ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब भी कोई व्यक्ति नहाने के लिए बाथरूम जाए तो उसे इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि पूर्व दिशा में मुंह करके ही नहाना चाहिए। पूर्व दिशा की ओर मुंह करके नहाने से शरीर में ऊर्जा की वृद्धि होती है और सकारात्मक ऊर्जा का विकास होता है। नहाना एक अच्छी आदत है और ज्योतिष के आधार पर भी नहाना बहुत जरूरी होता है क्योंकि नहाने के बाद शरीर की सभी नकारात्मक शक्तियां शरीर से बाहर निकल जाती हैं। जिसके बाद शरीर और मन सकारात्मक शक्ति से भर जाता है। जिसकी वजह से मन और तन को बहुत ही हल्का महसूस होता है। नहाते समय निम्न दिशा का भी ध्यान देना चाहिए-
- दक्षिण दिशा में मुंह करके नहाने से घर में रोग बीमारियों का आगमन होता है। इसलिए भूलकर भी दक्षिण दिशा में मुंह करके नहीं नहाना चाहिए।
- पश्चिम दिशा में मुंह करके नहाने से घर में कर्ज बढ़ता है। इसलिए नहाते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि नहाते समय मुख पश्चिम दिशा में ना हो।
- उत्तर दिशा में मुंह करके नहाना अच्छा माना गया है जो व्यक्ति उत्तर दिशा में मुंह करके नहाता है, उसके बिगड़े हुए कार्य बन जाते हैं और उसे किसी भी कार्य में असफलता नहीं मिलती है।
स्नान करने के नियम
- हिंदू धर्म के अनुसार खाना खाने के बाद स्नान नहीं करना चाहिए। हिंदू धर्म में हमेशा नहाने के बाद ही खाना खाने के नियम हैं।
- कभी भी किसी दूसरे व्यक्ति के नहाने के बाद बाल्टी में बचे हुए पानी से स्नान नहीं करना चाहिए। स्नान हमेशा स्वच्छ और साफ पानी से ही करना चाहिए।
- अगर कोई व्यक्ति नदी या सरोवर में नहाने जा रहा है तो भूल कर भी नहाते समय नदी के पानी में पेशाब नहीं करना चाहिए, इससे बहुत बड़ा पाप चढ़ता है और घर में दरिद्रता बढ़ती है।
- स्नान करने के बाद ही पूजा के लिए फूल तोड़ने का नियम है। बिना नहाए पूजा के बर्तन भी साफ नहीं करने चाहिए।
- नहाने के बाद उतारे गए कपड़े को फिर से पहनना गलत माना गया है, इससे दोष चढ़ता है इसलिए नहाने के बाद हमेशा स्वच्छ और साफ कपड़ा पहनना चाहिए।
सरयू नदी में स्नान का महत्व
पौराणिक कथाओं के अनुसार यह मान्यता है की सरयू नदी में स्नान करने से व्यक्ति के सभी पाप दूर हो जाते हैं। ऐसा भगवान शंकर का सरयू नदी को वरदान है। भगवान राम ने जब सरयू नदी में समाधि ले ली थी, तब भगवान शिव सरयू नदी से बहुत ही नाराज हुए थे और उन्होंने सरयू नदी को श्राप दिया था कि तुम्हारा जल कभी भी मंदिरों में नहीं चढ़ेगा और ना ही किसी उपयोग में आएगा। लेकिन जब सरयू नदी में भगवान शिव से अपने भूल के लिए प्रार्थना की तो भगवान शिव ने सरयू को एक वरदान भी दे दिया कि सरयू नदी में नहाने से सभी पाप दूर हो जाएंगे। इसलिए सरयू नदी में स्नान करना गंगा नदी में स्नान करने के बराबर ही माना गया है।
ऐसी मान्यता है की सरयू नदी भगवान विष्णु के नेत्रों से निकले आँसू से प्रकट हुई है। रामचरितमानस में तुलसीदास जी ने सरयू नदी का महत्व बताया हैं, सरयू नदी अयोध्या के उत्तर दिशा में बहती है और सरयू नदी में स्नान करने से सभी तीर्थ का पुण्य फल प्राप्त होता है।
चार प्रकार के स्नान का वर्णन
- मुनि स्नान : यह स्नान सुबह 4:00 बजे से लेकर सुबह 5:00 के बीच किया जाता है। यह सबसे उत्तम स्नान माना गया है। इस स्नान से घर मे सुख, शांति, समृद्धि, चेतना और विद्या की वृद्धि होती हैं।
- देव स्नान : यह स्नान सुबह 5 से 6 के बीच किया जाता हैं। इस स्नान को करने वाले व्यक्ति को यश, किर्ति, धन और वैभव प्राप्त होता हैं।
- मानव स्नान : यह स्नान सुबह के 6 बजे से 8 बजे के बीच किया जाता हैं। इस स्नान को करने से भाग्य मे वृद्धि, कार्यो मे सफलता, परिवार मे एकता आती हैं। इस स्नान को भी अच्छा स्नान माना गया हैं।
- राक्षस स्नान : सुबह 8 बजे के बाद किया गया स्नान राक्षस स्नान की श्रेणी मे आता हैं। इस स्नान को करने वाला व्यक्ति हमेशा दरिद्रता, वाद-विवाद से घिरा रहता हैं। धन हानी और जीवन मे परेशानियाँ पीछा नहीं छोड़ती हैं।
सुबह में कितने बजे स्नान करना चाहिए?
उम्र, तबीयत और मौसम के अनुसार स्नान का समय चुनना चाहिए, हालांकि सबसे उत्तम समय सुबह 4 से 6 के बीच होता हैं। लेकिन वर्तमान समय मे इन्सानो में हार्ट संबंधी समस्यायों के चलते सुबह सुबह नहाने से बचना चाहिए। लेकिन अगर आप स्वस्थ्य हैं तो मानव स्नान करना उत्तम हैं। मानव स्नान का समय सुबह 6 बजे से 8 बजे के बीच होता हैं। सुबह 6 से 8 के बीच नहा कर पूजा पाठ करने से भाग्य में वृद्धि, कार्यो मे सफलता और परिवार में एकता बढ़ती हैं।