मुहम्मद बिन कासिम और अरबों का सिंध में आक्रमण
अरब एशिया महाद्वीप का एक प्रायः द्वीप है। रेगिस्तान, वर्षा एक अचम्भा, खजूर तथा ऊँट अरब की पहचान है। अरब घुमक्कड़ जाति बेदुइन का प्रमुख कार्य पशुपालन, व्यापार तथा लोगों को लूटना था। एक अरबी लेखक के अनुसार, “हमारा कार्य है लूट के लिए धावे बोलना- शत्रु के विरुद्ध, पड़ोसी के विरुद्ध और कोई न मिले तो सगे भाई के विरुद्ध ।” अरब का भूभाग पश्चिम में स्थल मार्ग से ईरान, मिस्र तथा यूनान से और पूर्व भाग में समुद्र द्वारा भारत से जुड़ा हुआ है। प्राचीनकाल से ही व्यापार हेतु देवल, थाना, खम्भात, मलावार तट तथा कन्याकुमारी तक अरब के लोग आते-जाते थे। भारत और अरब के मध्य व्यापार सम्बन्ध प्राचीनकाल से स्थापित थे। इस्लाम का प्रचार-इस्लाम के प्रचार से अरबों की कई दुष्प्रवृत्तियों यथा शराब पीना, कई पत्नियाँ रखना, लड़कियों के पैदा होने पर जिंदा दफना देना आदि पर नियंत्रण हुआ। अरब लोग इस्लाम के प्रचार के बाद थोड़े सभ्य हो गये।
भारत के प्रति आकर्षण और पहला आक्रमण
इस्लाम से प्रेरित होकर अरब मुसलमान भारत की अपार संपत्ति लूटने के साथ ही मूर्तियों का भंजन कर अपनी महत्त्वाकांक्षा की पूर्ति करना चाहते थे अरबों का मुख्य उद्देश्य लूटपाट तथा कत्लेआम करना था।
खलीफा उमर के शासनकाल में भारत के समुद्री तट पर लूटपाट के लिए एक सेना 636-637 में भारत की ओर भेजी गई थी। इनको कई कष्टों का सामना करना पड़ा। समुद्र में युद्ध खलीफा को रास नहीं आया अतः भारत पर आक्रमण की पुनः खलीफा ने आज्ञा नहीं दी तथा इसका विरोध किया था।
खलीफा की मृत्यु के पश्चात् उमय्या वंश के मुआदिया ने दमिष्क को राजधानी बनाकर पश्चिम तथा पूर्व में साम्राज्य विस्तार की नीति को अपनाया। इसके कारण यूनान के कई द्वीप, मोरक्को, स्पेन तथा फ्रांस का कुछ भाग अरबों के अधीन हो गया। पश्चिम में अफगानिस्तान, बलूचिस्तान तथा मध्य एशिया के दक्षिणी भाग पर भी बर्बर अरबों ने अधिकार कर लिया था। यह अरब के वैभव तथा विस्तार का युग था ।
सन् 633-44 तक अरब के पूर्वी भाग पर अब्दुल्ला के आक्रमणों में वृद्धि हो गई और वह सिंध नदी तक लूटमार करते आ पहुँचा था। खलीफा द्वारा अनुमोदन के अभाव में वह लौट गया। यह भारत पर प्रथम आक्रमण का ही एक हिस्सा था।
अरबों द्वारा सिन्ध पर आक्रमण के कारण
- राजनीतिक कारण- सिन्ध पर भुहम्मद बिन कासिम के आक्रमण के अनेक कारण’ थे। उनमें एक राजनीतिक कारण भी था। अरब लोग इस्लाम धर्म के प्रचार के साथ ही सिन्ध में राज्य स्थापित करना चाहते थे। वस्तुतः साम्राज्यवादी की भावना ने उन्हें भारत पर आक्रमण की प्रेरणा दी थी।
- आर्थिक कारण-सिन्ध तथा उसके बन्दरगाहों पर अरबों की नजर बरसों से लगी हुई थी। वे यहाँ की धन सम्पदा लूटकर स्वयं को धनी बनाना चाहते थे। युद्ध और लूटमार की मनोवृत्ति अरब लोगों का पैतृक गुण था।
- धार्मिक कारण- इस्लाम के प्रचार के पश्चात् अरब लोग अन्य धर्मावलम्बियों पर अत्याचार कर उनका धर्म परिवर्तन कर इस्लाम का प्रसार करना अपना कर्तव्य मानते थे। बुतभजन (मूतध्वंस) करने वाला हर मुसलमान ख़ुदा की खिदमत करता है। अतः इस्लाम . के प्रचार के लिए अरब सिन्ध पर आक्रमण करना चाहते थे।
- तात्कालिक कारण- सिन्ध के राजा दाहिर और इराक के गवर्नर हज्जात के बीच मन-मुटाव हो गया था। इसके कई कारण बताए जाते हैं। खलीफा अब्दुल मलिक ने अपने कुछ लोगों को भारत से दासियाँ तथा सामग्री क्रय करने भेजा था। इनको देवल के समुद्री डाकुओं ने लूट लिया था। यह समाचार मिलने पर इसक के गवर्नर हज्जाज ने राजा दाहिर को अपराधियों को दण्ड देने तथा हर्जाने की माँग की थी। वस्तुतः हज्जाज साम्राज्यवादी प्रवृत्ति का युद्धप्रिय शासक था। दाहिर ने जवाब में कहलाया कि यह कार्य समुद्री डाकुओं का है जिन पर उनका नियंत्रण नहीं है। हज्जाज मौके की तलाश में था। अतः खलीफा के सम्मान तथा प्रजा की सुरक्षा का बहाना लेकर उसने तीन सेनानायकों के साथ बारी-बारी से सिन्ध पर आक्रमण के लिए सेना भेजी।
अरबों द्वारा मुहम्मद बिन कासिम के नेतृत्व में सिन्ध पर आक्रमण
प्रथम दो प्रयासों में राजा दाहिर की सेना ने अरबों को मार भगाया। अतः हज्जाज ने अपने भतीजे तथा दामाद को एक विशाल सेना लेकर तीसरी बार सिन्ध पर आक्रमण के लिए भेजा। मुहम्मद बिना कासिम 6 हजार प्रशिक्षित घुड़सवार, 6 हजार ऊँट सवार सैनिक तथा अनेक भार वाहक ऊँट लेकर मकराना पहुँचा। वहाँ मकराना के शासक से सहायता प्राप्त की तथा ब्राह्मण शासक दाहिर से अप्रसन्न जाट तथा मेड़ लोगों को भी सेना में सम्मिलित कर लिया। सिन्ध में पहले बौद्ध धर्म तथा उनके शासकों का वर्चस्व था। ब्राह्मण शासक के विरुद्ध अरब आक्रमण से बौद्ध अत्यधिक प्रसन्न ही नहीं हुए, बल्कि देशद्रोही बौद्धों ने मुहम्मद बिन कासिम की हर प्रकार से सहायता भी की।
दाहिर की पराजय
जाटों और मेड़ों की सहायता, बौद्धों का देशद्रोह तथा मुहम्मद बिन कासिम की विशाल सेना और उसके कुशल नेतृत्व के कारण दाहिर की पराजय हो गई। पराजय का एक और प्रमुख कारण दाहिर द्वारा सिन्ध नदी के पश्चिमी भाग से सेना हटाकर पूर्वी तट पर सुरक्षा की दृष्टि से रणनीति तय करने से पश्चिमी भाग पर बिना प्रयास के ही मुहम्मद बिन कासिम का अधिकार हो गया था। इससे आततायियों के हौंसले बुलन्द हो गये। वस्तुतः दाहिर ने बचाव की रणनीति अपनाई जो उस समय की युद्ध प्रणाली के उपयुक्त नहीं थी।
सिन्ध विजय की पृष्ठभूमि
हज्जाज ने मुहम्मद बिन कासिम के साथ नवीन अरब रणनीति में कुशल सैनिकों को भेजा था। मुहम्मद बिन कासिम की उम्र सत्रह वर्ष की थी, किन्तु वह धार्मिक जोश तथा योजनाबद्ध रूप से सिन्ध नदी पार कर गया था।
- देवल पर आक्रमण-सिन्ध के निर्णायक युद्ध के पूर्व मुहम्मद बिन कासिम ने 711 ई. में तेजी के साथ लुटेरा शैली में देवल पर आक्रमण कर नागरिकों को भयभीत कर दिया था। कुछ ही समय में देवल पर अधिकार के पश्चात् उसने ब्राह्मणों तथा अन्य नागरिकों को इस्लाम स्वीकार करने हेतु बाध्य किया। जिन लोगों ने इस्लाम धर्म स्वीकार नहीं किया, उन्हें तत्काल कत्ल कर दिया गया। सत्रह वर्ष से कम आयु के बच्चों और पचहत्तर स्त्रियों को दासी बनाकर हज्जाज को नजराने में भेज दिया। इसके साथ ही लूट के माल का पंचम भाग भी हज्जात को भेजा गया।
- अन्य विजयें- सिन्धु पार कर दाहिर को परास्त कर मुहम्मद बिन कासिम ने रावर, ब्राह्मणाबाद, आलोट, सिक्का और मुलतान पर भी अधिकार कर लिया। सम्पूर्ण सिन्ध पर मुसलमानों का अधिकार स्थापित हो गया था।
मुहम्मद बिन कासिम का अन्त
ब्राह्मणाबाद का युद्ध दाहिर तथा मुहम्मद के मध्य निर्णायक युद्ध था। 20 जून 712 ई. को दाहिर की सेना और मुहम्मद की सेना के मध्य भीषण युद्ध हुआ था। दाहिर ने बड़ी वीरता से युद्ध किया। हाथी के घायल होने पर घोड़े पर सवार होकर दाहिर युद्ध करने लगा। दाहिर के घायल होने पर रण क्षेत्र में गिर जाने पर अरबों ने उसके शरीर को चीरकर दो टुकड़े कर दिये थे।
दाहिर की पत्नी तथा अन्य स्त्रियों ने अग्नि प्रवेश कर सतीत्व की रक्षा की। दुर्भाग्य से दाहिर की एक अन्य पत्नी लादी तथा उसकी दो पुत्रियाँ सूर्य देवी तथा परमल देरी दुश्मनों के चंगुल में फँस गई। मुहम्मद ने लादी से निकाह कर लिया और राजकन्याओं को खलीफा के पास भेज दिया। दाहिर की पुत्रियों ने खलीफा से मुहम्मद द्वारा उनके साथ बलात्कार की घटना का वर्णन किया। खलीफा ने क्रुद्ध होकर मुहम्मद के लौटने पर उसको बंदी बनाकर कत्ल करवा दिया। सिन्ध विजयी मुहम्मद बिन कासिम के जीवन का अन्त शीघ्र ही हो गया।
अरबों की सफलता के कारण
- सिन्ध में आन्तरिक अशान्ति- दाहिर के शासन काल में सिन्ध की स्थिति शोचनीय बन गई थी। प्रान्त की जनसंख्या अधिक नहीं थी तथा ब्राह्मण, बौद्ध और जैन परस्पर धर्मान्ध होकर द्वेष रखते थे। बौद्ध लोग तो खुलकर देशद्रोही हो गये थे तथा दाहिर की ब्राह्मण सत्ता से मुक्ति चाहते थे। मुस्लिम आक्रमणकारियों का स्वागत करते समय उन्हें इस्लाम की बर्बरता तथा क्रूरता का ज्ञान नहीं था। निम्नवर्गीय जनता समाज में अपमानित होने के कारण परिवर्तन की इच्छुक थी। प्रान्तीय एकता का अभाव था।
- अरब सेना की विशालता तथा कुशलता- खलीफा हज्जाज ने मुहम्मद के साथ चुनिन्दा सैनिक भेजे थे। उनको नवीन अरब रणनीति का प्रशिक्षण प्राप्त था। अरब सेना में असंख्य घुड़सवार तथा ऊँट सवार थे। अरबों की सेना गतिशील थी और शीघ्र ही क्षेत्र परिवर्तन कर आक्रमण की क्षमता रखती थी।
- मकराना के हाकिम का सहयोग-मकराना के हाकिम ने स्थानीय सैनिक तथा भौगोलिक जानकारी देकर मुहम्मद को पूर्ण सहयोग प्रदान किया। इस कारण मुहम्मद की विजय सरल हो गई।
- दाहिर की सेना का विश्वासघात – दाहिर की सेना के अरब सैनिकों के दल ने उसके साथ विश्वासघात कर शत्रुओं का साथ दिया था। दाहिर को स्वयं की सेना के अरब सैनिकों पर विश्वास नहीं कर उन्हें युद्ध स्थल पर नहीं ले जाना था। मुसलमान आक्रमणकर्ता हिन्दुओं के विरुद्ध युद्ध को जिहाद का नारा देकर धार्मिक भावनाओं को भड़काने में सिद्धहस्त रहते है, यह दाहिर ने विस्तृत कर दिया।
- अरब सेना का उत्साह- सिन्ध में लगातार सफलताओं के कारण अरबों का उत्साह बढ़ गया था। हर युद्ध में सफलता के पश्चात मुहम्मद लूट के माल तथा भारतीय स्त्रियों को सैनिकों में वितरित करता था। अतः अरबों ने हर युद्ध में भावी पुरस्कार तथा कामुकता शान्त करने के उद्देश्य से जोश-खरोश से भाग लिया था।
- सिन्ध की शेष भारत से पृथकता- सिन्ध कई वर्षो से भारतीय राजनीति तथा भारत के अन्य राज्यों से पृथक था। भारत में भी उस समय कई छोटे-छोटे राज्य परस्पर युद्धरत थे। अतः राष्ट्रीय एकता के अभाव तथा अन्य भारतीय शासकों की मुस्लिम आक्रमण के प्रति उदासीनता की नीति से दाहिर एकाकी हो गया था।
- मुसलमानों का धार्मिक फतवा – मुस्लिम आक्रमणकारी सदैव ही धर्म के नाम पर युद्ध करते रहे हैं। इस युद्ध में भी उनका विश्वास था कि अल्लाह ने उन्हें मूर्ति पूजकों का नाश कर इस्लाम के प्रचार के लिए भेजा है। भारतीयों के अध्यात्म एवं दर्शन में यह भावना निहित नहीं है। अतः भारतीय सैनिक धर्मान्धता के आधार पर युद्ध नहीं कर युद्ध हेतु करते थे। धार्मिक भावना से प्रेरित होकर युद्ध करने के कारण मुहम्मद के सैनिकों में अधिक जोश था।
- दाहिर की भूलें – दाहिर की प्रारंभिक भूलें तथा समय पर उचित निर्णय नहीं लेने से पराजय निश्चित थी।
- दाहिर ने सिन्ध का पश्चिमी तट आक्रमणकारियों को पैर जमाने के लिए रिक्त कर दिया था।
- उसने जल सेना की कोई व्यवस्था नहीं की थी, जबकि अरबों द्वारा जल मार्ग से आक्रमण संभावित था।
- प्रथम दो युद्धों में अरबों को मात देकर दाहिर निश्चिन्त हो गया था। उसने राज्य की सीमाओं को भविष्य में युद्ध के लिए सुरक्षित नहीं किया।
- दाहिर ने सामरिक महत्व के स्थान देल में आक्रमणकारियों का सामना नहीं किया। यह सिन्ध का प्रवेश द्वार था। उसने मुहम्मद की सेना का सामना करने में अत्यधिक विलम्ब कर बचाव की नीति का अनुसरण किया। यह तत्कालीन परिस्थितियों में उचित नहीं था।
- बौद्ध तथा जैन ज्योतिषियों ने भविष्यवाणी की थी कि सिन्ध पर मुस्लिम शासन होगा। इससे सेना का मनोबल गिर गया था। इसका प्रमुख कारण दाहिर का ब्राह्मण होना था।
- दाहिर ने रणक्षेत्र में सेनापति के कर्तव्यों को विस्मृत कर दिया और सैन्य संचालन के स्थान पर साधारण सैनिक की तरह युद्ध करने लगा। वह असुरक्षित होकर अरब सैनिकों के हाथ लग गया, जिन्होंने उसके शरीर को दो भागों में चीर कर दाहिर की सेना को हतोत्साहित कर दिया था।
- मुहम्मद की आतंक एवं उदारता की नीति- प्रारंभिक युद्धों में मुहम्मद ने क्रूरता एवं नृशंसता के साथ भारतीय लोगों का कत्ल कर तथा स्त्रियों को दास बनाकर, उनके सतीत्व को नष्ट कर भय व्याप्त कर दिया था। कालान्तर में उसके निम्नवर्गीय जनता की सहानुभूति अर्जित कर ली। यही नहीं, उसने ब्राह्मणों को भी उच्च पद प्रदान कर हिन्दुओं को पक्ष में करने का प्रयत्न किया था आतंक और उदारता की द्वैध नीति से मुहम्मद को सफलता मिली।
- मुहम्मद बिन कासिम की योग्यता- सत्रह वर्षीय मुहम्मद बिन कासिम एक कुशल सेनानायक, योग्य सैनिक एवं युद्धोत्तेजक गुणों से युक्त था। रणक्षेत्र में उसने सामरिक महत्व के निर्णय लेकर सेना का संचालन किया था। अतः सिन्ध के सभी युद्धों में वह विजयी रहा।
अरबों के आक्रमण का प्रभाव
- राजनीतिक -अरबों की सिन्ध विजय का शेष भारत पर प्रभाव नगण्य है। लेनपूल ने लिखा है कि “यह भारत और इस्लाम के इतिहास में एक साधारण घटना मात्र थी।” वुल्जे हेग के अनुसार, “अरबों ने भारत की विशाल भूमि के एक छोटे से भाग पर अधिकार किया था। दूसरे राजपूतों ने इसको स्थानीय घटना जितना महत्व दिया।”
- अरबों का भारत में पैर जमाना – अरबों की सिन्ध विजय से उनके पैर भारत में जम गये थे। अरब कबीले सिन्ध के कई शहरों में व्याप्त हो गये थे। उन्होंने मंसूरा, बैजा, महफूजा तथा मुलतान में अपनी बस्तियाँ स्थापित कर उपनिवेश बना लिये थे। इन उपनिवेशों के अरबों ने सिन्ध निवासियों से वैवाहिक सम्बन्ध कायम कर अरब और भारतीय रक्त मिश्रण से नई प्रजाति को जन्म दिया।
- शेष भारत अप्रभावित– उमय्या वंश के खलीफाओं की खिलाफत के कारण अरब सिन्ध तक ही सीमित रहे। शेष भारत में राजपूत राज्य, चालुक्य, सोलंकी, प्रतिहार तथा राष्ट्रकूटों की ओर उनके कदम नहीं बढ़े। राजपूत राज्यों ने भी इस घटना को उदासीनता से लिया। क्योंकि ये राज्य स्वयं युद्धग्रस्त एवं आंतरिक समस्या में उलझे हुए थे।
- अरब कबीलों में संघर्ष – अरबों के इतिहास में कबीलाई संघर्ष का अपना महत्व है। भारत में बसने वाले कबीले भी परस्पर संघर्षरत हो गये थे। अतः मुहम्मद बिन कासिम द्वारा स्थापित शासन तंत्र समाप्त हो गया और अरबों पर केन्द्रीय नियंत्रण नहीं रहा। अरब लोग शहरों में बसी बस्तियों तक ही सीमित रहे। सिन्ध के ग्रामीण इलाकों पर इनका कोई प्रभाव नहीं पड़ा।
अरबों के आक्रमण का महत्व
अरब तथा सिन्ध के भारतीयों के निकट आने से सांस्कृतिक संपर्क में वृद्धि हो गई थी।
- अरब यात्रियों का भारत में प्रवेश- अरब यात्रीगण भारत में आए तथा भारत के सम्बन्ध में उन्होंने विवरण लिखना प्रारंभ कर दिया। इन यात्रा विवरणों से भावी तुर्की आक्रमणकारियों को मार्गदर्शन मिला था।
- अरबों ने भारतीय ज्योतिष चिकित्सा, विज्ञान, गणित तथा दर्शन ग्रंथों का अध्ययन किया तथा अरब ले गये। अरब में इन ग्रंथों का अरबी में ‘अनुवाद किया गया।
- गणित के ज्ञान के लिए अरब लोग भारतीयों के ऋणी हैं। संस्कृत में भारतीय वृहस्पति सिद्धान्त का अरबी रूप “असमिद हिन्द” तथा आर्यभट्ट की पुस्तकों का अरबी में अनुवाद “अरजबन्द” तथा “अरकन्द” से अरबों का गणित तथा खगोल विद्या में ज्ञान बढ़ा।
- अरब तथा भारत के मध्य हिन्दू ज्योतिषी एवं अन्य विद्वानों का आना-जाना प्रारंभ हो गया। भारतीय संगीत की धुनें अरब में छा गईं।
डॉ. ईश्वरीप्रसाद के अनुसार, “अरब संस्कृति के बहुत से तत्व, जिनका बाद में यूरोप पर भी प्रभाव पड़ा, भारतीयों की देन है। भारत का बौद्धिक स्तर बहुत ऊँचा था अतः यह अरब होकर यूरोप पहुँचा। दर्शन और ज्योतिषशास्त्र, गणित तथा विज्ञान का अध्ययन करने के लिए अरब विद्वानों ने बौद्ध भिक्षुकों तथा ब्राह्मण पंडितों के चरणों में बैठकर विद्या ग्रहण की।” अरबों ने भारत को बर्बादी के सिवाय कुछ नहीं दिया। संस्कृत ग्रंथों के अरबी अनुवाद से इस्लाम लाभान्वित हो गया था।
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