Sawan Mahina : हिंदू धर्म के अनुसार सावन के पुण्य महीने में भगवान शंकर की विशेष पूजा एवं अर्चना की जाती है। यह महीना पूरी तरीके से भगवान शिव को समर्पित होता है। सनातन धर्म को मानने वाले लोग सावन के महीने में देवों के देव भगवान भोलेनाथ की उपासना करते हैं और भगवान भोलेनाथ का जल अभिषेक कराते हैं। सावन के महीने में भगवान शंकर की जो भी व्यक्ति सच्ची श्रद्धा के साथ पूजन करता है एवं भगवान शंकर की उपासना करता है, उसके सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। भगवान शिव से विशेष प्रेम रखने वाले भक्त सावन के महीने में कांवड़ लेकर जाते हैं। यह कावड़ यात्रा 1 माह तक चलता है। शिव पुराण ने बताया गया है की सावन के इस पुण्य महीने में भगवान शंकर माता पार्वती जी के साथ धरती में निवास करते हैं।
लेकिन बहुत से लोग सावन के पवित्र महीने के पीछे की कथा जानना चाहते हैं कि आखिर सावन के महीने में भगवान शंकर की पूजा क्यों की जाती है और यह महीना भगवान शंकर को क्यों इतना ज्यादा पसंद है। तो भक्तों आज इस पोस्ट के माध्यम से हम जानेंगे कि क्यों सावन के महीने में भगवान शंकर की पूजा एवं अर्चना की जाती है तथा सावन के महीने का और भगवान शंकर का क्या संबंध है तो आइए प्रारंभ करते हैं
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सावन के महीने में भगवान शंकर ने किया था विषपान
प्राचीन कथा अनुसार जब सागर मंथन हो रहा था तो यह सागर मंथन सावन के पवित्र महीने में हो रहा था। इस मंथन से विष निकला जिसकी वजह से हर तरफ हाहाकार और तबाही मच गई। इस जगत में रहने वाला हर प्राणी विष से निकलने वाले तत्व से पीड़ित हो रहा था। तब भगवान शंकर पूरी सृष्टि को बचाने के लिए समुद्र मंथन से निकले हुए हलाहल विष को अपने गले में धारण कर लिया। हलाहल विष को गले में धारण करने की वजह से भगवान शंकर का गला नीला पड़ गया इसीलिए भगवान शंकर को नीलकंठ भी कहते हैं, भगवान शंकर पर विष का प्रभाव ना हो इसके लिए सभी देवी एवं देवताओं ने भगवान शंकर को जल अर्पित किया, इस जल अर्पण से भगवान शंकर को राहत मिली तथा उन्हें प्रसन्नता हुई। तभी से प्रतिवर्ष सावन के महीने में भगवान शंकर को जल अर्पित करने का या उन्हें जल अभिषेक करने का प्रचलन प्रारंभ हो गया।
सावन के महीने में ही भगवान शंकर और पार्वती जी की मुलाकात हुई थी
माता सती पर्वतराज हिमालय के घर में पार्वती के रूप में दूसरा जन्म लिया था तथा शिव जी को अपने पति के रूप में पाने के लिए जगदंबा माता पार्वती ने सावन के महीने में कठोर व्रत का पालन किया था। भगवान शंकर माता पार्वती के व्रत एवं तपस्या से प्रसन्न हुए थे और सावन के महीने में ही माता पार्वती जी और भगवान शंकर जी का विवाह हुआ था।
सावन के महीने में ही भगवान शंकर अपने ससुराल में आते हैं
सावन के महीने में भगवान शंकर अपने ससुराल आते थे जहां पर उनके स्वागत के रूप में उनका अभिषेक करके धूमधाम से उनका स्वागत उत्सव मनाया जाता था, इसलिए भी सावन के महीने में भगवान शंकर के अभिषेक की प्रथा प्रारंभ हुई। सावन के पूरे महीने भगवान शंकर माता पार्वती जी के साथ धरती लोक में ही निवास करते हैं।
सावन का पहला सोमवार कब पड़ रहा है?
2022 में सावन का महीना 14 जुलाई 2022 से प्रारंभ होगा तथा 12 अगस्त को पूर्णमासी के साथ सावन का महीना समाप्त हो जाएगा। सावन का पहला दिन 14 जुलाई को है इस दिन गुरुवार का दिन पड़ेगा तथा सावन का पहला सोमवार 18 जुलाई 2022 को पड़ेगा। इसके अलावा सावन के पूरे महीने में चार सोमवार आएंगे पहला सोमवार 18 जुलाई को, दूसरा सोमवार 25 जुलाई को, तीसरा सोमवार 1 अगस्त को तथा अंतिम सावन सोमवार 8 अगस्त को होगा।
सावन सोमवार कब से हैं 2022?
जैसा कि हमने ऊपर पूछे गए प्रश्न के उत्तर में बताया है की 2022 में सावन का पहला सोमवार 18 जुलाई को पड़ रहा है, इसके साथ ही सावन के पहले सोमवार पर मौना पंचमी नाम का त्यौहार मनाया जाएगा, यह त्यौहार बिहार में मुख्य रूप से मनाया जाता है। इस दिन भगवान शंकर की दक्षिणामूर्ति की पूजा की जाती है तथा नाग देवता के भी आराधना की जाती है, मौना पंचमी नाम के इस व्रत में भक्त मौन रहकर भगवान भोलेनाथ की पूजा करता है।
सावन के महीने में कितने सोमवार हैं?
2022 में पड़ने वाले सावन के महीने में कुल चार सावन सोमवार व्रत आएंगे।
- पहला सोमवार 18 जुलाई को है
- दूसरा सोमवार 25 जुलाई को है
- तीसरा सोमवार 1 अगस्त को है
- चौथा सोमवार 8 अगस्त को है
इस प्रकार सावन के महीने में कुल 4 सावन सोमवार आएंगे।
सावन सोमवार के दिन कड़ी क्यों नहीं बनाई जाती है?
मान्यता है कि सावन के महीने में दही से संबंधित एवं दही से बने हुए खाद्य पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए। कड़ी को बनाने के लिए दही एवं मट्ठे का इस्तेमाल किया जाता है, इसलिए सावन के महीने में भूलकर भी कड़ी का सेवन नहीं करना चाहिए।
श्रवण मास में क्या क्या नहीं खाना चाहिए?
सावन के महीने को श्रावण मास भी कहा जाता है, वैज्ञानिक दृष्टि से एवं धार्मिक दृष्टि से सावन के महीने में पालक, मेथी, लाल-भाजी, बथुआ, पत्ता-गोभी, बैगन जैसी सब्जियां नहीं खानी चाहिए क्योंकि सावन का महीना बारिश का महीना होता है। इसलिए हरी सब्जियों में एवं पत्तेदार सब्जियों में कीड़े मकोड़ों की अधिकता ज्यादा होती है तथा इन कीड़ों के अंडे पत्तियों एवं सब्जियों में चिपके रहते हैं। इसलिए सावन के महीने में पत्तेदार सब्जियों को खाने से बचना चाहिए
सावन के महीने में कौन से कार्य नहीं करने चाहिए?
- सावन महीने के सोमवार के दिन उत्तर, पूर्व और आग्नेय दिशा में यात्रा नहीं करनी चाहिए
- सावन सोमवार के दिन सफेद वस्त्र और दूध का दान नहीं करना चाहिए
- सावन सोमवार के दिन शक्कर का त्याग करना चाहिए, यानी शक्कर को खाने से बचना चाहिए
- अगर किसी को चंद्रमा प्रताड़ित कर रहा है, तो रात को दूध या पानी से भरा बर्तन सिरहाने में रख कर सो जाएं और सुबह पीपल के पेड़ में डाल दें।
सावन के महीने में कौन से कार्य कर सकते हैं?
- सावन के महीने में सिर पर भस्म का तिलक लगाना चाहिए
- सावन सोमवार के दिन व्यापार में निवेश करने के लिए अच्छा दिन माना जाता है
- सावन के महीने में अगर आप चांदी खरीदना चाहते हैं तो यह एक उत्तम विचार साबित होगा
- सावन सोमवार के दिन गृह निर्माण का शुभारंभ बहुत ही अच्छा माना जाता है
- सावन सोमवार के दिन राजा का राज्य अभिषेक या फिर नौकरी ज्वाइन करने के लिए बहुत ही शुभ माना जाता है।
क्या सोमवार के व्रत में नमक खा सकते हैं?
सोमवार के व्रत में जब भी आप प्रसाद ग्रहण करें तो यह ध्यान रखें कि उस प्रसाद में नमक ना हो और अगर नमक के बिना प्रसाद ग्रहण करने में आपको दिक्कत होती है तो प्रसाद में सेंधा नमक का इस्तेमाल करें। सेंधा नमक पहाड़ों से निकाला जाता है इसलिए वह पूर्ण रुप से प्राकृतिक है, जबकि घर में इस्तेमाल होने वाला आम नमक फ़ैक्टरियों मे बनाया जाता है, जिस में और भी कई तत्व अलग से मिलाए जाते हैं। इसीलिए आप नमक को व्रत के लिए इस्तेमाल ना करें और अगर नमक के बिना आपका काम ना चले तो व्रत के लिए विशेष नमक बाजार में मिल जाता है, जिसे सेंधा नमक कहते हैं।
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सोमवार के व्रत कितने करने चाहिए?
भगवान शंकर को यदि आप प्रसन्न करना चाहते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते हैं तो सोमवार का व्रत सावन के महीने से प्रारंभ करके लगातार 16 सोमवार व्रत रखने से भगवान भक्तों पर प्रसन्न होते हैं तथा उस पर अपनी कृपा दृष्टि बरसाते हैं।
सावन सोमवार की व्रत कथा क्या हैं? (Sawan Somvar Vrat Katha)
एक नगर मे एक साहूकार रहता था, वह भगवान शिव का बड़ा भक्त था। उस साहूकार के पास धन-दौलत की कोई कमी नहीं थी। लेकिन उस साहूकार की कोई संतान नहीं थी, जिसको लेकर वह हमेशा चिंतित रहता था। वह संतान की कामना से प्रतिदिन शिवजी के मंदिर जाकर पूजा -अर्चना किया करता तथा दीपक जलाता था। साहूकार के इस प्रकार के भक्तिभाव को देखकर एक दिन माता भगवती ने भगवान भोलेभंडारी जी से कहा कि प्रभु यह साहूकार दिन रात आपका चिंतन करता हैं और इससे बड़ा आपका कोई दूसरा भक्त मनुष्य रूप मे इसके बराबर भी नहीं हैं। इसलिए आपको इस साहूकार के कष्टो को दूर करना चाहिए और इसके संताप को हरना चाहिए। माता पार्वती की बात को सुन कर शिवजी बोले कि हे पार्वती ब्रम्हा जी ने इस साहूकार के भाग्य मे कोई पुत्र नहीं लिखा हैं, और इसलिए वह दु:खी रहता है।
लेकिन माता पार्वती उस साहूकार के भक्ति एवं समाज मे प्रति उसके सेवाभाव को देख कर उसके प्रति सहनभूति का भाव उत्पन्न हो जाता हैं, इस लिए माता पार्वती भगवान शिव से जिद्द करते हुये निवेदन करती हैं की उस साहूकार को दुख से दूर करे और उसकी संतान प्राप्ति की इच्छा को पूरा करे।
भगवान शिव ने कहा की साहूकार के भाग्य मे संतान का सुख नहीं लिखा हुआ हैं, इसलिए भाग्य लिखने वाले की लिखो का काटना उचित नहीं हैं। लेकिन तुम्हारी इच्छा हैं और बिधता के लिखे का मान भी रखना हैं इसलिए साहूकार को संतान की प्राप्ति जरूर होगी लेकिन वह सिर्फ 12 वर्ष ही जीवित रह पाएगा। साहूकार को संतान सुख भी मिल जाएगा और तुम्हारा निवेदन भी पूर्ण हो जाएगा, तथा 12वे वर्ष साहूकार का संतान मृत्यु को प्राप्त हो जाएगा, जिससे विधाता का लिखा हुआ भी सही साबित होगा, हे पार्वती क्या तुम्हें ये स्वीकार्य हैं?
माता पार्वती जी ने तुरंत अपनी सहमति दे दी और भगवान ने साहूकार को पुत्र प्राति का वरदान दे दिया। 1 वर्ष बाद साहूकार को पुत्र की प्राप्ति हुई, साहूकार ने पूरे नगर मे भोज का आयोजन किया था। वह बहुत खुश था, अब वह भगवान शिव की और भक्ति करने लगा। एक रात को साहूकार को स्वप्न हुआ की उसके पुत्र की 12वर्ष आयु पूर्ण होते ही मृत्यु हो जाएगी। यह सपने उसे कई रातो को आने लगे। उसने इन सपनों के बारे मे किसी को नहीं बताया, एक बार जंगल मे कुछ जड़ीबूटी की तलाश मे साहूकार भटक रहा था, तभी उसे वहाँ पर साधू के रूप मे नारद जी मिले, उन्होने भी साहूकार को उसके सपने के बारे मे बताया तथा यह भी बताया की यह सपने व्यर्थ मे नहीं आ रहे हैं बल्कि सच मे उसके पुत्र की आयु मात्र 12 वर्ष की हैं। तब साहूकार ने साधू के वेश मे आए नारद जी से पूछा – हे प्रभु किस उपाय को करने से मेरे पुत्र की आयु बढ़ सकती हैं। तब साधू ने कहा की तुम्हें और तुम्हारी धर्म पत्नी को सोम वार का व्रत रखना चाहिए और उस व्रत का संकल्प 21 वर्ष का रखो तथा फल के रूप मे पुत्र का दीर्घ आयु होने का मन मे संकल्प कर भगवान से व्रत के समय निवेदन करो।
तथा पुत्र को भी 9 वर्ष होने के बाद सावन के सोमवार का व्रत कराना प्रारम्भ करा दो। साहू कार ने बिलकुल वैसा ही किया जैसा जंगल मे मिले साधू ने कहा था। साहूकार पत्नी समेत सावन के सोमवार से हर हफ्ते सोमवार का व्रत रखने लगा, तथा सोमवार के दिन भगवान शिव का ध्यान करता तथा उनकी कटाये सुनता था। पुत्र जब 9 वर्ष का हुआ तो उसे भी सावन के महीने से सोमवार का व्रत करवाना प्रारम्भ करवा दिया था। बालक जब 11 वर्ष का हुआ था सेठ ने उसे शिक्षा ग्रहण करने के लिए मामा के साथ काशी भेज दिया। अब साहूकार का पुत्र और उसका मामा काशी जी के लिए निकल पड़े, रास्ते मे उन्हे खाने के लिए राशन के साथ-साथ यज्ञ करने के लिए भी समान भी दिया गया था, इस लिए दोनों मामा-भांजे जहां भी रुकते, प्रातः होने पर वहाँ यज्ञ एवं पूजा पाठ करते, तथा साथ लाये राशन से भोजन पका कर खुद भी खाते तथा यज्ञ मे भाग लेने वाले लोगो को भी भोजन कराते।
रास्ते मे एक नगर पड़ा, जहां वो रुक गए, उस नगर के राजा की बेटी की शादी होने वाली थी, लेकिन जिस लड़के से शादी होने वाली थी वह लंगड़ा था, दूल्हे के पिता ने साहूकार के लड़के को देखा तो उसने उस लड़को को दूल्हा बनाकर मंडप मे बैठा दिया, जिससे दूल्हे के लंगड़े होने की बात किसी को पता न चले, दुल्हन के विदा होने के बाद भी यह राज नहीं खुलेगा क्योंकि दूल्हे को पता था का साहूकार का लड़का तो राहगीर हैं, बारात के बाद वो भी अपने रास्ते चला जाएगा। लेकिन साहूकार का लड़का ईमानदार था, और नकली दूल्हा नहीं बनना चाहता था, लेकिन दूल्हे के पिता ने ज़ोर जबर करके उसे नकली दूल्हा बना ही लिया, लेकिन फेरे के वक्त लड़के ने एक चिट्ठी दुल्हन को दे दिया। रात को दुल्हन ने जब वह चिट्ठी पढ़ी तो उसने सारा किस्सा अपने पिता को बता दिया।
इधर दूल्हे के पिता के डर से साहूकार का लड़का और उसका मामा पहले ही नगर छोड़ चुके थे। दुल्हन के पिता को जब सच्चाई पता चली तो उसने बारात को वापस लौटा दिया।
इधर साहूकार का लड़का काशी पाहुच कर अपनी पढ़ाई लिखाई करने लगा। लड़का सावन के महीने की पहली ही सोमवार को 12 वर्ष का हो गया, उस दिन उसने व्रत रखा हुआ था। और जैसे ही उसने प्रसाद ग्रहण करने के लिए आगे बढ़ा, तो उसके प्राण निकल गए। मामा को जब यहा पता चला तो वह बहुत परेशान हुए लेकिन सोचा कि अभी रोना-पीटना मचाया तो ब्राह्मण चले जाएंगे और यज्ञ का कार्य अधूरा रह जाएगा। जब यज्ञ संपन्न हुआ तो मामा ने रोना-पीटना शुरू किया। उसी समय शिव-पार्वती उधर से जा रहे थे तो माता पार्वती ने शिवजी से पूछा हे प्रभु ये कौन रो रहा है? तभी उन्हें पता चलता है कि यह तो भोलेनाथ के आर्शीवाद से जन्मा साहूकार का पुत्र है।
तब माता पार्वती कहती हैं कि हे स्वामी इसे जीवित कर दें अन्यथा रोते-रोते इसके माता-पिता के प्राण निकल जाएंगे। तब भोलेनाथ ने कहा कि हे पार्वती इसकी आयु इतनी ही थी सो वह भोग चुका। लेकिन मां के बार-बार आग्रह करने पर भोलेनाथ ने उसे जीवित कर दिया। लड़का ओम नम: शिवाय करते हुए जी उठा और मामा-भांजे दोनों ने ईश्वर को धन्यवाद दिया और अपनी नगरी की ओर लौटे। रास्ते में वही नगर पड़ा और राजकुमारी ने उन्हें पहचान लिया तब राजा ने राजकुमारी को साहूकार के बेटे के साथ बहुत सारे धन-धान्य के साथ विदा किया।
उधर साहूकार और उसकी पत्नी छत पर बैठे थे। उन्होंने यह प्रण कर रखा था कि यदि उनका पुत्र सकुशल न लौटा तो वह छत से कूदकर अपने प्राण त्याग देंगे। तभी लड़के के मामा ने आकर साहूकार के बेटे और बहू के आने का समाचार सुनाया लेकिन वे नहीं मानें तो मामा ने शपथ पूर्वक कहा तब तो दोनों को विश्वास हो गया और दोनों ने अपने बेटे-बहू का स्वागत किया। उसी रात साहूकार को स्वप्न ने शिवजी ने दर्शन दिया और कहा कि तुम्हारे पूजन से मैं प्रसन्न हुआ। इसी प्रकार जो भी व्यक्ति इस कथा को पढ़ेगा या सुनेगा उसके समस्त दु:ख दूर हो जाएंगे और मनोवांछित सभी कामनाओं की पूर्ति होगी।
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सोमवार व्रत की आरती – (Sawan somvaar Aarti)
जय शिव ओंकारा, ॐ जय शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा ॥
ॐ जय शिव ओंकारा
एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।
हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे ॥
ॐ जय शिव ओंकारा
दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे ।
त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे ॥
ॐ जय शिव ओंकारा
अक्षमाला वनमाला मुण्डमाला धारी ।
त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी ॥
ॐ जय शिव ओंकारा
श्वेतांबर पीतांबर बाघंबर अंगे ।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥
ॐ जय शिव ओंकारा
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूलधारी ।
सुखकारी दुखहारी जगपालन कारी ॥
ॐ जय शिव ओंकारा
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर में शोभित ये तीनों एका ॥
ॐ जय शिव ओंकारा
लक्ष्मी व सावित्री पार्वती संगा ।
पार्वती अर्द्धांगी, शिवलहरी गंगा ॥
ॐ जय शिव ओंकारा
जटा में गंग बहती है, गल मुण्डन माला ।
शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला ॥
ॐ जय शिव ओंकारा
काशी में विराजे विश्वनाथ, नंदी ब्रह्मचारी ।
नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी ॥
ॐ जय शिव ओंकारा
त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोइ नर गावे ।
कहत शिवानंद स्वामी सुख संपति पावे ॥
ॐ जय शिव ओंकारा।
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