महमूद गजनवी ने भारत पर आक्रमण करके भारत को आर्थिक तथा सैनिक दृष्टि से न केवल कमजोर किया तथा भारत की उत्तर-पश्चिम सीमा पर मुस्लिम राज्यों का निर्माण किया, परन्तु उसने भारत में मुस्लिम राज्य की स्थापना नहीं की। इस छूटे कार्य को मुहम्मद गौरी ने पूर्ण किया। मुहम्मद गौरी गोर वंश का शासक था। गोर क्षेत्र गजनवी तथा हिरात के बीच था। कुछ विद्वानों ने गोर वंश को अफगान बताया है। यद्यपि कुछ विद्वान यह मानते हैं कि तुर्क या ईरानी थे। मुहम्मद गौरी ने गजनवी को आधार बनाकर भारत की ओर अपनी महत्वाकांक्षी दृष्टि को घुमाया। वह महत्वाकांक्षी तो था ही, साथ में इस्लाम धर्म का कट्टर समर्थक भी था। अतः वह भारत में इस्लाम धर्म को फैलाना चाहता था और मूर्ति पूजा को भी समाप्त करना चाहता था। इन्हीं कारणों से उसने भारत पर आक्रमण कर एक नवीन मुस्लिम वंश की भारत में स्थापना की थी।
इस समय में भी भारत अनेकों छोटे-छोटे राज्यों में बँटा हुआ था, परन्तु कुछ राजपूत वंश बड़े तथा शक्तिशाली थे। वे लोग अपने-अपने साम्राज्य का विस्तार करने हेतु आपस में लड़ते रहते थे। उस समय भारत की उत्तर पश्चिमी सीमा पर तीन मुस्लिम राज्य थे-पंजाब, सिन्ध तथा मुल्तान। पंजाब में महमूत गजनवी का वंशज खुसरो मलिक शासन कर रहा था। सिन्ध तथा मुल्तान में शिया शासक थे। भारत के इन स्थानों को छोड़कर सारे स्थानों पर राजपूत शासक राज्य कर रहे थे। दिल्ली तथा अजमेर में चौहान वंश का शासक पृथ्वीराज चौहान था। कन्नौज का शासक जयचन्द, गुजरात तथा काठियावाड़ में चालुक्य वंश का भीमदेव शासन कर रहे थे। बुन्देलखण्ड में परमादर्दी देव थे। उसे पृथ्वीराज चौहान ने परास्त कर दिया था। इस प्रकार से ये छोटे-छोटे राज्य आपस में लड़ते रहते थे, इसी के कारण जब गौरी ने आक्रमण किया, तो वे सम्मिलित न हो सके तथा गौरी का सामना न कर सके और अन्त में वे सभी परास्त हो गये, जिसके कारण भारत में नवीन राजवंश की स्थापना की गयी।
मुहम्मद गौरी की विजयें
- मुल्तान विजय – मुहम्मद गौरी का पहला आक्रमण 1175 ई. में मुल्तान पर हुआ, जिसे उसने आसानी से जीत लिया। इसके बाद गौरी ने उच्च तथा निचले सिन्ध को जीत लिया। तथा वहाँ के शासकों को उसकी अधीनता स्वीकार करने को बाध्य किया।
- अन्हिलवाड़ पर आक्रमण – 1178 ई. में मुहम्मद गौरी ने गुजरात पर आक्रमण किया तथा उसने गुजरात की राजधानी अन्हिलवाड़ को घेर लिया। इसके पश्चात् भी वहाँ के शासक भीम द्वितीय ने उसे बुरी तरह परास्त किया इसके कारण ही उसने पुनः 10 वर्षों तक गुजरात पर आक्रमण करने का साहस न किया।
- पंजाब पर आक्रमण – मुहम्मद गौरी ने 1176 A.D. में पेशावर पर आक्रमण कर उसे जीत लिया। 1181 A.D. में उसने लाहौर पर आक्रमण किया। गजनवी शासक खुसरू ने उससे सन्धि कर ली तथा अपने पुत्र को मुहम्मद गौरी के पास भेज दिया, इस प्रकार गौरी लाहौर पर अधिकार न कर सका 1183A.D. में गौरी ने स्यालकोट पर आक्रमण कर उसे ‘जीतकर अपने अधिकार में ले लिया। 1186 में पुनः उसने लाहौर पर आक्रमण किया तथा उसने अपनी कूटनीति द्वारा लाहौर पर भी अधिकार कर लिया। भारत की इन प्रारम्भिक विजयों से मुहम्मद गौरी तथा उसकी सेना का इतना उत्साह बढ़ गया कि उनकी दृष्टि अब भारत के उर्वर मैदानों की ओर उठी इस समय एक देशद्रोही जम्मू के राजा चक्रदेव ने मुहम्मद गौरी को भारत आक्रमण हेतु आमन्त्रित किया। इसके बाद गौरी अपनी शक्तिशाली सेना के साथ सरहिन्द की ओर चल दिया। उसने सरहिन्द तथा भटिण्डा पर भी अधिकार कर लिया। इन दुर्गों पर अधिकार होने के बाद ही सोये हुए राजपूतों की आँखें खुली। पंजाब विजय से गौरी के राज्य की सीमाएँ दिल्ली तथा अजमेर के शासकों के राज्य से टकरा रही थी।
- तराइन का प्रथम युद्ध – 1191 A.D. में भटिण्डा के निकट तराइन इनका प्रथम युद्ध पृथ्वीराज चौहान तथा मुहम्मद गौरी के बीच लड़ा गया था। इस युद्ध में गौरी को पराजय का मुख देखना पड़ता था। इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान के भाई ने गौरी को घायल कर दिया, जिसके कारण सेना छिन्न-भिन्न हो गयी तथा गौरी को बड़ी कठिनाई से युद्ध भूमि से निकालना पड़ा था। गौरी इस पराजय के कारण इतना दुःखी हुआ कि वह आराम से सो भी नहीं सका तथा उसने पुनः पृथ्वीराज चौहान से युद्ध किया। पृथ्वीराज चौहान ने गौरी को परास्त करने के बाद भटिण्डा के किले पर आक्रमण किया, परन्तु उसके रक्षक मलिक जियाउद्दीन ने उसका सामना किया। अन्त में 13 माह बाद पृथ्वीराज ने भण्टिडा पर अधिकार कर लिया।
- तराइन का द्वितीय युद्ध – गौरी अपनी पराजयों को भूला न था तथा वह अपनी गिरी हुई प्रतिष्ठा को उठाना चाहता था, अतः 1192 A.D. में पुनः मुहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान के विरुद्ध की घोषणा कर दी। पृथ्वीराज पड़ोसी राजाओं की सेना सहित तराइन के मैदान में आ गया। दूसरी ओर गौरी भी संगठित सेना के साथ आ गया। दोनों की सेनाओं में भीषण युद्ध हुआ। इसमें पृथ्वीराज का सेनापति खाण्डेराव मारा गया तथा साथ में पृथ्वीराज का भाई गोविन्दराय भी मारा गया। जब पृथ्वीराज को यह आभास हो गया कि अब गौरी की सेना पर विजय पाना आसान नहीं, तो वह युद्ध क्षेत्र को छोड़कर भागा, परन्तु वह सरस्वती नामक स्थान पर पकड़ लिया गया है तथा उसका वध कर दिया गया, परन्तु हसन निजामी लिखता है, “पृथ्वीराज को अजमेर ले जाकर रखा गया, जहाँ कुछ समय बाद उसका वध कर दिया गया।’ यह युद्ध भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण तथा निर्णायक माना जाता है। डॉ. स्मिथ का कथन है कि “1195 ई. के तराइन के युद्ध को निर्णयात्मक कहा जा सकता है, क्योंकि इससे भारत में मुस्लिम आक्रमण की अन्तिम विजय सुनिश्चित हो गयी।”
- गहड़वालों पर विजय- 1195 ई. में पुनः गौरी वापस आया तथा उसने कन्नौज के राजा जयचन्द पर आक्रमण किया। उसे ऐबक द्वारा भी सैनिक सहायता प्राप्त हो गयी थी। इटावा के पास चन्द्रावर नामक स्थान पर दोनों की सेनाओं में घमासान युद्ध हुआ। यद्यपि आरम्भ में जयचन्द की विजय हुई, परन्तु अन्त में जयचन्द की आँख में एक तीर लग गया, जिसके कारण उसकी मृत्यु हो गयी। इसके कारण उसकी सेना छिन्न-भिन्न हो गयी तथा आसानी से गौरी को विजय प्राप्त हुई। उसका बनारस से कन्नौज तक अधिकार हो गया। गौरी ने नगरों को लूटा तथा मन्दिरों तो तोड़ा तथा उसकी सम्पत्ति लूटकर अपने साथ ले गया।
- बयाना तथा ग्वालियर विजय- चन्दाव के युद्ध के बाद गौरी कन्नौज तथा बनारस का स्वामी हो गया था। उसके बाद उसने अपनी राजधानी के उत्तर तथा पूर्व की ओर देखा। 1196 ई. में उसने बयाना तथा ग्वालियर पर आक्रमण कर उसे अपने अधिकार में कर लिया।
- गुजरात की लूट- गौरी को अपने अभियान में अन्हिलवाड़ में भीम द्वितीय ने बुरी तरह परास्त किया था, अतः उसने पुनः ऐबक को भेजा। ऐबक ने 1195 ई. तथा 1197 ई. में दो बार आक्रमण किये। उसने द्वितीय बार भीम को हराया तथा अन्हिलवाड़ को लूटा तथा मन्दिरों को तोड़ा। इस विजय से गौरी इतना प्रसन्न हुआ कि उसने ऐबक को गजनी तथा वहाँ उसका सत्कार किया। बुलाया
- बुन्देलखण्ड पर अधिकार- 1202 ई. में ऐबक ने बुन्देलखण्ड पर आक्रमण कर अपने अधिकार में कर लिया। 1202 ई. में ऐबक ने कालिंजर के दुर्ग का घेरा डाल दिया। वहाँ का शासक परमाल देव साहसी था, परन्तु आक्रमणकारियों ने दुर्ग में पानी जाने वाले मार्ग को बन्द कर दिया, अतः जलाभाव के कारण अन्त में परमाल देव को आत्मसमर्पण करना पड़ा।
- बिहार विजय – ऐबक की भाँति गौरी का एक अन्य दास, मुहम्मद बिन बख्तियार खलजी बिहार तथा बंगाल पर गौरी की सत्ता स्थापित करने का प्रयास कर रहा था। उसने 1197 ई. में बिहार पर आक्रमण किया। नालन्दा तथा विक्रमादित्य को उसने हानि पहुँचायी तथा नगरों को लूटा। अन्त में बिहार पर उसका अधिकार हो गया।
- बंगाल की विजय-बिहार विजय के बाद मुहम्मद बिन बख्तियार खिलजी ने 1199 ई. में बंगाल पर आक्रमण कर दिया। उसने बंगाल के शासक लक्ष्मण सेन पर यकायक आक्रमण किया था, अतः वह घबरा गया तथा किला छोड़कर भाग गया, इस प्रकार आसानी से बंगाल पर भी गौरी का अधिकार हो गया। मुहम्मद बिन बख्तियार खिलजी ने गौड़ के पास लखनौती पर अधिकार कर उसे अपनी राजधानी बनाया। 1205 ई. में अन्धकुली के युद्ध में गौरी को पराजय का मुख देखना पड़ा था। इसी समय भारत में यह अफवाह फैल गयी कि इस युद्ध में गौरी मारा गया। अतः खोककरों ने विद्रोह कर दिया तथा अन्य राज्य भी स्वतन्त्र होने का प्रयास कर रहे थे। ऐबक की सहायता से मुहम्मद गौरी ने इन विद्रोहियों का सफलतापूर्वक दमन किया। 15 मार्च 1106 ई. में जब गौरी वापस लौट रहा था, तो उस समय शिया लोगों ने खोकखरों के साथ मिलकर उसकी हत्या कर दी।
मोहम्मद गौरी के भारत पर आक्रमणों के प्रभाव या परिणाम
मोहम्मद गौरी के आक्रमणों के निम्नलिखित प्रमुख प्रभाव पड़े-
- भारत में मुस्लिम राज्य की स्थापना-मोहम्मद गौरी के आक्रमणों के परिणामस्वरूप भारत में मुस्लिम राज्य की नींव पड़ी। गौरी ने अपने विजित प्रदेशों का शासनप्रबन्ध कुतुबुद्दीन ऐबक को सौंपा, जिसने भारत में तुर्की राज्य के दासवंश की स्थापना की।
- राजपूतों की शक्ति को धक्का-मोहम्मद गौरी ने अनेक राजपूत राजाओं को पराजित किया। परिणामस्वरूप राजपूतों की शक्ति को बहुत धक्का लगा। राजपूतों की शक्ति को विनाशकारी चोट पहुँची।
- आर्थिक प्रभाव – मोहम्मद गौरी ने भारतीय आक्रमणों के दौरान बहुत लूटमार की । उसके सैनिकों द्वारा खड़ी फसलों को रौंद डाला जाता था। इस सबका भारत के आर्थिक जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।
- सांस्कृतिक प्रभाव – मोहम्मद गौरी ने अपने भारतीय आक्रमणों के दौरान अनेक मन्दिरों, विहारों तथा पुस्तकालयों को नष्ट कर डाला। उसके सैनिकों ने बहुत-से ऐतिहासिक तथा धार्मिक ग्रन्थों को जला डाला। परिणामस्वरूप भारतीय संस्कृति में अनेक चिन्ह नष्ट हो गये।
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