पुष्यमित्र शुंग ने मौर्य सम्राट वृहद्रथ की हत्या क्यो की?
Pushyamitra Shunga in Hindi : पुष्प मित्र शुंग “शुंग वंश” का संस्थापक था। शुंग वंश की स्थापना 189 ईशा पूर्व हुई थी। अशोक की मृत्यु के बाद मगध के मौर्य साम्राज्य का कुछ वर्षो मे ही पतन हो गया। आगे के मौर्य सम्राट अयोग्य सिद्ध हुये, जिसकी वजह से मौर्य साम्राज्य कमजोर होता गया। मौर्य सम्राट “वृहद्रथ” का सेनापति पुष्यमित्र शुंग था। उसने कमजोर सम्राट को हटा कर सत्ता पर अपना अधिकार कर लिया। ग्रीक सेना भारतवर्ष पर हमला करने वाली थी, लेकिन वृहद्रथ ने किसी भी प्रकार की राष्ट्र सुरक्षा के लिए रुचि नहीं दिखाई। वृहद्रथ युद्ध नीति पर विश्वास नहीं करता था। इसलिए पुष्यमित्र शुंग (pushyamitra shunga in hindi) ने अपने स्तर पर कार्य करने लगा। गुप्तचरों ने बताया की ग्रीक सेना बौद्ध भिक्षु के रूप मे मठो मे छिपे हुये हैं। पुष्यमित्र शुंग ने वृहद्रथ से मठो की तलाशी के लिए अनुमति मांगी पर सम्राट ने मानकर दिया। पुष्यमित्र राष्ट्र के लिए कुछ भी करने को तैयार था। पुष्यमित्र शुंग ने मठो मे छिपे हुये ग्रीक सेनिकों की तलाशी लेने लगा और संघर्ष होने पर शत्रु सैनिको को मृत्यु दंड दिया जा रहा था। जब यह बात वृहद्रथ को पता चली तो वह पुष्यमित्र शुंग से नाराज हो गया, और पुष्यमित्र शुंग से भिड़ गया। एक तरफ दुश्मन देश राष्ट्र पर हमला करने को तैयार हैं और दूसरी तरह राष्ट्र का सम्राट अपने ही सेनापति का विरोध कर रहा हैं। जनता के बीच वृहद्रथ की लोकप्रियता गिरती जा रही थी। अंततः सम्राट और पुष्यमित्र शुंग के बीच संघर्ष हुआ, जिसमे पुष्यमित्र शुंग की जीत हुई। सम्राट की मृत्यु के बाद पुष्यमित्र शुंग को राष्ट्र का सम्राट घोषित कर दिया गया। इस प्रकार मौर्य वंश का पतन हो गया और शुंग वंश की स्थापना 189 ईशापूर्व मे हुई थी। शुंग वंश का शासन 189 ईशा पूर्व से लेकर 75 ईसवी तक रहा हैं। संस्कृत भाषा के लिए यह युग बहुत ही महत्वपूर्ण था।
पुष्यमित्र शुंग कौन था? (pushyamitra shunga in hindi)
पुष्यमित्र शुंग ब्राह्मण कुल मे जन्म लेकिन कर्म से क्षत्रिय था। पुष्यमित्र शुंग का गोत्र भारद्वाज था। पुष्यमित्र शुंग अंतिम मौर्य सम्राट का सेनापति था। पुष्यमित्र शुंग ने तत्कालीन सम्राट को मारकर सत्ता पर अधिकार कर लिया था।
पुष्यमित्र शुंग के शासन काल की प्रमुख घटनाए क्या था?
ग्रीक आक्रमणकारियों का दमन : पुष्यमित्र शुंग के शासन का सबसे चुनौतीपूर्ण और भारत राष्ट्र के लिए सबसे महत्वपूर्ण काम था यूनान आक्रमणकारियो को हराकर उनकी वापस हमला करने की इच्छाशक्ति को चूर चूर कर देना। ग्रीक सेना हमला करते हुये अयोध्या और चीतौरगढ़ तक आ चुकी थी, पुष्यमित्र और उसके पौत्र वसुमित्र ने ग्रीक आक्रमणकारियों को युद्ध मे पराजित किया तथा उनके हारी हुई सेना का जब तक पीछा किया जब तक ग्रीक सेना भारत की उत्तर पश्चिम सीमा से बाहर नहीं चले गए। इस युद्ध के साथ पुष्यमित्र पूरे भारत मे सम्मान की दृष्टि से देखा जाने लगा। पुष्यमित्र शुंग ने दो बार अश्व यज्ञ कराये थे।
पुष्यमित्र शुंग और बौद्ध : अगर राजा ब्राह्मण हैं तो इसका यह मतलब नहीं हैं की वह कट्टरपंथी ही हो, लेकिन अंग्रेज़ इतिहासकारो ने और बाद मे उनके दिखाये पाठ पर चले भारतीय वामपंथी इतिहासकारो ने भ्रम फैलाया की पुष्यमित्र शुंग एक कट्टरवादी ब्राह्मण था, जिसने कई बौद्धों की हत्या कारवाई। लेकिन यह एक भ्रम हैं, तथा भारत के लोगो के बीच भेद डालने के लिए सोची समझी साजिश मात्र हैं। मार्क्सवादी विचधारा के लोग हिन्दू विरोधी होते हैं। और इस लिए वामपंथी समाज के हर वर्ग को आपस मे लड़ाना चाहते हैं, और इसकी शुरुआत उन्होने ब्राह्मण से की हैं। (pushyamitra shunga in hindi)
बौद्ध धर्म का विस्तार अशोक के शासन काल मे बहुत तेजी से हो रहा था। यह रफ्तार पुष्यमित्र शुंग के आने का बाद थम गई। इसलिए कुछ बौद्ध संत पुष्यमित्र के खिलाफ हो गए। पुष्यमित्र शुंग ने केवल ग्रीक सेनिकों को मारा था जो की बौद्ध वेषभूषा मे थे। इसके अलावा उपुष्यमित्र शुंग ने किसी भी प्रकार की कोई हत्याए नहीं कराई थी।
साहित्य : पुष्यमित्र शुंग के शासन मे आने के बाद वैदिक धर्म फिर से जीवित हो गया था। जिसकी वजह से साहित्य जगत मे बड़े परिवर्तन हुये। पतंजलि और पाणिनी शुंग वंश के थे।
पुष्यमित्र शुंग का उत्तराधिकारी कौन था? (pushyamitra shunga in hindi)
पुष्यमित्र की मृत्यु 148 ई.पू. मे हो गई थी। पुष्यमित्र शुंग की मृत्यु के बाद उसक बेटा अग्निमित्र शुंग भारत राष्ट्र का सम्राट बना। अग्निमित्र शुंग विदिशा का उप-राजा था। अग्निमित्र ने 8 वर्षो तक शासन किया था। अग्निमित्र शुंग वंश का दूसरा राजा था, अग्निमित्र के बाद वसुज्येष्ठ शुंग वंश का तीसरा राजा बना।
पुष्यमित्र का मूल्यांकन
पुष्यमित्र शुंग भारतीय इतिहास का एक श्रेष्ठ और सफल सम्राट माना जाता है। एक महान सेनानायक और कुशल योद्धा के साथ ही एक नवीन राजवंश का संस्थापक भी था। उसने यूनानियों के आक्रमणों से भारत की रक्षा की। उसने दुर्बल और विघटित मगध साम्राज्य को पुनः शक्तिशाली बनाया। उसने ब्राह्मण धर्म को पुनः देश का एक प्रमुख धर्म बना दिया और वैदिक परम्पराओं की स्थापना की, किन्तु उसमें धार्मिक संकीर्णता नहीं थी अन्य धर्मों के प्रति भी उसने उदार व्यवहार किया। उसका सबसे महत्वपूर्ण कार्य माना जाता है-यूनानियों को देश की सीमा से बाहर खदेड़ देना। इस प्रकार पुष्यमित्र शुंग मगध के मौर्य साम्राज्य और महान् गुप्त शासकों के मध्यकाल की एक महत्वपूर्ण कड़ी मानी जाती है।
शुंगकालीन संस्कृति एवं कला
भारत के इतिहास में शुंगकालीन संस्कृति एवं कला का महत्वपूर्ण स्थान है। इस युग में ब्राह्मणों का पुनरुत्थान प्रारंभ हो गया था। ब्राह्मण धर्म की एक शाखा जिसे भागवतवाद कहते हैं, बहुत ही प्रसिद्ध हो गयी थी। शुंगकाल में हिन्दू कर्म-कांडों, वैदिक मर्यादा तथा यज्ञों का उद्धार हुआ। शुंग शासकों ने उत्तर भारत के एक विस्तृत भू-भाग पर अधिकार कर लिया और ‘विदेशी आक्रमणकारियों को पराजित किया। इस युग में धर्म, कला एवं साहित्य का भी खूब विकास हुआ।
शुंगकालीन संस्कृति
शुंगकालीन संस्कृति की सामाजिक दशा, धर्म एवं साहित्य के मुख्य पहलू इस प्रकार थे-
- सामाजिक दशा – इस युग में संसार त्यागकर बौद्ध या जैन भिक्षु–भिक्षुणी होने के निवृत्ति मार्ग का विरोध किया गया। चतुवर्ण और चार आश्रमों की व्यवस्था पर विशेष ध्यान दिया गया। विवाह के नियम शिथिल किये गये। विधवा विवाह को निरूत्साहित किया गया। इस युग में अनेक यज्ञ किये गये। समाज का रहन-सहन उत्तम था। शासक वर्ग के लोग भव्य प्रसादों में रहते थे। इस समय लोगों का खान-पान भोजन शाकाहारी व मांसाहारी दोनों ही प्रकार का था। गेहूँ से बनाये हुए पकवान का इस्तेमाल होता था। धूप एक अन्य पदार्थ था जो कि लवण (नमक) डालकर बनाया जाता था। दूध से बनी खीर, शाक एवं फल पदार्थ थे।
- आमोद-प्रमोद – इस युग में आमोद-प्रमोद के अनेक साधन थे। मृगया, प्रहरण, क्रीड़ा, मल्ल आदि। पशुओं का शिकार मृगया कहलाता था, जो कि मनोरंजन का साधन था। मनोरंजन और क्रीड़ाएँ एक साथ चलती थी।
- धार्मिक दशा – शुंगकालीन धर्म के विषय में पर्याप्त रूप से प्रकाश डाला जा चुका है। यह काल वैदिक धर्म के पुनरुत्थान का काल था। पुष्यमित्र के अश्वमेघ यज्ञ के विषय में बी.ए. स्मिथ ने लिखा है- पुष्यमित्र का स्मरणीय अश्वमेघ यज्ञ ब्राह्मण धर्म के उस पुनरुद्धार की ओर इंगित करता है, जो पाँच शताब्दियों के बाद समुद्र गुप्त और उसके वंशजों के समय में उभरा। ब्राह्मण धर्म के पुनरुत्थान के साथ ही शुंगों ने देश में धर्म की ज्योति जलाकर वह राष्ट्रीय भावना उत्पन्न की, जिससे कि उत्तरी भारत की रक्षा यवन आक्रमणकारियों से हो सकी।
- साहित्य- वैदिक धर्म के पुनरुत्थान के साथ ही इस युग में साहित्यिक जगत में बड़े विप्लवकारी परिवर्तन हुए। पतंजलि और पाणिनी शुंग वंश में ही हुए। इस युग के ग्रंथों में “मनुस्मृति” का प्रमुख स्थान है। “विष्णु स्मृति” भी इसी युग में लिखा गया। बौद्ध एवं जैन साहित्य के दर्शन इस युग में होते हैं। जैन धर्मानुयायी ब्रजवासी का जन्म भी शुंगकाल में ही माना जाता है। धर्म ग्रंथों के अतिरिक्त शुंगकाल में काव्य एवं नाटकों का भी सृजन हुआ। भासकृत ‘प्रतिज्ञा यौगन्धरायण’ तथा ‘प्रतिभा नाटकम’ इसी युग में लिखे गये। ‘वात्तसायन कामसूत्र’ भी शुंगकाल की देन हैं।
शुंगकालीन कला
वास्तु कला – शुंग काल में वस्तु कला ने विशेष उन्नति की। इसी युग में पाटलिपुत्र, कौशाम्बी, वैशाली, मथुरा, हस्तिनापुर, वाराणसी और तक्षशिला समृद्धिशाली नगर थे। इन नगरों में सुंदर भवनों और प्रसिद्ध प्रसादों का निर्माण किया गया। साँची के स्तूप के तोरणों का निर्माण शुंग काल में ही हुआ। भरहुत के विशाल स्तूप के तोरण कलकत्ता के म्यूजियम में अब भी देखे जा सकते हैं। यह तोरण शुंगकाल में ही बने थे। भरहुत की रोलिंग ने शुंग काल को अमर बना दिया।
इसी युग की कला का सुंदर उदाहरण बोध गया के मंदिर का सुंदर जंगला है। उड़ीसा और महाराष्ट्र के मंदिरों में शुंग काल की कला झलकती है। गुहा मंदिरों में ‘हाथीगुफा का गुहा मंदिर’ प्रसिद्ध है। उड़ीसा की मंचापुरी गुम्फा रानी गुम्फा, गणेश गुम्फा आदि भी प्रसिद्ध है। ‘सीता वैगा’ नामक एक गुहा मंदिर रामगढ़ में भी पाया गया है।
अजन्ता की गुफाओं में भी शुंगकाल की कला के दर्शन होते हैं। गुफा नम्बर 10 सबसे प्राचीन मानी जाती है। इन गुफाओं में विभिन्न रंगों द्वार चित्रकला की गयी है। इस पर भी शुंग कालीन कला का प्रभाव दिखाई देता है। बेसनगर का गरुड़ध्वज शुंगकाल की ही देन है। बोध गया के स्मारक भी इसी युग के माने जाते हैं। इन स्मारकों में विभिन्न प्रकार की चित्र कला के दर्शन भी होते हैं।
मूर्तिकला – वास्तुकला के साथ ही मूर्तिकला के क्षेत्र में भी इस युग में विशेष उन्नति हुई। इस काल में प्राप्त बहुत-सी मूर्तियाँ साँची के स्तूप में देखी जा सकती है। गुहा मंदिरों की दीवारों में भी इस काल की मूर्तियाँ अंकित हैं। बोध गया के चित्रों में वैदिक देवताओं का चित्रण हुआ है। इन चित्रों में पृथ्वी-देवी, शंकरजी के गण आदि के चित्र विशेष उल्लेखनीय हैं। इन्द्र का भी कलात्मक चित्र प्राप्त हुआ है। बौद्ध चित्रों में कुछ स्त्रियों, पुजारियों की मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं, जो बड़ी श्रद्धा से झुकी हुई है। भरहुत के स्तूप के तोरण द्वारों में बनी मूर्तियाँ भी इस काल की कला के सजीव उदाहरण हैं। यहाँ वातावरण द्वारा जीवन के दृश्यों का ज्ञान कराया गया है। कुछ ऐतिहासिक चित्र भी प्राप्त हुए है जिनमें भगवान बुद्ध के दर्शन के लिए आने वाले सम्राट अजात शत्रु और प्रसेनजित के जुलूस दर्शनीय हैं।
इस प्रकार हम देखते हैं कि शुंगकालीन संस्कृति अत्यन्त उच्चकोटि की थी।
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