इस पोस्ट में हम, हिंदू धर्म ग्रंथों में दिए हुए, कुछ आचरण एवं नियमावली को पढेगे। जैसे कि किस दिन कौन सी सब्जी नहीं खानी चाहिए, किस दिन हमें साग वाली सब्जी नहीं खानी चाहिए। किस पात्र में नहीं खाना चाहिए। हम कई बार अच्छे कार्य कर के भी, दुखी रहते हैं पीड़ित रहते हैं, और सोचते हैं कि आखिर क्या वजह है। की हम इन कष्टों को झेल रहे हैं। जबकि हमने अच्छे कर्म के अलावा कभी भी कोई बुरे कर्म नहीं किए। तो यहां पर ध्यान रखें कई बार हम क्या खा रहे हैं, किस तरीके से अपनी दिनचर्या में नहाने के तरीकों का इस्तेमाल कर रहे हैं, खाने के तरीकों का किस प्रकार का इस्तेमाल हो रहा है, पानी पीने के लिए किस प्रकार के पात्रों का इस्तेमाल हो रहा है। यह सब भी हमारे जीवन, के रास्तों को प्रभावित करते हैं। और अच्छे कर्म करने के बावजूद भी, हम अपने जीवन में दुख का सामना करते हैं। तो आइए इस पोस्ट के माध्यम से हम जानते हैं उन नियमावली को जिन्हें हमें अपने दैनिक जीवन में जरूर शामिल करना चाहिए।
- प्रतिपदा को यानी परिवा के दिन कद्दू नहीं खाना चाहिए, कद्दू को कुष्मांड भी कहते हैं, प्रतिपदा के दिन कद्दू खाने से धन का नाश होता है।
- महीने की द्वितीय को छोटा बैगन और कटहल नहीं खाना चाहिए। इससे स्वास्थ्य मे नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
- महीने की तृतीय को परवल नहीं खाना चाहिए, इससे शत्रुओं की वृद्धि होती है।
- महीने की चतुर्थी को मूली का सेवन नहीं करना चाहिए, इससे धन का नाश होता है।
- महीने की पंचमी को बेल नहीं खाना चाहिए, इससे कलंक लगने का डर रहता है।
- महीने की षष्ठी को नीम की पत्ती, फल या दातुन को मुंह में नहीं डालना चाहिए, वरना दुर्गम योनि की प्राप्ति होती है।
- महीने की सप्तमी को ताड का फल खाने से बुद्धि का नाश होता है।
- महीने की अष्टमी को नारियल का फल खाने से, बुद्धि का नाश होता है।
- महीने की नवमी में लौकी खाने से बचना चाहिए, नवमी के दिन लौकी खाने से, उदर रोग होता है।
- महीने की दशमी को पालक, भाजी, लाल भाजी जैसे सब्जियों को खाने से बचना चाहिए।
- महीने की एकादशी को, सेम, बरबटी, मटर जैसे सब्जियों को खाने से बचना चाहिए, इससे पुत्र पर संकट बढ़ता है।
- द्वादशी को पोई की सब्जी खाने से बचना चाहिए, इससे भी पुत्र पर संकट बढ़ता है।
- त्रयोदशी को बैगन की सब्जी नहीं खानी चाहिए, इससे कुल और परिवार पर संकट आता है।
- अमावस्या, पूर्णिमा, संक्रांति, चतुर्दशी, अष्टमी, रविवार, श्राद्ध और व्रत के दिन तिल का तेल निषिद्ध होता है।
- रविवार के दिन अदरक और लाल रंग की भाजी नहीं खाना चाहिए, नहीं तो बुद्धि और तेज का नाश होता है।
- कार्तिक के महीने में बैगन और माघ के महीने में मूली का त्याग करना चाहिए।
- सूर्य के अस्त होने के बाद तिल से बना कोई भी पदार्थ नहीं खाना चाहिए।
- लक्ष्मी की इच्छा रखने वालों को, रात में दही और सत्तू नहीं खाना चाहिए, वरना धान का नाश होता है तथा नर्क की प्राप्ति होती है
- दूध के साथ मट्ठा नहीं लेना चाहिए, नहीं तो त्वचा रोग होता है।
- मधु मिला हुआ घी, तेल और गुड जहर के समान होता है, गुड मिला हुआ दही, और गुड मिला हुआ अदरक मदिरा के सामान जहरीला माना गया है।
- तांबे के पात्र में दूध पीना, जूठी वस्तु में घी खाना, और नमक के साथ दूध पीना, गौ मांस खाने के समान पाप माना गया है।
- लोहे के बर्तन में जलपान, लोहे के बर्तन में गाय का दूध, घी, दही, उसमें पकाया हुआ चावल, शहद, गुड, नारियल का जल सभी निषेध माने गए हैं।
- हाथ में दिया हुआ नमक और बाएं हाथ से दिया गया हुआ अन्न कभी नहीं स्वीकारना चाहिए। परंतु तांबे के पात्र में घी और लोहे के पात्र में तेल दूषित नहीं होता है।
- काँस के बर्तन में नारियल का जल और तांबे के बर्तन में गन्ने का रस, दूध और दही मदिरा तुल्य माना गया है।
- चांदी के बर्तन में रखा हुआ कपूर, घर में दुर्भाग्य को लाता है।
- हाथ में नमक लेकर चाटना, दरिद्रता को बुलाता है।
- मदिरा पीने से मनुष्य के धैर्य, लज्जा और बुद्धि का नाश हो जाता है तथा नरक की प्राप्ति होती है।
- पान के अग्रभाग में पत्नी के साथ और डंठल भाग में पुत्र के साथ दरिद्र निवास करता है। इसलिए जब भी पान खाए, तो अग्रभाग और डंठल को तोड़कर खाएं, और उसे बिना तंबाकू के खाएं, क्योंकि तंबाकू में सर्वदा दरिद्र निवास करता है। पान खाने का समय दिन दिन में ही माना गया है, रात्रि में इसे निषेध किया गया है।
- यदि खाना परोसने वाला व्यक्ति, भोजन करने वाले व्यक्ति को छू देता है। तो अन्न खाने योग्य नहीं रह जाता है।
- विधवा स्त्री, सन्यासी, ब्रह्मचारी तथा तपस्वी के लिए पान सर्वदा निषेध है, तथा मदिरा के समान माना गया है।
बहुत ही अच्छा लेख है ज्ञानवर्धक लेख है बहुत ही काम का लेख है मुझे पढ़कर बहुत ही अच्छा लगा ऐसे ही लेख और लिखते रहिए