तिल-चतुर्थी माघ के महीने मे पड़ता हैं। जिन लोगो को हिन्दी पंचांग समझ मे नहीं आता तो वे लोग यह समझ लीजिये की तिल-चतुर्थी अवैज्ञानिक यानि की अँग्रेजी कलेंडर के जनवरी महीने मे पड़ता हैं। माघ महीने के कृष्ण पक्ष के चतुर्थी के दिन यह त्योहार सनातन धर्म के लोगो द्वारा मनाया जाता हैं। इसे लबोदर संकाष्टि चतुर्थी भी कहा जाता हैं।
इस त्योहार को क्यो मनाया जाता हैं?
इस दिन लोग व्रत करते हैं और भगवान गणेश की पुजा करते हैं। इस व्रत को करने से परिवार और संतान की रक्षा होती हैं।
इस दिन भक्त भगवान को दूर्वा और मोदक चढ़ाते हैं और भगवान गणेश का चालीसा, भजन और पूजन करते हैं। संकटा चतुर्थी के दिन चंद्रमा के दर्शन करके लोग उन्हे जल चढ़ाते हैं।
तिलवा-चौथ यानि की तिल चतुर्थी व्रत का मुहूरत और समय
यह व्रत 21 जनवरी को सुबह 8:51 से प्रारम्भ होगा तथा इस व्रत की समाप्ती 22 जनवरी को सुबह 9:14 तक रहेगी। तिल-चतुर्थी का व्रत शुक्रवार को ही रखा जाएगा तथा शुक्रवार की शाम को चंद्रमा का दर्शन करके पुजा प्रारम्भ करनी हैं।
तिलवा चौथ व्रत का कारण :
पद्म पुराण के अनुसार तिल चौथ के दिन भगवान गणेश जी को पुजन वेदी मे पहला स्थान प्राप्त हुआ था। एक बार देवताओ के बीच विवाद उत्पन्न हुआ की किस देवता का प्रथम पुजा की जाएगी। तब यह निर्णय लिया गया की जो देवता तीनों लोको की परिक्रमा करके सबसे पहले आयेगा उसे ही देवताओ मे प्रथम स्थान प्राप्त होगा। यह सुनते ही सभी देवता तीनों लोको की परिक्रमा के लिए चल पड़े, पर बागवान गणेश जी ने अपनी बुद्धि का इस्तेमाल किया। और भगवान शिव और माता पार्वती जी की तीन परिक्रमा कर के उनके चरणों मे बैठ गए। तब भगवान शिव ने उनसे ऐसा करने का कारण पूछा तो उन्होने जवाब दिया की तीनों लोक तो आप ही हो। और उनकी इस जवाब को सुन कर वहाँ पर मौजूद ब्रम्हा जी उनकी बुद्ध और विवेक को देख कर प्रसन्न हुये और भगवान शिव और माता पार्वती की आज्ञा से उन्हे सभी देवताओ मे पहला स्थान दिया गया।