किसी मोहल्ले की गली में एक कुत्ता रहता था। वह कुत्ता पालतू नहीं था इसलिए वह खाने की तलाश में यहां वहां घूमता रहता था। एक दिन उसे एक घर के बाहर एक छोटा बच्चा रोटी खाते हुए दिखा। बच्चे के हाथ में रोटी का आधा टुकड़ा था। कुत्ते ने तुरंत उस रोटी पर झपट्टा मारा और वहां से नौ दो ग्यारह हो गया।
वह बहुत तेजी से नदी की ओर भागा, उसने अपने मुंह में रोटी का टुकड़ा दबाया हुआ था। वह बहुत ही खुश था, कि नदी के उस पार पहुंचकर किसी झाड़ी के पीछे बैठकर स्वाद से रोटी को खाएगा। और फिर आधा घंटा आराम करेगा।
कुत्ता जैसे ही नदी पार करने के लिए नदी में पैर रखा, तो नदी के स्वच्छ और साफ पानी में उसे अपनी परछाई दिखी। अपनी परछाई के मुंह में आधी रोटी दबी देखकर उसे लालच आ गया। उसे लगा की नदी में कोई दूसरा कुत्ता छिपा हुआ है जो अपने मुंह में आधी रोटी दबाए हुए है।
उसे देखकर उसके आनंद की सीमा ना रही, उसने सोचा यदि मैं इस कुत्ते पर हमला कर देता हूं और इसकी रोटी छीन लेता हूं। तो मेरी आधी रोटी और उसकी आधी रोटी मिलाकर एक रोटी हो जाएगी। तब तो मैं पेट भर के पूरी रोटी खाऊंगा। इसके बाद झाड़ियों में ही छुपकर पूरा दिन आराम करूंगा।
मन में ऐसा विचार करके कुत्ते ने अपनी परछाई पर झपट्टा मार दिया, उसने परछाई को देखकर आंखें निकाल कर परछाई पर गुर्रा उठा और जोर जोर से भौंकने लगा। जैसे ही कुत्ता भोकना चालू किया, उसके मुख से का वह आधा टुकड़ा नदी में जा गिरा, और नदी के बहाव में बैठकर कुत्ते की आंखों से ओझल हो गया।
कुत्ते ने परछाई की ओर देखा, अब उसके पास भी रोटी का वह आधा टुकड़ा नहीं था। उसे समझ आ गया यह कुत्ता कोई और नहीं बल्कि वह खुद था। लेकिन लालच की वजह से उसकी बुद्धि बंद हो गई थी, लालच की वजह से वह कुछ सोच समझ नहीं पाया। और हाथ आई आधी रोटी भी लालच की वजह से गवा दिया।
उस दिन के बाद यह कहावत लोगों द्वारा कही जाती है की “आधी छोड़ पूरी को धावे“
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