इस कविता को ईमेल के द्वारा भेजा है साक्षी जी ने। साक्षी जी, हिन्दी साहित्य की विद्यार्थी हैं, दिल्ली से हिन्दी साहित्य मे MA और MPHIL किया हुआ हैं। इस कविता का शीर्षक हैं – अपूर्व आभास जो की साक्षी जी के द्वारा लिखी गई हैं।
अपूर्व आभास हमें ना था
कि इस कदर
तुममें सिमट जाएंगे हम ।
अपूर्व आभास हमें ना था
कि इस कदर
तुमसे लिपट जाएंगे हम ।
कोशिश तो बहुतों ने कि
मगर यकीन ना था
कि तुम्हारी महफ़िल में
रुसवा किए जाएंगे हम ।
आंखों में लहरें तो उठी थी
मगर फिर भी
मोहब्बत किए जाएंगे हम ।
आभास तुम्हे ना होगा
कि किस कदर
हमसे लिपटने के लिए
तरस जाओगे तुम ।।