एक राजा बड़ा सरल स्वभाव का था। लोग उसके दरबार मे आते और उसके हितेशी बनते, उसके भले की बात करते और उसके लिए जान देने की कसमे खाते, लोगो की ऐसी श्रद्धा देख कर राजा उन्हे इनाम देता।
इनाम देने की बात पूरे राज्य मे दूर दूर तक पाहुच गई, अब हर चतुर और धूर्त व्यक्ति इसका लाभ लेना चाहता, जिसके चलते अनगिनत लोग राजा के प्रशंसक और शुभचिंतक बनकर दरबार में पहुंचने लगे।
दरबार मे धीरे धीरे भीड़ बढ़ाने लगी, भीड़ को देखकर राजा स्वयं हैरान रहने लगा। एक दिन राजा ने विचार किया कि इतने लोग मेरे सच्चे शुभचिंतक नहीं हो सकते। इनमे से असली और नकली की परख करनी चाहिए।
राजा ने पुरोहित से इस विषय पर परामर्श किया, परामर्श के बाद अगले दिन राजा ने बीमार बनने का बहाना कर लिया और घोषणा करा दी कि 5 व्यक्तियों का रक्त मिलने से ही राजा के बीमारी का इलाज हो सकेगा। बीमारी बहुत भयंकर है कि इसके अतिरिक्त और कोई इलाज नहीं है। इसलिए जो राजा के शुभचिंतक हो अपना प्राणदान देने के लिए उपस्थित हो और वह आकर राजा को रक्त देकर राजा के प्राणो की रक्षा करे।
घोषणा सुनकर राज्य भर में हलचल मच गई। एक से बढ़कर एक अपने को शुभचिंतक बताने वालों में से एक भी दरबार में नहीं पहुंचा। राजा और उसके पुरोहित दो लोग ही दरबार मे बैठे रहते। दोनों दरबार मे बैठे हुए असली नकली की परीक्षा के इस खेल पर आनंद लेने लगे।
पुरोहित ने राजा से कहा – “राजन हमारी ही तरह परमात्मा भी अपने सच्चे झूठे भक्तों की परीक्षा लेता रहता है। परमात्मा का प्रयोजन पूरा करने वाले सच्चे भक्त संसार में नहीं के बराबर दिखते हैं। जबकि उससे कुछ याचना करने वाले स्वार्थीओं की भीड़ सदा ही उस के दरबार में लगी रहती है।”
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