अकबर और उनकी बेगम की कोई बात को लेकर लड़ाई हो गई। लड़ाई बहुत अधिक बढ़ गई यहाँ तक की अकबर ने बेगम को कह दिया की आप अपने मायके चली जाओ। लेकिन बेगम ने ऐसा नहीं किया। वह मायके नहीं गई। बेगम को लगा बादशाह को गुस्सा मैंने ही बिना वजह के दिलाया था, इस लिए उन्होने ऐसा कह दिया।
लेकिन कुछ देर बाद जब अकबर ने बेगम को महल के छत में टहलते देखा, तो अकबर का गुस्सा और ज्यादा बढ़ गया। अकबर बेगम के पास आकर गुस्से से बोले- आप मायके गई नहीं? अभी यही हैं। कल तुम जरूर चली जाना, मैं अब तुम्हें देख नहीं पा रहा हूँ, एक काम करना जो तुम्हारे पसंद का सामान हैं वो भी ले जाना।
अकबर के इस तरह के बर्ताव से बेगम को बहुत दुख हुआ। बेगम रोते-रोते अपने कक्ष मे आ गई। बेगम को लगा की बादशाह को बीरबल के अलावा कोई नहीं समझा सकता। बेगम ने दासी को आदेश दिया की बीरबल को बुला लाओ। दासी ने बीरबल से जाकर कहा आप को बेगम बुला रही है, बीरबल बिना देरी किए दासी के साथ ही बेगम के पास पहुंचे। बीरबल ने कहा – कहिए बेगम क्यो आप ने हमको बुलाया, कोई समस्या हैं क्या? हाँ बेगम ने उत्तर दिया, फिर सब कुछ बताया जो अकबर ने बेगम को कहा था।
बीरबल ने कहा – बेगम साहिबा अगर हुजूर ने आदेश दिया है तब तो आप को जाना ही पड़ेगा,पर जो पसंद का सामान साथ ले जाने की बात हैं, वो जैसा मैं कहता हूं वैसा ही करें, हुजूर का गुस्सा भी शांत हो जाएगा।”
जैसा बीरबल ने कहा ठीक वैसा ही बेगम ने किया। बेगम ने दासी से कह कर बादशाह को रात में नींद की दवा दिलवा दी और उन्हें सोता ही पालकी में लिटा कर अपने ही साथ मायके ले आई और एक कक्ष में लेटा दिया। सुबह बादशाह जागे तो खुद को दूसरी जगह पा कर चौक गए, फिर बोले—”कोई है ?”
उनके बुलाने पर बेगम साहिबा उनके सामने हाजिर हुई। अकबर बेगम को देखकर समझ गए कि वह बेगम के मायके में हैं। वह गुस्से से बोले—”तुम हमें भी यहां ले आई, इतनी बड़ी गलती कर डाली …।”
बेगम ने कहा मेरे सरताज, आपने ही तो कहा था कि अपनी मन पसंद चीज ले जाना…इसलिए आपको ले आई।”
यह सुनकर बादशाह का गुस्सा जाता रहा, मुस्कराकर बोले—”जरूर तुम्हें यह तरकीब बीरबल ने ही बताई होगी।”
बेगम ने हामी भरते हुए सिर हिला दिया।