्य अपनी सामरिक शक्ति बढ़ाने में कोई कमी नहीं छोड़ रहा था। इस कदम से यूरोप में युद्ध के बादल छाने लगे, युद्ध वातावरण में देश की राजनीति में सैनिक अधिकारियों को प्राथमिकता मिलने लगी। सैनिक अधिकारी नेताओं में दबाव डालने लगे कि उन्हें जल्द से जल्द युद्ध शुरू करने की इजाजत दे दी जाए। 1914 में जब प्रथम विश्व युद्ध चालू हुआ, उस समय यही स्थिति निर्मित हो गई थी। सभी यूरोपीय देशो में राजनीति सैनिक अधिकारियों के दबाव में आ गई। अगर उस समय यूरोपीय राज्यो के सैनिक अधिकारी धैर्य एवं संयम से काम लेते तो संभव था कि प्रथम विश्व युद्ध को रोका जा सकता था। रूस लगातार सैनिक लामबंदी करता जा रहा था, जिसके वजह से जर्मनी भी आक्रामक हो गया। और वह हाथ मे हाथ रख कर अपने को घिरता हुआ नहीं देख सकता था।
वह विवाद जिसने प्रथम विश्व को शुरू किया
बालकन क्षेत्र मे आस्ट्रिया और रूस के बीच तनाव बढ़ता जा रहा था, इसी बीच आस्ट्रिया ने सर्बिया के दो क्षेत्रो को अपने साम्राज्य मे मिला लिया, 1908 मे बोस्निया और हर्जेगोविना को आस्ट्रिया ने सर्बिया से छीन लिया था। इसके पहले से ही रूस सर्बिया को आस्ट्रिया के खिलाफ भड़का रहा था। आस्ट्रिया के इस हारकर के बाद सर्बिया और आस्ट्रिया मे तना-तनी बढ़ गई। रूस पूरी तरह से सर्बिया के साथ था। सर्बिया के सहयोग से आस्ट्रिया के युवराज फ़्रांज फर्डिनेंड की हत्या करवा दी गईं। यही कारण प्रथम युद्ध का तत्कालीन कारण था। आस्ट्रिया ने सर्बिया के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी, सर्बिया के मदद के लिए रूस ने अपने पूरे सैनिक शक्ति को युद्ध मे झोक दिया। जर्मनी आस्ट्रिया को अकेला नहीं छोड़ सकता था, इस लिए जर्मनी आस्ट्रिया के पक्ष मे युद्ध भूमि मे आ गया। जर्मनी ने बेल्जियम पर आक्रमण कर दिया। इंग्लैंड जर्मनी के विस्तार नीति से पहले से ही डरा हुआ था, तथा उसने भी जर्मनी के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी। बालकन क्षेत्र मे बुल्गारिया ने अपने हित को देखते हुये रूस पर हमला कर दिया, तुर्की भी रूस के खिलाफ था, क्योंकि रूस लगातार उसके क्षेत्र पर आधिपत्य जमाने के कोशिस करता आ रहा था, तथा तुर्की जर्मनी का मित्र बन गया था, तुर्की ने जर्मनी का पक्ष लेते हुये युद्ध की घोषणा कर दी। लेकिन जर्मनी का एक साथी देश इटली जर्मनी के पक्ष मे नहीं आया, और बाद मे जर्मनी के खिलाफ ही युद्ध मे शामिल हो गया। युद्ध जैसे जैसे लंबा खिचता गया, दुनिया के अन्य देश भी युद्ध मे शामिल होते गए। और यह यूरोपीय युद्ध विश्व युद्ध का रूप धरण कर लिया। प्रथम विश्व युद्ध 11 नवंबर 1918 को समाप्त हुआ था।
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