चाहे छोटे हो या बड़े, हिन्दी कहानियाँ सबको पढ़ना पसंद हैं, और जब भी किसी को खाली समय मिलता हैं तो वो मोबाइल मे hindi story in hindi या hindi kahaniyan लिख कर google मे खोजने लगते हैं। इसलिए हमारी वैबसाइट आप सब के लिए तरह तरह की हिन्दी कहानियो का संग्रह लेकर आया हैं, जिसे पढ़ का आप आनंदित तो होंगे ही साथ मे कुछ नया सीखने को भी मिलेगा।
खूनी झील (Hindi story of bloody lake)
एक बार की बात है एक जंगल में एक झील थी। जो खुनी झील के नाम से प्रसिद्ध थी। शाम के बाद कोई भी उस झील में पानी पिने के लिए जाता तो वापस नहीं आता था। एक दिन चुन्नू हिरण उस जंगल में रहने के लिए आया।
उसकी मुलाकात जंगल में जग्गू बन्दर से हुई। जग्गू बन्दर ने चुन्नू हिरण को जंगल के बारे में सब बताया लेकिन उस झील के बारे में बताना भूल गया। जग्गू बन्दर ने दूसरे दिन चुन्नू हिरण को जंगल के सभी जानवरों से मिलाया।
जंगल में चुन्नू हिरण का सबसे अच्छा दोस्त एक चीकू खरगोश बन गया। चुन्नू हिरण को जब ही प्यास लगती थी तो वह उस झील में पानी पिने जाता था। वह शाम को भी उसमें पानी पिने जाता था।
एक शाम को वह उस झील में पानी पिने गया तो उसने उसमें बड़ी तेज़ी से अपनी और आता हुआ एक मगरमच्छ देख लिया। जिसे देखकर वह बड़ी तेज़ी से जंगल की तरफ भागने लगा। रास्ते में उसको जग्गू बन्दर मिल गया।
जग्गू ने चुन्नू हिरण से इतनी तेज़ भागने का कारण पूछा। चुन्नू हिरण ने उसको सारी बात बताई। जग्गू बन्दर ने कहा की मै तुमको बताना भूल गया था की वह एक खुनी झील है। जिसमे जो भी शाम के बाद जाता है वह वापिस नहीं आता।
लेकिन उस झील में मगरमच्छ क्या कर रहा है। उसे तो हमनें कभी नहीं देखा। इसका मतलब वह मगरमच्छ ही सभी जानवरों को खाता है जो भी शाम के बाद उस झील में पानी पिने जाता है।
अगले दिन जग्गू बन्दर जंगल के सभी जानवरों को ले जाकर उस झील में गया। मगरमच्छ सभी जानवरों को आता देखकर छुप गया। लेकिन मगरमच्छ की पीठ अभी भी पानी से ऊपर दिखाई दे रही थी।
सभी जानवरों ने कहा की यह पानी के बाहर जो चीज़ दिखाई दे रही है वह मगरमच्छ है। यह सुनकर मगरमच्छ कुछ नहीं बोला। चीकू खरगोश ने दिमाग लगाया और बोला नहीं यह तो पत्थर है। लेकिन हम तभी मानेंगे जब यह खुद बताएंगा।
यह सुनकर मगरमच्छ बोला की मै एक पत्थर हूँ। इससे सभी जानवरों को पता लग गया की यह एक मगरमच्छ है। चीकू खरगोश ने मगरमच्छ को कहा की तुम इतना भी नहीं जानते की पत्थर बोला नहीं करते। इसके बाद सभी जानवरों ने मिलकर उस मगरमच्छ को उस झील से भगा दिया और खुशी खुशी रहने लगे।
सीख: इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है की यदि हम किसी भी मुसीबत का सामना बिना घबराये मिलकर करते है तो उससे छुटकारा पा सकते है।
(पहली कहानी समाप्त)
खजाने की खोज (Hindi story of treasure hunt)
एक गांव में एक रामलाल नाम का एक किसान अपनी पत्नी और चार लड़को के साथ रहता था। रामलाल खेतों में मेहनत करके अपने परिवार का पेट पालता था। लेकिन उसके चारो लड़के आलसी थे।
जो गांव में वैसे ही इधर उधर घूमते रहते थे। एक दिन रामलाल ने अपनी पत्नी से कहा की अभी तो मै खेतों में काम कर रहा हूँ। लेकिन मेरे बाद इन लड़को का क्या होगा। इन्होने तो कभी मेहनत भी नहीं करी। ये तो कभी खेत में भी नहीं गए।
रामलाल की पत्नी ने कहा की धीरे धीरे ये भी काम करने लगेंगे। समय बीतता गया और रामलाल के लड़के कोई काम नहीं करते थे। एक बार रामलाल बहुत बीमार पड़ गया। वह काफी दिनों तक बीमार ही रहा।
उसने अपनी पत्नी को कहा की वह चारों लड़को को बुला कर लाये। उसकी पत्नी चारों लड़को को बुलाकर लायी। रामलाल ने कहा लगता है की अब मै ज्यादा दिनों तक जिन्दा नहीं रहूँगा। रामलाल को चिंता थी की उसके जाने के बाद उसके बेटों का क्या होगा।
इसलिए उसने कहा बेटों मैने अपने जीवन में जो भी कुछ कमाया है वह खजाना अपने खेतों के निचे दबा रखा है। मेरे बाद तुम उसमे से खजाना निकालकर आपस में बाँट लेना। यह बात सुनकर चारों लड़के खुश हो गए।
कुछ समय बाद रामलाल की मृत्यु हो गयी। रामलाल की मृत्यु के कुछ दिनों बाद उसके लड़के खेत में दबा खजाना निकालने गए। उन्होंने सुबह से लेकर शाम तक सारा खेत खोद दिया। लेकिन उनको कोई भी खजाना नज़र नहीं आया।
लड़के घर आकर अपनी माँ से बोले माँ पिताजी ने हमसे झूठ बोला था। उस खेत में हमें कोई खजाना नहीं मिला। उसकी माँ ने बताया की तुम्हारे पिताजी ने जीवन में यही घर और खेत ही कमाया है। लेकिन अब तुमने खेत खोद ही दिया है तो उसमे बीज बो दो।
इसके बाद लड़को ने बीज बोये और माँ के कहेनुसार उसमे पानी देते गए। कुछ समय बाद फसल पक कर तैयार हो गयी। जिसको बेचकर लड़कों को अच्छा मुनाफा हुआ। जिसे लेकर वह अपनी माँ के पास पहुंचे। माँ ने कहा की तुम्हारी मेहनत ही असली खजाना है यही तुम्हारे पिताजी तुमको समझाना चाहते थे।
सीख: हमें आलस्य को त्यागकर मेहनत करना चाहिए। मेहनत ही इंसान की असली दौलत है।
(दूसरी हिन्दी कहानी समाप्त)
बुद्धि का महत्व (Hindi story of importance of intelligence)
एक बुद्धिमान राजा था। उसका काफी बड़ा साम्राज्य था। उसके राज्य में प्रजा हर तरह से खुशहाल थी। राजा को अपने उत्तराधिकारी की तलाश थी।
उसके तीन बेटे थे। राजा इस पुरानी परंपरा को नहीं निभाना चाहता था कि सबसे बड़े बेटे को ही गद्दी पर बिठाया जाए। वह सबसे बुद्धिमान और काबिल बेटे को सत्ता सौंपना चाहता था।
इसलिए राजा ने उत्तराधिकारी के लिए तीनों की परीक्षा लेने का फैसला किया।
राजा ने तीनों बेटों को अलग-अलग दिशाओं में भेजा। उसने हर बेटे को सोने का एक-एक सिक्का देते हुए कहा, कि वे इसे ऐसी चीज खरीदें, जो पुराने महल को भर दे।
पहले बेटे ने सोचा कि पिता तो सठिया चुके हैं। इस थोड़े से पैसे से इस महल को किसी चीज से कैसे भरा जा सकता है। इसलिए वह एक मयखाने में गया, शराब पी और सारा पैसा खर्च डाला।
राजा के दूसरे बेटे ने इससे भी आगे सोचा। वह इस नतीजे पर पहुंचा कि शहर में सबसे सस्ता तो कूड़ा कचरा ही है। इसलिए उसने महल को कचरे से भर दिया।
तीसरे बेटे ने दो दिन तक इस पर चिंतन मनन किया कि महल को सिर्फ एक सिक्के से कैसे भरा जा सकता है। वह वाकई कुछ ऐसा करना चाहता था, जिससे पिता की उम्मीद पूरी होती हो।
उसनें मोमबत्तियां और लोबान की बतियां खरीदी और फिर पूरे महल को रोशनी और सुगंध से भर दिया। इस तीसरे बेटे की बुद्धिमानी से खुश होकर राजा ने उसे अपना उत्तराधिकारी बनाया।
इस हिंदी कहानी से हमें यह सीख मिलता है कि बुद्धि से कुछ भी पाया जा सकता है .
(तीसरी हिन्दी कहानी समाप्त)
राजा का अभिमान (Hindi story of Raja Ka Abhiman)
एक बार एक राज्य में भगवान बुद्ध पधारे तो राजा के मंत्री ने कहा- ” महाराज भगवान बुध का स्वागत करने आप स्वयं चलें”
यह सुनकर राजा अकड़ कर बोला- “मैं क्यों जाऊं, बुध एक भिक्षु है। भिक्षु के सामने मेरा इस तरह से झुकना उचित नहीं होगा। उन्हें आना होगा तो वह स्वयं चलकर मेरे महल तक आ जाएंगे”
विद्वान मंत्री को राजा का यह अभिमान अच्छा नहीं लगा। उसने तत्काल कहा, – ” महाराज क्षमा करें, मैं आपके जैसे छोटे आदमी के साथ काम नहीं कर सकता।”
इस पर राजा ने कहा, ” मैं और छोटा! मैं तो इतने बड़े साम्राज्य का स्वामी हूं। फिर आप मुझे छोटा कैसे कह सकते हैं। मैं बड़ा हूं इसी कारण बुद्ध के स्वागत के लिए नहीं जा रहा।”
मंत्री बोला- ” आप ना भूले कि भगवान बुद्ध भी कभी महान सम्राट थे। उन्होंने राजसी वैभव त्याग कर साधु का जीवन स्वीकार कर लिया है। इसलिए वह तो आपसे ज्यादा श्रेष्ठ है।”
यह सुनकर राजा की आंखें खुल गई। वह दौड़ा हुआ बुद्ध के पास गय और राजा ने बुद्ध से दीक्षा ग्रहण की।
(चौथी हिन्दी स्टोरी समाप्त)
आपकी जरूरत (Hindi story of Sadhu and Senapati)
एक राजा संत महात्माओं का बड़ा आदर करता था। एक बार उसके राज्य में किसी सिद्ध संत का आगमन हुआ। राजा ने अपने सेनापति को उन्हें सासम्मान दरबार में लाने का आदेश दिया। सेनापति एक सुसज्जित रथ लेकर संत के पास पहुंचा। राजा के आमंत्रण की बात सीधे कहने के बजाय सेनापति ने विनम्रता से सिर झुकाकर अभिवादन करने के बाद कहा- ” हमारे महाराज ने प्रणाम भेजा है। यदि आप अपनी चरणरज, से उनके आवास को पवित्र कर सके तो बड़ी कृपा होगी”
संत राज महल में चलने को तैयार हो गए। संत अत्यंत नाटे कद के थे। उन्हें देखकर सेनापति को यह सोचकर हंसी आ गई कि इस ठिगने व्यक्ति से उनका लंबा चौड़ा और शक्तिशाली राजा किस तरह का विचार विमर्श चाहता है? संत सेनापति के हंसने का कारण समझ गए, जब संत ने सेनापति से हंसने का कारण पूछा तो वह बोला- – आप मुझे क्षमा करें, वास्तव में आपके कद पर मुझे हंसी आई, क्योंकि हमारे महाराज बहुत लंबे हैं, उनके साथ बात करने के लिए आपको तख्त पर चढ़ना होगा।
यह सुनकर संत मुस्कुरा कर बोले- मैं जमीन पर रहकर ही महाराज से बात करूंगा। छोटे कद का लाभ यह होगा कि जब मैं बात करूंगा, तो फिर उठा कर बात करूंगा, लेकिन तुम्हारे महाराज लंबे होने के कारण जब भी बात करेंगे, सिर झुका कर बात करेंगे।
सेनापति को संत की महानता का आभास हो गया, की श्रेष्ठता कद से नहीं, अच्छे विचारों से आती है। विचार यदि उत्तम और ज्ञान युक्त हो तो व्यक्ति सच्चे अर्थों में महान बन कर संपूर्ण समाज के लिए पूजनीय हो जाता है।
(पांचमी हिन्दी कहानी समाप्त)
डरपोक पत्थर (Hindi story of timid stone)
बहुत पहले की बात है एक शिल्पकार मूर्ति बनाने के लिए जंगल में पत्थर ढूंढने गया। वहाँ उसको एक बहुत ही अच्छा पत्थर मिल गया। जिसको देखकर वह बहुत खुश हुआ और कहा यह मूर्ति बनाने के लिए बहुत ही सही है।
जब वह आ रहा था तो उसको एक और पत्थर मिला उसने उस पत्थर को भी अपने साथ ले लिया। घर जाकर उसने पत्थर को उठा कर अपने औजारों से उस पर कारीगरी करनी शुरू कर दिया।
औजारों की चोट जब पत्थर पर हुई तो वह पत्थर बोलने लगा की मुझको छोड़ दो इससे मुझे बहुत दर्द हो रहा है। अगर तुम मुझ पर चोट करोगे तो मै बिखर कर अलग हो जाऊंगा। तुम किसी और पत्थर पर मूर्ति बना लो।
पत्थर की बात सुनकर शिल्पकार को दया आ गयी। उसने पत्थर को छोड़ दिया और दूसरे पत्थर को लेकर मूर्ति बनाने लगा। वह पत्थर कुछ नहीं बोला। कुछ समय में शिल्पकार ने उस पत्थर से बहुत अच्छी भगवान की मूर्ति बना दी।
गांव के लोग मूर्ति बनने के बाद उसको लेने आये। उनने सोचा की हमें नारियल फोड़ने के लिए एक और पत्थर की जरुरत होगी। उन्होंने वहाँ रखे पहले पत्थर को भी अपने साथ ले लिया। मूर्ति को ले जाकर उन्होंने मंदिर में सजा दिया और उसके सामने उसी पत्थर को रख दिया।
अब जब भी कोई व्यक्ति मंदिर में दर्शन करने आता तो मूर्ति को फूलों से पूजा करता, दूध से स्नान कराता और उस पत्थर पर नारियल फोड़ता था। जब लोग उस पत्थर पर नारियल फोड़ते तो बहुत परेशान होता।
उसको दर्द होता और वह चिल्लाता लेकिन कोई उसकी सुनने वाला नहीं था । उस पत्थर ने मूर्ति बने पत्थर से बात करी और कहा की तुम तो बड़े मजे से हो लोग तो तुम्हारी पूजा करते है। तुमको दूध से स्नान कराते है और लड्डुओं का प्रसाद चढ़ाते है।
लेकिन मेरी तो किस्मत ही ख़राब है मुझ पर लोग नारियल फोड़ कर जाते है। इस पर मूर्ति बने पत्थर ने कहा की जब शिल्पकार तुम पर कारीगरी कर रहा था यदि तुम उस समय उसको नहीं रोकते तो आज मेरी जगह तुम होते।
लेकिन तुमने आसान रास्ता चुना इसलिए अभी तुम दुःख उठा रहे हो। उस पत्थर को मूर्ति बने पत्थर की बात समझ आ गयी थी। उसने कहा की अब से मै भी कोई शिकायत नहीं करूँगा। इसके बाद लोग आकर उस पर नारियल फोड़ते।
नारियल टूटने से उस पर भी नारियल का पानी गिरता और अब लोग मूर्ति को प्रसाद का भोग लगाकर उस पत्थर पर रखने लगे।
सीख: हमें कभी भी कठिन परिस्थितियों से घबराना नहीं चाहिए।
(छठवी कहानी समाप्त)
खजाने की खोज (Hindi story of treasure hunt)
एक गांव में एक रामलाल नाम का एक किसान अपनी पत्नी और चार लड़को के साथ रहता था। रामलाल खेतों में मेहनत करके अपने परिवार का पेट पालता था। लेकिन उसके चारो लड़के आलसी थे।
जो गांव में वैसे ही इधर उधर घूमते रहते थे। एक दिन रामलाल ने अपनी पत्नी से कहा की अभी तो मै खेतों में काम कर रहा हूँ। लेकिन मेरे बाद इन लड़को का क्या होगा। इन्होने तो कभी मेहनत भी नहीं करी। ये तो कभी खेत में भी नहीं गए।
रामलाल की पत्नी ने कहा की धीरे धीरे ये भी काम करने लगेंगे। समय बीतता गया और रामलाल के लड़के कोई काम नहीं करते थे। एक बार रामलाल बहुत बीमार पड़ गया। वह काफी दिनों तक बीमार ही रहा।
उसने अपनी पत्नी को कहा की वह चारों लड़को को बुला कर लाये। उसकी पत्नी चारों लड़को को बुलाकर लायी। रामलाल ने कहा लगता है की अब मै ज्यादा दिनों तक जिन्दा नहीं रहूँगा। रामलाल को चिंता थी की उसके जाने के बाद उसके बेटों का क्या होगा।
इसलिए उसने कहा बेटों मैने अपने जीवन में जो भी कुछ कमाया है वह खजाना अपने खेतों के निचे दबा रखा है। मेरे बाद तुम उसमे से खजाना निकालकर आपस में बाँट लेना। यह बात सुनकर चारों लड़के खुश हो गए।
कुछ समय बाद रामलाल की मृत्यु हो गयी। रामलाल की मृत्यु के कुछ दिनों बाद उसके लड़के खेत में दबा खजाना निकालने गए। उन्होंने सुबह से लेकर शाम तक सारा खेत खोद दिया। लेकिन उनको कोई भी खजाना नज़र नहीं आया।
लड़के घर आकर अपनी माँ से बोले माँ पिताजी ने हमसे झूठ बोला था। उस खेत में हमें कोई खजाना नहीं मिला। उसकी माँ ने बताया की तुम्हारे पिताजी ने जीवन में यही घर और खेत ही कमाया है। लेकिन अब तुमने खेत खोद ही दिया है तो उसमे बीज बो दो।
इसके बाद लड़को ने बीज बोये और माँ के कहेनुसार उसमे पानी देते गए। कुछ समय बाद फसल पक कर तैयार हो गयी। जिसको बेचकर लड़कों को अच्छा मुनाफा हुआ। जिसे लेकर वह अपनी माँ के पास पहुंचे। माँ ने कहा की तुम्हारी मेहनत ही असली खजाना है यही तुम्हारे पिताजी तुमको समझाना चाहते थे।
सीख: हमें आलस्य को त्यागकर मेहनत करना चाहिए। मेहनत ही इंसान की असली दौलत है।
(सातमी कहानी समाप्त)
मेहनत का फल (Hindi story fruit of hard work)
एक गांव में दो मित्र नकुल और सोहन रहते थे। नकुल बहुत धार्मिक था और भगवान को बहुत मानता था। जबकि सोहन बहुत मेहनती थी। एक बार दोनों ने मिलकर एक बीघा जमीन खरीदी। जिससे वह बहुत फ़सल ऊगा कर अपना घर बनाना चाहते थे।
सोहन तो खेत में बहुत मेहनत करता लेकिन नकुल कुछ काम नहीं करता बल्कि मंदिर में जाकर भगवान से अच्छी फसल के लिए प्रार्थना करता था। इसी तरह समय बीतता गया। कुछ समय बाद खेत की फसल पक कर तैयार हो गयी।
जिसको दोनों ने बाजार ले जाकर बेच दिया और उनको अच्छा पैसा मिला। घर आकर सोहन ने नकुल को कहा की इस धन का ज्यादा हिस्सा मुझे मिलेगा क्योंकि मैंने खेत में ज्यादा मेहनत की है।
यह बात सुनकर नकुल बोला नहीं धन का तुमसे ज्यादा हिस्सा मुझे मिलना चाहिए क्योकि मैंने भगवान से इसकी प्रार्थना की तभी हमको अच्छी फ़सल हुई। भगवान के बिना कुछ संभव नहीं है। जब वह दोनों इस बात को आपस में नहीं सुलझा सके तो धन के बॅटवारे के लिए दोनों गांव के मुखिया के पास पहुंचे।
मुखिया ने दोनों की सारी बात सुनकर उन दोनों को एक – एक बोरा चावल का दिया जिसमें कंकड़ मिले हुए थे। मुखिया ने कहा की कल सुबह तक तुम दोनों को इसमें से चावल और कंकड़ अलग करके लाने है तब में निर्णय करूँगा की इस धन का ज्यादा हिस्सा किसको मिलना चाहिए।
दोनों चावल की बोरी लेकर अपने घर चले गए। सोहन ने रात भर जागकर चावल और कंकड़ को अलग किया। लेकिन नकुल चावल की बोरी को लेकर मंदिर में गया और भगवान से चावल में से कंकड़ अलग करने की प्रार्थना की।
अगले दिन सुबह सोहन जितने चावल और कंकड़ अलग कर सका उसको ले जाकर मुखिया के पास गया। जिसे देखकर मुखिया खुश हुआ। नकुल वैसी की वैसी बोरी को ले जाकर मुखिया के पास गया।
मुखिया ने नकुल को कहा की दिखाओ तुमने कितने चावल साफ़ किये है। नकुल ने कहा की मुझे भगवान पर पूरा भरोसा है की सारे चावल साफ़ हो गए होंगे। जब बोरी को खोला गया तो चावल और कंकड़ वैसे के वैसे ही थे।
जमींदार ने नकुल को कहा की भगवान भी तभी सहायता करते है जब तुम मेहनत करते हो। जमींदार ने धन का ज्यादा हिस्सा सोहन को दिया। इसके बाद नकुल भी सोहन की तरह खेत में मेहनत करने लगा और अबकी बार उनकी फ़सल पहले से भी अच्छी हुई।
सीख: इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है की हमें कभी भी भगवान के भरोसे नहीं बैठना चाहिए। हमें सफलता प्राप्त करने के लिए मेहनत करनी चाहिए।
(आठवीं हिन्दी कहानी समाप्त)
सोने का अंडा (hindi story of golden egg)
बहुत पहले की बात है एक गांव में अली नाम का एक व्यक्ति रहता था। उसके माँ बाप बचपन में ही गुजर चुके थे। वह खेतों में काम करके अपना गुजारा बड़ी मुश्किल से करता था। उसके पास एक मुर्गी थी। जो उसको रोज़ एक अंडा देती थी।
जब उसके पास कभी खाने के लिए कुछ नहीं होता तो वह रात को अपनी मुर्गी का अंडा खा कर ही सो जाता था। उसके पड़ोस में एक बासा नाम का एक व्यक्ति रहता था। जो की सही व्यक्ति नहीं था।
जब उसने देखा की अली अपना गुजारा सही से कर रहा है तो उसने एक दिन अली की मुर्गी चुरा ली। जब अली घर पर नहीं था। इसके बाद बासा मुर्गी को मार कर पका कर खा गया। जब अली घर आया और उसने घर पर मुर्गी को नहीं देखा तो इधर उधर अपनी मुर्गी को ढूंढने लगा।
उसने मुर्गी के कुछ पंख बासा के घर के बाहर देखे। उसने बासा से बात की तो बासा ने कहा की उसकी बिल्ली एक मुर्गी को पकड़ कर लायी थी। मैंने उसको पका कर खा लिया। मुझे क्या पता था वह तुम्हारी मुर्गी है।
अली ने बासा से कहा की वह इसकी शिकायत न्यायाधिकारी से करेगा। यह बात सुनकर बासा ने मुर्गी की जगह अली को एक छोटा बत्तख दिया। अली ने उस बत्तख को पाला जिससे कुछ दिनों बाद वह बत्तख बड़ा हो गया और अंडा देने लगा।
एक रात को जब बहुत बारिश आ रही थी। एक साधू भीगता हुआ रहने की जगह मांगने के लिए बासा के घर पहुंचा। लेकिन बासा ने उसको मना कर दिया। इसके बाद वह अली के घर गया। अली ने उसको रहने के लिए जगह दी और खाना भी खिलाया।
अगली सुबह वह अली के घर से जाने लगा लेकिन जाते हुए उसने अली के बत्तख के सिर पर हाथ फेरा। इसके बाद जब बत्तख ने अंडा दिया तो वह सोने का था। अली यह देखकर बहुत खुश हुआ।
अब बतख़ जब भी अंडा देता तो वह सोने का होता था। सोने के अंडे को बेचकर अली की सारी गरीबी दूर हो गयी। लेकिन फिर भी वह साधारण जिंदगी ही जीता था। एक दिन बासा ने बत्तख को सोने का अंडा देते हुए देख लिया और वह न्यायाधिकारी के पास गया।
वह न्यायाधिकारी से बोला की अली ने कल मेरा बतख चुरा लिया है। जब न्याय अधिकारी ने अली से पूछा तो उसने सारी बात बताई की किस तरह बासा ने ही उसको बत्तख दिया था। न्यायाधिकारी ने कहा की मै कल इसका फैसला करूँगा की बत्तख किसको मिलेगा।
बत्तख ने रोज़ की तरह न्यायाधिकारी के पास भी सोने का अंडा दिया। अगले दिन न्यायाधिकारी ने दोनों को सामान्य अंडा दिखाया और कहा की यह कल तुम्हारे बत्तख ने दिया है। अलग पूछने पर अली ने न्यायाधिकारी को सच बताया की उसकी बतख सोने का अंडा देती थी।
जबकि बासा ने कहा की उसकी बत्तख सामान्य अंडा देती है। न्यायाधिकारी ने एक नया बतख लेकर बासा को दे दिया। और अली को सोने का अंडा देने वाली बतख दी। अली दोबारा सोने का अंडा देने वाली बत्तख पा कर खुश हुआ।
सीख: हमें कभी भी लालच नहीं करना चाहिए और दूसरों को देखकर ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए।
(नवमी हिन्दी कहानी समाप्त)
लोमड़ी की कहानी (Hindi story of fox)
एक बार की बात है एक व्यापारी शहर से अपना सामान लेकर अपने घर जा रहा था। उसके पास बहुत सा सामान था। जिसे उसने कई सारे ऊटो के ऊपर लाद रखा था। रास्ते में एक जंगल पड़ता था। जब वह अपने ऊटो के साथ जंगल से गुजर रहा था। एक ऊट थकान के कारण बैठ गया। व्यापारी ने सोचा इसके ऊपर ज्यादा सामान था इसलिए यह थक गया होगा।
व्यापारी ने उस ऊट का सामान उतार कर दूसरे ऊटो के ऊपर रख दिया और वहाँ से यह सोचकर कर दूसरे ऊटो के साथ चल पड़ा की ऊट अपनी थकान मिटा कर उनके पीछे आ जायेगा। लेकिन जब थका हुआ ऊट कुछ देर बाद उठा तो वह जंगल में रास्ता भटक गया। लेकिन उसने सोचा कोई बात नहीं मुझे जंगल में खाने के लिए घास तो मिल ही जाएगी। वह जंगल में जा रहा था तो उसको एक शेर मिला। शेर के साथ चालाक लोमड़ी, तेंदुआ और कौआ थे।
शेर ने ऊट से कहा की तुम यहाँ पहले जंगल में तो कभी दिखाई नहीं दिए। ऊट ने शेर से अपनी सारी कहानी बताई। इसके बाद शेर ने कहा की तुम इस जंगल में हमारी शरण में हो। अब कोई तुम्हे नुक्सान नहीं पहुंचा सकता। इसके बाद ऊट जंगल में रहने लगा। कुछ दिनों के बाद शेर की हाथी से भिड़ंत हो गयी। जिसमे शेर घायल हो गया और शिकार करने के लायक नहीं रहा। वह जाकर अपनी गुफा में रहने लगा।
शेर के साथ रहने वाले चालाक लोमड़ी, तेंदुआ और कौआ अपने खाने के लिए शेर पर ही निर्भर थे। जब शेर शिकार करता तो वह खाते थे। शेर के शिकार न करने पर वह भी भूखे थे। एक दिन लोमड़ी शेर की गुफा में गया और शेर से ऊट को मारकर खाने की सलाह दी क्योंकि वह बहुत बड़ा है। जिससे बहुत दिनों तक उनके खाने का इंतजाम हो जायेगा। इस पर शेर ने लोमड़ी से कहा की मैंने ऊट को अपनी शरण में रखा हुआ है। मै ऊट को नहीं मार सकता।
लोमड़ी बड़ा चालाक था। उसने शेर से कहा की यदि ऊट आकर आपसे खुद अपने आप को खाने को कहता है तब तो आपको कोई आपत्ति तो नहीं होगी। शेर ने काफी सोचने के बाद कहा की यदि ऊट खुद आकर खाने को कहता है तो मुझे उसको मारने में कोई आपत्ति नहीं होगी। इसके बाद चालाक लोमड़ी, तेंदुआ और कौआ मिलकर ऊट के पास गए और ऊट से कहा की शेर ने बहुत दिन से कुछ नहीं खाया।
अब शेर भूख से मरने वाला है इसलिए हमकों जाकर शेर से कहना चाहिए की वह हम सब में से किसी एक को खा ले और अपनी भूख मिटा ले। इसके बाद सभी मिलकर शेर की गुफा में गए। वहाँ जाकर सबसे पहले कौए ने शेर से कहा की आप बहुत दिनों से भूखे है आप मुझे मारकर खा लीजिये और अपनी भूख मिटा ले। कौए की बात सुनकर लोमड़ी ने कहा की कौए तुम बहुत छोटे हो।
तुम को खाने से शेर की भूख नहीं मिटेगी इसलिए आप मुझे खा लीजिये। लोमड़ी की बात पर तेंदुआ बोला लोमड़ी तुमसे बड़ा तो मै हूँ इसलिए शेर आप मुझे खा लीजिये। उनकी बात सुनकर ऊट ने सोचा शेर किसी को नहीं खा रहा इसलिए मुझे भी शेर से खुद को खाने को कहना चाहिए। इसके बाद ऊट ने भी शेर से खुद को खाने को कहा। उसके यह कहते ही शेर को लोमड़ी की बात याद आ गयी।
जिसमे उसने कहा था की यदि ऊट खुद आकर अपने आप को खाने को कहेगा तो शेर उसका शिकार करेगा। शेर ने इसके बाद ऊट को मार गिराया और चालाक लोमड़ी, तेंदुआ और कौए ने बड़े ऊट का मांस कुछ दिनों तक खाया। इस तरह चालाक लोमड़ी की चतुराई से ऊट को अपनी जान गवानी पड़ी।
(दसवीं कहानी समाप्त)
परी का घर (hindi story of fairy house)
बहुत समय पहले की बात है परी लोक में एक परी का जन्म हुआ। जन्म के कुछ दिनों के बाद ही नन्ही परी को एक चुड़ैल ने चुरा लिया। वह परी को लेकर एक जंगल में गयी और एक ऊंचे टावर के घर में उसके साथ रहने लगी। वह उस नन्ही परी का अच्छे से ख़याल रखती थी। कुछ सालों के बाद नन्ही परी बड़ी और बहुत सूंदर हो गयी थी। वह चुड़ैल को ही अपनी माँ मानती थी।
चुड़ैल ने परी को उस टावर से बाहर जाने के लिए रोक लगा रखी थी। उसने परी को यह झूठी बात कह रखी थी की इस टावर से बाहर के लोग बहुत बुरे है। चुड़ैल ने टावर से आने जाने के रास्ते भी बंद कर रखे थे। परी के बाल बहुत ही लम्बे और मजबुत थे। चुड़ैल को जब भी बाहर जाना होता तो परी अपने बाल टावर से नीचे फेंक देती थी। चुड़ैल बाल के सहारे ही टावर से नीचे और ऊपर चढ़ती थी। परी को गाने का भी बहुत शौक था। जब भी चुड़ैल बाहर जाती तो खाली समय में परी गाना गाती थी।
एक दिन एक राजकुमार टावर के पास से अपने घोड़े पर गुजर रहा था। उसने परी का गाना सुना और वह वही रुक गया। वह टावर के पास पहुँचा। वह गाना गाने वाली लड़की के पास पहुँचना चाहता था। लेकिन टावर के ऊपर जाने का उसे कोई रास्ता नज़र नहीं आया। कुछ समय बाद वह थककर एक पेड़ के नीचे सो गया। जब वह उठा तो उसने देखा की एक चुड़ैल टावर के नीचे खड़ी है। उसने परी से अपने बाल नीचे गिराने को कहा। जब परी ने अपने बाल नीचे गिराए तो वह चुड़ैल उस टावर के ऊपर चढ़ गयी। परी ने इसके बाद फिर से अपने बाल ऊपर कर लिए।
अब राजकुमार समझ चूका था की टावर के ऊपर किस तरह चढ़ा जाये। वह वहाँ से चला गया और अगले दिन आया जब परी गाना गा रही थी। राजकुमार ने चुड़ैल की आवाज़ निकालकर परी को अपने बाल नीचे फेंकने को कहा। परी ने अपने बाल टावर से नीचे फेंके। राजकुमार उन्हीं बाल के सहारे टावर से ऊपर चढ़ गया। जब राजकुमार ऊपर चढ़ा तो उसने देखा की वहाँ बहुत सूंदर लड़की थी।
उसको देखते ही राजकुमार उस पर मंत्रमुग्ध हो गया। राजकुमार को देखकर परी घबरा गयी और पूछा तुम कौन हो। राजकुमार ने परी को अपना परिचय दिया और परी से शादी करने की इच्छा जताई। परी ने राजकुमार को कहा की तुम बाहर की दुनिया से आये हो इसलिए तुम बुरे हो। तब राजकुमार ने परी को समझाया बाहर की दुनिया के लोग बुरे नहीं है। तुम इस टावर से बाहर नहीं निकली इसलिए तुम्हे सच्चाई का पता नहीं है।
परी को भी राजकुमार की बात सही लगी क्योकि वह कभी उस टावर से बाहर ही नहीं गयी थी। परी ने शादी के लिए सोचकर बताने के लिए कहा। इसके बाद राजकुमार परी के बाल के सहारे टावर से बाहर आ गया। राजकुमार को टावर से निकलते हुए चुड़ैल ने देख लिया।
इसके बाद चुड़ैल टावर के अंदर गयी और उसने परी पर बहुत गुस्सा किया की मेरे जाने के बाद तुम लड़के से मिलती हो। चुड़ैल ने परी के लम्बे बाल काट दिए और अपनी शक्ति से परी को जंगल के पास के रेगिस्तान में पहुंचा दिया। अगले दिन राजकुमार जब परी से मिलने दोबारा पहुंचा तो उसने परी को अपने बाल निचे फेंकने को कहा। उस समय टावर में चुड़ैल थी। चुड़ैल ने परी के कटे हुए बाल नीचे फेंक दिए।
बाल के सहारे राजकुमार टावर पर चढ़ गया। वहाँ उसको चुड़ैल नज़र आयी। चुड़ैल ने राजकुमार पर ग़ुस्सा किया की वह उसकी लड़की से मिलने आता है। उसने राजकुमार को टावर से नीचे फेंक दिया। जिससे राजकुमार के आँखों की रौशनी चली गयी। वह इसके बाद जंगल से भटकता हुआ रेगिस्तान में पहुंच गया। वहाँ उसने परी के गाने की आवाज़ सुनी। वह उसी तरफ़ गया तो वहाँ उसको परी मिल गयी।
राजकुमार ने परी को सारी बात बताई। जिससे परी की आँखों में आँसू आ गए। राजकुमार ने अपना सिर परी की गोद में रख कर लेट गया। जैसे ही परी की आँखों के आँसू राजकुमार की आँखों में पड़े तो उसकी आंखे पहले की ही तरह ठीक हो गयी।
इसके बाद राजकुमार परी को लेकर अपने महल में आया और दोनों ने शादी कर ली और खुशी खुशी रहने लगे।
(ग्यारवी हिन्दी स्टोरी समाप्त)
इलाज
एक राजा मोटापा बढ़ने की वजह से बीमार पड़ गया। डॉक्टरों ने उसे सलाह दी कि वह खाना कम कर दे तो मोटापा घट सकता है। डॉक्टरों की इस सलाह से राजा गुस्सा हो गया।
राजा ने ऐलान किया की जो भी उसका अच्छा इलाज करेगा, उसे बड़ा इनाम दिया जाएगा। लेकिन इसमें एक शर्त थी। जो भी इस कार्य में सफल न रहेगा, उसका सिर कलम कर दिया जाएगा।
ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी की कि राजा का जीवन अब एक महीने का और बचा है। यह जानकर राजा डर गया और परेशान रहने लगा।
जिस ज्योतिषी ने यह भविष्यवाणी की थी, उसे महीने भर के लिए जेल में डाल दिया गया, ताकि यह देखा जा सके कि उसकी भविष्यवाणी में कितना दम है।
राजा बहुत डरा हुआ था। उसने खाना पीना भी बहुत कम कर दिया और महीने भर के भीतर ही उसका वजन काफी गिर गया। इसके बाद राजा ने जेल से ज्योतिषी को बुलाया और कहा, “आप क्यों नहीं मुझे तुम्हारा सिर कलम कर देना चाहिए”।
इस पर ज्योतिषी बोली कि “अपने को शीशे में देखिए कि आप अब कितने स्वस्थ हो गए हैं”। अपने को स्वस्थ और दुबला काया देखकर राजा का आश्चर्य का कोई ठिकाना न रहा।
तब ज्योतिषी ने राजा से कहा कि असल डॉक्टर तो मैं ही था। मौत के बहाने मैंने आपको डरा दिया था, ताकि आप खाना कम कर दे और स्वस्थ हो जाए।
ज्योतिषी की यह बात सुनकर राजा बहुत ही खुश हुआ और उसे इनाम दिया। साथ ही वादा किया कि वह अब कभी भी खाने-पीने में अति नहीं करेगा।
(बारहवीं हिन्दी कहानी समाप्त)
आज की जरूरत (Hindi Story – Today’s Need)
एक व्यक्ति था। उसके गुरु एक सन्यासी थे। वह व्यक्ति दुनिया दारी से ऊब सा गया था। वह अपने गुरु की तरह ही दुनियादारी छोड़कर सन्यासी बना चाहता था।
उसने अपने परिवार को यह बात बताई तो सभी ने मना कर दिय। यह कहते हुए की हम सब आपसे बहुत प्यार करते है।
फिर उसने अपने गुरु को यह बात बताई परंतु साथ ही कहा कि उनका घर-परिवार बच्चे और पत्नी उसे सन्यास लेने नहीं दे रहे हैं क्योंकि वह मुझसे बेहद प्यार करते हैं।
गुरु ने कहा “यह किसी सूरत में प्यार नहीं है”। गुरु ने उसे बहुत समझाया पर वह व्यक्ति नहीं मान रहा था। फिर गुरु ने कहा, “अच्छा ठीक है”। गुरु जी उस व्यक्ति को मठ में ले गए।
इसके बाद गुरु ने उसे योग विद्या सिखाई जिससे वह अपनी सांसे रोक कर मुरदे जैसी अवस्था में घंटो तक रह सकता था। यह सब सिखाने के बाद गुरु ने उसे एक योजना बताई और उसे घर भेज दिया।
दूसरे दिन वह व्यक्ति अपने घर पर मुर्दा पाया गया। परिवार के सारे लोग इकट्ठे हो गए। सभी रो रहे थे। विलाप कर रहे थे। वही उसकी पत्नी सबसे ज्यादा दुखी हो रही थी।
पूरे घर में कोहराम मच गया था। सभी की आंखे नम थी। वह व्यक्ति मुर्दा अवस्था में था, मगर योग अभ्यास से आसपास के माहौल को महसूस कर सकता था और सुन सकता था।
उसे बड़ा सुकून मिला कि उसका परिवार उसे कितना प्यार करते हैं, अंतत: उसने संन्यास का इरादा त्यागने का फैसला कर लिया।
कुछ ही देर बाद उस व्यक्ति के गुरु वहाँ पहुंचे। गुरु ने सभी को शांत किया। और अपने शिष्य के पड़े शव को देखा।
कुछ देर शव को देखने के बाद उसके परिवार वालो को कहा इस शव में जान फुका जा सकता है। इस व्यक्ति को मैं अपनी विद्या से जिंदा कर सकता हूँ।
यह बात सुनकर घर के सभी लोग बहुत खुश हो गए। सभी को एक उम्मीद की किरण नजर आ रही थी।
फिर सभी ने उस सन्यासी से कहा “तो आप यह काम जल्द से जल्द करिये”। इस पर उस सन्यासी ने कहा “एक समस्या है, इस कार्य लिए परिवार के किसी अन्य सदस्य को अपनी प्राण त्यागना होगा।
यह सुन कर सभी लोगों की सांसे रुकी की रुकी रह गई। सभी ने एक दूसरे को देखा। सन्यासी ने परिवार के सभी सदस्यों से एक एक कर पूछा पर किसी ने भी हां नहीं कहा।
सभी ने अपनी जान की जरूरत बताई और अपनी जिम्दारी भी।
सन्यासी ने फिर उस व्यक्ति के पत्नी से कहा, अगर यह नहीं रहे तो तुम कैसे जियोगी। उसकी पत्नी ने तुरंत जवाब दिया मैं इनके बगैर भी जी लुंगी।
गुरु ने उस व्यक्ति के बच्चों से भी यही सवाल किया। उनका भी जवाब न ही थी। फिर यही सवाल उस व्यक्ति के माता-पिता से किया। उनका भी जवाब एक ही था।
इसके बाद गुरु उस व्यक्ति के शव के पास आए और बोले हे व्यक्ति तुम उठ खड़े हो जॉव। वह व्यक्ति उठ कर बैठ गया।
फिर उसके गुरु वहाँ से जाने लगे। उसने अपने गुरु को रोका और गुरु से कहा, “मैं भी आपके साथ चलता हु”।
अब उस व्यक्ति को समझ में आ गया था कि उसकी जरूरत उसके घर में कितना है। अब वह एक पल भी अपने घर में रहना नहीं चाहता था।
(तेरहवी हिन्दी कहानी समाप्त)
बंदर और गिलहरी का याराना (Hindi story of monkey and squirrel)
बहुत समय पहले की बात है । एक जंगल में एक बंदर और गिलहरी रहते थे। एक दिन बंदर पेड़ पर बैठा था। उसकी पूँछ बहुत लंबी थी । इतनी लंबी थी कि वह जमीन तक लटक रही थी।
बंदर मजे से पेड़ पर बैठा था। गिलहरी जमीन पर उछल–कूद कर रही थी। तभी उसे लटकती पूँछ दिखाई दी। वह पूंछ पर चढ़ गई और झूलने लगी। उसे बड़ा मजा आ रहा था।
गिलहरी के झूलने से बंदर को गुदगुदी होने लगी । उसने नीचे की ओर देखा। उसे पूँछ पर गिलहरी दिखाई दी।
वह हँसकर बोला- “गिलहरी! तुम मेरी पूँछ पर क्यों झूल रहो हो? मुझे गुदगुदी हो रही है।”
गिलहरी ने यह सुनकर ऊपर की ओर देखा। उसे बंदर दिखाई दिया। वह बोली- बंदर महाराज! यह आप हो? मैंने तो पूँछ को झूला समझा था।
मैं तो झूला झूल रही थी। मुझे इसमें बड़ा मज़ा आ रहा था।
यह सुनकर बंदर हँसने लगा। गिलहरी भी पूँछ को छोड़कर पेड़ की डाली पर चढ़कर बंदर के साथ बैठ गई और दोनों की गहरी दोस्ती हो गई।
कहानी से सीख- हमें आपस में हमेशा प्रेम से रहना चाहिए।
(चौदहवीं हिन्दी कहानी समाप्त)
प्यासा कौआ (Hindi story of thirsty crow)
बहुत समय पहले की बात है। कही एक कौआ रहता था। एक दिन उस कौआ को बहुत ज्यादा प्यास लगा हुआ था।
वह पानी की तलाश में इधर-उधर घूम रहा था। लेकिन उस कौआ को पीने को एक बूद पानी भी नहीं मिल रहा था।
कुछ समय के बाद उसे एक मटका दिखाई दिया। जब कौआ मटके के पास जाकर देखता है तो उस मटके में पानी तो होता है लेकिन वह पानी मटके में बहुत ज्यादा निचे होते है।
उस कौआ की चोंच इतनी लम्बी नहीं थी की वह मटके के पानी को पी सके। उस कौए के दिमाग में एक योजना आया। वह उड़कर एक स्थान पर गया और वह से एक कंकड़ को अपने मुँह में लेकर आया।
उस कंकड़ को वह मटके में डाल देता है। कुछ समय तक मटके में कंकड़ डालते रहने से मटके का पानी ऊपर आ जाता है।
जिसको वह कौआ काफी आराम से पीकर पानी प्यास बुझाता है।
यह सब घटना एक व्यक्ति देख लेता है। जिसके बाद यह कहानी जिसका नाम प्यासा कौआ (pyasa kauwa ki kahani) है.
लेकिन हमें यह कहानी सीख देती है कि हमें अपने काम को करना चाहिए। चाहे वह कितना भी मुश्किल क्यों न हो। हमें एक दिन जरूर सफलता हासिल होगी।
(पंद्रहवी हिन्दी कहानी समाप्त)
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