संगीता का मन उथल-पुथल से भरा हुआ था। उसकी शादी को कुछ साल हो चुके थे, और जैसे-जैसे दिन बीतते गए, रिश्तों में दरारें आने लगीं। पति से कुछ छोटी-छोटी बातें इतनी बड़ी बन गईं कि संगीता के लिए उन पर ध्यान न देना असंभव हो गया। एक दिन वह अपने पति से हुई सभी परेशानियों को लेकर अपने भाई राहुल से बात करने चली गई। संगीता के शब्दों में दर्द और निराशा था, अपनी बहन की स्थिति को राहुल भाँप गया।
राहुल ने बड़ी सहजता से कहा, “तुम कुछ दिनों के लिए हमारे घर आ जाओ। पति से कुछ दिन दूर रहोगी तो शायद तुम दोनों को एक-दूसरे की अहमियत समझ में आ जाएगी।”
संगीता को भी अपने भाई राहुल का सुझाव सही लगा। वह सोचने लगी कि शायद कुछ वक्त के लिए पति से दूर जाकर उसके मन के बोझ हल्के हो जाएंगे और दोनों एक-दूसरे की कद्र करने लगेंगे। बिना ज्यादा सोचे-समझे, वह भाई के घर चली गई।
राहुल के घर आकर संगीता ने कुछ राहत महसूस की। भाई का स्नेह और प्यार उसकी पुरानी यादों को ताजा कर रहा था। राहुल अपने बहन संगीता से बहुत प्यार करता था, लेकिन घर की असली देखरेख तो उसकी पत्नी, यानी संगीता की भाभी, करती थी।
शुरुआत में सब कुछ सामान्य था। लेकिन कुछ ही दिनों बाद भाभी का व्यवहार बदलने लगा। संगीता ने महसूस किया कि उसके आने से भाभी असहज हो रही थी। शायद उसे लग रहा था कि कहीं संगीता यहीं हमेशा के लिए न बस जाए। भाभी की बातों में धीरे-धीरे ताने आने लगे। जब भी कोई घरेलू काम होता, भाभी कोई न कोई कटाक्ष करने वाली बात कह देती, जैसे, “ससुराल छोड़कर आने वाली लड़कियों का कोई ठिकाना नहीं। न तो वो घर की रहती और न ही घाट की।”
संगीता को ये बातें गहरे चुभने लगीं। उसे एहसास हुआ कि मायका अब पहले जैसा नहीं रहा। अब ये भाभी का घर था, जहाँ उसकी जगह अब वैसी नहीं रही जैसी माँ के जिंदा रहते समय हुआ करती थी। उसने सोचा, “मां के जाने के बाद, मायका न तो मायका रहता हैं और न ही भाई का घर, वो अब भाभी का अड्डा बन जाता है, जहां भाभी के भाई और बहन का तो ठिकाना रहता हैं लेकिन पति के बहन यानि वो लड़की जिसका जन्म ही उस घर में हुआ हैं, वही घर अब उसका नहीं रह जाता हैं। “
कुछ ही दिनों बाद संगीता का धैर्य टूटने लगा। उधर उसके पति भी अकेलापन महसूस करने लगा था। संगीता के पति ने संगीता से संपर्क किया और उसे वापस बुलाने की कोशिश की। जब वह उसे लेने आया, तो संगीता के मन में जमा हुआ दर्द आंसुओं के रूप में फूट पड़ा। वह अपने पति से लिपट कर रो पड़ी, और पति ने धीरे से उसके आंसू पोछे।
इस समय उसे अहसास हुआ कि शायद रिश्तों में कुछ खटास आना स्वाभाविक है, लेकिन समाधान भागने में नहीं, बल्कि उन समस्याओं का सामना करने में है। वह भाई का घर छोड़कर वापस ससुराल लौट गई।
रास्ते में, उसकी सोच का एक नया द्वार खुला। उसने सोचा, “जब तक घर में मां होती है, मायका अपना घर लगता है। उसके बाद, ये सिर्फ एक जगह रह जाती है, जो भाभी की इच्छाओं के अधीन हो जाती है। जहां भाभी के मायके वाले आ कर बस सकते हैं, लेकिन जिसका जन्म ही उस घर मे हुआ हो माँ के जाने के बाद उसका उस घर पर कोई अधीकार नहीं रह जाता हैं।”
शायद इसी वजह से लोग कहते हैं, “मायका माँ से होता है।”