गाँव के बीचों-बीच एक ऐसा आदमी रहता था, जिसका नाम रामनाथ था। उसकी उम्र बढ़ती जा रही थी, लेकिन उसकी आदतें वैसी की वैसी थीं—खासकर उसकी अफवाहें फैलाने की आदत। रामनाथ को लोगों के बारे में झूठी बातें फैलाने में अजीब सा मज़ा आता था। उसने अपनी बातों से कितने लोगों की जिंदगी में उथल-पुथल मचाई, इसका उसे अंदाजा भी नहीं था। हर बार जब वह कोई नई अफवाह उछालता, तो उसे लगता कि वह गाँव का सबसे चतुर व्यक्ति है, और लोग उसकी बातों को सच मानते रहते।
इसी आदत के चलते एक दिन उसने मोहन, एक ईमानदार और शांत स्वभाव वाले युवक के खिलाफ एक अफवाह फैलाई। रामनाथ ने गाँव में हर किसी से कहना शुरू किया, “अरे, तुम लोगों को पता है? मोहन तो बड़ा चालाक है। उसकी नीयत ठीक नहीं लगती। मैंने सुना है, वो चोरी करता है।” देखते ही देखते यह बात हवा में ऐसे फैल गई जैसे सूखे पत्तों के बीच आग।
गाँव वाले जो कल तक मोहन को एक आदर्श युवा मानते थे, अब उससे कतराने लगे। उसकी हर हरकत पर संदेह किया जाने लगा। जब मोहन कहीं जाता, लोग उसे घूरते, उसकी पीठ पीछे फुसफुसाते, और उसके सामने आते ही चुप हो जाते। बेचारा मोहन समझ नहीं पा रहा था कि अचानक उसकी जिंदगी में यह तूफान कहाँ से आ गया।
कुछ ही दिनों बाद गाँव में एक बड़ी चोरी हो गई। गाँव के मुखिया के घर से कीमती आभूषण और नकदी गायब हो गई। गाँववालों ने बिना कोई सबूत देखे मोहन को चोर ठहरा दिया। पुलिस को बुलाया गया, और मोहन को हिरासत में ले लिया गया। उसके ऊपर चोरी का आरोप लगा दिया गया।
मोहन के लिए यह सब किसी बुरे सपने से कम नहीं था। उसने पुलिस और गाँववालों के सामने बार-बार कहा कि वह निर्दोष है, लेकिन कोई उसकी बात सुनने को तैयार नहीं था। रामनाथ की फैलायी हुई अफवाहें इतनी गहरी जड़ें जमा चुकी थीं कि अब मोहन की बातों पर कोई भरोसा नहीं कर रहा था।
कुछ हफ्तों की जांच के बाद, पुलिस ने असली चोर को पकड़ा। मोहन को निर्दोष साबित कर दिया गया और उसे रिहा कर दिया गया। लेकिन मोहन की प्रतिष्ठा पहले ही बर्बाद हो चुकी थी। गाँव के लोग अब भी उसे संदेह की नजर से देखते थे। वह जानता था कि उसकी इज्जत जो एक बार मिट्टी में मिल गई थी, उसे वापस पाना आसान नहीं था। लेकिन उसने तय किया कि वह इस अपमान का बदला जरूर लेगा।
मोहन ने रामनाथ के खिलाफ कोर्ट में मानहानि का मुकदमा दायर कर दिया। रामनाथ को जब कोर्ट में बुलाया गया, तो उसने अपनी पुरानी चालाकी से काम लेते हुए कहा, “मेरा इरादा तो किसी को नुकसान पहुँचाने का नहीं था। मैंने तो बस एक मजाक में यह बात कही थी।”
जज ने रामनाथ की बात सुनकर गंभीरता से कहा, “ठीक है, तुमने जो कहा वह मजाक था, लेकिन इसका परिणाम कितना बड़ा हो सकता है, यह समझाने के लिए मैं तुम्हें एक काम करने को कहता हूँ। एक कागज लो, उस पर मोहन के बारे में तुमने जो कुछ कहा, वह लिखो और फिर उस कागज को टुकड़े-टुकड़े करके गाँव की गलियों में फेंक दो। कल वापस आओ, हम तुम्हारे मामले पर फैसला करेंगे।”
रामनाथ को यह अजीब आदेश लगा, लेकिन उसने सोचा कि यह तो बहुत आसान काम है। उसने वैसा ही किया, जैसा जज ने कहा। अगले दिन जब वह कोर्ट पहुँचा, तो जज ने उसे बाहर जाने और उन कागज के टुकड़ों को इकट्ठा करके लाने को कहा।
रामनाथ ने चकित होकर कहा, “महोदय, यह तो असंभव है! उन कागज के टुकड़ों को तो हवा न जाने कहाँ उड़ा ले गई होगी। मैं कैसे उन्हें वापस ला सकता हूँ?”
जज ने गंभीर स्वर में कहा, “बस ऐसे ही तुम्हारी फैलायी हुई अफवाहें भी हवा में फैल गईं। अब चाहे तुम कितनी भी कोशिश करो, उन अफवाहों को वापस नहीं ला सकते। एक बार जो बात हवा में उड़ जाती है, उसे वापस समेटना नामुमकिन हो जाता है।”
रामनाथ यह सुनकर सकते में आ गया। उसने कभी यह सोचा भी नहीं था कि उसकी बातें किसी के जीवन पर इतना गहरा प्रभाव डाल सकती हैं। उसे अपनी गलती का अहसास हुआ और उसने मोहन से माफी मांगी।
लेकिन माफी से मोहन का खोया सम्मान वापस नहीं आ सकता था। गाँववाले अब भी उसे उसी नज़र से देखते थे, और मोहन को यह समझ आ गया कि एक छोटी सी झूठी अफवाह भी किसी की जिंदगी को तबाह कर सकती है।
रामनाथ ने अपनी गलती तो मान ली, लेकिन उसकी एक छोटी सी अफवाह ने जो नुकसान किया, वह कभी पूरा नहीं हो सका।