बहुत जोर की बारिश हो रही थी, मैं अपने मित्र के यहां ताश के पत्ते खेलने के लिए आया हुआ था. गांव में अक्सर लोग समय पास करने के लिए, ताश खेला करते हैं. हालांकि अब लोगों के पास मोबाइल आ गए हैं, तो उसी में पता नहीं क्या उल जलूल देखते रहते हैं.
यह घटना आपसे 8 साल पुरानी है. ताश खेलते हुए समय का पता ही नहीं चला. और रात के 2:30 बज गए थे. मैं बारिश के खत्म होने का इंतजार कर रहा था. 2:45 रात को पानी बंद हुआ, तो मैंने दोस्त से एक छाता लिया, एक डंडा लिया और निकल पड़ा घर की ओर.
रास्ता एकदम अंधेरा था, दोस्त के पास टोर्च तो थी, लेकिन उसमे बैटरी नहीं थी. इसलिए मैं बिना टॉर्च के ही घर की ओर निकल पड़ा. रास्ते में एक बगीचा पड़ता है. वहीं पर मुझे सबसे ज्यादा डर लगता है. पर अब क्या करें गलती से देर हो ही गई थी. घर तो जाना पड़ेगा. अब मैं उसी बगीचे से जा रहा था. एकदम घुप्प अंधेरा था, कीड़ों के बोलने की आवाजें, बगीचे की शांति को तोड़ रही थी।
अंधेरे की वजह से कुछ भी नहीं दिख पा रहा था। मैं डरते हुए, घर की ओर तेजी से कदम बढ़ाते हुये जा रहा था। तभी मुझे आगे एक मोड़ पर, उजली सी आकृति दिखती है। उसे देख कर ऐसा लगा जैसे कोई व्यक्ति वहां पर बैठा हुआ है। मेरी सिट्टी-पित्ती गुल हो गई। यह निश्चित ही कोई भूत है, ऐसा मेरा मन बार-बार बोल रहा था। अब मैं क्या करूं, किधर को भाग जाऊं। कुछ सूझ ही नहीं रहा था। पसीने से तरबतर हो चुका था। हिम्मत करके मैं आगे बढ़ा, यह सोच कर कि अब जो भी होगा, देखा जाएगा।
वह व्यक्ति जहां पर बैठा था, वहां से बगीचे की सीमा खत्म होती है। मैंने डरते हुए आवाज में, पूछा – “कौन हो भाई, इतनी देर रात यहां क्या कर रहे हो। घर क्यों नहीं जा रहे हो।?”
वह बूढ़ी आवाज में बोला- “बेटा मैं इस बगीचे का चौकीदार हूं। मुझे हर रात यहां, बगीचे की तकवारी करनी होती है। तुम यहां क्या कर रहे हो? तुम्हें पता नहीं है, की रात को, इस तरीके से बगीचे में घूमना, बहुत खतरनाक होता है। यहां कई प्रकार के भूत, प्रेत और चुड़ैले रहती हैं। जाओ जल्दी घर जाओ, और इस तरीके से आज के बाद, इस बगीचे से इतनी रात को मत निकलना। “
मैंने बोला- “ठीक है काका”
जैसे ही मैं जाने लगा, तभी वह बूढ़ा व्यक्ति, जो बगीचे की रखवाली कर रहा था, उसने मुझसे तमाखू मांगा , पर मैंने मना कर दिया, क्योंकि मैं तमाखू नहीं खाता था। उस बगीचे के चौकीदार ने मेरी खूब प्रशंसा की और मुझे गांव के चौपाल तक छोड़ने आया।
सुबह मैंने बगीचे के चौकीदार के बारे में अपने पिता को बताया, तो वह दंग रह गए, उन्होंने कहा बगीचा तो सरकारी है, वहां कोई चौकीदार नहीं रहता। यह सब बातें मेरी दादी भी सुन रही थी, तब उन्होंने कहा – “तू तो बाल-बाल बच गया है, क्योंकि वह कोई चौकीदार नहीं, बल्कि एक प्रेत था जो कई वर्षों से वहाँ रह रहा है। जब मैं ब्याह के तेरे दादा के साथ यहां आई थी, तब भी वह इस बगीचे में रहता था। तेरे दादा ने मुझे उसके बारे मे एक कहानी सुनाई थी”
“कहते हैं, जब वह तमाखू मांगे। और कोई उसे तमाखू दे देता है, तब वह तमाखू देने वाले को नहीं छोड़ता है। उस प्रेत का नाम रामखेलावन काका है, उसका लड़का, तमाखू खाता था, इसी वजह से वह कम उम्र में चल बसा। उसी की दुख में रामखेलावन काका भी अपने बेटे के गुजरने के एक साल बाद गुजर गए। तबसे बड़ा उसी बगीचे में रहते हैं, और रात को बगीचे से निकलने वाले से तमाखू मांगते हैं। अगर वह तमाखू दे देता है, वह प्रेत, तमाकू देने वाले को मार देता है। “- दादी ने यह कहते हुए, मेरी नजर उतारी। और अपने गले में पहना हुआ हनुमान जी का लॉकेट, मुझे पहना दिया।
उस दिन के बाद, मैं कभी भी उस बगीचे से होकर नहीं गुजरा, अगर किसी कारण बस, देर रात हो जाती है, तो मैं गांव के बाहर, अपने दोस्त के यहां रुक जाता हूं।
अब तो गांव के लोगों, बगीचे के अंदर कई जगह, हनुमान जी के छोटी-छोटी मंदिर बनवा रहे हैं। जिससे कि प्रेत से गांव वाले मुक्त हो सके।