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पानीपत का तृतीय युद्ध | panipat ka tritiya yuddh

पानीपत का तृतीय युद्ध

पानीपत का तृतीय युद्ध पानीपत नाम के स्थान मे 14 जनवरी 1761 को मराठो और अफगानी लोगो के बीच मे लड़ा गया था। इस युद्ध मे मराठा शक्ति की हार हुई थी।

पानीपत का तृतीय युद्ध पूरे विश्व स्तर पर एक महत्वपूर्ण घटना मनी जाती हैं। कई इतिहासकार का मानना हैं की भारत के इतिहास मे इस युद्ध ने भारत की आजादी की राह को रोक दिया था। इस युद्ध मे मराठा शक्तियों की हार हुई थी, और विदेशी शक्तियों की जीत हुई थी जिसकी वजह से भारत फिर से गुलामी के जंजीरों मे फंस गया था और विदेशी शक्तियों की भारत मे फिर से स्थापना हुई थी। यह युद्ध मराठा शक्तियों और अफगानिस्तान के शासक अहमदशाह अब्दाली के बीच लड़ा गया था।

पानीपत का तृतीय युद्ध के कारण

पानीपत का तृतीय युद्ध आखिर किस कारणो से हुआ हैं, उन कारणो की चर्चा किए बिना पानीपत के युद्ध के बारे मे जान पाना असंभव हैं। इसलिए पानीपात का तृतीय युद्ध क्यो हुआ इसके कारणो के बारे मे जानना बहुत ही जरूरी हैं। पानीपत के तृतीय यूद्द्ज के कारण निम्न प्रकार से है-

मराठो का ध्येय हिन्दू राष्ट्र की स्थापना करना

सान 1750 के बाद मराठो की शक्ति अपने उफान मे थी। मराठो की ताकत के सामने उस समय मुस्लिम जगत घबरा उठा था। मराठो के हिन्दू राष्ट्र के सपने की वजह से भारत का मुस्लिम चिंतित हो रहा था। उस समय के मुस्लिम नायक किसी भी हालत मे हिन्दू शासक को स्वीकार्य नहीं करना चाहते थे। इसलिए भारत के सभी मुस्लिम धीरे धीरे एक होने लगे थे और सभी ने मिलकर विदेशी शक्तियों के साथ मिल कर मराठो के पतन के लिए षड्यंत्र रचा और विदेशी शक्तियों की सहायता की।

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दत्ता जी सिंधिया की हत्या

दत्ता जी सिंधिया 1760 मे पंजाब मे युद्ध लड़ रहे थे इस युद्ध मे उनकी मृत्यु हो गई, दत्ता जी की हत्या की वजह से मराठा शक्ति आक्रोशित थी, इसलिए दत्ता जी की हत्या का बदला लेने के लिए मराठो की एक बड़ी सेना अब्दाली  से बदला लेने के लिए भेजी गई और यही युद्ध पानीपत का तृतीय युद्ध के नाम से जाना गया।  10 जनवरी 1760 के दिन दिल्ली के पास बुरारी घाट युद्ध मे दत्ता जी की हार हुई थी, उनके पराजय के बाद दत्ता जी की बड़े ही निर्मम तरीके से उनकी हत्या की गई थी।

मराठा और राजपूतो के बीच संबंध ठीक न होना

इस युद्ध का एक सबसे बड़ा कारण यह था की मराठो का संबंद राजपूतो के साथ ठीक नहीं रहा क्योंकि मराठो के द्वारा दिल्ली को पराजित करने के बाद राजपूतो के आंतरिक मुद्दो पर हस्ताक्षेप करने लगे थे। इसके अलावा राजपूतो से चौथ और सरदेशमुख कर वसूले जाते थे। इसकी वजह से मराठो औयर राजपूतो मे संघर्ष की स्थिति रहती थी जिसकी वजह से भारत की एकता कमजोर हुई।

पंजाब मे मराठो का कब्जा

पंजाब मे अफगानों का शासन था, लेकिन वर्ष 1759 के आसपास मराठो ने पंजाब मे अपना नियंत्रण बना लिया था। पंजाब मे मराठो का कब्जा होने की वजह से अहमदशाह अब्दाली  ने पंजाब मे आक्रमण कर दिया था, जिसकी वजह से मराठो और अफगानों के बीच युद्ध निश्चित हो चुका था। और 1 नवंबर 1760 को मराठो और अहमदशाह अब्दाली  के बीच पानीपत का युद्ध शुरू हो चुका था।

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सुरजमल की चुनौती

अफगान का शासक अहमदशाह अब्दाली  ने जात सुरजमल से भेंट की मांग की थी लेकिन सुरजमल ने भेंट देने से माना कर दिया था और चुनौती दी थी की अगर अफगानी सेना मराठो को युद्ध मे हारा देगी तब वह अब्दाली को भेंट देगा। अहमद शाह अब्दली ने सुरजमल की चुनौती को स्वीकार्य कर लिया। इसलिए कई इतिहास कार इस चुनौती को भी पानीपत के तीसरे युद्ध के प्रमुख्य कारणो मे से एक कारण मानते हैं।

सामंतों की आजाद होनी की लालसा

भारत मे 1750 के समय दिल्ली मे बैठी मुगल सत्ता कमजोर हो चुकी थी। इसलिए मुगन सत्ता के अधीन सामंत अब स्वतंत्र होने के सपने देखने लगे थे। जिसकी वजह से मुगल सत्ता टूटने लगा था। जब अब्दाली को सत्ता के कमजोर होने के बारे मे पता चला तो उसे दिल्ली मे आक्रमण करने का यही सबसे बेहतर समय लगा।

वजीर सफदर जंग और रूहेला के बीच दुश्मनी

मुगल बादशाह मुहम्मद शाह रंगीला की 1748 में मृत्यु हो जाने के बाद अवध के नवाब सफदरजंग और रूहेलों के बीच अनबन बढ़ गई थी, और यह अनबन 1752 तक निरंतर चलता ही रहा। सफदरजंग शिया था जबकि रूहेले कट्टर सुन्नी थे। रूहेले अब्दाली की तरह ही पठान था। इसलिए अहमद शाह अब्दाली और रूहेलों के बीच संबंध और मेल-मिलाप लगातार बढ़ रहे थे। यह संघर्ष आखिरकार हुसेनपुर मे भिड़ंत का कारण बनी और इस युद्ध में रूहेलों की हार हो गई। इस हार के बाद रूहेलों ने अहमद शाह अब्दाली को भारत आने का निमंत्रण दिया था। और अब्दाली का भारत आनेका मतलब था मराठो से युद्ध करना।

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