घर के अंदर सुरेखा ने कदम रखा तो उसके पापा-मम्मी में कहासुनी चल रही थी। वह चुपचाप दबे पांव बैठक में आई और अंग्रेजी की किताब खोलकर बैठ गई। पढ़ने के लिए नहीं, बल्कि अपने पापा-मम्मी की बातें सुनने के लिए। क्योंकि वह जानती थी कि रोजमर्रा की तरह यह झगड़ा उसी को लेकर हो रहा है।
थोड़ी देर बाद पापा बड़बड़ाते हुए बाहर निकले और बिना खाना खाए ही दुकान चले गए। यद्यपि सुरेखा की मम्मी उनसे कहती रही कि खाना बन चुका है, बस रोटियां सेकनी बाकी हैं। खाना खाकर जाइए। लेकिन पापा ने एक न सुनी और साइकिल उठाकर गुस्से में चले गए।
मुख्य बाजार में सुरेखा के पापा की एक बड़ी-सी परचून की दुकान थी, जो चार-पांच साल पहले एक बड़ी शान से चलती थी। अच्छी आमदनी के कारण उन्होंने अपना छोटा-सा मकान बनवा लिया था और बड़ी लड़की का विवाह भी कर दिया था। लेकिन उधार का सामान ले जाने वालों के कारण उनकी दुकानदारी ढीली पड़ गई थी। इस कारण वह कुछ चिड़चिड़े हो गए थे।
सुरेखा के पापा पूजा-पाठ वाले व्यक्ति थे। वे अपने बच्चों को बहुत प्यार करते थे। कई बार उन्होंने सुरेखा और संतोष को बैठाकर पढ़ाने का प्रयास किया, किंतु सब बेकार। क्रोध में आकर वे जब दोनों की पिटाई करते थे तो बाद में बहुत दुखी होते थे। उनके आँसू भी आ जाते थे, लेकिन बच्चों को अपने पापा के दुख की कोई चिंता ही नहीं थी। आज भी वह बिना कुछ खाए-पिए ही दुकान चले गए थे।
पापा को सबसे अधिक पीड़ा अपनी ग्यारह वर्ष की बेटी सुरेखा से थी, जो न तो पढ़ाई में रुचि लेती थी और न ही घर के काम में कोई मदद करती थी। उससे दो वर्ष बड़ा भाई संतोष आठवीं कक्षा का विद्यार्थी था। संतोष भी पढ़ाई के प्रति लापरवाह था, लेकिन वह सुरेखा जितना ढीठ नहीं था। सुरेखा की इस आदत से उसकी मम्मी भी दुखी हो जाती थीं।
पापा के चले जाने के बाद माला कमरे से निकली और रसोई में चली गई। पीछे-पीछे सुरेखा भी पहुंच गई। वह बोली- “मम्मी, मुझे खाना दो। बड़े जोर की भूख लग रही है।”
माला ने खाना लगाकर प्लेट सुरेखा की ओर बढ़ा दी लेकिन बोली कुछ नहीं।
सुरेखा ने देखा कि मम्मी का चेहरा कुछ गीला-गीला सा और आँखें लाल हो रही है। उसे लगा कि पापा के जाने के बाद मम्मी कमरे में रोई है। क्षण भर के लिए सुरेखा खुद को अपराधी-सा महसूस करने लगी। वह धीरे-धीरे खाना खाने लगी, लेकिन उसे यह साहस न हुआ कि वह हमेशा की तरह मम्मी से पानी मांगे। खाना खाकर जब सुरेखा अंदर आई तो उसने देखा कि मम्मी डबल बेड पर लेटी हुई टेबल पर रखी सुरेखा की तस्वीर को देखे जा रही है।
यह तस्वीर इस सुरेखा कि नहीं थी, बल्कि इस सुरेखा की बड़ी बहन की थी, जो पांच साल की उम्र में ही भगवान को प्यारी हो गई थी। उसकी मीठी बोली, प्रिय व्यवहार और पढ़ाई के प्रति उसकी लगन की अक्सर उसके मम्मी-पापा तारीफ किया करते थे। वह अपने मम्मी-पापा को इतना प्यार करती थी कि यह सुरेखा कभी सोच भी नहीं सकती थी। उसके फुदक-फुदककर चलने के कारण पापा उसे ‘गौरैया’ कहकर पुकारते थे। अपनी उसी गौरैया की याद को ताजा बनाए रखने के लिए पापा ने इस बेटी का नाम भी सुरेखा रख दिया था। लेकिन यह सुरेखा उसके गुणों के विपरीत थी।
सुरेखा देखती थी कि दीपावली की रात को उसके पापा लक्ष्मी और गणेश के पूजन के बाद गौरैया दीदी की तस्वीर को भी तिलक लगाते, भोग लगाते और आरती उतारते। वही यह भी देखती थी कि जब उसके कारण पापा अधिक दुखी हो जाते थे तो कमरे में गौरैया दीदी की तस्वीर को देर तक देखते रहते थे। मानो आँखों में आँसू भरकर वह कोई प्रार्थना कर रहे हों।
आमदनी कम हो जाने के कारण पापा ने पिछले दो वर्षों से सुरेखा और संतोष का ट्यूशन बंद करवा दिया था और स्वयं ही बच्चों को पढ़ाते थे। अब उन्होंने बच्चों को मारना-पीटना भी बंद कर दिया था।
सुरेखा अपनी मम्मी के पास ही डबल बेड पर लेट गई। एक बार उसने गर्दन घुमाकर अपनी मम्मी की ओर देखा, जो दुखी मन से शायद भूखी ही सो गई थीं। फिर उसने सामने टेबल पर रखी तस्वीर में गौरैया दीदी के फूल से मुस्कुराते हुए चेहरे पर नजर डाली और देखती रही। न जाने कब उसकी आँख लग गई।
अचानक सुरेखा ने देखा कि वह एक सुंदर से बगीचे में अपनी सहेलियों के साथ खेल रही है। सामने से एक बड़ी-बड़ी आँखों, गोल-मटोल गोरे चेहरे वाली एक लड़की आ गई। वह किसी परी देश की राजकुमारी लग रही थी। सुरेखा के पास आकर उस लड़की ने सुरेखा का हाथ पकड़ा और खिलखिलाती हुई उसे गुलाब के फूलों की ओर ले गई। सुरेखा को राजकुमारी की सूरत कुछ जानी-पहचानी-सी लग रही थी।
उसने पूछा, “दीदी, आप कौन हैं और मुझे कहाँ ले जा रही है?”
“अरी पगली, दीदी भी कह रही है और पहचानती भी नहीं। मैं तुम्हारी दीदी हूं- तस्वीर वाली गौरैया दीदी।” कहकर वह सुरेखा के सिर पर प्यार से हाथ फेरने लगी। सुरेखा पर जैसे जादू सा हो गया।
वह अजीब से आनंद के सागर में डूब गई। बड़ी देर तक वह दीदी की गोद में सिर रखे रही फिर बोली, “दीदी, आप कहाँ रहती हो?”
“वैसे तो मैं रहती हूं अपनी देवी माँ के पास, लेकिन आजकल सामने की पहाड़ी पर बने उस छोटे से मकान में मम्मी के साथ रह रही हूं। वे आजकल बहुत बीमार रहती है।” गौरैया ने एक पहाड़ी की ओर इशारा करते हुए फर्राटे के साथ कह दिया।
“मुझे भी अपने साथ वहाँ ले चलो दीदी।”
“नहीं, मैं तुम्हें अपने साथ वहाँ नहीं ले जा सकती।” अचानक गौरैया ने सुरेखा का सिर अपनी गोद से हटाते हुए कहा।
“क्यों?” सुरेखा के स्वर में आश्चर्य था।
“इसलिए कि तुम्हारे ही कारण मम्मी बीमार हुई है और पापा हमेशा दुखी रहते हैं। न तो तुम पढ़ाई में ध्यान लगाती हो और न ही घर का कोई काम-काज करती हो। तुम मम्मी के काम में भी हाथ नहीं बँटाती हो।” बोलते-बोलते गौरैया का गला भर आया।
“आपको यह सब कैसे मालूम?” सुरेखा ने डरते-डरते पूछा।
“मैं तस्वीर में बैठे-बैठे सब देखती रहती हूं। आज भी मैंने देखा कि तुम्हारे कारण पापा बिना खाना खाए दुकान चले गए। उसी दुख में मम्मी बीमार पड़ गई है। मैं उन्हें अपने पास ले आई हूं।”
कुछ देर रुककर गौरैया फिर कहने लगी, “मैं तो तुम्हारे पास आना भी नहीं चाहती थी, लेकिन मम्मी बार-बार तुम्हारा नाम पुकार रही है।” कहते हुए गौरैया ने सुरेखा के रंग बदलते चेहरे पर अपनी कातर दृष्टि गाड़ दी। सुरेखा संकोच, भय, ग्लानि और लज्जा से जैसे जमीन में गड़ी जा रही थी।
सहसा सुरेखा अपने दोनों हाथों में गौरैया का हाथ पकड़कर गिड़गिड़ाते हुए बोली, “दीदी, मुझे अपने साथ ले चलो न, मेरी अच्छी दीदी। दीदी मैं आपकी सौगंध खाकर कहती हूं कि आज से अपनी सारी गंदी आदतें छोड़ दूंगी। बस एक बार मुझे मम्मी के पास ले चलो।”
सुरेखा के बार-बार आग्रह करने पर गौरैया उसे उठाकर पहाड़ी वाले मकान पर ले आई। वहाँ का दृश्य देखकर सुरेखा धक् से रह गई। सामने बिस्तर पर उसकी प्यारी मम्मी चादर ओढ़े लेटी थीं। बिस्तर के दोनों ओर उसकी दीदी व जीजाजी उदास खड़े थे। खिड़की की ओर मुंह किए उसके पापा खड़े अपनी आँखें बार-बार पोंछ रहे थे और कोने में खड़ा संतोष बेहाल होकर रोए जा रहा था।
पास आकर सुरेखा ने देखा कि कमजोरी के कारण उसकी मम्मी की आँखें गड्ढे में धंस गई थीं और उनके आँसू निकल रहे थे। सुरेखा यह सब देखकर अपने को रोक नहीं पाई और बेतहाशा रोने लगी। कोई उसे चुप कराने वाला नहीं था, कोई उससे बात तक नहीं करना चाहता था। वह और जोर-जोर से रोने लगी और बेहोश हो गई।
जब उसकी चेतना लौटी तो उसने देखा कि उसकी मम्मी बड़े प्यार से उसके सिर पर हाथ फिराकर उसे जगा रही थीं। सुरेखा ने बड़ा भयानक सपना देखा था। अपनी आँखें मलते हुए उसने मम्मी की और देखा फिर उनसे लिपटकर फूट-फूटकर रोने लगी। वह कहे जा रही थी, “मम्मी, मेरी प्यारी मम्मी। मुझे क्षमा कर दो। अब मैं आपको व पापा को कभी परेशान नहीं करूंगी। मुझे छोड़कर मत जाना…।” उसे पता ही नहीं चला कि उसके पापा कब दुकान से घर लौट आए थे। वह सुरेखा को गोद में बैठाकर उसे प्यार करने लगे। हिचकियां थमने पर सुरेखा की निगाह कार्निस पर रखी तस्वीर पर गई। तस्वीर उसकी ओर देखकर मुस्कुरा रही थी। लगता था जैसे गौरैया अपने परिवार में फिर वापस आई है।