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कैसे गोवा भारत का हिस्सा बना? क्या हैं आपरेशन विजय? | Goa ki Azadi

Goa ki Azadi : हमारा देश 1947 मे अंग्रेजो से अजाद हो गया था। लेकिन फिर भी भारत का एक एसा भाग भी था जो आजद नही हुआ था। यहाँ पर हम गोवा राज्य की बात कर रहे है। जो की भारत की आजादी के 14 वर्ष बाद स्वतंत्र हुआ था। गोवा मे अंग्रेजो का शासन नही था बल्कि वहां पर पुर्तगालियों का शासन हुआ करता था। 1510 के समय मे पुर्तगाल भारत आए थे, उस समय पुर्तगालियों ने भारत के पश्चिमी तट पर अपना अधिकार जमा लिया था। 19वी शताब्दियों मे पुर्तगालियों ने भारत के गोवा, दमन, दीव, दादरा, नगर हवेली और अन्जेदिता द्वीप पर बलपूर्वक कब्जा कर लिया था। भारत जब 15 अगस्त 1947 को अजाद हो गया तो उसके बाद भारत सरकार ने गोवा को भारत का भाग माना और उसे भारत मे शामिल करने के लिए पुर्तगालियों से बातचीत की गई लेकिन यह बातचीत सफल नही हो पाई और पुतगालियों ने गोवा को स्वतंत्र करने से मना कर दिया।

गोवा मुक्ति आंदोलन के तहत गोवा को पुर्तगालियों से आजाद कराने के लिए आंदोलन किए जाने लगे थे। यह आंदोलन 1940 से 1960 तक चला और 1960 में यह आंदोलन अपने चरम पर पहुंच गया था। 1961 में जब भारत और पुर्तगाली सरकार के बीच गोवा की स्वतंत्रता को लेकर बातचीत का दौर असफल हो गया तब भारत सरकार ने ऑपरेशन विजय के नाम से एक सैन्य अभियान प्रारंभ किया था। इस अभियान के माध्यम से 19 दिसंबर को दमन और दीव तथा गोवा को भारत का भाग मान लिया था। ऑपरेशन विजय एक सैनिक कार्यवाही थी जिसका उद्देश्य पुर्तगालियों के आधीन गोवा को आजाद कराकर उसे भारत की मुख्य भूमि का भाग बनाना था। इस कार्रवाई में भारत की सेना वायु सेना और नौसेना शामिल थे। भारत में सैनिक कार्यवाही करके 19 दिसंबर 1961 को गोवा के क्षेत्र को अपने अधिकार में ले लिया था। उस समय गोवा के गवर्नर मैनुअल एंटोनियो वासले ई सिलवा भारत के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था और गोवा पर पुर्तगाली अधिकार को समाप्त मानकर आत्मसमर्पण के प्रमाण पत्र पर अपने हस्ताक्षर कर दिए थे। 30 मई 1987 को भारत सरकार के द्वारा स्वतंत्र कराए गए इस क्षेत्र का विभाजन किया गया और गोवा को राज्य के रूप में गठित किया गया। गोवा को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया जबकि दमन और दीव को केंद्र शासित प्रदेश बनाकर केंद्र के नियंत्रण में कर दिया गया था। इस तरह से गोवा प्रतिवर्ष 30 मई को राज्य दिवस के रूप में मनाता है।

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गोवा का इतिहास

गोवा पर पुर्तगालियों का लगभग 450 वर्षों तक शासन था। अगर गोवा के पुराने इतिहास को पढ़े तो पता चलता है कि गोवा का इतिहास तीसरी शताब्दी से प्रारंभ होता है जब यहां पर मौर्य वंश का अधिकार था। मोर वंश के समाप्त होने के बाद यहां पर कोल्हापुर के सातवाहन वंश से शासकों का अधिकार हो गया था। समय का तक चलता रहा और 580 ईसवी से लेकर 750 तक यहां पर बादामी शासकों का राज था। 1312 ईस्वी के आसपास गोवा दिल्ली सल्तनत के नियंत्रण में आ गया था लेकिन कुछ समय बाद ही विजयनगर के सम्राट हरिहर प्रथम में गोवा से दिल्ली सल्तनत को खदेड़ दिया और गोवा को अपने नियंत्रण में ले लिया था। गोवा पर लगभग 100 वर्षों तक विजयनगर का नियंत्रण रहा इसके बाद विजयनगर का पतन हुआ तब गोवा पर बीजापुर के आदिलशाह का नियंत्रण हो गया उसने गोवा को अपनी दूसरी राजधानी के रूप में मान्यता दी। 498 के आसपास पुर्तगाली लोग मसाले की तलाश में भारत को खोजते हुए भारत आए। वास्कोडिगामा ने इस अभियान को किया था और भारत की खोज करते हुए एक गुजराती व्यापारी की मदद से वह कालीकट में आया था।

यूरोपीय देशों में मसाले के व्यापार का एक अधिकार अरब के लोगों का हो गया था लेकिन पुर्तगालियों के भारत आ जाने के बाद पुर्तगालियों ने मसालों के व्यापार में अरब के एक अधिकार को खत्म कर दिया था। पुर्तगालियों ने गोवा के क्षेत्र में अपने साम्राज्य की स्थापना करने के लिए अल्फांसो डी अल्बूकर्क को बड़ी सेनांके साथ कमांडर के रूप में भारत भेजा था। भारत पहुंचकर पुर्तगालियों ने बिना किसी संघर्ष के यहां पर अपने साम्राज्य की स्थापना कर ली थी। भारत में पहला प्रिंटिंग प्रेस भी पुर्तगालियों के द्वारा 1556 में स्थापित किया गया था। इस प्रेस को स्थापित करने वाले व्यक्ति फ्रांसिस जेवियर और गार्सिया डी ओर्ता थे।

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