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सीधी जिले के पहाड़ी का वह भूतिया खंडहर | Bhoot ki kahani bhutiya khandahar

बात बहुत पुरानी नही है, मै और मेरे दोस्त अपने आफिस से कुछ दिनो के लिए छुट्टी लेकर अपने तीसरे दोस्त संतोष के गांव मे घूमने के लिये चल दिये। कई बार संतोष से बातचीत मे वह बताता था कि वह जिस जगह से आता है। वहां घूमने के लिये बहुत कुछ है। इसलिए हम चार दोस्तो की टोली संतोष के साथ उसके गृह ग्राम भितरी के लिये निकल पडे। उसका गांव मध्यप्रदेश के सीधी जिले मे है।

गांव मे उसका बहुत ही बडा घर बना है, हलांकि यह ईंटे से बनी तथा मोटी दिवारो का कच्चा घर था, जिसमे कंक्रीट की जगह मिट्टी के बने खपडे कि छत थी। जैसे ही हम लोग उसके कमरे मे प्रवेश करते है, तो शरीर कि पूरी गर्मी निकल जाती है। वास्तव मे गांव के बने इन घरो मे गर्मी का नामो-निशान नही होता, संतोष के छोटे भाई ने कमरे के एक किनारे पर रखे बडे से कुलर को चालू कर दिया। थोडी ही देर मे पूरा कमरा ठण्डा हो चुका था, हम लोग थके हुए थे, कढी चावल खाकर सो गये। शाम को जागने के बाद तय हुआ कि पूरे विंध्य प्रदेश मे हम लोग किन किन स्‍थानो में घूमेंगे, उन स्थानो की सूची बनाई और अगले ही दिन हम लोग विंध्य भ्रमण के लिए निकल पड़े।

विंध्य प्रदेश मे सतना, रीवा, सीधी, सिंगरौली, उमरिया, अनुपपुर और शहडोल जिले आते है, ऐसा मेरे दोस्त संतोष ने हमे बताया। इन सभी जिलो को घूमने के लिए हमने 6 दिन लिए, इसके बाद में हम रीवा मे कई मंदिर, जलप्रपात तथा किले घूमे। रीवा घूमने के लिए हमने दो दिन रीवा मे व्यतीत किया और अब हम अपने दोस्त संतोष के घर वापस जाना तय किया। जंहा से हम अपने कर्मस्थल इंदौर कि ओर प्रस्थान करेंगे। रीवा से करीब रात ग्यारह बजे हम लोग भितरी गांव के लिये निकले। हम लोग बुलेरो मे थे, बुलेरो संतोष की थी। मेरे चार दोस्त और संतोष को मिलाकर हम पांच लोग थे। गाडी संतोष चला रहा था। हलांकि हम रीवा मे जिनके घर मे ठहरे थे, उन्होने हमे मना किया था कि रात को भितरी न जाये। क्योंकि भितरी जाने के लिए एक पहाडी पार करनी होती है, जिसका नाम छुहिया घाटी है। जंहा पर कई चोर-उचक्के घात लगाये छिपे होते है। और लोगो के साथ लूट-पाट करते हैं, पर क्योकि हम संख्या मे पांच लोग थे, इसलिये हमने जाने का फैसला किया, गर्मी के समय मे दिन मे यात्रा करने से अच्छा, रात के ठण्ड मे यात्रा करना ज्यादा उचित है, ऐसा विचार कर हम संतोष के गांव कि ओर निकल पडे।

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पहाड को पार करने मे 45 मिनट लगते है। रात को करीब 12बजे के आसपास के समय हम लोग पहाड के सबसे उपर वाले भाग मे थे। इस पहाड मे सड़क टेढीमेढी बनी हुई है। संतोष ने बताया कि पूरे पहाड मे कुल 72 मोड है। 40 मोड हम पार कर चुके थे कि अचानक जोर के धामाके के साथ हमारी गाडी लहराने लगी। संतोष ने बताया कि गाडी का टायर फूट गया है। हमने गाडी रोकी, जैसे ही मै गाडी से उतरा तो मैने देखा कि झाडियो से कुछ दूर पर एक किले जैसा कुछ अकृति दिख रही है। मैने संतोष से पूछा कि यह क्या दिख रहा है? तो उसने बताया कि यह एक गढी है यानी एक छोटा सा किला है, पुराने समय मे राजा जब इस पहाड मे शिकार खेलने आते थे तो इसी किले मे ठहरते थे। मैने उसे बोला की चलो इस किले को देखते है। रात भी बहुत ही सुहानी थी, हल्की हल्की हवा बह रही थी तथा पानी कि फुहारे पड रही थी। संतोष चोर-उच्चको को लेकर डरा हुआ था।

मैने उसे समझाया कि हम पांच लोग है, डरने की कोई बात नही है। चलो सिर्फ 20 से 25 मिनट ही रहेंगे, फिर वापस आ जायेंगे। संतोष अनमने मन से सहमत हो गया और हम लोग किले की ओर बढ गये। 10 मिनट के दुर्गम रास्ते को पार कर के हम लोग किले पर पहुच गये। हमारा एक दोस्त रवि कैमरे से वहां कि सूटिंग करने लगा। तथा एक दोस्त राजेश डरावनी अवाजे निकाल कर हमे डराने कि कोशिस करने लगा। मुझे यहां आकर बहुत ही अच्छा लग रहा था, यह मेरे लिये एक एडवेंचर की तरह था, अचानक किसी के पायल कि अवाज आई।

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एकबार के लिये तो सनाका खिच गया, और हम डर गये। पर थोडी देर मे लगा कि किसी ने मजाक किया है और हम आपस मे पूछने लगे पर अचानक ऐसा लगा कि जैसे ऊपर वाले मंजिले मे कोई चल रहा है, पर यह पायल कि अवाज नही लग रही थी, ऐसा लग रहा था जैसे कोई चमडे के जूते पहन कर चल रहा हो। तभी हमारा चौथा दोस्त कंचन चिल्लाया – कौन है? जो वहां पर खडा है?, हम सब उस ओर देखने लगे, जिस दिशा मे कचंन देख कर चिल्लाकर पूछ रहा था। वहां हमे एक महिला कि अकृति मे कोई दिखी जो साफ-साफ नही दिख रही थी। वो हमे घूर रही थी। तभी वो महिला चिल्लाई, भाग जाओे तुम लोग नही तो, वो तुम्हे नही छोडेगा, और तभी तेज हवा बही हमारे आंखो मे धूल आई, हमने अपने आंखो पर अपनी हथेली रखी और जैसे ही हथेली हटा कर वापस उस अकृति की ओर देखा तो वह वहां पर नही थी, दूसरे मंजिले से आ रही चलने कि आहट अब तेज हो गई थी। अचानक ऊपरी मजीले से एक गरजती हुई अवाज आई – कौन है वहां?

तभी हमे एक हवा का झोका छू कर गया, और उस हवा के झोके के साथ पायल की छनछन कि अवाज भी आई पर हमे कोई नही दिखा।

तभी किसी दूसरे कोठरी से एक महिला कि हंसने कि अवाज आई, हम सब डरे हुए थे तभी रजेश ने बाहर इशारा करते हुए, हमे वहां देखने को कहा। वह दृष्य देख हमारे पैरो से जमीन खिसक गई, हमारे शरीर के रोये खडे हो गये। किले के आसपास लगे सभी झाडियां अजीब तरह से हिल रही थी तो कुछ टेडीमेडी हो रही थी। कुछ मे तो इंसानी चेहरे कि आकृति बन रही थी। यह दृष्य देखकर हम लोगो को होश नही रहा और हम आंखे मूद कर वहां से भागे। तभी पीछे से फिर वही गरजती हुई अवाज आई – कहां जा रहे हो, वापस आओ। और फिर सैकडो कुत्तो के रोने कि अवाजे आने लगी। हम बेताहाशा भागे, पंचर गाडी को ही कुछ दूर तक चलाते रहे। हम जब तक भागते रहे जब तक हमे उस किले से कुत्तो के रोने की अवाजे और हमे वापस बुलाने वाले उस गरजती अवाज का आना बंद नही हो गया।

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इस घटना को दो साल बीत गये है। अब मै रात मे सफर नही करता, और अगर जाना जरूरी है तो सिर्फ ट्रेन पर ही सफर करता हूँ।

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