बृजेंद्र नाम के एक राजा बहुत ही प्रतापी और धर्मात्मा थे। परंतु उनकी कोई भी संतान नहीं थी। इसलिए वह हमेशा चिंतित रहते थे। ऋषि मुनियों से सलाह लेने के बाद उन्होंने पुत्र प्राप्ति के लिए पुत्रेष्टि यज्ञ कराने का निश्चय किया। यज्ञ जब सफलतापूर्वक समाप्त हुआ तो आकाशवाणी हुई और आकाशवाणी ने राजा से बोला – “राजन तुम्हारे भाग्य में स्वयं का पुत्र नहीं है। अतः तुम किसी अच्छे और इमानदार व्यक्ति के पुत्र को गोद लेकर अपना दत्तक पुत्र बना लो।”
यह सुनकर राजा अच्छे और इमानदार व्यक्ति के पुत्र की तलाश में लग गया।
एक दिन वह अपने राज्यप्रसाद की खिड़की से बाहर देख रहा था कि तभी उसने एक गरीब लड़के को पत्तल में भोजन करते हुए देखा। उसे देख कर ऐसा लग रहा था कि वह बहुत दिनों से भूखा है।
तभी राजा ने देखा कि एक बूढ़ा व्यक्ति वहां पर पहुंचा, देखने से वह बूढ़ा बहुत पीड़ित और कमजोर लग रहा था। यह देख कर वह गरीब लड़का जो कि पत्तल से भोजन कर रहा था उसने अपना भोजन उस बूढ़े व्यक्ति को दे दिया।
उस गरीब लड़के की यह दान एवं त्याग भावना देखकर राजा ने उसे अपने पास बुलाया और उस लड़के को ऊंचा पद देने का प्रस्ताव रखा।
वह लड़का बोला – “महाराज जीवन का असली सार तो त्याग में है, पद का मैं क्या करूंगा?”
यह सुनकर राजा को विश्वश हो गया कि यह वही लड़का है, जिस लड़के की तलाश में वह लगा हुआ है और उसी वक्त राजा ने उस गरीब लड़के को अपना दत्तक पुत्र बना लिया और आगे चलकर वही गरीब लड़का राज्य का राजा बना। उसके राज मे प्रजा खुशी-खुशी अपना जीवन जीने लगी और उन्हे किसी भी बात की कमी नहीं थी। राज्य सुखी और समृद्ध हो गया था।
Moral of Hindi Story – इस hindi kahani मे हमे शिक्षा मिलती हैं की किसी को कोई बड़ी ज़िम्मेदारी देने से पहले यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए की वह व्यक्ति उस योग्य हैं की नहीं। अगर आपको यह hindi story पसंद आई तो प्लीज कमेन्ट कर के जरूर बताए।