दोस्तों आज हम मस्तराम की कहानी पढ़ेंगे।
मस्तराम एक गरीब मजदूर था। जो मुंबई मे रहकर वहां मजदूरी किया करता था। मजदूरी से सिर्फ इतनी ही उसकी कमाई थी कि वह सिर्फ दो समय का खाना खा सकें और कुछ पैसे वह बचा कर रख पाता था। जिसे वह कुछ महीनों बाद अपने गांव भेज दिया करता था। गांव में उसका परिवार था, यह पैसे उसके परिवार के काम आते थे। मस्तराम एक ठेकेदार के यहां मजदूरी करता था। उसका काम ईटों को ढोकर निर्माण होने वाली जगह तक ले जाना था। मस्तराम का मालिक उससे काम ज्यादा लेता था, लेकिन काम के अनुसार उसे पैसे नहीं देता था। इसलिए मस्तराम बहुत दुखी रहता था। दिन भर मजदूरी करने के बाद वह रोज एक छूटे से होटल में बैठकर गरम-गरम चाय की चुस्की जरूर लेता था। यही उसका सबसे बड़ा आनंद का समय होता था, जब वह चाय की चुस्की के साथ अपने दिन भर की थकान को मिटाया करता था। इस दौरान एक भोला नाम का आदमी भी वहां पर आया करता था और मस्तराम के साथ वह भी चाय पिया करता था।
इस दौरान मस्तराम और भोला एक दूसरे को अपने सुख-दुख बताया करते थे। भोला मस्तराम के पड़ोस के गांव से था। इसलिए मस्तराम और भोला के बीच एक स्नेह का रिश्ता बन गया था। भोला पास ही में अपना खुद का एक छोटा सा व्यवसाय किया करता था। उसका खुद का एक फुलकी का ठेला था, जिसे वह पास के ही मोड मे स्थित एक कालेज के सामने सुबह 10 से लेकर शाम को 7:00 बजे तक चलाया करता था। उसकी अच्छी खासी कमाई हो जाया करती थी और लौटते समय वह भी उसी होटल में रुक कर मस्तराम के साथ चाय पिया करता था। दोनों में गहरी दोस्ती हो गई थी। इसलिए भोला हमेशा मस्तराम को मजदूरी छोड़ने के लिए कहता और उसे अपना खुद का कोई धंधा चालू करने के लिए उत्साहित करता था। मस्तराम हमेशा भोला की बात यह कहकर डाल दिया करता की उसके पास कोई भी कौशल नहीं है। जिसका इस्तेमाल करके वह कोई धंधा प्रारंभ कर सकें, उसे सिर्फ मेहनत करना ही समझ में आता है। भोला ने उसे कई बार समझाया की कोई ना कोई कौशल होगा जो तुम्हें आता होगा। उस पर अच्छे से विचार करो और अपना खुद का धंधा चालू करो। तुम्हें अगर धंधा चालू करने के लिए कुछ पैसो की आवश्यकता होगी तो वो मैं तुम्हें दे दूंगा। एक शाम मस्तराम मज़ाक मज़ाक मे भोला को बताया की चाय उसे बहुत पसंद हैं, और मेरे जैसी चाय कोई नहीं बना सकता। यह सुनते ही भोला खुशी से मस्तराम की तरफ देखने लगा। और मस्तराम को बोला की यही तो तुम्हारा सबसे बढ़िया कौसल हैं। ये शहर हैं, सब लोग यहाँ कम करते हैं, और जब थक जाते हैं तो अपने को तरोताजा करने के लिए चाय जरूर पीते हैं, चाहे गरीब हो या अमीर चाय सब पीते हैं।तुम्हें चाय का धंधा चालू करना चाहिए। इसके बाद भोला ने जिद करके मस्तराम की एक छोटी से चाय की दुकान खुलवा दी। मस्तराम अब खूब दिल लगा कर मेहनत करने लगा। उसने आसपास के सभी सरकारी दफ्तरो मे अपनी चाय मुफ्त मे पिलाई, जिसके बाद सभी लोग मस्तराम की चाय ही पीना पसंद करते थे। मस्तराम की जो आय मजदूरी करके मिलती थी, उसके मुक़ाबले यह काफी सम्मान का व्यवसाय था। और मुनाफा भी उससे कई गुना हो जाया करता था।
मस्तराम ने अपने परिवार को अब शहर बुला लिया और अपने एक लौटे बेटे को अच्छी शिक्षा दिलवाई। मस्तराम को शहर के बड़े बड़े लोग जानने लगे थे। लोग उसका आदर किया करते थे। उसने अपने चाय के व्यवसाय को पूरे शहर मे भोला की मदद से फैला लिया था। भोला अब उसका पार्टनर हो गया था।
लेकिन मस्तराम की कहानी यही पर खत्म नहीं होती हैं। उसका लड़का एमबीए की पढ़ाई के बाद उसने अपने पिता के व्यवसाय को नई तकनीक और आधुनिक तरिक से संचालित करके पूरे देश मे फैला दिया। पूरे देश मे मस्तराम की चाय एक ब्रांड बन गया। जो मस्तराम अपने पेट को पालने के लिए शहर आया था। आज वह देश भर के कई बेरोजगारो को नौकरियाँ दे रहा था।
आप भी उद्यमी बने, और गिरे हुये नेताओ के चक्कर मे पड़ कर देश के व्यवसायीओं को गाली ना दे। मस्तराम की तरह, नौकरी करने वाला नहीं नौकरी देने वाला बने।
मस्तराम की कहानी की सूची
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