Sindhu ghati sabhyata in hindi – सन 1922 में ब्रिटिश अधिकारी सर जॉन मार्शल की देखरेख में वर्तमान पाकिस्तान में स्थित हड़प्पा तथा मोहनजोदड़ो नाम के स्थान पर खुदाई कार्य क्रमशाह श्री राय बहादुर श्री दयाराम साहनी और श्री राखल दास बनर्जी के द्वारा किया गया था।
नाम की सार्थकता
इस सभ्यता के मुख्य स्थान सिंधु और उसकी सहायक नदियों के समीपस्थ क्षेत्रों में स्थित थे। इसलिए डॉक्टर व्हीलर आदि विद्वानों ने इसे सिंधु घाटी की सभ्यता का नाम दिया। इसे हड़प्पा सभ्यता के नाम से भी जाना जाता है
सिंधु सभ्यता का काल
- सिंधु सभ्यता के काल के संबंध में विद्वानों के अपने अलग-अलग मत हैं जो कि नीचे बताए गए हैं
- सर जॉन मार्शल के अनुसार 4000 ईसा पूर्व से ढाई हजार ईसा पूर्व तक सिंधु सभ्यता रही होगी
- डॉक्टर व्हीलर के मतानुसार 2800 ईसा पूर्व से पंद्रह सौ ईसा पूर्व का समय सिंधु सभ्यता का रहा होगा ऐसा डॉक्टर व्हीलर का मानना है।
- डॉ वी ए स्मिथ के अनुसार सिंधु सभ्यता का समय लगभग 25 00 वर्ष पूर्व से 1500 ईसा पूर्व तक रहा होगा।
- डॉ आर के मुखर्जी के अनुसार सिंधु सभ्यता का समय 3250 ईसा पूर्व से 2750 ईसापुर तक रहा होगा
- पुसलकर के अनुसार 2800 ईसा पूर्व से 2200 ईसा पूर्व तक सिंधु सभ्यता का काल रहा होगा।
सिंधु सभ्यता के निर्माता
इस सभ्यता के निर्माताओं के विषय में भी विद्वानों का कोई एक राय नहीं है बल्कि अलग-अलग विचार हैं
- डॉक्टर गुहा के अनुसार इस सभ्यता के निर्माता मंगोल आग्नेय और एल्पाइन जैसे मिश्रित जातियों के लोग थे।
- रंगनाथ राव के अनुसार इस सभ्यता का निर्माण करने वाले बहु जातीय थे इनमें आर्यों का भी एक समूह था।
- जी गार्डन के अनुसार इस सभ्यता के निर्माता सुमेरियन जाति के लोग थे।
- डॉक्टर व्हीलर के अनुसार इस सभ्यता के निर्माता द्रविड़ जाति के लोग थे।
सर्वाधिक मान्यता तथ्य
अधिकांश विद्वानों के विचारों के अनुसार सिंधु घाटी सभ्यता के निर्माता द्रविड़ ही थे इतिहास में यही तथ्य सर्वाधिक मान्य किया गया है हालांकि इसके पीछे विदेशी ताकतों का भारत के अंगूरी राजनीति में फूट डालने का लक्ष्य भी शामिल है।
- सिंधु घाटी सभ्यता का भारतीय इतिहास में विशेष स्थान है क्योंकि इस सभ्यता के प्रकाश में आने से भारतीय इतिहास में मौर्य काल से पूर्व की विस्तृत जानकारी प्राप्त होती है।
- सिंधु घाटी सभ्यता विश्व की प्राचीन सभ्यताओं के समान विकसित और प्राचीन सभ्यता थी
- सिंधु सभ्यता का क्षेत्र हड़प्पा और मोहनजोदड़ो तक ही सीमित नहीं था बल्कि इसका क्षेत्र और भी ज्यादा विकसित था। सिंधु सभ्यता का विस्तार विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं के क्षेत्रों से बहुत अधिक विस्तृत था। संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि सिंधु सभ्यता पश्चिम में मकराना तट से प्रारंभ होकर पूर्व में मेरठ के आलमगीरपुर तक फैली हुई थी तथा उत्तर में जम्मू के मादा से लेकर दक्षिण में संपूर्ण क्षेत्र में लगभग 12 लाख 99 हजार 600 वर्ग किलोमीटर में विस्तृत था।
सिंधु सभ्यता की विशेषताएं
नगर योजना
सिंधु सभ्यता की सबसे बड़ी विशेषता थी नगरीय व्यवस्था। सिंधु सभ्यता भी कहा जाता है क्योंकि यहां के नगरों का निर्माण सुनियोजित ढंग से किया गया था। सड़कें लंबी चौड़ी तथा एक दूसरे को समकोण पर काटती थी। नगर आधुनिक व्यवसायिक शैली पर निर्मित थे प्रत्येक गली में कोई तथा भवनों में स्नानागार थे। सड़कों के किनारे कूड़ा डालने हेतु मिट्टी निर्मित पात्र रखे रहते थे। गंदे पानी के निकास हेतु नगर में छोटी बड़ी तथा गहरी नालियों का जाल बिछा हुआ था। ईंट चुना और मिट्टिओ से निर्मित इन नालियों को बड़ी-बड़ी इंटो तथा पत्थर से ढका गया था।
भवन निर्माण
सड़कों तथा गलियों के दोनों और भवनों का निर्माण एक पंक्ति में कच्ची तथा पक्की ईंटों के द्वारा किया गया था। भवन में रसोईघर स्नानघर आंगन और शौचालयों का निर्माण किया गया था। भवन छोटे-बड़े एक मंजिलें तथा दो मंजिलें होते थे। भवनों के द्वार राजमार्गों की ओर ना खुलकर गली में पीछे की ओर खुलते थे। भवन की दीवारों में अलमारियों का निर्माण होता था तथा शंख हड्डी निर्मित खुटियो को दीवार में लगाया जाता था।
सार्वजनिक स्नानागार
उत्खनन में मोहनजोदड़ो से सर्वाधिक विशाल सार्वजनिक स्नानागार प्राप्त हुआ है। पक्की ईंटों से निर्मित इस स्नानागार की लंबाई 39 फीट 12 मीटर चौड़ाई 23 फीट 7 मीटर तथा गहराई 8 फीट 2.5 मीटर है। इसके चारों और बरामदे स्नान हेतु चबूतरे तथा अंदर पहुंचने के लिए सीढ़ियां है। स्नानागार की बाहरी दीवार पर गिरीपुष्पक का 1 इंच मोटा प्लास्टर था।
अन्नागार
मोहनजोदड़ो का अन्नागार 45. 71 मीटर लंबा तथा 15.23 मीटर चौड़ा है। हड़प्पा के दुर्ग में 6 अन्य अन्नागार मिले हैं, जोकि 15.23 x 6.09 मीटर आकार के हैं। इसके दक्षिण में अनाज साफ करने हेतु ईटों के गोलाकार चबूतरे बने हुए थे। कालीबंगा में भी अन्नागार के अवशेष प्राप्त हुए हैं।
सिंधु कालीन सामाजिक दशा
संरचना- सिंधु कालीन समाज विद्वान, योद्धा, व्यवसाई तथा श्रमजीवी इन चार वर्गों में विभाजित था। विद्वानों में पुरोहित, वैद्य, ज्योतिषी, अयोध्या में सैनिक व राजकीय अधिकारी, व्यवसाई में व्यापारी तथा श्रमजीवी वर्ग में मेहनत मजदूरी करने वाले लोग आते हैं।
भोजन – भोजन शाकाहारी तथा मांसाहारी दोनों प्रकार का किया जाता था। भोजन में गेहूं, चावल, फल, सब्जियां, खजूर, तरबूज, नींबू, दूध, दही, से निर्मित वस्तुएं, मछली व भेड़ का मांस प्रचलन में था। उत्खनन में मिठाई के सांचे तथा सिलबट्टे प्राप्त हुए हैं। जिन से ज्ञात होता है कि सिंधु वासी मिठाई तथा स्वादिष्ट भोजन प्रेमी थे।
वस्त्र – उनी तथा सूती दोनों प्रकार के वस्त्र प्रचलन में थे। वस्त्रों में उत्तरी की तरह का सालवा अधोवस्त्र प्रमुख थे।
आभूषण – हार, भुजबंद, कर कंगन, अंगूठी, कर्णफूल, छल्ले, करधनी, नथुनी, वाली, पायजेब आदि विभिन्न धातु से निर्मित आभूषणों का प्रयोग स्त्री तथा पुरुषों द्वारा किया जाता था। धनी लोगों के आभूषण स्वर्ण, चांदी, कीमती पत्थर, हाथी दांत द्वारा, तथा गरीबों के आभूषण ताबे, अस्थि, सीप तथा पक्की ईंटों द्वारा निर्मित होते थे।
केस श्रृंगार तथा सौंदर्य प्रसाधन – स्त्रियां विभिन्न प्रकार के केश विन्यास (काढ़ा) करती थी। सिर पर सोने,चांदी निर्मित आभूषण पहनती थी। पुरुष दाढ़ी- मूछ रखते थे, मूड़ी मूंछ का भी प्रचलन था। स्त्रियां लाली, विलेपन, काजल, सुरमा व सिंदूर आदि सौंदर्य प्रसाधनों का प्रयोग करती थी।
मनोरंजन के साधन – सिंधु वासी शतरंज, संगीत, नृत्य, जुआ आदि से मनोरंजन करते थे। झुंझुनू, सिटी, गाड़ी एवं अन्य खिलौने बच्चों के मनोरंजन के साधन थे।
आवागमन के साधन – आवागमन के लिए बैल गाड़ियों तथा इक्के गाड़ियों आदि का प्रयोग किया जाता था।
मृतक संस्कार – शब को जमीन में दफना दिया जाता था। शब को जलाने के पश्चात उसकी राख को किसी पात्र में रखकर जमीन में गाड़ देते थे। कुछ लोग मृतक शरीर को खुले में पशु पक्षी के भक्षण हेतु कुछ दिनों के लिए फेंक देते थे तथा बाद में शेष बची अस्थियों को जमीन में गाड़ देते थे।
स्त्रियों की दशा – सिंधुकालीन समाज में स्त्रियों का स्थान सम्मानीय था। समाज मात्र मातृप्रधान था।
हड़पा के समय मे आर्थिक दशा
कृषि – गेहूं ,जो, कपास, राई, मटर, खजूर, अनार आदि की खेती की जाती थी। खेती में लकड़ी के हलो तथा कटाई के लिए पत्थर की द दरांतियों का प्रयोग किया जाता था। खेतों की सिंचाई तालाब, नदी, कुएं तथा वर्षा के पानी आदि से की जाती थी।
पशुपालन – कृष के पश्चात पशुपालन सिंधु वासियों का प्रमुख पेसा था। यह लोग बैल, भैंस, भेड़, गधे, बकरी, सूअर, हाथी, कुत्ते, बिल्ली आदि पालते थे। सुरकोटड़ा से कुछ घोड़ों के अवशेष भी प्राप्त हुए हैं।
व्यवसाय – अस्त्र- शस्त्र, पात्र, वस्त्र, आभूषण, बढ़ई तथा शिल्प संबंधी व्यवसाय प्रचलन में थे। सिंधुवासियों के विदेशों से व्यापारिक संबंध थे। व्यापार थल व जलमार्गों द्वारा किया जाता था। उनके मेसोपोटामिया, अफगानिस्तान एवं मध्य एशिया क्षेत्र के साथ व्यापारिक संबंध थे।
नापतोल के साधन – नापतोल के लिए सीपी के टुकड़ों तथा बाटो का प्रयोग किया जाता था। अधिकांश बाट घनाकार होते थे। नापतोल की इकाई वर्तमान की भांति 16 थी। छोटे बाटो का प्रयोग जौहरी द्वारा किया जाता था।
सिंधु सभ्यता मे धार्मिक दशा
मातृदेवी की उपासना – सिंधुबासी स्त्री की मातृदेवी के रूप में उपासना करते थे।
शिव की उपासना – उत्खनन से प्राप्त मुंहरो पर तीन सिर एवं दो सीग वाले देवता, जो कि एक बाघ, एक हाथी तथा एक गेड़ से घेरा हुआ, जिसके सिंहासन के नीचे एक भैंस तथा पैरों के नीचे दो हिरण है, इस बात के परिचायक हैं कि शिव की उपासना पशुपति महादेव के रूप में की जाती थी।
लिंग तथा योनि की उपासना – उत्खनन में शिवलिंग आकार के पत्थर प्राप्त हुए हैं, जिनकी उपासना की जाती थी। योनि की पूजा उसकी जनन शक्ति के कारण प्रचलन में रही होगी।
वृक्ष तथा पशुओं की उपासना – वृक्षों में पीपल, महुआ, तुलसी, पशुओं में कूबड़वाला बैल तथा सांप की उपासना की जाती थी। इसके अतिरिक्त सिंधुवासियों का भूत- प्रेत व जादू- टोना में भी विश्वास था।
सिंधु सभ्यता मे कलात्मक दशा
मिट्टी के बर्तन – चाक द्वारा निर्मित मिट्टी के बर्तनों पर विभिन्न प्रकार के रंगों से पेड़, वृक्ष तथा सुंदर आकृतियां अंकित की जाती थी।
मोहरे – धातु से निर्मित मोहरों पर अंकित सांड, भैंस, बाघ तथा गैंडे के चित्र इस बात के प्रतीक है कि सिंधु वासी कुशल कारीगर थे जोकि छोटे से सिक्के पर इतनी बारीकी से इन चित्रों को बना लेते थे।
मूर्तियां – मूर्तियों का निर्माण मुलायम पत्थर, भूरी तथा पीली चट्टानों को काटकर किया जाता था। अधिकांश मूर्तियां स्त्रियों की नग्न तथा अलंकृत अवस्था में बनाई जाती थी।
लघु भृण्ड मूर्तियां – मूर्तियां धातु के अतिरिक्त मिट्टी की छोटी मूर्तियों का भी निर्माण का चलन सिंधु सभ्यता के समय के लोगों में था
ताबीज – उत्खनन से वर्गाकार और आयताकार ताम्रपत्र प्राप्त हुए हैं, इन ताम्रपत्रो का प्रयोग ताबीज के रूप में किया जाता था।
मनके – उत्खनन से बेलनाकार, अंडाकार, खंडाकार तथा गोलमन के प्राप्त हुए हैं। इन मनको का प्रयोग सिंधु वासी गले और कमर के आभूषण के रूप में करते थे।
लिखने का ज्ञान – सिंधु वासियों को लिखने का ज्ञान था, किंतु आज पूर्णरूपेण उनके द्वारा लिखी हुई लिपि को पढ़ा नहीं जा सका है। उनके लिखने की शैली चित्रात्मक थी। इसमें लगभग 400 वर्ण हैं।
सिंधु सभ्यता के पतन के कारण
- प्रतिवर्ष अत्यधिक बाढ़ का आना तथा नदियों द्वारा मार्ग का परिवर्तित हो जाना सिंधु सभ्यता के पतन के कारणों में से एक प्रमुख कारण है।
- मानसूनी हवाओं के बदलने के परिणाम स्वरूप कई बार कम वर्षा होना
- पशुओं द्वारा चारा गांवों का अत्यधिक उपयोग विदेशी शक्तियों द्वारा आक्रमण किया जाना
हड़प्पा सभ्यता के महत्वपूर्ण स्थल
हड़प्पा – यह पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के मोंटगोमरी जिले में रावी नदी के तट पर स्थित एक प्रमुख नगर था। इसके बारे में जानकारी सन 1921 में हुई थी।
मोहनजोदड़ो – यह भी पाकिस्तान के सिंध प्रांत के लरकाना जिले में सिंधु नदी के किनारे पर स्थित एक महत्वपूर्ण नगर था इसकी खोज सर्वप्रथम सन 1922 में हुई थी।
रोपड़ – यह स्थान पंजाब प्रांत के रोपण जिले में सतलज नदी के किनारे स्थित है यहां पर हड़प्पा कालीन और हड़प्पा से पूर्व की संस्कृतियों के अवशेष प्राप्त हुए हैं।
लोथल – यह स्थल गुजरात राज्य के अहमदाबाद जिले में भोगवा नदी के किनारे पर स्थित है। यहां की सर्वाधिक महत्वपूर्ण उपलब्धि हड़प्पा कालीन बंदरगाह की खोज है, यहां से प्राप्त अवशेषों से ज्ञात होता है कि यहां के निवासी 1800 ईसा पूर्व में भी चावल उगाते थे।
कालीबंगा – वर्तमान समय में राजस्थान राज्य में स्थित है यहां पर हड़प्पा संस्कृति के अवशेष प्राप्त हुए हैं।
आलमगीर – यह नगर उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में हिंडन नदी के तट पर स्थित हड़प्पा संस्कृति की सुविख्यात पूर्वी सीमा थी।
बनवाली – यह हरियाणा राज्य के हिसार जिले में स्थित है, यहां पर दो संस्कृतिक अवस्थाएं हड़प्पा पूर्व और हड़प्पा कालीन देखी गई हैं। यहां पर उन्नत किस्म की “जो” प्राप्त हुई हैं।
रंगपुर – यह गुजरात राज्य के काठियावाड़ प्रदीप में स्थित है, यहां पर उत्तर हड़प्पा अवस्था के अवशेष प्राप्त हुए हैं।
अली मुराद – पाकिस्तान के सिंध प्रांत में स्थित इस नगर में पत्थरों से निर्मित एक विशाल दुर्ग का पता चला है।
कोट दीजी – यह स्थल भी पाकिस्तान के सिंध प्रांत में ही स्थित है और यह भी हड़प्पा कालीन एक प्राचीन नगर है।
चन्हूदरो – यह पाकिस्तान के सिंध प्रांत में मोहनजोदड़ो से 30 किलोमीटर दक्षिण में स्थित है यहां पर मुहर, गाड़ियों के निर्माण के साथ-साथ हड्डियों से निर्मित विभिन्न वस्तुओं का निर्माण भी किया जाता था।
सुतकांगेडोर- यह स्थान दक्षिणी बलूचिस्तान में स्थित है, यह वर्तमान मे दाश्त नदी के किनारे पर स्थित हैं। यह हड़प्पा संस्कृति की सबसे सुदूर पश्चिमी स्थान था। इसकी खोज आरेन स्टाइन नामके व्यक्ति ने 1927 मे की थी। माना जाता हैं की हड़प्पा काल मे यहाँ पर एक बन्दरगाह भी रहा होगा। इस स्थान से मनुष्य की अस्थि-राख़ से भरा हुआ कलश, मिट्टी के चुड़ियाँ, मट्टी से बने बर्तन और तांबे की कुल्हाड़ियाँ मिली थी।
सिंधु सभ्यता से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण तथ्य
- सिंधु घाटी सभ्यता के कालीबंगा नगर की गलियों तथा सड़कों का निर्माण एक निश्चित अनुपात में हुआ था। गलियां 1.8 मीटर चौड़ी थी तो सड़के 3.6, 5.4 तथा 7.2 मीटर चौड़ी थी।
- सिंधु सभ्यता में मोहनजोदड़ो में विशाल स्नानागार बना था जिसकी लंबाई 12 मीटर तथा चौड़ाई 7 मीटर और गहराई 2.5 मीटर थी।
- मोहनजोदड़ो के दक्षिण पश्चिम में एक अन्न भंडार गृह था। जोकि 55 X 37 मीटर के क्षेत्रफल में था, जिसके चारों ओर एक बरामदा था। इस बरामदे में ठोस ईंटे के 27 ब्लॉक थे। यह तीन भागों में विभक्त है तथा प्रत्येक 9 ब्लॉक के पश्चात 1 मीटर चौड़ी मार्ग से पृथक किए गए थे। जिससे भंडार गृह में हवा का आना जाना हो सके।
- हड़प्पा में अन्न भंडार गृह दुर्ग से बाहर थे। ऐसा संभवतः रावी नदी के कारण किया गया था।
- लोथल बंदरगाह में 216 मीटर लंबा तथा 37 मीटर चौड़ा स्थान जहाज बनाने व मरम्मत कार्य हेतु पाया गया था। इस प्रकार का स्थान केवल लोथल में ही प्राप्त हुआ है।
सिधु सभ्यता के प्रमुख स्थल एवं उसके खोजकर्ता
प्रमुख स्थल | खोजकर्ता | वर्ष |
1- हड़प्पा | माधो स्वरूप वत्स, दयाराम साहनी | 1921 |
2- मोहनजोदाड़ो | राखाल दास बनर्जी | 1922 |
3- रोपड़ | यज्ञदत्त शर्मा | 1953 |
4- कालीबंगा | ब्रजवासी लाल, अमलानन्द घोष | 1953 |
5- लोथल | ए. रंगनाथ राव | 1954 |
6- चन्हूदड़ों | एन.गोपाल मजूमदार | 1931 |
7- सूरकोटदा | जगपति जोशी | 1964 |
8- बणावली | रवीन्द्र सिंह विष्ट | 1973 |
9- आलमगीरपुर | यज्ञदत्त शर्मा | 1958 |
10- रंगपुर | माधोस्वरूप वत्स, रंगनाथ राव | 1931.-1953 |
10- कोटदीजी | फज़ल अहमद | 1953 |
11- सुत्कागेनडोर | ऑरेल स्टाइन, जार्ज एफ. डेल्स | 1927 |
हड़प्पा सभ्यता के पुरास्थल
पुरास्थल | स्थान |
1- हड़प्पा सभ्यता का सर्वाधिक पश्चिमी पुरास्थल | सत्कागेन्डोर (बलूचिस्तान) |
2- सर्वाधिक पूर्वी पुरास्थल | आलमगीरपुर (मेरठ) |
3- सर्वाधिक उत्तर पूरास्थल | मांडा (जम्मू कश्मीर) |
4- सर्वाधिक दक्षिणी पुरास्थल | दायमाबाद (महाराष्ट्र) |