बीरु रीवा जिले मे रहने वाला एक मध्यवर्ग परिवार के गौतम ब्रांहण के यहां जन्मा बालक था। घर मे धार्मिक वातावरण होने के कारण बीरु के अंदर धार्मिक और नैतिक ज्ञान और समझ कम उम्र मे ही हो चुका था। बीरु के पिता एक मेहनती और ईमानदार पुलिस वाले थे इसलिए बीरु भी एक ईमानदार और मेहनती बालक था।
एक बार बीरु अपने दोस्तो के साथ दशहरा के दिन रीवा जिले के एक प्रसिद्ध महाविद्यालय मे रावण दहन देखने के लिए गया हुया था। रावण दहन के पहले कालेज मे कई झांकिया दिखलाए जाने की प्रथा थी, जिसके कारण रावण दहन मे देर हो गई।
करीब रात ग्यारह बजे रावण दहन का कार्यक्रम समाप्त हो जाने के बाद बीरु अपने मित्रो के साथ अपने घर लौट रहा था, तभी उसने देखा की रास्ते मे लगभग 7 वर्ष की उम्र का एक बालक रो रहा है। पर कोई भी उसे शांत नहीं करा रहा है और न ही कोई भी व्यक्ति उसके आसपास है जो उसे संभाल सके।
बीरु ने अपने मित्रो से इस विषय पर चर्चा की तो उन्होने अंदाजा लगाया की शायद यह बालक अपने अभिभावक से बिछड़ गया है और इसलिए व्याकुल हो रो रहा है। बीरु की चिंता सही साबित हुई, बीरु को भी एसा ही जान पड़ता था। तब बीरु ने बालक के अभिभावक के मिल जाने तक बालक के साथ रहने का निश्चय किया, लेकिन बीरु के मित्र घर के लिए देर होने से चिंतित थे और बीरु को वही छोड़ अपने घर निकल लिए, पर उनमे से कुछ दोस्त जो बीरु की तरह ही नैतिक और धार्मिक परिवार से थे, वह बीरु के साथ वही रहने का निश्चय किया, जिनका नाम गोलु, हीरु और परशोतीलाल था।
आखिर जल्द ही कुछ प्रयास के बाद उस बालक के अभिभावक उन्हे मिल गए और वो अपने बालक को देख, और बालक उनको देख बहुत ही खुश हुये। बालक के अभिभावक ने बीरु, गोलु, हीरु और परसोतीलाल को धान्यवाद और आभार प्रकट कर उन्हे 5000 रूपय की राशि प्रदान करने लगे।
जिससे बीरु और उनके दोस्तो ने नामंज़ूर कर दिया पर बालक के अभिभावक के बहुत ही निवेदन के बाद उन्होने वह राशि ले ली और उनसे विदा लिए। और अगले दिन बीरु और उनके दोस्तो ने वह राशि जिले के सरकारी विद्यालय को दान दे दी जिससे की गरीब छात्रो को मदद की जा सके।