रमेश एक साधारण इंसान था, मगर हाल के दिनों में उसकी जिंदगी में कुछ भी सामान्य नहीं चल रहा था। उसकी जिंदगी में हर दिन तनाव और झगडों ने डेरा जमा लिया था। परिवार के बढ़ते खर्च, रिश्तेदारों का आना-जाना, और जिम्मेदारियों के बोझ की वजह से उसे ऐसा लगने लगा था कि पूरी दुनिया की चिंताएं उसी के कंधों पर आ गई थीं। इससे वह हर वक्त चिड़चिड़ा और क्रोधी हो गया था। बच्चों पर छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा करना और पत्नी से बेवजह झगड़ना अब उसकी दिनचर्या बन चुकी थी।
समय इसी तरह बीत रहा था, लेकिन उसकी परेशानी दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही थी। एक दिन जब वह घर आया, उसका बेटा मनोज होमवर्क कर रहा था। बेटे ने प्यार से कहा, “पापा, क्या आप मेरा स्कूल का होमवर्क करा देंगे?”
रमेश उस दिन पहले से ही बहुत तनाव में था। उसने झट से बेटे को डांट दिया, “तुम्हें दिखता नहीं, मैं काम में कितना व्यस्त हूँ? जाओ, खुद करो अपना काम!”
बेचारा मनोज चुपचाप चला गया। कुछ देर बाद रमेश का गुस्सा थोड़ा शांत हुआ, तो उसे अपनी डांट पर पछतावा हुआ। वह मनोज के कमरे में गया और देखा कि बेटा होमवर्क करते-करते सो गया था। उसका नन्हा हाथ अपनी कॉपी पर ही था। रमेश ने धीरे से कॉपी उठाई, ताकि उसे आराम से सुला सके।
जैसे ही उसने कॉपी उठाई, उसकी नज़र होमवर्क के टाइटल पर पड़ी: “वे चीजें जो हमें शुरू में अच्छी नहीं लगतीं, लेकिन बाद में वे हमें सबसे ज्यादा पसंद आती हैं।”
रमेश को अचानक दिलचस्पी हुई कि मनोज ने इस विषय पर क्या लिखा होगा। उसने कॉपी खोलकर पढ़ना शुरू किया। मनोज ने मासूमियत से लिखा था:
“मैं अपने फाइनल एग्जाम को धन्यवाद देता हूँ, क्योंकि ये शुरू में तो बहुत बुरे लगते हैं, लेकिन इसके बाद हमें लंबी छुट्टियाँ मिलती हैं।”
“मैं उन कड़वी दवाइयों को भी धन्यवाद देता हूँ जो शुरू में तो बहुत बुरी लगती हैं, लेकिन वे मुझे ठीक करती हैं।”
“मैं हर सुबह जगाने वाली अलार्म घड़ी को धन्यवाद देता हूँ, क्योंकि वो मुझे बताती है कि मैं आज भी जिंदा हूँ।”
आखिर में मनोज ने लिखा था:
“मैं ईश्वर को धन्यवाद देता हूँ, जिन्होंने मुझे इतने अच्छे पापा दिए। उनकी डांट शुरू में तो बहुत बुरी लगती है, लेकिन वे मेरे लिए खिलौने लाते हैं, मुझे घुमाने ले जाते हैं और मुझे अच्छी-अच्छी चीजें सिखाते हैं। मुझे इस बात की खुशी है कि मेरे पास पापा हैं, क्योंकि मेरे दोस्त राजू के पापा तो अब इस दुनिया में नहीं हैं।”
मनोज के शब्दों ने रमेश के दिल पर गहरा असर किया। उसकी आंखों में आंसू आ गए। उसे एहसास हुआ कि वह बिना सोचे-समझे अपने परिवार पर गुस्सा निकालता रहा, जबकि वे लोग ही उसके जीवन का आधार थे। खासकर आखिरी लाइन, जिसने उसकी आँखें खोल दीं।
रमेश वहीं बैठकर सोचने लगा, “मैं तो हमेशा शिकायत करता रहा कि घर का सारा खर्चा मुझे उठाना पड़ता है, लेकिन इसका मतलब है कि मेरे पास एक घर है और मैं उन लोगों से बेहतर स्थिति में हूँ जिनके पास घर नहीं है।”
फिर उसने सोचा, “मुझे पूरे परिवार की जिम्मेदारी उठानी पड़ती है, इसका मतलब है कि मेरा परिवार है। मेरे पास प्यारे बच्चे और पत्नी हैं, जो मुझसे प्यार करते हैं। मैं उन लोगों से ज्यादा खुशकिस्मत हूँ जिनके पास परिवार ही नहीं है।”
फिर उसने रिश्तेदारों और दोस्तों के बारे में सोचा जो अक्सर उसके घर आते थे। “मेरे घर पर लोग आते हैं, इसका मतलब है कि मेरी समाज में पहचान है और मेरे पास मेरे सुख-दुःख में साथ देने वाले लोग हैं। यह तो सौभाग्य की बात है।”
और अंत में, उसने अपने खर्चों के बारे में विचार किया। “मैं हमेशा सोचता था कि मुझे बहुत ज्यादा ख़र्च करना पड़ता है, लेकिन इसका मतलब है कि मेरे पास अच्छी नौकरी है, और मैं उन लोगों से बेहतर हूँ जो बेरोजगार हैं।”
उसकी सारी परेशानियाँ एक पल में गायब हो गईं। उसे अहसास हुआ कि असली समस्या उसकी सोच में थी। उसकी परेशानियाँ सिर्फ इसलिए बड़ी लग रही थीं क्योंकि वह उन्हें नकारात्मक नज़रिये से देखता था।
रमेश का दिल भर आया। वह अपने बेटे के पास गया, उसे गोद में उठाया और प्यार से उसके माथे को चूमा। उसने मन ही मन ईश्वर का धन्यवाद किया कि उसने उसे इस वक्त सही राह दिखाई।
रमेश ने अब तय किया कि वह अपने जीवन में सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाएगा। जिन चीजों को वह बोझ समझता था, अब उसने देखा कि वे असल में उसकी खुशियों के स्रोत थे।
कहानी का अंत यहीं नहीं होता। यह रमेश के जीवन की एक नई शुरुआत थी, जहाँ उसने सीखा कि जिंदगी में जो भी चुनौतियाँ और परेशानियाँ आती हैं, वे हमें बेहतर बनाने के लिए होती हैं। जब हम उन्हें सकारात्मक नज़रिये से देखना शुरू कर देते हैं, तो जीवन का हर पहलू सुहाना और खूबसूरत लगने लगता है।