किसी घर में एक चूहा-चुहिया बिल बनाकर रहते थे। उनका एक बच्चा था पुन्नू। वह बड़ा ही चटोरा था। सादा खाना तो उसे कभी पसंद ही न आता था। जिस दिन घर में कोई पार्टी होती या बाजार से खाना आता तो उसकी खुशबू से पुन्नू की लार टपकने लगती थी। और जब तक वह उस खाने का स्वाद न चख लेता, उसे चैन नहीं मिलता था।
एक बार उस घर में रहने वाली गुड़िया समोसा खा रही थी। उसकी खुशबू से पुन्नू खिंचा चला आया और उसकी कुर्सी के नीचे जमकर बैठ गया। जैसे ही गुड़िया के हाथ से समोसे का एक टुकड़ा नीचे गिरा, पुन्नू अपनी जान पर खेलकर बाहर निकला और उसे लेकर अपने बिल में भाग आया।
पुन्नू को जल्दी-जल्दी समोसा खाता देखकर चुहिया ने कहा, “ये क्या पुन्नू, अभी-अभी तो तुम्हें रोटी खिलाई थी, कुछ देर तक तो पेट को आराम दिया होता, जिससे खाना हजम हो सके।” पर पुन्नू समोसा देखकर कहां सब्र करने वाला था। वह फटाफट उसे चट कर गया।
कुछ देर बाद जब उसे पेट दर्द शुरू हुआ तो वह खूब रोया। फिर उसने फैसला किया कि वह अब कभी खाने का लालच नहीं करेगा। लेकिन कुछ दिन बाद ही जब गुड़िया केक खा रही थी तो उसकी खुशबू से पुन्नू पागल हो उठा और अपना फैसला भूल गया। उसने बिल से निकलकर कमरे के कई चक्कर काटे पर गुड़िया ने उस दिन जरा-सा भी केक नीचे नहीं गिराया। निराश पुन्नू अपने बिल में तो लौट आया पर उसकी केक खाने की इच्छा मरी नहीं।
वह जानता था कि बर्तन साफ करने वाली अगले दिन सुबह आएगी। रात को जब सब सो गए तो वह चुपचाप बिल से निकला और रसोईघर की ओर दौड़ लिया। उसे पूरी आशा थी कि गुड़िया की प्लेट में थोड़ा-सा केक जरूर लगा रह गया होगा। जूठे बर्तन रसोईघर के सिंक में पड़े थे। केक खाने के जोश में पुन्नू सिंक में कूद पड़ा।
पुन्नू को खाने की खुशबू तो आ रही थी, पर हर बर्तन में पानी भरा था इसलिए वह कुछ भी खा नहीं पा रहा था। खाने की खोज में चारों ओर घूमते-घूमते अचानक उसकी नजर ऊपर की तरफ गई। तो वह बुरी तरह घबरा गया क्योंकि सिंक काफी गहरा था और वह इतना छोटा था कि बाहर नहीं निकल पा रहा था।
अब तो पुन्नू खाना भूल गया और बाहर निकलने की कोशिश करने लगा। उसने हर तरह से दीवार पर चढ़ने की कोशिश की, लेकिन चिकनाई के कारण सिंक की दीवारों से वह लगातार फिसलता रहा। उसे डर था कि घर का कोई आदमी न उठ जाए।
आखिर में बुरी तरह थककर पुन्नू सिंक के एक कोने में बैठ गया। वह भीगा था और ठंड से कांप रहा था। वह सोच रहा था कि उसके मम्मी-पापा बिल्कुल ठीक कहते हैं कि लालच करना बुरी बात है।
उधर जब चूहे-चुहिया ने देखा कि पुन्नू गायब है, तो वे दोनों पुन्नू को ढूंढने निकल पड़े। उन्होंने सोफे के पीछे, मेजों और अलमारी के नीचे, संदूको के कोनों में देखा, पर पुन्नू का कोई पता न मिला। वे दोनों परेशान हो गए।
अचानक चूहा बोला, “वह पेटू जरूर रसोईघर में गया होगा। चलो वहीं चल कर देखते हैं।”
जैसे ही वे दोनों रसोईघर में घुसे, उन्हें पुन्नू के रोने की आवाज सुनाई दी। आवाज के सहारे वे सिंक में पहुँचे। अंदर झांककर देखा तो एक कोने में भीगा हुआ पुन्नू बैठा था।
“तुम बिल से निकलकर यहाँ कैसे पहुंच गए?” चुहिया ने पूछा।
पुन्नू बोला, “मुझे माफ कर दो। मैंने तुम्हारी बात नहीं मानी और खाने के लालच में सिंक में कूद पड़ा। मुझे सबक मिल गया है। अब मैं कभी लालच नहीं करूंगा। हमेशा कहना मानूँगा।
चूहा कूदकर पुन्नू के पास जा पहुँचा पर उसे सिंक से बाहर नहीं निकाल पाया। फिर उसने एक तरकीब सोची। वह सिंक से बाहर गया और किसी लंबी चीज की तलाश करने लगा। तभी उसकी नजर पास पड़ी मथानी पर पड़ी। उसने चुहिया के साथ मिलकर धीरे-धीरे मथानी को सिंक की ओर खिसकाया। फिर उसे सिंक में हल्के से डाल दिया। मथानी टेढ़ी होकर सिंक में रखे पतीले से जा लगी। और उसका दूसरा सिरा सिंक के बाहर की ओर दिखने लगा। चूहे ने पुन्नू से कहा कि वह धीरे-धीरे उस पर चढ़कर बाहर आ जाए।
पहले तो पुन्नू थोड़ा डरा, पर फिर हिम्मत करके मथानी पर चढ़ने लगा। धीरे-धीरे चढ़ते हुए वह सिंह से बाहर आ गया। फिर रोते-रोते चुहिया से लिपट गया। उसने वादा किया कि अब वह सचमुच कभी लालच नहीं करेगा।