सुबह का समय था, अकबर अपने बगीचे मे टहल रहे थे। अचानक उन्हे शोर सुनाई दिया तो अकबर को लगा, यह शोर कैसे हो रहा हैं। तब वह खुद पास जाकर देखा तो लोग चिल्ला रहे थे की बीरबल को सजा दो, यह अन्यायी हैं, यह गलत हैं, इसे सजा मिलनी चाहिए। इस तरह के नारे लगा कर चिल्ला रहे थे।
बादशाह बड़ी मुस्किल में पड़ गए, बीरबल उन्हे बहुत प्रिय था। लेकिन भारी जनमत बीरबल कि सजा कि माग कर रही थी। बादशाह बहुत दुखी होकर बीरबल को फासी कि सजा सुना दी। वह दिन भी निश्चित हो गया, जिस दिन बीरबल को फासी दी जानी थी। फासी मे चढ़ाने से पहले हर किसी कि अंतिम इच्छा पूछी जाती हैं। बीरबल से भी उसकी अंतिम इच्छा पूछी गई।
बीरबल से अकबर ने कहा – बीरबल तुम्हारी अंतिम इच्छा क्या है? बेझिझक बोलो तुम्हारी इच्छा पूरी होगी।
‘हुजूर मेरी एक ही इच्छा हैं कि मैंने आप को सब कुछ सिखा दिया सिवाय मोती बोना नहीं सिखा सका बीरबल ने कहा ।”
अकबर चौक कर बोला, “सच, क्या तुम्हे मोती बोना आता हैं? फिर ठीक है अब तुम जब तक मुझे यह कला सिखा ना दो तब तक तुम जीवित रहोगे।
दूसरे दिन सभी दरबार मे उपस्थित हुए । ओस की बूंदें जौ के पौधों पर मोती की तरह चमक रही थीं। बीरबल ने कहा, “जो व्यक्ती एक दम से दूध जैसे धूला होगा, जिसने अपने जीवन मे कभी भी कोई पाप नहीं किया होगा, किसी का दिल ना दुखाया होगा। वही व्यक्ती यह मोती को काट सकता हैं। अन्यथा नहीं अगर कोई पापी इसे काटने कि कोशिश करेगा तो यह मोती पानी बन जाएगी।
किसी कि इतनी हिम्मत ना हुई कि वह आगे आ सके। अकबर को बीरबल कि बातो का सार समझ आ गया। उन्होने बीरबल को रिहा कर दिया। सार यह है कि किसी को दंडित करने से पूर्व उसके दोषी या निर्दोष होने के बारे में भलीभांति जांच कर लेनी चाहिए।