दीपेश का नाम जिले के सबसे प्रसिद्ध शिक्षकों में शुमार था। वह एक सख्त और अनुशासनप्रिय व्यक्ति के रूप में जाना जाता था, जो बच्चों को अनुशासन सिखाने के लिए कड़ी सजा देने से भी नहीं हिचकिचाता था। लेकिन इस अनुशासनप्रियता के पीछे एक काला राज छिपा था, दीपेश एक लालची और धूर्त शिक्षक था।
दीपेश की असलियत बहुत कम लोग जानते थे। वह अपनी नौकरी का गलत इस्तेमाल करके बच्चों को फेल करता था और फिर उन्हें पास करवाने के लिए पैसे की मांग करता था। कभी-कभी वह परीक्षा में जान-बूझकर कठिन प्रश्न पूछता और फिर जिन विद्यार्थियों के पास पैसे नहीं होते, उन्हें फेल कर देता। कुछ बच्चे इतने घबरा जाते कि उनके अंदर आत्मविश्वास ही खत्म हो जाता, जबकि कुछ ने दीपेश की चालाकियों के कारण अपनी पढ़ाई छोड़ दी। अगर कोई बच्चा उसे नमस्ते नहीं करता या फिर उसके पैर नहीं छूता, उसे भी दीपेश जानबुझ कर फ़ेल कर देता था। फिर उनसे मोती रकम लेकर उन्हे पास करने का बड़ा करता, लेकिन पैसे लेकर भी वह पहले विद्यार्थियों को खूब परेशान करता फिर जा कर उन्हे पास करता था।
दीपेश के पास पढ़ने वाले कई बच्चे थे जो कठिन मेहनत करते, लेकिन फिर भी अच्छे अंक नहीं ला पाते थे। वजह साफ थी—दीपेश का लालच। वह उन बच्चों के माता-पिता से मोटी रकम ऐंठता था, ताकि उनके बच्चों को अच्छे अंक मिल सकें। जिन बच्चों के माता-पिता पैसे देने में सक्षम नहीं होते, उनका भविष्य अंधकारमय हो जाता था।
विद्यार्थी जो पढ़ाई में होशियार थे, वे भी दीपेश के इस जाल में फंस जाते। उनके अंकों को जान-बूझकर कम कर दिया जाता, ताकि वे हतोत्साहित हों और मजबूरी में पैसे देकर पास हो सकें। इस तरह दीपेश धीरे-धीरे एक ऐसा जाल बुनता जा रहा था, जिससे बाहर निकलना लगभग असंभव हो जाता।
उसी स्कूल में एक लड़का था—अजय।
अजय बेहद होशियार और परिश्रमी विद्यार्थी था। वह हर विषय में अच्छे अंक लाता था, और उसके शिक्षक भी उसकी मेहनत और प्रतिभा की तारीफ करते थे। लेकिन दीपेश ने अजय को एक नई चुनौती दी थी—पैसे या फिर असफलता।
अजय के माता-पिता गरीब थे और उनके पास दीपेश को देने के लिए कोई अतिरिक्त पैसा नहीं था। अजय ने अपनी तरफ से पूरी मेहनत की, लेकिन फिर भी दीपेश ने उसे फेल कर दिया।
अजय इस सदमे से टूट गया। वह यह सोच नहीं पा रहा था कि उसकी मेहनत के बावजूद उसे फेल क्यों किया गया। धीरे-धीरे वह मानसिक रूप से परेशान रहने लगा। उसकी आत्मा टूट चुकी थी। उसे हर तरफ से निराशा ही दिखाई देने लगी।
एक दिन, स्कूल से लौटने के बाद अजय ने अपने कमरे में बंद होकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली। जब उसकी माँ ने दरवाजा खोला, तो वह अपने बेटे को मृत पाया। यह दृश्य देखकर उनका दिल दहल गया। अजय की मौत ने पूरे इलाके को हिला कर रख दिया।
अजय की मौत के बाद पूरे गांव में हाहाकार मच गया। अजय के द्वारा लिखी चिट्ठी ने दीपेश के काले चहरे को दुनिया के सामने रख दिया। लोगों को यह समझ आने लगा कि दीपेश का असली चेहरा कितना घिनौना था। धीरे-धीरे अजय के माता-पिता और बाकी बच्चों के माता-पिता ने हिम्मत जुटाई और दीपेश के खिलाफ एकजुट हो गए।
स्कूल के अधिकारियों और पुलिस को दीपेश के खिलाफ शिकायतें की गईं। जब जांच शुरू हुई, तो सच्चाई सामने आई—दीपेश ने कई बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ किया था और उनकी कड़ी मेहनत को पैसों के लालच में नकारा था।
अजय की आत्महत्या ने दीपेश की काली करतूतों को उजागर कर दिया था। स्कूल प्रशासन ने उसे तुरंत बर्खास्त कर दिया और पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया। न्यायालय ने दीपेश को सख्त सजा सुनाई, और उसे कई सालों तक जेल में रहने का आदेश दिया गया।
दीपेश को जेल में रहते हुए अपनी गलतियों का अहसास होने लगा। वह दिन-रात इस बात को सोचता कि कैसे उसने बच्चों के भविष्य को बर्बाद कर दिया था, और अजय की मौत के लिए वह जिम्मेदार था। लेकिन अब कुछ नहीं हो सकता था। उसका जीवन बर्बाद हो चुका था और अब उसका कोई सम्मान नहीं बचा था। पेशी के लिए जब दीपेश को कोर्ट ले जाआ जाता था, तो लोग उसे देख उसके ऊपर थूक दिया करते थे। कोई उसके चेहरे मे कालिख पोत दिया करते थे।
शिक्षा की बात
यह कहानी हमें एक महत्वपूर्ण सीख देती है कि शिक्षा और ज्ञान किसी भी रूप में खरीदा या बेचा नहीं जा सकता। शिक्षक का काम बच्चों को मार्गदर्शन देना और उनका भविष्य संवारना होता है, न कि अपने स्वार्थ और लालच में उनका जीवन बर्बाद करना।
दीपेश ने अपने लालच के कारण न सिर्फ अपने जीवन को बर्बाद किया, बल्कि कई बच्चों के भविष्य को भी अंधकार में धकेल दिया। उसकी यह कहानी एक चेतावनी है उन सभी के लिए जो शिक्षा के क्षेत्र में हैं।
दीपेश की यह कहानी हमें यह भी सिखाती है कि लालच का कोई अंत नहीं होता, और जो लोग लालच के रास्ते पर चलते हैं, वे अंत में पछतावे और अकेलेपन का सामना करते हैं।
यहाँ पर अजय ने भी बहुत गलत किया, उसे टूटना नहीं चाहिए था, उसे परिस्थिति का सामना करना चाहिए था और लड़ाई जितनी भी लंबी चलती उसे दीपेश के काले चहरे को समाज के सामने लाना चाहिए था। अजय ने अपने पीछे अपने परिवार को हमेशा के लिए दुख के सागर में छोड़ दिया था। इस लिए कभी भी किसी को वह कदम नहीं उठाना चाहिए जो अजय ने उठाया हैं।
नोट : यह कहानी शिक्षा और जागरूकता पर आधारित हैं, इस कहानी से शिक्षक पेशे का अपमान नहीं किया जा रहा हैं, आज इस पवित्र पेशे में कई धूर्त भी हैं जो शिक्षक बन कर बच्चो का अहित कर रहे हैं। उनके बारे मे लोगो को जागरूक करने के लिए ये कहानी लिखी गई हैं।