गीतांजली की कहानी- जहां चाह वही राह

गीतांजली की कहानी- जहां चाह वही राह

एक किसान था जो रीवा जिले के कोसाम्बी गाँव मे रहता था। उसका एक ही बेटा था जो उस किसान की खेती मे हाथ बटाया करता था। पर कुछ महीने पहले ही उस किसान के बेटे को गाँव मे एक दूसरे लड़के के साथ मारपीट करने के जुर्म मे एक वर्ष का कारावास की सजा हो जाती हैं। किसान का वह लड़का रीवा जेल मे बंद था। किसान की उम्र ज्यादा थी, इसलिए वह खेती नहीं कर सकता था। और उसके पास इतने पैसे नहीं थे की वह दूसरे से मदद माग सके। इसलिए उसने अपने बेटे को पत्र लिखा।

प्रिय बेटे, हम सब यहाँ पर ठीक और सकुशल हैं बस तुम्हारे यहाँ  न होने से हमे तुम्हारी चिंता और फिक्र रहती हैं। तुम हमारी फिक्र मत करना अपने सेहत मे ध्यान देना, जेल मे किसी दूसरे कैदी से किसी भी प्रकार का कोई विवाद मे न पड़ना। जिससे तुम्हारी एक वर्ष की सजा बिना किसी तकलीफ के समाप्त हो जाए।

इस बार मानसून बहुत अच्छा हैं और खेती भी तिली के लिए उपयुक्त मालूम होती हैं, पर खेत की जोताई के लिए मेरी उम्र बहुत पीछे छूट चुकी हैं और हमारे पास इतने पैसे नही हैं की हम ट्रैक्टर का किराया दे पाये। अगर तुम होते तो तुम खेतो की जोताई की ज़िम्मेदारी अन्य वर्षो की तरह खुद कर सकते थे। पर तुम चिंता मत करो मैं कुछ उपाय सोचता हूँ, तुम्हारा पिता।

इसके कुछ दिन बाद पुत्र अपने पिता को चिट्ठी लिखता हैं की “भगवान के लिए पिता जी खेत को मत जोतिएगा क्यूंकी मैंने उसमे बंदूक और चाँदी के हाथी गाड़े हैं” उसके अगले ही दिन रीवा जिले की सभी पुलिस फोर्स उस किसान के घर पहुच गयी और पूरे खेत की मट्टी को ट्रैक्टर से पलट दिया गया, बंदूक और चाँदी के हाथी के खोज के लिए, पर उन्हे कुछ नहीं मिला। और खाली हाथ किसान के घर से लौट गयी, कुछ दिन मे किसान को एक चिट्ठी मिली जिसमे लिखा था “पिताजी जेल मे होते हुये जितना मैं आपकी मदद कर सकता था मैंने कर दिया, अब आप खेत की जुताई की चिंता से मुक्त हो गए होंगे और आशा करता हूँ की आप जल्दी ही तिली के बीजो का छिड़काओ कर चुके होंगे।“

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पुत्र की चिट्ठी पढ़ पिता के आंखो मे आँसू आ गए। जिसने बौद्धिक युक्ति लगा कर जेल मे रहते हुये भी अपने पिता की खेत की जुताई मे कैसे सहयोग दिया। इस समय किसान को अपने बेटे पर बहुत गर्व महसूस हो रहा था। और पूरे गाँव मे उसकी सराहना हो रही थी।