Holika kab ki Hai : भारत में साल भर अलग-अलग जगहों पर कोई ना कोई तीज-त्योहार जरूर मनाए जाते हैं। क्योंकि यहां पर कई संस्कृतियाँ मिलकर एक देश का निर्माण करती हैं। लेकिन होली का अपना एक विशेष स्थान है। बसंत के महीने के बाद से ही लोग होली के इंतजार में रहने लगते हैं। होली 2 दिन का त्यौहार है, फागुन के अंतिम दिन यानी पूर्णमासी के दिन होली जलाई जाती है और अगले दिन चैत्र महीने की प्रतिपदा को होली खेली जाती है। होली बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।
पुराने समय में होलिका दहन बड़े ही उल्लास के साथ मनाया जाता था लेकिन दुख की बात यह है कि अब यह अपने पतन की ओर जा रहा है। कभी एक जमाने में 2 दिनों तक इसकी धूम रहती थी वही अब होलिका दहन को लेकर लोगों के अंदर बहुत कम रूचि होती है। पहले फगुआ होता था, यानि रोग रंग भरे गाने गया करते थे, मंदिरो और गाँव के चौपालों मे। लेकिन अब बड़े और युवा लोग भी होलिका को लेकर नीरस हो गए हैं। आज हम इस लेख के माध्यम से जानेंगे कि होलिका दहन कब है तथा होलिका कौन है, इसके अलावा हम यह भी जानेंगे कि होलिका में किस प्रकार की लकड़ियों को जलाना चाहिए।
होलिका दहन कब है | Holika kab ki Hai
दोस्तों होलिका दहन फागुन के शुक्ल पक्ष पूर्णिमा के दिन जलाई जाती है। लेकिन अब भारत में लोग अंग्रेजी कैलेंडर के आदी हो गए हैं इसलिए लोगों को हिंदी महीने और दिन के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है तो हम अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से बताए तो सन 2023 में 7 मार्च 2023 को होलिका दहन की जाएगी।
होलिका दहन 7 मार्च को शाम के वक्त 6:24 से लेकर 8:51 तक किया जा सकता है। ध्यान रखें की होलिका दहन के लिए शुभ मुहूर्त सिर्फ 2 घंटे 27 मिनट का ही है।
होलिका दहन में कौनसी लकड़ी इस्तेमाल करे।
होलिका दहन के पहले होलिका का निर्माण किया जाता है होलीका सूखे पेड़ की लकड़ियों से बनाई जाती है, जिसे शुभ मुहूर्त पर जलाया जाता है। लेकिन अक्सर लोग गलती से होलिका दहन में ऐसी लकड़ियों का इस्तेमाल करते हैं जिन्हें इस्तेमाल करना वर्जित है। तब प्रश्न यह उठता है कि ऐसी कौन सी लकड़ियां है या चीज है जिन्हें हम होलिका दहन में इस्तेमाल कर सकते हैं।
- गूलर के पेड़ की लकड़ियों का इस्तेमाल किया जा सकता है
- अरंड के पेड़ की लकड़ियों का इस्तेमाल किया जा सकता है
- बबूल के पेड़ की लकड़ियां का इस्तेमाल किया जा सकता है
- ऐसे पेड़ जो फल नहीं देते और सूख गए हैं ऐसे पेड़ों की लकड़ियां भी होलिका दहन में इस्तेमाल किया जा सकता है।
- गाय के गोबर से बने कंडो को होलिका के लिए बहुत ही शुभ माना जाता है तथा ऐसी मान्यता है कि कंडो के इस्तेमाल से आसपास का वातावरण भी साफ हो जाता है।
होलिका दहन में किन पेड़ों की लकड़ियों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए
होलिका दहन के कौनसी लकड़ियों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए, उसके बारे में हम नीचे बताने जा रहे हैं अक्सर लोग गलती से ऐसे पेड़ों के लकड़ियों का इस्तेमाल कर लेते हैं जिनके इस्तेमाल को होलिका दहन में वर्जित माना गया है तो आइए जानते हैं ऐसे कौन से पेड़ हैं जिन्हें होलिका बनाते समय इस्तेमाल नहीं करना चाहिए
- शमी के पेड़ की लकड़ी
- आम के पेड़ की लकड़ी
- आंवले के पेड़ की लकड़ी
- पीपल के पेड़ की लकड़ी
- अशोक के पेड़ की लकड़ी
- नीम के पेड़ की लकड़ी
- केले की तने
- बेल के पेड़ की लकड़ीया
- बरगद के पेड़ की लकड़ियां
- पपीते के पेड़ की लकड़ियां
- शीशम के पेड़ की लकड़ियां
- चंदन के पेड़ की लकड़ी या
- पारिजात के पेड़ की लकड़ियां
ऊपर दिए इन पेड़ों के लकड़ियों का इस्तेमाल होलिका दहन में वर्जित माना गया है इसलिए भूल कर भी होलिका बनाते समय या होलिका दहन के समय इन पेड़ों की लकड़ियों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
होलिका की प्रेम कहानी | holika kaun hai
हिमाचल की लोक कथाओं में होलिका से जुड़ी हुई की कुछ ऐसी कहानियां मिलती हैं जिन्हें शायद बहुत कम ही लोग जानते हैं। होलीका राक्षस कुल के राजा हिरण्यकश्यप की बहन थी। हिरण्यकश्यप की बहन होलिका भगवान अग्नि देव की उपासना करती थी और अग्निदेव उनकी उपासना से प्रसन्न होकर उन्हें एक ऐसा वस्त्र दिया था, जिसे धारण करने के बाद होलिका को अग्नि का तेज जला नहीं सकता था। इसलिए होलिका जब उस वस्त्र को धारण करके अग्नि में बैठती थी तो अग्नि की तेज लपटे होलिका का कुछ बिगाड़ नहीं पाती थी।
यह बात हिरण्यकश्यप को पता चली तो उसने होलिका को कहा की वह प्रहलाद को अपनी गोद पर बैठाकर अग्नि में भस्म कर दे। होलिका ने अपने भाई के इस आदेश का पालन किया और अपने प्यारे भतीजे प्रहलाद को अपनी गोद में बैठाकर अग्नि कुंड में बैठ गई, लेकिन भगवान की इच्छा से तेज हवा चलने लगी और यह हवा कितनी तेज चल रही थी कि होलिका ने जिस जादुई वस्त्रो को अपने शरीर में ओढ़ रखा था, वह जादुई वस्त्र हवा में उड़ कर होलिका से हट गया और प्रहलाद को उन वस्त्रों ने ढक लिया। जिसकी वजह से प्रहलाद तो बच गए लेकिन होलिका अग्नि में भस्म हो गई।
लेकिन होलिका अग्नि में क्यों बैठी इसके बारे में बहुत ही कम लोगों को जानकारी है। वास्तव में होलीका इलोजी नाम के एक राजकुमार से प्यार करती थी। और फागुन महीने की शुक्ल पक्ष के पूर्णमासी के दिन इलोजी बरात लेकर होलिका के घर आ रहा था, उसी समय हिरण्यकश्यप ने होलिका को धमकाया कि अगर वह उसकी बात नहीं मानेगा तो वह उन दोनों की शादी नहीं होने देगा और इलोजी को प्राण दंड दे देगा। तब होलिका अपने भाई के दबाव में आकर और प्रेमी के प्राणो की रक्षा के लिए अपने प्यारे भतीजे को लेकर अग्निकुंड पर बैठ गई।
लेकिन बड़ी ही चतुरता से उसने उस वरदान से मिले जादुई वस्त्र को अपने भतीजे को पहना दिया और खुद अग्नि में भस्म हो गई। इस तरह से हिमाचल के लोग होलिका को एक शुद्ध आत्मा वाली नारी के रूप में देखते हैं जो कि अपने भाई के दबाव में आकर अग्नि कुंड में बैठी थी, लेकिन अपने भतीजे की रक्षा करके स्वयं को अग्नि में भस्म कर लिया।
प्रेग्नेंसी मे होलिका की अग्नि नहीं देखनी चाहिए
जो महिलाए गर्भवती होती हैं उन्हे होलिका की अग्नि की परिक्रमा नहीं करनी चाहिए तथा होलिका की अग्नि को देखना भी नहीं चाहिए। ऐसा मान्यता हैं की गर्भ मे पल रहे शिशु के लिए होलिका की अग्नि का प्रभाव गलत पड़ता हैं। होने वाले उस शिशु के जीवन मे नकारात्मक प्रभाव पड़ते हैं।
होलिका की रख मिटा सकती हैं गरीबी
ऐसा माना जाता हैं की होलिका जलने के बाद बची हुई राख बेहद पवित्र होती हैं। जिसे घर मे लाने से घर के ऊपर से राहू और केतू के बुरी नजर को उतारा जा सकता हैं और घर मे नकारात्मक ऊर्जा और बीमारिया कभी नहीं आती हैं। इसके अलावा होलिका की सात चुटकी राख़ लाकर घर मे लाल रंग के कपड़े मे बांधने से घर मे बुरी नजर नहीं लगती हैं।
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मेरा नाम अनुज है और मैं सतना जिले का रहने वाला हूं हम लोग बचपन में होलिका दहन में बहुत उत्साह के साथ इसे बनाया करते थे सबसे पहले हम लोग होलिका दहन के एक महीना पहले से होलिका तैयार करने लगते थे। जहां पर भी हमें सूखे पेड़ दिखते वहां से हम छोटी-छोटी डालियां तोड़ लिया करते थे और गाय का गोबर मिलता तो उससे उपले बनाया करते जिससे कि होलिका में उन कंडो को रखा जा सके। फिर होलिका के दिन हम लोग होलिका के आसपास साज सज्जा करते थे और शाम को 8:00 बजे से वीसीआर और टीवी लाकर कोई धार्मिक फिल्म देखा करते थे और रात को 12:00 बजे होलिका दहन करके पूजा-पाठ नारियल फोड़कर एक दूसरे को रंग गुलाल लगाते थे इसके बाद सभी लोग होलिका की राख और अंगारों को अपने घर ले जाया करते थे अगले दिन सुबह उठते ही होलिका का प्रसाद पूरे मोहल्ले में बांटा जाता था और जब प्रसाद बढ़ जाता था तो फिर होली खेली जाती थी और क्या होली खेलते थे आज तो उसके मुकाबले कोई होली ही नहीं खेलता है। आपका यह लेख पढ़कर हमें अपनी पुरानी यादें ताजा हो गई। आपकी लेख की वजह से हमें पता चला होलिका कब है मैं फिर से दोहरा देता हूं कि होली का 7 मार्च को जलाई जाएगी। होली का हिरण कश्यप की बहन थी जैसा कि आपने ऊपर बताया है।
होलिका कब हैं, प्लीज मुझे कमेन्ट करके बताइये? आपने होलिका की अच्छी रोचक कहानी बताई हैं, पहले मुझे होलिका के बारे मे ज्यादा नहीं पता था? लेकिन अब पता चल गया हैं की होलिका कौन थी?
धन्यवाद अनुज जी आपका कमेन्ट हमारे लिए बहुत ही महत्वपूर्ण हैं।