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1789 मे फ्रांसीसी क्रांति के कारण एवं प्रभाव | france ki kranti kab hui

क्रांति से पहले पुराने फ्रांस की दशा एवं स्थिति

1789 की फ्रांस की राज्‍य क्रांति से पूर्व फ्रांस की सामान्‍य दशा निम्‍नलिखित थी-

सामन्‍तीय व्‍यवस्‍था और निरंकुश राजतंत्र- क्रांति से पूर्व पुरातन फ्रांस में सम्‍पूर्ण सामाजिक, आर्थिक एवं प्रशासनिक व्‍यवस्‍था के दो आधार थे- सामन्‍तीय व्‍यवस्‍था और निरंकुश राजतंत्र

समाज का विभाजन-  फ्रांस में पुरानी व्‍यवस्‍था के अनुसार समाज में विशेषाधिकारों की भरमार थी। समाज में भेदभाव मौजूद था। पूरा समाज अनेक श्रेणियों में विभाजित था।

दैवीय अधिकार सम्‍पन्‍न राजतंत्र- राजा दैविक अधिकारों से सम्‍पन्‍न था। राजा का यह दावा था कि मैं ईश्‍वर की इच्‍छा से अर्थात ईश्‍वर प्रदत्‍त अधिकारों के आ‍धार पर शासन करता हूँ न कि जनता की इच्‍छाओं की अनु‍मति से। ईश्‍वर के सिवाय वह किसी के प्रति उत्‍तरदायी नहीं है। उसके कार्यो पर किसी का अंकुश नहीं और कोई मानवीय नियन्‍त्रण नहीं। उसकी शक्ति पूर्णतया निरंकुश थी। इस सारी व्‍यवस्‍था के शिखर पर निरंकुश और स्‍वेच्‍छाचारी राजा था। सारी सत्‍ता उसी में केन्द्रित थी। उसकी इच्‍छा ही कानून थी।

राजा की शक्ति- यदि राजा शक्तिशाली होता था तो व्‍यवहार मे यही सिद्धान्‍त लागू होता था- राजा ही कानून है। वही कर लगाता है। जैसा उचित समझता है खर्च करता है। वह युद्ध की घोषणा करता है और शान्ति स्‍थापित करता है। अथवा उसकी शक्ति पर किसी का नियन्‍त्रण नहीं और सारी जनता उसकी मुठ्ठी में होती है। वह उसे बन्‍दी बना सकता था और बिना मुकदमा चलाये उन्‍हें कारागार में रख सकता था। पेरिस फ्रांस की राजधानी थी, परन्‍तु राजा वर्साय में रहता था।

अधिक खर्चीला राज्‍य- फ्रांस का राज्‍य इस राजा के समय अधिक खर्चीला और विलासितापूर्ण था। राज्‍य परिवार अधिक खर्च करता था। 16वे लुई ने अपने कृपापात्रों पर अधिक धन खर्च किया।

राज्‍य का दोषपूर्ण संगठन- फ्रांस की शासन व्‍यवस्‍था अव्‍यवस्थित थी। विभागों का संगठन ठीक नहीं था। प्रान्‍तों में राजा के प्रतिनिधि और प्रमुख अधिकारी उतने ही निरंकुश और स्‍वेच्‍छाचारी होते थे जितना कि राजा।

प्रान्‍तों का शासन- सारे शासन का कार्य प्रान्‍तों के जरिये होता था। इनकी संख्‍या 35 थी। प्रान्‍तीय शासक राजा द्वारा नियुक्‍त किये जाते थे।ये कुलीन वंश के होते थे। राजा के द्वारा नियुक्‍त होने के कारण ये राजा के प्रति उत्‍तरदायी होते थे।

क्रांति से पूर्व फ्रांस की दशा के जीवन के प्रत्‍येक क्षेत्र में शोचनीय हो चुकी थी। इस समय वहाँ बूर्वो वंश के दुर्बल शासकों का राज्‍य था, जो शासन सम्‍बंधी कार्यो और  राष्‍ट्र की राजनीति मे प्राय: उदासीन रहते थे। ‘आर्थर यंग’ ने लिखा है कि, “फ्रांस में अपव्‍ययता से युक्‍त अराजकता का वातावरण छाया था। वहाँ पर प्रत्‍येक व्‍यक्ति स‍मृद्धि से निर्धनता की ओर जा रहा था”।

फ्रांस की राज्‍य क्रांति के कारण | france ki kranti kab hui

1789 ई. की फ्रांस की राज्‍य क्रांति यूरोप ही नहीं, विश्‍व इतिहास की एक महानतम घटना है। मानव विकास की श्रृंखला में यह एक महान् योगदान था जिसने मानव अधिकार एवं राष्‍ट्रीयता के क्षेत्र में अभूतपूर्व परिवर्तन उपस्थित कर दिया। फ्रांस ही नहीं अपितु समस्‍त संसार की पुरातन व्‍यवस्‍था में इस क्रांति से परिवर्तन शुरू हुआ।

फ्रांसीसी राज्‍य क्रांति के कारणों से फ्रांस की राजनैतिक, सामाजिक, मनोवैज्ञानिक एवं आर्थिक परिस्थितियाँ कार्य कर रही है। अत: इन दशाओं के अध्‍ययन में क्रांति का सहज ही समावेश हो जाता है।

राजनैतिक कारण-

फ्रांस ही नहीं यूरोप के विभिन्‍न राष्‍ट्रों की जनता बुरी तरह नैतिक शोषण से ग्रस्‍त थी। राजा और उसके सामन्‍त विशेषाधिकारों से लेस थे। फ्रांस की राजनैतिक दशा इस प्रकार थी-

राजा की निरंकुशता- शासन की सारी शक्ति शासन वर्ग के हाथ में केन्द्रित थी- राजा पूर्वरूपेण निरंकुश था। उनका पूर्ण विश्‍वास दैवी अधिकारों में था। राज्‍य के अधिकारी जनता की पूर्ण उपेक्षा करते थे। और मनमाने ढ़ंग से जनता का शोषण करते और उन पर कर लगाते थे। प्रजा के अधिकारों का कोई रक्षक नहीं था। शासनधिकारी और कर्मचारीगण राजा के खरीदे हुए गुलाम जैसे थे।

दरबार का विलासी वातावरण- फ्रांस का दरबार विश्‍व के महान्‍ शान-शौकत वाले दरबारों में से था और कई दृष्टियों से उन सबसे श्रेष्‍ठ था। कृषकों एवं श्रमिकों को खरी कमाई और बुर्जुआ मध्‍यम वर्ग की बौद्धिक एवं व्‍यावसायिक साधनाओं का पूर्णरूपेण शोषण किया जाकर दरबार के भोग-विलास पर अपार धन व्‍यय किया जाता था। राजा के रहन-सहन की नकल पर सामन्‍त वर्ग भी बुरी तरह अपव्‍यय करता था। और विलासिता के पीछे पागल की भाँति दीवाना था। ये सामन्‍त बुरी तरह ऋणग्रस्‍त थे और किसी सामन्‍त पर ऋण होना उनके लिये गर्व की वस्‍तु थी। इस प्रकार शासक वर्ग एवं सामन्‍त वर्ग अपने भौतिक सुखों हेतु आम जनता को बुरी तरह लूट रहा था।

प्रचलित शासन पद्धति- फ्रांस की राज्‍य व्‍यवस्‍था पूरी तरह राजा के हाथ में थी और प्राचीन परम्‍पराओं पर जो राजा को ईश्‍वर का प्रतिनिधि मानती थी आधारित थी। शासन प्रबंध की दृष्टि से फ्रांस निम्‍न प्रकार से शासित था-

  • राजा द्वारा शासित– इन प्रदेशों का प्रबंध राजा द्वारा नियुक्‍त प्रतिनिधि करते थे। ये प्रतिनिधि बहुधा सामान्‍य अथवा राज्‍य परिवार के सदस्‍य होते थे और जनता पर मनमाना अत्‍याचार करते थे।
  • सैनिक प्रान्‍त-  ये वे प्रदेश थे जिनकी स्‍वतंत्रता का अपहरण फ्रांस की सेना ने कर लिया था और इस प्रकार सैनिक अधिकारियों के नियंत्रण में इन प्रदेशों पर आतंक का राज्‍य था।
  • चर्च द्वारा अधिकृत क्षेत्र-  ये प्रदेश कैथोलिक चर्च की सम्‍पत्ति माने जाते थे।  अमीर एवं विलासी पादरियों के स्‍वार्थ की वेदी पर सदैव निर्धन जनता का शोषण होता था।

असमान प्रशासकीय व्‍यवस्‍था- इन असमानताओं के कारण फ्रांस के प्रशासकीय नियम-उपनियमों में भारी विविधताएँ थीं। कर की दरें विभिन्‍न प्रदेशों में भिन्‍न-भिन्‍न थीं। एक प्रदेश से दूसरें प्रदेश में माल के आवागमन पर विभिन्‍न दर वाली चुँगी प्रणाली विद्यमान थी। इससे व्‍यापार-व्‍यवसाय को बड़ी ठेस पहुँचती थी। इसी प्रकार विभिन्‍न स्‍थानों पर प्रचलित नाप-तौल और बाँट प्रणाली में भी कोई सामंजस्‍य नही था। समान प्रशासकीय व्‍यवस्‍था के अभाव में श्रमिक, कृषक एवं व्‍यापारी वर्ग बुरी तरह त्रस्‍त था।

जनता के अधिकारों का हनन- जनता के अधिकारों की आवाज बुलन्‍द करने वाली कोई संस्‍था नहीं थी। फ्रांसीसी संसद इस्‍टेट्स जनरल का अधिवेशन सन्‍ 1614 के उपरान्‍त नहीं बुलाया गया था। सारा शासन सूत्र राजा द्वारा नियुक्‍त उसके कठपुतली मन्त्रियों को मुठ्ठी में था। फ्रांस की जनता राजनैतिक स्‍वतंत्रता तो दूर व्‍यक्तिगत स्‍वतंत्रता से भी वंचित हो गयी थी।

कुलीनों एवं पादरियों के अत्‍याचार- राज्‍य के अतिरिक्‍त फ्रांस के उच्‍च कुलीनों एवं बड़े पादरियों को भी विशेषाधिकार प्राप्‍त थे। यह विशेषाधिकार प्राप्‍त वर्ग जनता पर अत्‍याचार की स्‍पर्धा करने में व्‍यस्‍त था।

कर्मचारियों का भ्रष्‍टाचार- राजकर्मचारी भ्रष्‍ट थे और मनमाने ढंग से अपने स्‍वार्थ की सिद्धि में मग्‍न थे। कर प्रणाली एवं शासकीय नियमों की विभिन्‍नताओं के कारण उसकी स्‍वार्थ सिद्धि निर्विघ्‍न हो रही थी।

राजाओं का व्‍यक्तिगत चरित्र- लुई 14 वाँ बाद लुई 15 वाँ फ्रांस का सम्राट बना। उसे प्रजा के हित की बिलकुल चिन्‍ता नहीं थी। वह सारा समय दुश्‍चरित्र स्त्रियों के साथ ही व्‍यतीत करता था। लुई सोलहवें में भी समस्‍याओं के निराकरण की क्षमता नहीं थी। वह फ्रांस की जनता की आशा पूर्ण न कर सका। जनता उसके विरूद्ध थी। फ्रांस मे बजट नाम की कोई वस्‍तु नहीं थी। राजा मनमाना व्‍यय करता था। राष्‍ट्रीय ऋण इस कारण दिन-प्रतिदिन बढ़ता जाता था। दूसरी ओर लुई सोलहवाँ मानसिक रूप से दुर्बल था। उसका शासनतंत्र अयोग्‍य और भ्रष्‍ट था। इधर समान्‍त व अमीर वर्ग अपने विशेषाधिकार बढ़ाते चले गये। जनता स्‍वाभाविक रूप से इन परिस्थितियों से विद्रोह करने लगी थी।

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रानी का चरित्र– लुई 16 वें रानी मेरिया एन्‍टेनिपेट बड़ी अपव्‍ययी थी। लुई 16वें को इस अवस्‍था में पहुँचाने का उत्‍तरदायित्‍व रानी पर ही विशेष रूप से है। वह आस्ट्रिया की रानी मेरिया थेरेसा की रूपगर्विता एवं अपव्‍ययी पुत्री थी। स्‍वयं को बड़ा बुद्धिमान मानती थी और बहुधा राजनैतिक गतिविधियों में हस्‍तक्ष्‍ेाप किया करती थी। उसके भाई आस्ट्रिया के सम्राट ने एक पत्र द्वारा उसे ऐसा करने की सीख दी थी पर उसका कोई प्रभाव उस पर न हुआ। रानी की नीति का फल राज्‍य परिवार वालों के लिये घातक सिद्ध हुआ तथा उनके रक्‍त से ही जनता की प्‍यास बुझी।

सामाजिक कारण

फ्रांस की क्रांति के लिये अनेक सामाजिक कारण भी उत्‍तरदायी थे, जिनमें से मुख्‍य निम्‍नलिखित थे-

समाज मे असमानता- यहाँ पुरानी समान्‍तशाही व्‍यवस्‍था प्रचलित थी। सारे समाज में घोर असमानता का वातावरण था। रेम्‍जेम्‍योर के शब्‍दों में, “फ्रांसीसी क्रांति सामन्‍तवाद की जीर्ण-शीर्ण सामाजिक व्‍यवस्‍था, वर्गीय विशेषाधिकार, निरंकुश शासन व नौकरशाही के विरोध तथा मनुष्‍य के समानता के दावे और अधिकार के नवीन सिद्धान्‍तों के आधार पर मानव समाज के नव-निर्माण के प्रयत्‍न का साकार रूप था”।

सामन्‍तों के अधिकार- कुलीनों ने अपनी जागीर में शराब की भट्टियों आटे की चक्कियों में स्‍वयं की व्‍यवस्‍था की थी। अनाज पिसाना इनके ही द्वारा होता था। इनको अलग चक्‍की लगाने का अधिकार था। इस प्रकार सामन्‍तों और पादरियों का बोलबाला था। क्‍योंकि राजदरबार में उनका प्रभाव था।

निर्धनों पर करों का भार– फ्रांस में कर प्रणाली दूषित थी। चर्च के अधिकारी सामन्‍त करो से पूरी तरह मुक्‍त थे। जनता को कष्‍ट उठाने पड़ रहे थे। क्‍योंकि फ्रांस का समाज तीन वर्गो में बँटा था अथवा असमान वर्गो में विभाजित था। पादरियों का वर्ग जो कि प्रथम वर्ग था सबसे प्रभावशाली था। वित्‍तीय तथा न्‍याय सम्‍बंधी क्ष्‍ेात्रों में इस वर्ग का प्रभाव था। वे शिक्षा पर नियंत्रण रखते थे। करों से मुक्‍त्‍ थे। गिरजाघर टिथ वसूल करता था। इसी प्रकार से दूसरा वर्ग कुलीन वर्ग था। कुलीन के तीन वर्ग थे, देहाती, कुलीन, छोटे बाज और दरबारी कुलीन। कुलीनों का सामाजिक स्‍तर दूसरों से भिन्‍न था। ये कर नहीं देते थे। साधारण वर्ग की दशा शोचनीय थी।

धार्मिक कारण

फ्रांस की क्रांति के निम्‍नलिखित धार्मिक कारण थे-

चर्च में भ्रष्‍टाचार- चर्च के अधिकारी धन सम्‍पन्‍न थे। चर्च में भ्रष्‍टाचार काफी था। जनता चर्च से सदाचार और कर्त्‍तव्‍यपालन की अपेक्षा करती । परन्‍तु वहाँ व्‍याप्‍त भ्रष्‍टाचार के कारण वह कुछ नहीं कर सकती थी। मेरियर के शब्‍दों में, “चर्च एक प्रकार से राज्‍य के अन्‍दर दूसरा स्‍वतंत्र राज्‍य था”। परन्‍तु चर्च जो कि कर्त्‍तव्‍यहीन और धार्मिक स्‍वतंत्रता का विरोध था काफी अप्रिय हो रहा था। पुरोहितों के प्रति फ्रांसीसियों की भावनायें खराब थी। क्रांति विशेषाधिकारों के विरूद्ध दीवार बन गई। क्रांतिकारियों ने पुरोहितो और कुलीनों को समाप्‍त कर दिया।

जन-साधारण की दशा- फ्रांस में जन-साधारण की दशा शोचनीय थी। इसी वर्ग में मध्‍य वर्ग के लोग शामिल थे। छोटे पादरी व्‍यापारी, व्‍यापारी, कलाकार, साहित्‍यकार डॅाक्‍टर आदि। साधारण वर्ग में किसान थी थे। बड़े-बड़े दार्शनिकों ने इनके लिये रास्‍ता बताया।

आर्थिक कारण

फ्रांस की राज्‍य क्रांति के लिये उसकी आर्थिक स्तिति भी कम उत्‍तरदायी नहीं थी। क्रांति के प्रमुख कारण निम्‍निलिखित थे-

दोषपूर्ण अर्थ विभाजन- आर्थिक दृष्टिकोण से फ्रांस का विभाजन असमानता के आधार पर स्थित था। राज्‍य का अमीर वर्ग अनेक आर्थिक विशेषाधिकारों से युक्‍त था और यह फ्रांस की आधी से अधिक भूमि का स्‍वामी था। उसे कर नहीं देना पड़ता था। दूसरी ओर 80 प्रतिशत दरिद्र ग्रामीण जनता थी जिसे अपनी आय का 80 प्रति‍शत भाग अपमान एवं तिरस्‍कारपर्ण परिस्थितियों में राज्‍य चर्च और समान्‍तों को देना पड़ता था।

विकृत शासन प्रणाली- राज्‍य की कर प्रणाली अत्‍यन्‍त विकृत एवं अन्‍यायपूर्ण थी, फ्रांस मे कर वसूल करने का ठेका दिया जाता था। इस प्रथा के कारण ठेकेदार प्रजा पर भीषण अत्‍याचार करते थे। राज्‍य को वसूल किये गये धन का आधा भाग ही प्राप्‍त होता था। इस प्रकार राज्‍य का कोई विशेष लाभ नहीं होता था गरीब जनता द्वारा वसूल किया गया धन अत्‍याचारियों की जेब में चला जाता था।

व्‍यापार की अवस्‍था- इस समय व्‍यापार भी उन्‍नत अवस्‍था में नहीं था। फ्रांस के विभिन्‍न भागों की व्‍यापार प्रणाली, नाप-तौल पद्धति, मुद्रा प्रणाली तथा चुँगीकर की दर भिन्‍न-भिन्‍न थी।राज्‍य को कोई विशेष लाभ नहीं था।

ऋण भार- भीषण अपव्‍यय से राष्‍ट्रीय ऋण दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा था। राज्‍य का कोई बजट नही था। राजकोष रिक्‍त पड़ा था, सदैव ऋण लिया जाता था। इस प्रकार फ्रांस की आर्थिक दशा डाँवाडोल हो गयी थी। स्थिति यह थी कि ऋण तो दूर ऋण ब्‍याज चुकाना कठिन हो गया था। लुई 16 वें इन दिशा में कुछ प्रयत्‍न किया किन्‍तु कुलीनों ने उसकी बात न मानकर भारी भूल की। राष्‍ट्रीय सभा ने आते ही विशेषाधिकारों का अन्‍त कर दिया और जागीरदारों को अपना रक्‍त देकर जनता के रोष का प्रतिहार करना पड़ा।

तात्कालिक कारण

क्रांति के कुछ गौण कारण भी हैं जिन्‍होनें क्रांति की बारूद में चिनगारी का कार्य किया। अमेरिका के स्‍वातंत्र्य युद्ध ने फ्रांस की जनता के आत्‍मविश्‍वास को जगा दिया। आर्थिक दशा सुधारने के राजा का प्रयत्‍न और कुलीनों की हठधर्मी भी इस हेतु उत्‍तरदायी है। तुर्गो व नैकर जैसे महान्‍ प्रशासकों एवं अर्थविदों की असफलता भी फ्रांस का दुर्भाग्‍य थी। भीषण अकाल ने असन्‍तोष की आग को बहुत धक्‍का दिया। परिणामस्‍वरूप फ्रांस में राज्‍य क्रांति होकर रही यह क्रांति क्रमश: वर्द्धित होती गई। परिणामस्‍वरूप फ्रांस ही नहीं समस्‍त यूरोप की पुरातन व्‍यवस्‍था एकदम ध्‍वस्‍त हो गयी।

मनोवैज्ञानिक कारण

यद्यपि 18 वीं शताब्‍दी के उत्‍तरार्द्ध में यूरोप के अन्‍य देशों की अवस्‍था भी फ्रांस जैसी थी, किन्‍तु फ्रांस के सौभाग्‍य से उसे महान्‍ दार्शनिकों का बौद्धिक एवं मनोवैज्ञानिक मार्गदर्शन सुलभ हुआ। वाल्‍टेयर रूसों, मान्‍टेस्‍क्यू आदि दार्शनिकों एवं विचारकों की प्रेरणा से फ्रांस क्रांति की दिशा में सबका अग्रणी बन गया। नेपोलियन बोनापार्ट का यह कहना गलत नहीं था कि यदि रूसों न होता तो फ्रांस की क्रांति ही नही होती।

क्रांति क्यो जरूरी थी?

तत्‍कालीन स्थिति में फ्रांस की क्रांति क्‍या अनिवार्य थी। अथवा वह किसी प्रकार स्‍थगित हो सकती थी। इस सम्‍बंध में इतिहासकार एकमत नहीं है। कुछ विद्वानों का कथन है कि क्रांति कोई अप्रत्‍याशित घटना न थी, क्‍योंकि इसके लिये आवश्‍यक सामग्री अनेक वर्षो से एकत्रित हो रही थी,एक ओर शासकों की निरंकुशता और प्राबल्‍य और दूसरी ओर उनके प्रति जनमत के विरोध की प्रतिक्रिया दिन-प्रतिदिन बढ़ रही थी। अत: इसका विस्‍फोट अवश्‍यम्‍भावी था। कतिपय विचारकों की धारणा यह है कि फ्रांस की राज्‍य क्रांति किसी निश्चित योजना का फल ने होकर कुछ प्रगतिशील घटनाओं का ही परिणाम थी। ये घटनाये एक सुयोग्‍य एवं चतुर शासक द्वारा रोकी भी जा सकती थी। इन विद्वानों का कथन है कि यदि नेपोलियन महान् की भाँति लुई 16 वें ने भी जनहित की भावनाओं से प्रेरित होकर देश में सुधारों का सुविस्‍तृत कार्यक्रम लागू कर दिया होता तो देश व्‍यापक अर्थव्‍यवस्‍था समाप्‍त हो जाती और उसके परिणामस्‍वरूप क्रांति भी रूक गई होती। क्रांति के पूर्व लुई 16 वें ने पन्‍द्रह वर्ष तक राज्‍य किया, किन्‍तु स्‍वयं एक अयोग्‍य एवं दुर्बल राजनीतिक होने के कारण उसने देश को और भी अधिक अव्‍यवस्थित एवं क्रां‍ति के लिये अनुकूल बना दिया। अत: इसमें इंच मात्र भी संन्‍देह नहीं कि क्रांति का विस्‍फोट सर्वथा अनिवार्य था।

फ्रांस की क्रांति के परिणाम

 फ्रांस की क्रांति के निम्‍नलिखित परिणाम हुए-

  1. फ्रांस की क्रांति ने समानता, स्‍वतंत्रता, बन्‍धुत्‍व तथा व्‍यवस्‍था (संविधान) जैसे महान्‍ सिद्धान्‍त फ्रांस तथा विश्‍व को दिये। स्‍वयं फ्रांस को भी समय-समय पर इन सिद्धान्‍तों के लिये संघर्ष करना पड़ा। इससे राष्‍ट्रीयता की भावना का विकास हुआ।
  2. पुरातन व्‍यवस्‍था का विनाश क्रांति का अन्‍य महत्‍वपूर्ण प्रभाव था। सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक तथा राजनैतिक दृष्टि से पुरातन व्‍यवस्‍था के जो भी मुख्‍य आधार थे उन्‍हें नष्‍ट कर दिया गया। सामंतवाद और सामंतीय विशेषाधिकार खत्‍म हो गये।
  3. दो सौ साल पुराने बूरबो राजवंश का तात्‍कालिक रूप से पतन तथा लुई सोलहवें को मृत्युदण्‍ड क्रांति का अन्‍य महत्‍वपूर्ण प्रभाव था।
  4. क्रांतिकारियों द्वारा की गई मानव अधिकारों की घोषणा से लोकतंत्रीय एवं धर्म निरपेक्ष भावनाओं के विकास में योगदान मिला।
  5. चर्च की सत्‍ता और सम्‍पत्ति का विनाश हो गया। धार्मिक स्‍वतंत्रता प्रदान की गयी तथा चर्च का लोककरण हो सका। पोप का वर्चस्‍व व्‍यावहारिक दृष्टि से खत्‍म हो गया।
  6. क्रांति से एक ऐसे विदेशी युद्ध की शुरूआत हुई जो करीब 23 वर्ष तक चला। इस युद्धकाल में फ्रांसीसी क्रांति के घटनाक्रम को आतंक के राज्‍य की ओर मोड़ दिया। इन युद्धों से देशभक्ति और राष्‍ट्रीयता की भावना में तीव्रता आई।
  7. फ्रांस में प्रथम बार गणतंत्र की स्‍थापना हुई। यह गणतंत्र लगभग 12 वर्ष तक कायम रहा। यह कम आश्‍चर्यजनक बात नहीं है कि जब इंग्‍लैण्‍ड की पार्लियामेंट का स्‍वरूप पूरी तरह सामंतीय था, तब फ्रांस में क्रांतिकारी गणतंत्र की स्‍थापना हो चुकी थी। 
  8. प्रशासनिक विकेन्‍द्रीकरण के फलस्‍वरूप स्‍थानीय स्‍वशासन के क्षेत्र  में कुछ प्रयोग सम्‍भव हो सके।
  9. फ्रांस की क्रांति ने फ्रांस को 1791, 1993, और 1795 के संविधान दिये। इनमें विभिन्‍न प्रयोग किये गये थे। क्रां‍ति के सभी संविधानों ने सत्‍ता अन्‍तत: मध्‍यम वर्ग को सौपी।
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फ्रांस की क्रांति के प्रभाव

आधुनिक यूरोप के इतिहास में फ्रांस की राज्‍य क्रांति का महत्‍वपूर्ण स्‍थान है। इसने फ्रांस को ही नहीं अपितु सम्‍पर्ण यूरोप को प्रभावित किया। इसने एक नये ढंग से फ्रांस की पुनर्व्‍यवस्‍था के लिये मार्ग तैयार कर दिया। यह क्रांति केवल हथियारों की लड़ाई न थी, वह समान रूप से विचारों की लड़ाई थी। इसने राजनैतिक निरंकुशता, सामाजिक विषमता तथा आर्थिक शोषण आदि पर कुठराघात किया और शासन के नवीन सिद्धान्‍तों, सामाजिक व्‍यवस्‍था के नवीन विचारों और मानव अधिकार के नये सिद्धान्‍तों को प्रचारित किया। इस दृष्टिकोण से यूरोप के इतिहास मे ही नहीं वरन्‍ समस्‍त विश्‍व के इतिहास में इस क्रांति का महत्‍वपूर्ण स्‍थान है। इस क्रांति के निम्‍नलिखित प्रभाव है-

फ्रांस पर प्रभाव

राजनीति के क्षेत्र में-

  1. क्रांति‍ ने राजा के दैवी अधिकारों के सिद्धान्‍त को उखाड़ फेंका।,
  2. पहला लिखित संविधान प्रदान किया।
  3. सामन्‍तवाद का उन्‍मूलन किया।
  4. मानव अधिकारों की घोषणा द्वारा जनसाधारण को व्‍यक्तगत स्‍वतंत्रता समानता भाषण और लेखन तथा संगठन की स्‍वतंत्रता प्रदान की।
  5. प्रशासनिक सुधार किये।
  6. लोक निर्माण कार्य किये और।
  7. राष्‍ट्रवाद की भावना जागृत की ।

सबसे बड़ी बात यह है कि जागीरदारी तथा लोकतन्‍त्रीय प्रथा में बदल गई। कुलीन वर्ग के विशेषाधिकारों को नष्‍ट करने मे क्रांति का महत्‍वपूर्ण योगदान है। 27 जून, 1789 को लुई 15वें को राष्‍ट्रीय सभा में कुलीनों और पुरोहित वर्ग के लोगों को यह कहना पड़ा था कि वे सर्वसाधारण के साथ सम्मिलित हो जाये। 4 अगस्‍त 1789 को सभी विशेषाधिकार समाप्‍त्‍ कर दिये गये थे। 1791 के संविधान के अनुसार जनता को भाषण धर्म और प्रेस की स्‍वतंत्रता दी गई। सारांश यह है कि क्रांति, समानता और बंधुत्‍व की स्‍थापना की दृष्टि से सफल रही थी। और उसने जागीरदारी प्रथा को लोकतंत्रीय प्रथा में बदल दिया था।

आर्थिक क्षेत्र में –  क्रांति के फलस्‍वरूप फ्रांस के आर्थिक जीवन में अनेक नये परिवर्तनों का समावेश हुआ। पद्ध-मुद्रा प्रचलित की गई और गिल्‍ड व्‍यवस्‍था के कट्टर नियमों को समाप्‍त कर दिया गया। चर्च की अपार सम्‍पत्ति पर कब्‍जा करके सरकार ने सम्‍पर्ण जनता को लाभ पहुँचाया। दशमलव प्रणाली पर आधारित नापतौल के पैमाने लागू किये गये तथ सम्‍पर्ण देश में आन्‍तरिक व्‍यापारिक स्‍वतंत्रता को प्रोत्‍साहन दिया गया। व्‍यापार के विकास के एकमात्र बाधा-चुंगीकरों को समाप्‍त कर दिया गया। पेरिस में बैंक ऑफ फ्रांस की स्‍थापना की गई।

शिक्षा साहित्‍य के क्षेत्र में – क्रांति बुद्धिजीवी वर्ग की एक महान्‍ सफलता थी जिसका सांस्‍कृतिक प्रभाव पड़ना स्‍वाभाविक था। क्रांति के फलस्‍वरूप भाषण लेखन और प्रकाशन की स्‍वतंत्रता हुई तथा क्रांतिकारी साहित्‍य के निर्माण को प्रोत्‍साहन मिला। अब रूढि़यों की अपेक्षा तर्क को अधिक महत्‍व दिया जाने लगा। शिक्षा प्रचार की दशा में अनेंक शिक्षा संस्‍थान खोले गये और साहित्‍य, विज्ञान, तकनीक शिक्षा, चिकित्‍सा शिक्षा, शारीरिक शिक्षा आदि के विकास की ओर विशेष रूचि ली गई। उच्‍च शारीरिक पदों को भरने के लिये योग्‍यता प्रणाली का प्रारम्‍भ हुआ। शिक्षा चर्च के कठोर शिकंजे से मुक्‍त होने लगी। इस प्रकार फ्रांसीसियों ने प्रगतिशील बौद्धिक विकास की ओर आकर्षण बढ़ा तथा वे जीवन के प्रति उदारवादी दृष्टिकोण अपनाने लगे।

क्रांति के फ्रांस पर बुरे प्रभाव भी पड़े तथा अनेक वर्षो तक लोगों को भारी कष्‍ट झेलने पड़े और फ्रांस अव्‍यवस्‍‍था तथा अराजकता की स्थिति में रहा। आतंक राज्‍य में लोकतंत्र और न्‍याय का जनाजा निकाल दिय गया। (य‍द्यपि तत्‍कालीन परिस्थितियों में शायद ऐसा किया जाना ठीक था) मानव अधिकारों की घोषणा द्वारा सामान्‍य जनता को अधिकारों का ज्ञान तो करा दिया किन्‍तु कर्त्तव्‍य अन्‍धेरों की परतो में छिपे रहे। जनसाधारण की जातिवाद चेतना का लोप नहीं हो सका। फ्रांस लम्‍बे समय के लिये प्रतिक्रियावादी यूरोप के साथ युद्धों में उलझ गया।

कुल मिलाकर 1789 की फ्रांसीसी क्रांति फ्रांस के लिये वरदान सिद्ध हुई। यद्यपि पुरातन व्यवस्‍था को सम्‍पूर्णत: पलटा नहीं जा सका सब कुछ बदला नहीं जा सका तथापि परिवर्तन के सिद्धान्‍त को सर्वमान्‍यता मिल गई और फ्रांस के नव-निर्माण का मार्ग खुल गया।

यूनान (ग्रीस) पर प्रभाव

यूनान पर फ्रांसीसी क्रांति का बहुत प्रभाव पड़ा। फलत: यूनानियों में बौद्धिक जागृति उत्‍पन्‍न हो गयी। फ्रांसीसी राज्‍य क्रांति क स्‍वतंत्रता एवं समानता भी भावनाएँ सम्‍पूर्ण यूरोप में फैल गई। इस भावना से प्रभावित होकर यूनान ने भी स्‍वतंत्र होने का बीड़ा उठाया। यूनान के स्‍वतंत्र होन के उद्देश्‍य की पूर्ति के लिये कुछ व्‍यापारियों ने मिलकर ओडेसा में  ‘फिल्‍केहितारिया’ नामक संस्‍था की स्‍थापना की।

स्‍वतंत्रता संग्राम-  यूनान ने अपने प्रथम चरण (1821-24) तक मोरिया में विद्रोह (1821) और यूनान का द्वितीय संग्राम (1824-29) तक दिखाई दिया। अन्‍त: में टर्की से युद्ध (1828-29) हुआ और एड्रियानोपल की सन्धि हुई। यूनान के स्‍वतंत्रता संग्राम की विशेषता यह थी कि वह क्रूरतापूर्ण था, निरंकुशता के खिलाफ था। यह यूरोप के इतिहास की एक महत्‍वपूर्ण घटना थी।

इटली और जर्मनी पर प्रभाव

फ्रांस की राज्‍य क्रांति का प्रभाव यूनान में ही नहीं बल्कि अन्‍यत्र भी देखा गया। 1815 के बाद क्रांति का प्रभाव इटली और जर्मनी के राज्‍यों में भी देखा गया। 1815 से 1870 तक इस कार्य को सफलता मिली।

इंग्लैंड पर प्रभाव

जन-सामान्‍य पर प्रभाव- प्रारम्‍भ में फ्रांस की राज्‍य क्रांति ने इंग्‍लैण्‍ड की जनता की सहानुभूति प्राप्‍त की। जनसाधारण की विश्‍वास था कि फ्रांस में भी संवैधानिक शासन की स्‍थापना होगी और दोनों देशों के सम्‍बंध मित्रतापूर्ण हो जायेगें परन्‍त्‍ुा जब इसके विपरीत हुआ और फ्रांस की क्रांति ने हिंसक रूख अपना लिया तो ब्रिटेन की जनता की सहानुभूति समाप्‍त हो गई।

राजनैतिक दर्शन पर प्रभाव- प्रिस्‍टले, वेकफिल्‍ड, शेरिडान, फाक्‍स आदि राजनैतिक विचारकों ने फ्रांस की क्रांति को एक अच्‍छी घटना मानकर उसका स्‍वागत किया, परन्‍तु जब आतंक युग शुरू हो गया तो विचारकों को अपना मत पलटना पड़ा। बर्क ने इस दिशा में महत्‍वपूर्ण कदम उठाया। उसने अपनी पुस्‍तक ‘रिफ्लेक्‍शन आन दी फ्रेंच रेवोल्‍युशन’ में फ्रांसीसी क्रांति की जारेदार शब्‍दों में निंदा की। उसने मृत्यु के पहले इंग्‍लैण्‍ड निवासियों को फ्रांसीसी क्रांति से दूर भागने की सलाह दी थी। उसने यह भी कहा था कि सुधार करों पर मिटाओं नहीं। उसका यह भी विश्‍वास था कि फ्रांस की क्रांति का अन्तिम नतीजा होगा-देश में तानाशाह की स्‍थापना। परन्‍तु कुछ लोग विपरीत विचारधारा के थे। ‘‍टामस पेन’ ने राइट्स ऑफ मैन में लिखा कि यदि लोगों को अपने देश का राजप्रबंध अच्‍छा न लगें तो उन्‍हें उसे बदल देने का पूरा अधिकार है। मकिनटोश और विलियम गाडविल ने भी फ्रांसीसी क्रांति को सहानुभूतिपूर्ण दृष्टि से देखा, परन्‍तु यह‍ कहना मुश्किल ही जान पड़ता है कि इन विचारकों का इंग्‍लैण्‍ड की जनता पर कोई विशेष प्रभाव पड़ा।

पिट पर प्रभाव- शुरू-शुरू में तो पिट ने फ्रांस की क्रांति से कोई विशेष रूचि नहीं ली। रोजबरी ने लिखा है ‘जब‍ सम्‍पूर्ण यूरोप की निगाहें पेरिस मे केन्द्रित थी तो पिट ने जानबूझकर अपना ध्‍यान उस ओर नहीं दिया’। इसका सबसे बडा कारण यह था कि पिट फ्रांस की क्रांति को उसका (फ्रांस) का घरेलू मामला मानता था, परन्‍तु जब क्रांति ने हिंसक रूप ग्रह‍ण कर लिया तो क्रांति के प्रति उसकी घृणा बढ़ गई और उसने फ्रांसीसी विचारों के प्रभाव से इंग्‍लैण्‍ड को बचाने की कोशिश की। उसने कई एक्‍ट पास कर एवं उस समय स्‍थापित होने वाली कई सोसाइटीज को समाप्‍त कर अंग्रेज जनता की स्‍वतंत्रता पर तथा सुधारों की माँग करने वाली संस्‍थाओं पर प्रतिबंध लगा दिये। समाचार पत्रों की स्वतंत्रता राजनैतिक सभाओं तथा भाषणों पर प्रति‍बंध लगाया गया। हिबियस कार्पस एक्‍ट का स्‍थगित कर दिया गया और संदिग्‍ध विदेशियों को इंग्‍लैण्‍ड से बाहर निकालने के लिये कानून बनाया गया कुछ काल के लिये सभी प्रकार के राजनैतिक और संवै‍धानिक सुधारों को स्‍थागित कर दिया गया तथा श्रमिक संगठनों के निर्माण को प्रतिबंधित कर दिया गया। फिर भी राजनैतिक नेता ग्रे, टामस पामर, फ्लड जान थेलवेल, टामस हार्डी, हार्नटुक आदि ने सारे देश को संगठित करने का प्रयत्‍न किया। संसदीय सुधारों के लिये आन्‍दोलन हुए। फलस्‍वरूप इंग्‍लैण्‍ड मे एक नई जागृति आई और मानवीय अधिकार जन-साधारण को वोट देने के अधिकार की नींव पड़ी। क्रांति के समर्थन और विरोध को लेकर विगदलों में फूट पड़ गई।

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आर्थिक और सामाजिक प्रभाव- फ्रांस की क्रांति ने ब्रिटेन की सरकार के सामने आर्थिक संकट खड़ा कर दिया। पिट ने यदि एक कानून के द्वारा बैंक के नोट्स को कानूनी मान्‍यता न प्रदान कर दी जाती तो शायद इंग्‍लैण्‍ड का बैंक फेल हो जाता। जो भी मुद्रा का अवमूल्‍यन हुआ, इससे कीमतों में वृद्धि हुई फलत: इंग्‍लैण्‍ड का एक बहुत बड़ा वर्ग प्रभावित हुआ। ब्रिटेन में खाद्यानों की कती थी और वह बाहर से मँगाता था। क्रांति के कारण विदेशों से अन्‍न मँगाना कठिन हो गया। ब्रिटेन की जनता काफी पेरशान हो गई। गेहूँ के भाव बहुत बढ़ गये। साधारण मतदूर एक डबल रोटी खरीदने मे भी दिक्‍कत महसूस करता था। उद्योगों पर भी विपरीत प्रभाव पड़ा। स्‍थानीय बाजार के बलबूते पर उद्योग अपनी क्षमतानुसार कार्य नहीं कर सके। विदेशी मुद्रा सीमित हुई और देश की आर्थिक बिगड़ी, समाज में अमीर और गरीब क बीच खाई बढ़ी।

साहित्‍यकारों पर प्रभाव- मानव अधिकारों की घोषणा से इंग्‍लैण्‍ड के साहित्‍यकारों विशेषकर कवियों पर काफी प्रभाव पड़ा। रोमाटिंक रिवाइवलिज्‍म इसी क्रांति की देन माना जाता है। विलियम वर्डस्वर्थ ने अपने गेय काव्‍य द्वारा फ्रांसीसी क्रांति की ओर जनसमूह का ध्‍यान आकर्षित किया उसने बड़े गर्व से कहा, ‘धन्‍य वे जो उस प्रभाव में जीवित थे और वे युवा थे वे साक्षात् दिव्‍य ही थे’ । उसने सेम्‍युएल्‍ टेलर कॉलरिज के साथ सामान्‍य आदमी की भाषा में जो लिरिकल ब्‍लाड्स लिखे उसमे सामान्‍य आदमी से सम्बंधित घटनाओं का वर्णन तो है ही और साथ के क्रांति की छाप थी, परन्‍तु जब वर्ड्सवर्थ ने क्रांति को अपने मूल उसूलों से गिरते देखा तो फिर उसने प्रकृति की ओर लौटने का निश्चित किया और एक प्रकार से रोमांटिसिज्‍म जो दिमाग के विरूद्ध ह्दय का तर्क था को गति प्रदान की।

जार्ज गोर्डन बायरन ने फ्रांसीसी क्रांति के सिद्धान्‍तों रूपी झरने पर जमकर अपनी प्‍यास बुझाने की कोशिश की। वह स्‍वतंत्रता की भावना से इतना प्रभावित हुआ था कि उसने ग्रीको को स्‍वतंत्रता के लिये तुर्की के विरूद्ध  लड़ते हुए ग्रीस मे मरने की प्राथमिकता दी। पर्सी बिशे शेले ने आतंक के विरूद्ध कलम चलाई बौद्धिक सौन्‍दर्य में अपना विकास जॉन कीट्स भी प्रकृति और सौन्‍दर्य के प्रति समर्पित था। वाल्‍टर स्‍कॉट के ब्‍लाडस् और इसकी कविता ले आव द लास्‍ट मिंस्‍ट्रेल को आज भी याद किया जाता है। बर्नस् पर भी इस क्रांति का प्रभाव पड़ा।

आयरलैण्‍ड पर प्रभाव

फ्रांसीसी क्रांति से प्रभावित होकर आयरलैण्‍ड ने 1798 में अपने अधिकारों की प्राप्ति के लिये वुल्‍फ टोन के नेतृत्‍व में विद्रोह कर दिया। पिट ने उसे जनरल लेक के द्वारा दबाव तो दिया परन्‍तु उसे यह महसूस करना पड़ा कि आयरलैण्‍ड समस्‍या के स्‍थायी समाधान के लिये कुछ करना आवश्‍यक है। अत: उसने एंग्‍लों-आयरिश यूनियन की स्‍थापना की और 1800 में एंग्लों-आयरिश एक्‍ट पार्लियामेंट मे पास करवा दिया।

सम्‍पूर्ण यूरोप पर प्रभाव

  1. राजनैतिक अधिकार संघर्ष एवं अशान्ति- फ्रांस की क्रांति ने सम्‍पूर्ण यूरोप पर अपना प्रभाव डाला। यूरोपीय देशों में राजनैतिक अधिकारों के लिये संघर्ष शुरू हो गया। स्वतंत्रता समानता बन्‍धुत्‍व आदि के नारों से सारे यूरोप का वातावरण गूँज उठा। राजाओं की निरंकुशता के लिये खतरे पैदा हो गये और जन साधारण मे जागृति आ गई। वास्‍तव मे क्रांतिकारी फ्रांस मानव जाति का प्रवक्‍ता बन गया। क्रांति के प्रसार के भय से फ्रांस के पडौसी फ्रांस के विरोधी बन गये। फ्रांस के प्रवासी पादरी और कुलीन पडौसी राजाओं को क्रांति के विरूद्ध भड़काने लगे। फलस्‍वरूप 1792 से क्रांतिकारी युद्ध छिड़ गये जिनसे सारा यूरोप लगभग 23 वर्षो तक अशान्‍त रहा। इन युद्धों में अपार धन-जन की हानि हुई। नेपोलियन क्रांति का कर्णधार बनकर यूरोप पर छा गया और उसके विश्‍व साम्राज्‍य के सपने को चूर करन के लिये बार-बार यूरोपीय राज्‍यों के संगठन बने। नेपोलियन के पतन के बाद यूरोप ने शान्ति की साँस ली।
  2. प्रतिक्रियावादी- फ्रांस की 1789 की क्रांति से यूरोप में प्रतिक्रियावादी की लहर आयी। यूरोप के शासक क्रांति के प्रसार के भय से अत्‍यन्‍त प्रतिक्रियावादी बन गये और अपने प्रत्‍येक निर्णय क्रांति के भय से प्रकाश में करने लगे। वियना कांग्रेस के सभी निर्णय क्रांति के भय को मुख्‍य रखकर ही किये गये। उद्देश्‍य यही था कि क्रांति का पुन: विस्‍फोट न हो, फ्रांस कभी शक्तिशाली न बन पाये तथा उसके चारों ओर शक्ति का घेरा कस दिया जाये।
  3. आपसी बातचीत- फ्रांस की क्रांति का यूरोपीय राज्‍यों पर एक महत्‍वपूर्ण प्रभाव यह पड़ा कि यूरोप के राजनीतिज्ञ आपसी बातचीत द्वारा अपनी समस्‍याओं और मतभेदों को हल करने मे बन देने लगे। क्रांतिकारी युद्धों से भयभीत होकर उन्‍होनें अनुभव किया कि आपसी झगड़ो को युद्ध के मैदान में हल करना उचित नहीं है। इस प्रकार ‘कांफ्रेक्‍ट टेबिलों का युग’ शुरू हुआ। समय-समय पर यूरोपीय राष्‍ट्रों के सम्‍मेलन हुए। इनके द्वारा कोई विशेष सफलता तो प्राप्‍त न हो सकी, लेकिन आधुनिक संयुक्‍त राष्‍ट्र संघ की आधारशिला रख दी गई।
  4. साहित्‍य- फ्रांस की राज्‍य क्रांति ने यूरोपीय साहित्‍य को प्रभावित किया। अनेक यूरोपीय विद्वानों ने उच्‍चकोटि के क्रांतिकारी साहित्‍य की रचना की और स्वतंत्रता, समानता, बन्‍धुत्‍व तथा लोकतन्‍त्र के नारों को आम जनता तक पहुँचाया।

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