हिन्दी कहानी – दयालू और उसका तोतलाना | Hindi Story – Dayalu aur Usaka Totalana

हिन्दी कहानी – दयालू और उसका तोतलाना | Hindi Story – Dayalu aur Usaka Totalana

दयाल कक्षा पाँच का विद्यार्थी था । सिर पर वार्षिक परीक्षा थी। पांचवीं कक्षा की पढ़ाई मामूली पढ़ाई तो होती नहीं कि लापरवाही बरती जाए । दयाल पूरी तैयारी में था । वह आज का पर्चा हल करने के लिए घर से निकलने ही वाला था।

घर से निकलने के पहले दयाल माँ के पास कमरे में गया। माँ बिस्तर पर लेटी हुई थी । दयाल की माँ कई दिनों से अस्वस्थ चल रही थी । वह माँ के पास गया। और परीक्षा के लिए जाने से पहले उसने माँ के चरण छुए । दयाल ठिठककर खड़ा हो गया, “अरे ! माँ को तो आज सुबह से ही तेज बखार है ।”

माँ ने आंखें खोलीं । चेहरे पर मुस्कराहट लाकर माँ ने दयाल को आशीर्वाद दिया । अगर वार्षिक परीक्षा न होती तो दयाल आज स्कूल न जाता । वह घर में बैठ कर माँ की सेवा करता लेकिन इस समय दयाल विवश था । वह मन मारकर रह गया । आज गणित का पर्चा था ।

दयाल घर से निकला । सीधा अपने स्कूल जा पहुँचा । उसका मन नहीं लग रहा था । दयाल पढ़ने में तेज था । उसने उस दिन की लिखित परीक्षा कुशलता पूर्वक निपटायी और फौरन माँ के पास घर वापस आ गया । दयाल ने आकर देखा कि माँ अभी भी खाट पर लेटी हुई है । उसके पिता ज्वाला प्रसाद सरकारी दौरे से अभी लौटे न थे । दयाल अपने माँ-बाप का इकलौता बेटा था । उसके पिताजी को अक्सर अपने अधिकारी के साथ दौरे पर जाना पड़ता था। घर पर नित्य प्रति का कामकाज उसकी माँ ही संभालती थी। अपनी उम्र के अनुसार दयाल घर के काम करता रहता था ।

दयाल शुरू से ही घर के कामों में अपनी माँ का हाथ बँटाता था । वैसे उसे अभी मूंग की दाल व अरहर की दाल का अन्तर नहीं पता था । वह तो हरी और पीली दाल जानता था।

See also  ज्ञानवर्धक कहानी - किसी को नीचा न दिखाएँ

माँ खाना पकाने का सारा सामान चौके में तरह-तरह के छोटे-बड़े डिब्बों में छानबीन कर रखती थी । माँ आवाज लगाती थी और दयाल लपककर सही डिब्बा उठा लाता था। जब तक घर की पूरी रसोई तैयार न हो जाती, दयाल माँ के पास चौके में ही बना रहता ।

माँ ‘रथ’ के डिब्बे में दालें, ‘बंदर’ वाली शीशी में हल्दी, ‘खजूर के वृक्ष’ वाले डिब्बे में शक्कर, लाल डिब्बे में नमक और ‘च्यवनप्राश’ के डिब्बे में चाय की पत्ती रखती थी । ‘हाथी’ वाले पीपे में आटा भरा रहता था। ‘हवाई जहाज’ वाला बड़ा डिब्बा चावलों के लिए था । चौके में माँ डिब्बों का नाम लेकर दयाल से सामान मंगाती थी। इधर माँ ने कहा-‘लाल डिब्बा’, उधर दयाल लाल डिब्बा उठाकर मां के सामने रख देता था । माँ कहती-‘बंदर’ । दयाल डिब्बा उठाकर कहता-‘बन्दर छाप डिब्बा ।’

दयाल रथ, खजूर, लाल बन्दर, हाथी तो सही-सही बोल लेता था, लेकिन ‘च्यवनप्राश’ का उच्चारण वह ठीक प्रकार से नहीं कर पाता था । जब कभी माँ

कहती- ‘च्यवनप्राश’ का डिब्बा । दयाल डिब्बा तो च्यवनप्राश का ही उठाता था लेकिन उसके मुँह से निकलता था-“च… पास” । तुतलाहट भरी “च… पास” सुनकर माँ हँस पड़ती थी। दयाल भी अपनी माँ के साथ हँसने लगता था । चौके में मां-बेटे की हंसी घुलमिल जाती थी । ऐसे मौकों पर मां प्यार से अपने दयाल को कंठ से लगा लेती थी।

चौके में दयाल मां का हाथ तो बंटाता ही था, साथ ही बड़े ध्यान से देखता भी रहता था कि माँ कैसे गैस का चूल्हा जलाती है । उस पर कौन-सा बरतन रखती है । बरतन में पहले क्या चीज डालती है । बरतन को चूल्हे से कैसे उतारती है । दयाल था तो बालक पर वह अपने को नादान बच्चा नहीं समझता था ।

See also  Hindi Story - गधे से बहस न करे (ज्ञानवर्धक कहानी)

थोड़ी देर में पड़ोस की वर्मा आंटी दयाल की माँ का हालचाल पूछने घर में आई । आंटी माँ की खाट के बगल में बैठ गई । वर्मा आंटी माँ से बातें करने लगीं। कछ देर बाद माँ खाट से उठने को हई तो वर्मा आंटी ने पूछा-“कहाँ जा रही हो, बहन ! चलो, तुम्हें सहारा देकर ले चलें ।”

माँ ने कहा-“घर आई हो । तुम्हें चाय बनाकर पिलाऊंगी । केवल चौके तक जाना है।”

“नहीं, नहीं, आप उठें मत । आपको बखार है। आप कमजोर भी बहुत हो गई हैं ।” -वर्मा आंटी ने कहा था।

माँ बेबसी में खाट पर फिर लेट गई । माँ और वर्मा आंटी दूसरी बातें करने लगीं । बातों में दोनों को

समय का पता ही नहीं चला। वर्मा आंटी हड़बड़ा कर उठते हुए बोलीं-“अरे, चार बजने वाले हैं । अब मुझे घर चलना चाहिए।”

इतने में चौके से दयाल की आवाज सुनाई पड़ी, “आंटी, अभी दो मिनट और रुकिए । चाय तैयार है । पीकर जाइएगा।” माँ ने आंटी की ओर देखा ।

वर्मा आंटी लपककर चौके में गई । उन्होंने देखा कि गैस के चूल्हे पर एक पतीली चढ़ी है । पतीली में पानी खौल रहा है । दयाल हाथ में ‘च्यवनप्राश’ का डिब्बा लिए खड़ा है । ‘खजूर’ का डिब्बा भी बगल में खुला रखा है।

वर्मा आंटी ने पतीले के पानी की मात्रा को गौर से देखा । पानी की मात्रा कुछ कम थी । पानी खौल गया था । वर्मा आंटी ने एक कप पानी व दूध उसमें डाला । चाय की पत्ती डाली और चाय छानकर तीन कपों में लेकर बाहर आई।

See also  कहानी - वक्त बड़ा बलबान

वर्मा आंटी ने माँ को चाय का प्याला दिया। माँ बड़ी खुश नजर आई । माँ ने पहले कप को मुँह से लगाया । चाय सुड़कते ही माँ का चेहरा खिल उठा । माँ ने दयाल की ओर ललक भरी निगाह से देखा।

दयाल पूछ बैठा-“माँ, चाय कैसी बनी है।”

“बड़ी मीठी बनी है, बेटा ।” माँ का प्यारा-सा उत्तर था ।

जब वर्मा आंटी ने चाय का चूंट भरा तो बिना खिलखिलाए न रह सकी । वास्तव में चाय मजेदार मीठी थी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *