उपनिवेशवाद का परिचय | upniveshvad kya hai in hindi
भूगोलवेत्ता और अनुसन्धानकर्ता नये-नये प्रदेशों को खोज निकालने के लिये जिज्ञासु प्रतीत होने लगे। दिग्दर्शक यंत्र के आविष्कार से समुद्र यात्रा आसान हो गयी। अब अब उपनिवेशों की स्थापना का कार्य आसान हो गया। इस कार्य में स्पेन तथा पुर्तगाल ने विशेष तत्परता दिखलाई। स्पेन के राजा की सहायता से 1942 में कोलम्बस ने अमेरिका का पता लगाया। 1498 में पुर्तगाल का वास्कोडिगामा अफ्रीका का चक्कर लगाते हुए भारतवर्ष पहुँचा। इन अन्वेषकों के कारण पुर्तगाल और स्पेन सोलहवीं सदी के अग्रणी उपनिवेशी राष्ट्र बन गये। पुर्तगाल ने ब्राजील पर और भारत तथा अफ्रीका के तट पर व्यापारिक चौकियाँ स्थापित की। स्पेन ने फिलिपाइन्स और उत्तरी, मध्य और दक्षिणी अमेरिका के बडे प्रदेश पर अधिकार जमा लिया। सोलहवी सदी के मध्य में स्पेन ने नई दुनिया में साटो डोमिगो, लिमा और मैक्सिको नगर में-सर्वप्रथम विश्वविद्यालयों की भी स्थापना की। उन्होनें अमेरिका को सर्वप्रथम मुद्रणालय और पुस्तकालय प्रदान किये, किन्तु साथ ही साथ स्पेन ने यहां से अधिकाधिक धन भी प्राप्त किया। सत्रहवीं शताब्दी में हालेण्ड और फ्रांस ने भी ओपनिवेशिक साम्राज्य का निर्माण आरम्भ किया। इंग्लैण्ड सत्रहवीं सदी के उत्तरार्द्ध तक उपनिवेशों की प्रतियोगिता में सम्मिलित नहीं हुआ था किन्तु धीरे-धीरे उसका ओपनिवेशिक तथा व्यापारिक प्रतिस्पर्धा आरम्भ होती है। कुछ ही वर्षो में यूरोप के मुट्ठी भर देशों ने सोर संसार को आपस में बाँट लिया। सम्पूर्ण उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका, भारतवर्ष, दक्षिणी-पूर्वी एशिया में मलाया, हिन्द-चीन,हिन्देशिया तथा अफ्रीका के उत्तरी और दक्षिणी किनारे के कुछ भागों पर यूरोपीय साम्राज्य स्थापित हो गया।
उन्नीसवी शताब्दी में इस उपनिवेशवाद ने नया रूप धारण कर लिया। अब वह उपनिवेशवाद से साम्राज्यवाद बन गया। इस समय तक औद्योगिक क्रांति के परिणामस्वरूप आर्थिक क्षेत्र में नयी विचारधाराओं का जन्म हुआ। एडम स्मिथ और तुर्गी ने मुक्त व्यापार के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। इस सिद्धान्त के कारण पुरानी वाणिज्यवादी पद्धति का हा्स होन लगा। साथ ही यूरोपीय राज्यों के बहुत से उपनिवेश स्वतंत्र होने लगे। इंग्लैण्ड, फ्रांस तथा हालैण्ड के बहुत से उपनिवेश स्वतंत्र हो गए थे।
उन्नीसवीं शताब्दी के प्रथम चरण में “औपनिवेशिक उदासीनता” देखने को मिलती है। इस समय में मुक्त व्यापार तथा अहस्तक्षेप के सिद्धान्तों के कारण उपनिवेश स्थापित नहीं हुए। किन्तु 1870 के पश्चात यूरोप में साम्राज्यवाद की भावना पुन: प्रबल होने लगी। शक्तिशाली औद्योगिक देश तथा कथित पिछड़े प्रदेशों के जिनके प्राकृतिक साधन अविकसित हो प्रशासन पर या उनके व्यापार पर अपना अधिकार स्थापित करने का प्रयत्न करने लगे। अगले पचीस वर्षो में संसार के अविकसित क्षेत्रों पर अधिकार करने की प्रतिस्पर्धा शुरू हुई, जिनके फलस्वरूप अफ्रीका और चीन जैसे विशाल साम्राज्य को आपस में बांट लिया और एशिया के कई प्रदेशों तथा प्रशान्त महासागर के अनेक द्वीपों पर अधिकार कर लिया। साम्राज्यवाद की इस नीति के परिणाम स्वरूप अफ्रीका महाद्वीप का 90 प्रतिशत भाग यूरोपीय राज्यों के मध्य बट गया।
उपनिवेशवाद की शुरूआत के कारण
(अ) आर्थिक कारण
- अतिरिक्त उत्पादन- 1870 के पश्चात औद्योगिक क्रांति के परिणामस्वरूप औद्योगिक उम्पादन में वृद्धि हुई। इंग्लैण्ड तथा फ्रांस के साथ ही जर्मनी, इटली तथा संयुक्त राज्य अमेरिका में भी औद्योगिक उत्पादन बढ़ा। इंग्लैण्ड को अपने तैयार माल को बेचने की चिन्ता होने लगी। यूरोप के अन्य देश इस समय संरक्षणवादी नीति का पालन कर रहे थे। अत: विदेशी वस्तुओं पर भारी कर लगाये जाते थे इस कारण औद्योगिक देशों को अपना अतिरिक्त माल बेचने के लिये नये बाजार ढूँढ़ने की आवश्यकता पड़ी। यही नवीन साम्राज्यवाद या उपनिवेशिवाद का आधार था।
- अतिरिक्त पूँजी- औद्योगिक क्रांति के कारण यूरोप के देशों में धन का संचय आरम्भ हुआ। बडे पैमाने पर उत्पादन होन से लागत कम आयी और वस्तुओं का उत्पादन अधिक हुआ। देश में पूँजीपतियों का एक ऐसा वर्ग तैयार हो गया जो चाहता था कि अतिरिक्त पूँजी को ऐसे स्थान पर लगाया जाय ताकि लाभ अधिक हो। यूरोप के राज्यों में पूँजी की मांग कम थी अत: उस पर बहुत कम ब्याज मिलने की सम्भावना थी। इसी कारण पूँजी को अपनिवेशों में लगाने की प्रवृत्ति उत्पन्न हुई। इस प्रकार यूरोपीय देशों के अतिरिक्त पूँजी वाले लोगों ने अपनी सरकार को उपनिवेश स्थापना के लिये प्रेरित किया।
- कच्चे माल की आवश्यकता- औद्योगिक देशों द्वारा कच्चे माल की आवश्यकता साम्राज्यवाद का एक महत्वपूर्ण कारण रहा। औद्योगिक उत्पादन के लिये रबर, टिन, कपास वनस्पति, तेल आदि कई प्रकार के कच्चे माल की मांग बढती जा रही थी, इस मांग की पूर्ति भी उपनिवेशों द्वारा ही सम्भव थी। अत: उद्योग प्रधान देश ऐसे उपनिवेशों पर अधिकार करने का प्रयत्न करने लगे जहां से उन्हे अधिक मात्रा मे सस्ते दामों पर कच्चा माल मिल सके। उद्योग-प्रधान देशों अधिकतर लोक उद्योग-धन्धों में लगे रहते थे। अत: अन्न का उत्पादन कम होने लगा, इसकी पूर्ति भी उपनिवेशों से पूरी की जानी थी।
- यातायात एवं संचार साधनों का विकास- औद्योगिक क्रांति के फलस्वरूप यातायात और संचार के साधनों का विकास हुआ। रेलवे, डाक, तार, टेलीफोन आदि के आविष्कार के मनुष्य ने देश और काल पर अभूतपूर्व विजय प्राप्त की। टेलीग्राफ और केबिल के द्वारा प्रत्येक उपनिवेश से व्यापारिक सौदे करने में कोई कठिनाई नहीं होती थी।
- जनसंख्या का दबाव- उन्नीसवीं शताब्दी में यूरोप की आबादी बढ़ी तेजी के साथ बढ़ी। इस बढ़ती हुई आबादी को रोजगार देने तथा बसाने की समस्या दिनों-दिन उग्र होती गयी। इस समस्या का एक आसान उपाय यह था कि बहुत से लोगों को दूसरें देशों में बसा दिया जाय। इस आधार पर भी उपनिवशों की स्थापना की गयी।
(ब) राजनीतिक कारण
- व्यापारिक वर्ग- किसी भी देश का व्यापारिक वर्ग हमेशा अपने व्यापार की उन्नति के विषय में ही सोचता है। इन व्यापारियों का ऐसा संगठन बन जाता है जो सरकार पर दबाव डालकर व्यापारिक लाभ के लिये किसी भी कार्य को करने के लिये मजबूर करता है। यूरोप के देशों में भी औद्योगिक क्रांति के पश्चात ऐसे वर्ग तैयार हुए। इनमें कपड़े तथा लोहे के व्यवसायियों का महत्वपूर्ण स्थान है। ये साम्राज्यवाद के कट्टर समर्थक होते थे। क्योंकि वे अपना माल बेचने के लिये हमेशा नये बाजार की तलाश में रहते थे। इसी प्रकार अस्त्र-शस्त्र गोला-बारूद तैयार करने वाले कम्पनियों के व्यवसायी भी साम्राज्यवाद का समर्थन इसलिये करते थे, ताकि युद्ध की स्थिति में इनके व्यवसाय की तरक्की हो सके। बडी-बड़ी जहाज कम्पनियों के मालिक भी इस नीति का समर्थन इसलिये करते थे कि उन्हें कोयला लेने या तूफान आदि से बचने के लिये सुरक्षित स्थानों पर अड्डों की आवश्यकता पड़ती थी।
- राष्ट्रीयता- उपनिवेशवाद की वृद्धि का एक अन्य कारण राष्ट्रीयता की भावना से प्ररित होकर यूरोप के विविध राज्य विश्व में अपनी शक्ति का विस्तार करने के लिये आतुर थे। जर्मनी और इटली अपना एकीकरण पूरा हो जाने पर और औद्योगिकीकारण का श्रीगणेश करके यह स्वप्न देख रहे थे कि वे भी अपेक्षाकृत पुराने राष्ट्रों के साम्राज्यों की तरह अपने साम्राज्यों का निर्माण करके अपनी शक्ति बढ़ा लेगें। फ्रांस-प्रशिया युद्ध में पराजित फ्रांस को यह आशा थी कि उपनिवेशों की वृद्धि करके अपने गत गौरव को पुन: प्राप्त कर सकेगा। अनेक राष्ट्रवादी लोग उपनिवेशों को सैनिक और सामुद्रिक अड्डों के रूप में रखना चाहते थे। संसार के मानचित्र को अपने देश के उपनिवेशों से रंगा देखकर सामान्य नागरिक तक प्राय: राष्ट्रीय गौरव से खिल उठता था।
- ईसाई मिशनरियों का योगदान- यूरोपीय उपनिवेशवाद के प्रसार में धर्म का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। मध्यकाल में जब यूरोपीय लोगों में नये प्रदेशों की खोज करने की प्रवृत्ति शुरू तो ईसाई धर्म-प्रचारकों ने भी उसमें हाथ बटाया। ईसाई पादरी साम्राज्य विस्तार के एक अच्छे साधन बन जाते थे। यदि पादरियों का किसी तरह अपमान होता था तो राष्ट्रीय सरकार उस अपमान का बदला लेनें के बहाने उन देशों पर आक्रमण कर देती थी या उनके आन्तरिक शासन मे हस्तक्षेप करती थी।
मिशनरियों ने प्रत्यक्ष रूप से भी उपनिपेशवाद को प्रोत्साहित किया। इस सम्बंध में इंग्लैण्ड के डेविड लिविंग्स्टोन विशेष रूप से उल्लखनीय है। लिविंग्स्टोन ने लगभग बीस वर्ष तक अफ्रीका के अन्त: प्रदेश में जेम्बिसी और कागों नदियों के क्षेत्रों की खोज की। उसने 1873 में अपनी मृत्यु के पहले देशवासियों को यह सन्देश भेजा कि अफ्रीका की भूमि उनके व्यापार और ईसाई धर्म के प्रचार के लिये उपयुक्त है। इसी प्रकार फ्रांस के कार्डिनल लेवीगेरी ने अल्जीरिया में अफ्रीका के मिशनरियों की समिति स्थापित की और उसके माध्यम से टयूनिस मे अपना धार्मिक प्रभाव स्थापित किया। इससे फ्रांस को ट्यूनिस पर अधिकार करने में सहायता मिली। बेल्जियम के पादरियों ने भी इसी प्रकार कांगों के क्षेत्र में अपने राज्य का प्रभाव स्थापित करने के लिये पृष्ठभूमि तैयार की।
कुछ इतिहासकारों का मानना है कि ईसाई धर्म के प्रचारकों मे कुछ लोग तो सच्चे धार्मिक तथा मानव प्रेमी थे और उन्होनें मानवता की वास्तविक सेवाएँ भी की। हजारों धर्म-प्रचारकों अध्यापकों और चिकित्सकों तथा अन्य लोगों ने पिछड़े लोगों की सहायता के लिये अपने जीवन समर्पित कर दिया। फ्रांस ने अपनी औपनिवेशिक विस्तार की नीति को सभ्यता के विस्तार का कार्य बतलाया इटली ने इसे पुनीत कर्तव्य घोषित किया, इंग्लैण्ड ने इसे श्वेत जाति का भार या दायित्व बतलाया।
(स) भौगोलिक खोजों और साहसिकों का वर्ग
पुनर्जागरण काल से यूरोप में भौगोलिक खोजों की प्रवृत्ति आरम्भ हुई थी। इसका पूर्ण विकास उन्नीसवी शताब्दी के अन्त तक हुआ। इस समय में अनेक साहसिक पैदा हुए जिन्होनें केवल साहसपूर्ण कार्यो के लिये ही नये-नये उपनिवेशों को खोज निकाला। इन खोजों से साम्राज्य विस्तार में काफी सहायता प्राप्त हुई। हैनरी मार्टन स्टेनली, डेविड लिविंग्सटोन, गुस्टाव नैकटिगाल कुछ ऐसे ही उत्साही व्यक्ति थे। यूरोपीय साम्राज्य के विस्तार में उनका प्रत्यक्ष हाथ था। केमरून और टोगोलैण्ड को जर्मन उपनिवेश बनाने का श्रेय गुस्टाव नैकटिगाल को दिया जाता है।