काफी समय पहले की बात है, एक बूढ़ा आदमी था, उसकी उम्र लगभग अस्सी वर्ष की थी। उसके माता-पिता बचपन में ही चल बसे थे। इस वजह से किसी को भी उसका असली नाम नहीं पता था। नगर में रहने वाले सभी लोग उसे ठग प्रसाद के नाम से बुलाया करते थे।
उसका यह नाम कब और किसने दिया था, इस विषय में किसी को भी जानकारी नहीं थी। हां, इतना जरूर बताया जा सकता है कि उसे यह नाम क्यों दिया गया था। इस बात की जानकारी नगर के बच्चे-बच्चे को प्राप्त थी।
क्योंकि वह बचपन से ही ठगी के काम में पड़ गया था और जब वह बड़ा हुआ तो इस कार्य में वह इतना माहिर हो चुका था कि लोग उसे ठग प्रसाद के नाम से सम्बोधित करने लगे थे। जिस व्यक्ति को देखो वह उसे ठग प्रसाद कहकर ही बुलाता था। जो व्यक्ति उसके चंगुल में फंस जाता था, वह उसका बेड़ा गर्ग कर देता था। यही वजह थी कि लोग उसको ठग प्रसाद कहते थे।
जिस समय वह जवान था उस समय वह एक मशहूर ठग रह चुका था। लेकिन जैसे-जैसे उसकी उम्र ढलती रही और वह जवानी से बुढ़ापे की ओर जाने लगा, वैसे-वैसे उसने ठगी का काम भी करना छोड़ दिया था। वह अब बिल्कुल इस कार्य को नहीं करता था और नगर के बाहर एक कुटिया बनाकर उसमें रहने लगा था।
अब वह वहां रहकर राह भटके लोगों को रास्ता दिखता था। भूखों को खाना खिलाता था, जो प्यासे गुजरते उन्हें पानी पिलाता था। अपने द्वारा किये गये पापों को धोने और शुद्ध करने में लगा हुआ था।
इसी तरह एक दिन की बात है वहां से गुजरते हुए एक साधु महाराज उसकी कुटिया पर आ गए। उन साधु महाराज ने तम्बाकू पीने के लिए ठग प्रसाद से आग मांगी। ठग प्रसाद ने साधु महाराज को आग के साथ-साथ बहुत बढ़िया किस्म का तम्बाकू भी दिया। उसका आदर-सत्कार देखकर साधु बहुत ज्यादा खुश हुआ और उसे आशीर्वाद देकर उसकी कुटिया में रात गुजारने की विनती की।
ठग प्रसाद ने साधु महाराज की प्रार्थना मान ली और अपनी कुटिया में एक रात के लिए रुका लिया और इसके साथ उन्हें भोजन आदि भी करवाया।
रात के समय जब साधु महाराज सोने के लिए चले तो उन्होंने अपने बालों के जूड़े में से एक पुड़िया निकाली और उसे वहीं बिस्तर के नीचे रख लिया। ठग प्रसाद बड़े गौर से यह सब देख रहा था। जब साधु महाराज गहरी नींद में सो गए तो तब ठग प्रसाद ने साधु महाराज की पुड़िया को निकाला और खोलकर देखा। पुड़िया को देखकर ठग प्रसाद की आखों में चमक बढ़ गई। उस पुड़िया में सोने की बीस मोहरें थीं।
उन मोहरों को देखकर ठग प्रसाद कुछ देर तक सोच-विचार करता रहा, फिर उसने वह पुड़िया उसी स्थान पर रख दी और आराम से सो गया।
सुबह सवेरे साधु महाराज जब जागे तो उन्होंने पुड़िया को निकाला। उसे खोलकर देखा तथा इत्मीनान से अपनी जटाओं के जूड़े में बांध लिया। इसी बीच ठग प्रसाद ने साधु महाराज के लिए तम्बाकू पीने का प्रबन्ध कर दिया।
साधु महाराज ने ठग प्रसाद से तम्बाकू लेकर पहले उसे पिया और उसके बाद उसे धन्यवाद देकर चलने लगे । ठग प्रसाद ने साधु महाराज के चरणों की धूल को अपने मस्तक पर लगाया और साधु का आशीर्वाद प्राप्त किया।
पूरी तरह से सन्तुष्ट होकर साधु महाराज वहां से चलने लगे। ठग प्रसाद ने भी उन्हें विदा कर दिया। जब साधु महाराज कुटिया से थोड़ी दूर पहुंच गए तो ठग प्रसाद ने बड़े जोर-जोर से चिल्लाना शुरू कर दिया- “अरे भाइयों, इस पाखण्डी साधु को पकड़ो, ये मुझे लूटकर जा रहा है।”
उसकी चीख-पुकार सुनकर आसपास के खेतों में काम कर रहे सभी लोगों ने उस साधु महाराज को पकड़ लिया। साधु महाराज कुछ भी समझ नहीं पाए। जब ठग प्रसाद उसके पास आया तो वह बोला- “कहो बच्चा, क्या हुआ?”
“अरे बच्चे के बाप! ये पूछ क्या नहीं हुआ? अगर मुझे पता होता कि तू इतना पाखण्डी है तो मैं तुझे अपने पास ठहराता ही क्यों?” गुस्से से कांपते हुए ठग प्रसाद ने कहा।
कुछ समय पहले पूजा आराधना करने वाला व्यक्ति इतनी जल्दी बदल जायेगा, साधु महाराज ने ये बात कभी सपने में भी नहीं सोची थी। वह आश्चर्य से ठग प्रसाद को देख रहे थे। उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि ये सब क्या हो रहा है।
साधु महाराज को अपनी ओर इस तरह देखते हुए ठग प्रसाद बोला- “अरे पापी दुष्ट! अब तो निकाल दे उस पाप की पूंजी को! कहां छिपाकर रख दी?”
“बच्चा! मेरी समझ में तेरी बात बिल्कुल नहीं आ रही है। आखिर तुम क्या कहना चाहते हो, साफ-साफ बताओ।” उसी प्रकार हैरान-परेशान हुए साधु महाराज ने पूछा।
“ठीक है। वही करूंगा। अब तो कोई मार्ग दिखाई ही नहीं देता। लातों के भूत बातों से नहीं मानते।”
“लोगों, इसकी तलाशी लो।” ठग प्रसाद ने लोगों से कहा।
वहां खड़े सभी लोगों ने साधु महाराज को पकड़ लिया और वहां तलाशी लेने की बात होने लगी।
ठग प्रसाद ने तलाशी लेने का नाटक करते हुए साधु की धोती से देखना शुरू करके ही जटाओं में बंधी पुड़िया हो निकाल लिया। लोगों को उस पुड़िया को दिखाते हुए बोला- “देखो तो सही, पापी ने कहां पर छुपा रखी थी! यह तो अच्छा हुआ जो मुझे जल्दी पता चल गया। नहीं तो साधु महाराज का क्या मालूम कहां पहुंच जाता। तब तो मैं लुट ही जाता। हे भगवान! तूने मुझे बाल-बाल बचा लिया।”
लोगों ने साधु महाराज को रंगे हाथों पकड़ लिया था। इस वजह से उन्होंने अपनी सफाई में कुछ नहीं कहा था, जिसकी वजह से सभी लोगों को भरोसा था कि साधु महाराज ही यकीनन चोर हैं। इसलिए वे साधु को भी बुरी-बुरी गालियां बक रहे थे और तरह-तरह की बातें सुनाते हुए कुछ देर बाद अपने-अपने घरों की तरफ लौटने लगे।
मोहरों की पुड़िया लेकर ठग प्रसाद अपनी कुटिया के अन्दर चला गया था और उसने अन्दर जाकर वह पुड़िया छिपाकर रख दी। थोड़ी देर बाद ही वह बाहर आ गया और साधु महाराज का बड़े उत्साह व सच्चे दिल से इस तरह आदर-सत्कार करने लगा जैसे कुछ न हुआ हो।
उसने साधु महाराज को तम्बाकू पीने के लिए चिलम भरकर दी और उनसे भोजन करने के लिए प्रार्थना करने लगा। ठग प्रसाद के अचानक बदले हुए इस अनोखे व्यवहार को देखकर साधु महाराज दंग रह गये।
साधु महाराज ने उससे कहा- “ठग प्रसाद ! मैं सारी रात तेरी कुटिया में सोया। अगर तू चाहता तो मेरी मोहरों की पुड़िया को ऐसे ही ले सकता था। इतने आडम्बर की क्या जरूरत थी? अगर तू ऐसा करता तो मैं अपमान से भी बचा रहता और तेरा काम भी हो जाता। मगर पता नहीं तेरे दिल में क्या है जो तूने ऐसा किया।”
“लेकिन तब मैं चोर कहलाता और मुझे चोरी से बड़ी नफरत है।” वह हँसकर बोला।
“तो क्या अब तूने साहूकारी से पुड़िया ली है? यह तो वही बात हुई- ‘चोरी और सीनाजोरी’। इसे भी तो चोरी का ही रूप कहा जायेगा।” उन्होंने कहा।
“क्या कहा साधु महाराज- मैं चोर हूं? नहीं बिल्कुल नहीं। मैंने अपने जीवन में कभी भी चोरी नहीं की। मेरा काम ठगी करना है। मैं अपने पेशे में पूरी ईमानदारी बरतता हूं। अब अगर मझे आगे से चोर कहां तो अच्छा नहीं होगा।” ठग प्रसाद गुस्से से कांप रहा था।
“बस, मैं तो तुझसे यही बात पूछने आया था। अब मैं चलता हूं- जय शिवशंकर।” इतना कहकर साधु महाराज चले गए।
वह साधु महाराज पूरे रास्ते भर उस ठग के विषय में और उसकी ईमानदारी के विषय में ही सोचते जा रहे थे और इधर ठग प्रसाद अपनी कुटिया में बैठा हुआ उस विचित्र साधु महाराज के विषय में सोच रहा था।
ये दोनों लोग ही कितने अनोखे थे जो एक-दूसरे को किसी तरह भी समझ नहीं पाए थे।
प्यारे बच्चों! इस कहानी से हमें ये शिक्षा मिलती है कि जिसकी जो आदत पड़ जाती है वह जिन्दगी में कभी भी नहीं छूटती। इसलिए हमें गन्दी आदतों से बचना चाहिए और अच्छी आदतों को अपनाना चाहिए।