अकबर को हमेशा यह लगता था कि उसकी प्रजा बहुत ज्यादा ईमानदार है। अकबर अपने आप को बहुत खुशकिस्मत मानता था। उसे यह भी भ्रम था कि उसकी प्रजा उसे बहुत चाहती भी हैं। अकबर ने बीरबल को अपने मन कि यह बात बताई,
बीरबल ने अकबर को तुरन्त उत्तर दिया, ’‘हुजूर! आप जैसा सोचते ऐसा तो बिल्कुल नहीं हैं। आपके राज्य में हर कोई ईमानदार नहीं हैं। और ना तो आपकी प्रजा आपको चाहती हैं।”
‘‘अकबर ने कहा बीरबल तुम हमेशा ही हमारी बात को गलत ठहाराते रहते हो क्यो?
“नहीं हुजूर मैं अपनी बात को गलत तो कभी कह ही नहीं सकता। मैं तो केवल आप को सच बता रहा हूँ। मैं यह साबित भी कर सकता हूँ बीरबल ने कहा!’‘
‘‘अच्छा तो करो साबित’‘ अकबर ने कहा
अब बीरबल ने पूरे नगर में सूचना कर दी कि बादशाह भंडारा करा रहे हैं। इसलिए हर कोई कढाही में एक लोटा दूध डालेगा। इधर बीरबल ने नगर के बीचों-बीच कढाह रख दिया। कोई तो दूध ही डालता और कोई सोचता अगर पानी डाल दूँ तो क्या किसी को पता चलेगा इतने दूध में। रात को तो किसी को पता ही नहीं चल रहा था कि कढाही में दूध हैं या पानी, इस चक्कर में पूरा कढाह पानी से भर गया।
अगले दिन जब अकबर ने उन कड़ाही को देखा तो दंग रह गए। जनता ने दूध कि जगह पानी डाला था। कढाही सफ़ेद पानी से भरी हुई थी। अकबर को यकीन हो गया कि बीरबल सत्य कह रहे थे।