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नेपोलियन कौन था और पतन के कारण | nepoliyan kon tha

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नेपोलियन बोनापार्ट का इतिहास | nepoliyan kon tha

15 अगस्‍त 1769 ई. में कोर्सिका के एक साधारण वंश में नेपोलियन बोनापार्ट का जन्‍म हुआ था। इसके जन्‍म से कुछ पहले ही कोर्सिका फ्रांसीसियों के अधिकार में चला गया था। अत: वह जन्‍म से ही फ्रांसीसी हो गया। बचपन से ही उसे गणित, इतिहास तथा सैनिक विद्या सीखने का चाव था और वह एक महानव्‍यक्ति बनने के स्‍वप्‍न देखा करता था। फ्रांस की क्रांति के कारण उसको अपनी महत्‍वाकांक्षा पूर्ण करने का अवसर प्राप्‍त हो गया और अपने चरित्र सम्‍बंधी गुणों के कारण एक दिन वह फांस का शासक बन बैठा। नेपोलियन की उत्थान (rise) में तत्‍कालीन परिस्थिति तथा  उसकी चरित्र सम्‍बंधी विशेषताओं ने विशेष योग दिया।

नेपोलियन की चरित्रगत विशेषताएँ  

  1. महत्‍वाकांक्षी– नेपोलियन बचपन से ही महत्‍वाकांक्षी था उसे अपनी योग्‍यता पर पूर्ण विश्‍वास था। वह अपने आपकों प्राय: निर्यात का पुरूष कहा करता था। उसकी इस महत्‍वाकांक्षा ने एक दिन वास्‍तव में हही उसकों विश्‍व प्रसिद्ध बना दिया।
  2. महान सैनिक– नेपोलियन जन्‍मजात सैनिक था। अपनी सैनिक प्रतिभा के कारण ही वह इतना उच्‍च पद प्राप्‍त कर सका था। उसकी सेना उसे देवता के समान पूजती थी। उसके सैन्‍य संचालन की प्रशंसा आज तक की जाती है। उसकी अद्भुत विजयों की लम्‍बी सूची इस बात की प्रत्‍यक्ष प्रमाण है। नेपोलियन बोनापार्ट पहले ही अपने मस्तिष्‍क में युद्ध का ढाँचा बना लेता था और शत्रु को पराजित कर देता था। उसकी स्‍मरण शक्ति बडी विलक्षण थी सैनिकों में उत्‍साह उत्‍पन्‍न करने की उसमें अद्भुत क्षमता थी।
  3. परिस्थिति को समझने की अद्भुत क्षमता- नेपोलियन में परिस्थिति को समझने की बडी विलक्षण क्षमता था। वह एक योग्‍य आलोचक था और जनता की विचारधाराओं से पूर्णत: परिचित था। वह जानता था कि क्रांति के बाद अराजकताओं में दु:खी जनता सुव्‍यवस्थित शासन का निर्माण चाहती है और इस समय वह एक तानाशाह को भी सहन कर सकती है अत: परिस्थिति को अपने अनुकूल जानकर 1799 में शासन की बागडोर सम्‍भाल ली। नेपोलियन का नाम फ्रांस के प्रत्‍येक व्‍यक्ति के मुख पर हो गया था और जब तक वह जीवित रहा जनता उसको बराबर पूजती रही। उसके पतन के बाद भी उसको देवता के स्‍थान पर आसीन किया गया।
  4. नैतिकता से अधिक सफलता का इच्‍छुक- वास्‍तव में नेपोलियन नैतिकता से अधिक सफलता को महत्‍व देता था। अपने उद्देश्‍य की पूर्ति के लिये वह‍ कोई भी मार्ग अपनाने को प्रस्‍तुत रहता था। पोप से इसलिये उसने मित्रता की कि वह फ्रांस का स्‍वयं ही राजनैतिक तथा धार्मिक नेतृत्‍व करसके। बाद में विरोध करने पर नेपोलियन ने नैतिकता पर विचार किये बिना ही उसे बन्‍दी बना लिया। उसने राष्‍ट्रीयता, समानता एवं बन्‍धुत्‍व की भावना का इसलिये आदर किया क्‍योकि फ्रांस की जनता इन भावनाओं का सम्‍मान करने वाले व्‍यक्ति को ही अपना नेता बना सके।
  5. लतित कलाओं का प्रेमी– नेपोलियन ललित कला का प्रेमी था और विद्वानजनों का आश्रयदाता था। उसने पेरिस की शोभा में वृद्धि की। अंग्रेज इतिहासकारों ने उसे झूठा एवं विश्‍वासघाती बतलाया है किन्‍तु राजनीति में वह अवगुण क्षम्‍य है।
  6. महान शासक– नेपोलियन फ्रांस की अमूल्‍य देन था। फ्रांस ही नही वरन्‍ समस्‍त यूरोप उसके किये गये कार्यो के लिये चिरकाल तक उसका ऋणी होगा। यही वह व्‍यक्ति था‍ जिसने क्रांति की विचारधाराओं समानता राष्‍ट्रीयता एवं बन्‍धुत्‍व को समस्‍त यूरोप मे फैलाया। इसके पतन के बाद भी ये भावनायें यूरोप के लोगों के ह्दय पर छाई रही। प्रतिक्रियावादी इनकों दबाने की इच्‍छा रखते हुए भी न दबा सके। फ्रांस के आन्‍तरिक सुधार नेपोलियन बोनापार्ट के अपूर्व कार्यो में विशेष स्‍थान रखते है। इसके द्वारा शासिक फ्रांस का बैंक आधुनिक फ्रांस बैंक के आधार है। उसकी शिक्षा प्रणाली की योजना तत्‍कालीन संसार के लिये आश्‍चर्य का विषय था। उसकी शासन प्रणाली के आधार पर आधुनिक फ्रांस की शासन व्‍यवस्‍था स्थिर है।

नेपोलियन बोनापार्ट के सुधार (प्रथम कौंसल के रूप में)

नेपोलियन केवल एक महान योद्धा और विजेता ही नही वरन्‍ एक दूरदर्शी तथा बुद्धिमान शासक भी था। प्रथम कौंसल बनने से पूर्व और बाद में अपनी महान विजयों से जहाँ उसने यूरोप में चकाचौध फैला दी थी वहीं उसने आन्‍तरिक सुधारों से फ्रांस की महान्‍ सेवा की । सन्‍ 1799 से 1802 तक उसे दो प्रबल शत्रुओं आस्ट्रिया और इंग्‍लैण्‍ड से युद्ध करने पड़े। आस्ट्रिया और इंग्‍लैण्‍ड से संधि हो जाने के बाद नेपोलियन को कुछ समय के लिये युद्ध से अवकाश मिल गया। इस काल का उपयोग उसने फ्रांस में आर्थिक सामाजिक शैक्षणिक प्रशासकीय सुधारों द्वारा शासन को दृढ़ बनाने में किया।

सुधारों की आवश्‍यकता

नेपोलियन के कॉन्‍सल बनने से पूर्व पिछले कई वर्षो से क्रांति और विदेशी युद्धों फलस्‍वरूप फ्रांस का राष्‍ट्रीय जीवन अस्‍त-व्‍यस्‍त हो गया था। देश में क्रांति और सुव्‍यवस्‍था स्‍थापित नहीं हो सकी थी। फ्रांस की जनता इस अशान्‍त वातावरण से मुक्ति चाहती थी। नेपोलियन बोनापार्ट फ्रांस की जनता के मनोभावों को समझने वाला एक दूरदर्शी राजनीतिज्ञ था। जनता को एक सुव्‍यवस्थित और लोकप्रिय शासन प्रदान कर वह उसे अपना भक्‍त बनाना चाहता था। फ्रांस को इस समय आवश्‍यकता थी गृहकलह से मुक्ति, सुदृढ़ आर्थिक स्थिति और सामाजिक जीवन का नया ढाँचा, धर्म निरपेक्ष शैक्षणिक व्‍यवस्‍था तथाराज्‍य के प्रति लोगों के हृदय में आस्‍था। अतएव नेपोलियन बोनापार्ट ने इन समस्‍याओं को भली-भाँति समझकर अपने सुधारों द्वारा फ्रांस को एक नया जीवन प्रदान किया। प्रथम कॉन्‍सल काल में नेपोलियन ने जो सुधार लागू किये वे फ्रांस में स्‍थायी हो गये। उस काल मे उसने निम्‍नलिखित सुधार किये।

आर्थिक सुधार

फ्रांस की क्रांति का आरम्‍भ ही खराब आर्थिक व्‍यवस्‍था के कारण हुआ। क्रांति को घटनाओं ने उद्योग धन्‍धों व्‍यापार कृषि आदि को भयंकर हानि पहुँचाई। अत: सबसे पहले नेपोलियन ने आर्थिक व्‍यवस्‍था को सुदृढ़ बनाने के प्रयत्‍न किये।

  • कर वसूली के कार्य को नेपोलियन ने व्‍यवस्थित और नियमित किया है। कर वसूली का कार्य अब केन्‍द्रीय सरकार के कर्मचारियों के सुपुर्द किया गया।
  • राष्‍ट्रीय ऋण को अदा करने के लिये एक अलग कोष स्‍थापित किया गया तथा पुराने ऋण पत्रों के स्‍थान पर नये ऋण-पत्र वितरित किये।
  • सन्‍ 1800 में नेपोलियन ने एक बैंक ऑफ फ्रांस की स्‍थापना की। इससे लोगों में विश्‍वास की भावना उत्‍पन्‍न हुई। यह बैंक एक स्‍थायी संस्‍था बन गई।
  • औद्योगिक क्रांति को फ्रांस में शुरू करने के उद्देश्‍य से उसने  यांत्रिक शिक्षा का प्रबंध नये-नये यंत्रों के आविष्‍कार तथा सरकारी सहायता का समुचित प्रबंध किया। इन विविध सुधारों के कारण फ्रांस का आर्थिक जीवन सुसंगठित हो गया।

शिक्षा सम्‍बंधी सुधार

फ्रांस को आधुनिक बनाने मे शिक्षा के महत्‍व को नेपोलियन अच्‍छी तरह समझता था। उसने सम्पूर्ण शिक्षा प्रणाली का पुनर्गठन किया।

  • मुख्‍य-मुख्‍य नगरों में प्रायमरी और उच्‍च विद्यालय स्‍थापित किये गये। प्रत्‍येक जिले में शिक्षा की व्‍यवस्‍था संगठित की गई।
  • शिक्षकों को राज्‍य की ओर से वेतन मिलने लगा और उनके प्रशिक्षण हेतु पेरिस मे एक प्रशिक्षण केन्‍द्र खोला गया।
  • सम्‍पूर्ण देश के लिये एक विश्‍वविद्यालय एम्पिरियल विश्‍वविद्यालय की स्‍थापना की गई। इसमें पाँच विभाग थे- धर्म, ज्ञान, कानून, चिकित्‍सा, विज्ञान तथा साहित्‍य। देश के सभी विद्यालय इस विश्‍वविद्यालय से सम्‍बंध कर दिये गये। नेपोलियन का यह कार्य भी स्‍थायी सिद्ध हुआ।
  • शोध कार्यो के लिये नेपोलियन ने एक संस्‍थान की स्‍थापना की। नेपोलियन की यह शिक्षा प्रणाली देश में आज तक कायम रही है।
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प्रशासकीय सुधार-

नेपोलियन बोनापार्ट  ने प्रशासकीय क्षेत्र मे निम्न सुधार किए थे।

  • नेपोलियन ने फ्रांस में के‍न्‍द्रीय शासन को सुदृढ़ बनाया उसने राज्‍य की समस्‍त शक्ति केन्‍द्र में स्थिर कर दी अथवा समस्‍त शक्ति स्‍वयं नेपोलियन के हाथों में केन्द्रित हो गई। समस्‍त देशों में शासन और कानून की एकरूपता स्‍थापित हो गई। इसके परिणामस्‍वरूप फ्रांस में अराजकता का अन्‍त हो गया।
  • सरकारी पदों पर योग्यता के आधार पर नियुक्ति होने लगी। सभी दल के लागों को सरकारी पद दिये गये। बोबों वंश के लोगों के प्रति सतर्कता बरती गई।
  • प्रवासी कुलीनों तथा पादरियों के विरूद्ध जितने कानून थे वे रद्द कर दिये गये।
  • न्‍यायालयों का भी पुनर्गठन किया गया। प्रत्‍येक जिले में एक सिविल कोर्ट तथा प्रत्‍येक दो या तीन डिपार्टमेंट के बीच एक अपील न्‍यायालय की स्‍थापना की गई।
  • न्‍यायपालिका पर केन्‍द्रीय सरकार का पूर्ण नियंत्रण स्‍थापित किया गया। न्‍यायाधीशों की नियुक्ति नेपोलियन के द्वारा की जाती थी।
  • जिन कृषकों ने क्रांति काल में कुलीनों की भूमि पर अधिकार कर लिया था नेपोलियन ने उन मामलों में कोई परिवर्तन नहीं किया।

सामाजिक सुधार

नेपोलियन ने सामाजिक जीवन को भ्रातृत्‍वपूर्ण और वैमनस्‍य से रहित बनाने का प्रयत्‍न किया। क्रांति काल मे समाज के विभिन्‍न वर्गो में जो कटुता उत्‍पन्‍न हो गई थी उसे उसने दूर करने का प्रयत्‍न किया। समानता के सिद्धान्‍त को मान्‍यता प्रदान की गई। नेपोलियन कोड के निर्माण के कारण विवाह, तलाक, पति-पत्‍नी के सम्बंध आदि के निश्चित नियम बनाये गये। परिवार में पिता को महत्‍वपूर्ण स्‍थान दिलाने का प्रयत्‍न किया गया। संक्षेप में नेपोलियन ने तत्‍कालीन परिस्थितियों में समाज को सुसंगठित बनाने के समस्‍त प्रयत्‍न नहीं किये।

पेरिस की सौन्‍दर्य वृद्धि

नेपोलियन पेरिस को समस्‍त यूरोप का एक महान्‍ कलाकेन्‍द्र बनाना चाहता था। फ्रांसीसियों मे सौन्‍दर्य प्रेम और अहंकार की भावना पर्याप्‍त रहती है। इस भावना की तुष्टि एवं बेरोजगारों को कार्य देने के उद्देश्‍य से नेपोलियन ने नगर में अनेक निर्माण कराये। उसने पेरिस में बड़ी-बड़ी सड़के बनवायी, उनके दोनों ओर वृक्ष लगवाये तथा अनेक आकर्षक स्‍थलों का निर्माण कराया। लूवों में एक अजायबघर का निर्माण हुआ जिसमें इटली आदि से लाई गई अमूल्‍य कलात्मक वस्‍तुएँ रखी। इन कार्यो से नेपोलियन की लो‍कप्रियता बढ़ गई।

नेपोलियन की धार्मिक नीति

धर्म के मामले में नेपोलियन तटस्‍थ था। उसको न तो आस्तिक कहा जा सकता है और न नास्तिक। वह कहता था- ‘मिश्र में मैं मुसलमान हूँ तो फ्रांस मे कैथालिक’। फ्रांस की धार्मिक पृष्‍ठभूमि के आधार पर उसने पोप से समझौता कर लिया जो कान्‍कोर्ड के नाम से प्रसिद्ध है। सार्वजिक जीवन में वह धर्म के महत्‍व को समझता था तथा इसका प्रयोग राजनैतिक व्‍यवस्‍था को सुदृढ़ बनाने से करना चाहता था। अनेक कठिनाइयों के बाद भी नेपोलियन की दूरदर्शिता के कारण पोप से समझौता सम्‍भव हो सका। इस समझौते के अनुसार क्रांतिकारियों ने चर्च की जब्‍त की हुई सम्‍पत्ति को त्‍याग देना स्‍वीकार कर लिया। नेपोलियन ने कैथोलिक धर्म को राज-धर्म घोषित कर दिया किन्‍तु उसको प्राचीन अधिकार पूर्ण रूप से प्राप्‍त न हो सके। नयी व्‍यवस्‍था के अनुसार (क) पादरियों को नियुक्ति पोप की औपचारिक स्‍वीकृति से राज्‍य द्वारा की जाती थी। (ख) पा‍दरियों को वेतन राज्‍य कोष से दिया जाता था। (ग) सभी पादरियों को फ्रांस के विधान के प्रति निष्‍ठा की शपथ लेनी पाडती थी। (घ) क्रांति के समय बन्‍दी बनाये गये सभी पादरियों को मुक्‍त कर दिया गया। निर्वासित को फ्रांस वापस आने की अनुमति मिल गई। (ड.) सभी व्‍यक्तियों को अपना इच्छित वर्ग मानने की स्‍वीकृति प्राप्‍त हो गई।

नेपोलियन की धार्मिक नीति अत्‍यन्‍त ही दूरदर्शिता और कूटनीतिपूर्ण थी। उसने धार्मिक समस्‍या को भी राजनैतिक दृष्टिकोण से सुलझाया। समझौता करके उसने फ्रांस के विभिन्‍न वर्गो को सन्‍तुष्‍ट रखने में सफलता प्राप्‍त की। प्रो. कैटलदी ने इस विषय में लिखा है कि- ‘‍उसके लिये धर्म केवल एक उपयोगी राजनैतिक साधन, राष्‍ट्र की कल्‍पना को आकृष्‍ट करने वाला केन्‍द्र, सामाजिक बन्‍धन और रक्षा का माध्‍यम था’। किन्‍तु नेपोलियन का धार्मिक समझौता उसके अन्‍य कार्यो की अपेक्षा कम स्‍थायी सिद्ध हुआ।

नेपोलियन विधान संहिता

कॉन्‍सल के रूप में नेपोलियन का सर्वाधिक महत्‍वपूर्ण कार्य था फ्रांस के लिए विधान संहिता तैयार करना। यह उसकी सबसे गौरवपूर्ण उप‍लब्धि है। जिसका महत्‍व उसकी सभी विजयों से अधिक है।

क्रांति से पूर्व फ्रांस मे कानूनी व्‍यवस्‍था तथा न्‍यायिक नियमों का पूर्ण अभाव था। यद्यपि संविधान परिषद् और नेशनल कन्‍वेन्‍शन ने इस दिशा मे कुछ कार्य अवश्‍य किया था, किन्‍तु फ्रांस मे कानून के नाम पर कुछ अस्‍त-व्‍यस्‍त था। कानून के अभाव के कारण उत्‍पन्‍न कठिनाई से नेपोलियन परिचित था। अतएव उसने विशेषज्ञों से पर्याप्‍त विचार-विमर्श के पश्‍चात एक विधान संहिता का निर्माण किया इस संहिता को नेपोलियन कोड कहते थे।

नेपोलियन बोनापार्ट  के सुधारो का निष्‍कर्ष

इस प्रकार नेपोलियन अपने विभिन्‍न सुधारों के कारण फ्रांस के इतिहास में सर्वाधिक महत्‍वपूर्ण व्‍यक्ति माना जा सकता है। उसके सुधारों के कारण तत्‍कालीन फ्रांस के लोगों को अत्‍यन्‍त लाभ हुआ। उसने क्रांति की अनेक भूलों का सुधार दिया। उसके सुधारों में प्राचीन निरंकुशतावाद और आधुनिक उदारवाद का सुन्‍दर समन्‍वय था। उसने अपनी प्रजा के हित का पूरा ध्‍यान रखा। प्रथम कौंसल के रूप में नेपोलियन ने फ्रांस के लिये जो कुछ भी किया उसके पहले किसी भी शासन ने नहीं किया था। उसके द्वारा स्‍थापित संस्‍थाएँ ओर परम्‍पराएँ चिरस्‍थायी बन गई। उसके युद्धों के लाभ तो समाप्‍त हो गये, किन्‍तु उसके सुधार आज भी विद्यमान हैं।

नेपोलियन क्रांति का जनक

नेपोलियन अपने आप को क्रांति की उपज तथा क्रांति का पुत्र कहता था। वह कहा करता था, “I amt the Revolution, I am the child of the Revolution.” फ्रांसीसी क्रांति की उथल-पुथल, अशांति, गैर-कानूनी वातावरण, अस्थिर सरकारें, आ‍तंक का राज्‍य सरकारी मशीनरी का फेल होना तथा विदेशों से क्रांति के लिये उत्‍पन्‍न हुए खतरे आदि के कारण उत्‍पन्‍न हुए हालात में नेपोलियन का व्‍यक्तित्‍व फ्रांस के राजनैतिक क्षेत्र में उभर कर आया। इस तरह वह क्रांति की ही उपज था अगर क्रांति न होती तो शायद नेपोलियन का सितारा न चमकता।

क्रांति का पुत्र (पक्ष में दलीनें)-  नेपोलियन को क्रांति का पुत्र मानने के लिये निम्‍नलिखित तर्क पेश किये जाते है-

  1. नेपालियन क्रांति से उत्‍पन्‍न हुए हालात की उपज था।
  2. जहाँ तक समानता का सम्‍बंध है, उसके सभी प्रशासनिक सुधार क्रांति के इस मुख्‍य सिद्धान्‍त की पूर्ति करते थे। उसने सभी नै‍करियों की भर्ती योग्‍यता के आधार पर करनी शुरू कर दी। सारे देश तथा जनता के लिये एक समान कानून तथा टैक्स लागू किये। Logion of Honour का आधार पुरानी सामन्‍त प्रथा के स्‍थान पर योग्‍यता और कार्यकुशलता को बनाया गया।
  3. उसने हर तरह के सामाजिक भेद-भाव तथा सामन्‍ती विभिन्‍नताएँ समाप्‍त कर दी।
  4. उसने लोगों को धार्मिक स्‍वतंत्रता प्रदान की यद्यपि धर्म को राज्‍य–धर्म माना गया था।
  5. व्‍यापार, खेती तथा उद्योगों का विकास करके उसने देश की आर्थिक हालत को मजबूत किया। इस बुरी आर्थिक हालत के कारण तो क्रांति का जन्‍म हुआ था।
  6. उसके काल मे सरकार ने कई प्रजा हितकारी कार्य किए (सड़कें, पुल, बांध, नहरें, अस्‍पताल, स्‍कूल आदि) और शिक्षा के क्षेत्र में प्रगति के नये कदम उठाये। यह भी तो क्रांति की माँग थी।
  7. उसने देश मे अशांति के स्‍थान पर शांति और कानून-व्‍यवस्‍था कायम की।
  8. उसने फ्रांस में एक अति कुशल सरकार की स्‍थापना की। क्रांति के समय पर लोगों की माँग थी- ‘कोई सरकार कोई कानून कोई व्‍यवस्‍था’। नेपोलियन ने क्रांतिकारियों की इन आशाओं की पूर्ति की।
  9. इस युद्ध में शानदार विजयें प्राप्‍त करके उसने फ्रांस के राज्‍य विस्‍तार में भी काफी वृद्धि की और उसके गौरव को चार चाँद लगा दिए।
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क्रांतिनाशक– कुछ इतिहासकार तो नेपालियन को क्रांति को नाश करने वाला कहते हैं। वे ये तर्क प्रस्‍तुत करते हैं-

  1. नेपोलियन ने समानता की आड़ में आजादी तथा भाईचारे की भावना का गला घोंट दिया। उसने प्रेस, भाषण और लिखने पर पाबन्‍दी लगा दी। उसकी इस नीति के कारण 600 समाचारपत्र बन्‍द हो गए। केवल एक सरकारी पत्र ही उसकी प्रशंसा करता था।
  2. उसने अति केन्‍द्रीयकरण की नीति अपना कर क्रांति की लोकतंत्र की भावना को ठेस पहुँचाई। प्रान्‍तों के मुख्‍य अधिकारी, उच्‍च न्‍यायाधीश तथा पुलिस एवं सैनिक अधिकारी वह स्‍वयं नियुक्‍त करता था। यह क्‍या राजतंत्र से कम था।
  3. व‍ह खुद बहुत महत्‍वाकांक्षी था। राजसत्‍ता प्राप्‍त करने के लिये उसने Directory का अन्‍त किया तीन कान्‍सुलों में से अपने लिये सबसे अधिक अधिकार एवं शक्तियाँ प्राप्‍त की और 1804 ई. में वह पूणरूप से सम्राट बन गया। इस सब का अर्थ यह हुआ कि जो भी कार्य कर रहा था, क्रांति की वह पूर्ति के लिये नहीं अपितु अपनी स्‍वयं की उन्‍नति के लिये किए।
  4. उसने विदेशों के कई प्रदेश अपने राज्‍य में सम्मिलित करके और हॉलैण्‍ड, नेपल्‍ज, स्‍पेन तथा वेस्‍ट-फेलिया में अपने भाइयों को गद्दी पर बैठाकर क्रांति की मूल भावना-राष्‍ट्रीयता के विरूद्ध कार्य किया। इसलियें बाद में यूरोप के सभी राष्‍ट्र उसके विरूद्ध हो गये। उसे Battle on Nation में पराजित होना पड़ा।
  5. उसने लोगों पर सैनिक अनुशासन कायम चाहा।
  6. उसने बूर्बो वंश की कई परम्‍पराओं को जरा सुधार कर अपना लिया और सम्राट की उपाधि धारण करना उपाधियाँ देना तथा ‘Legion of Honour’ की प्रथा शुरू करना आदि।
  7. शक्तियों का अति केन्‍द्रीयकरण करना तथा साम्राज्‍यवाद और विस्‍तारवाद की नीति अपनाना आदि भी उसे क्रांति पुत्र सिद्ध नही कर करते।

Prof. Markham  के अनुसार, ‘नेपालियन के सुधारों को दोनों रूपों में देखा जा सकता है। समानता कानूनी और प्रशासनिक एकता सरकारी नौकरियों को योग्‍यता के आधार पर भरना आदि कुछ ऐसे काम थे जिनके द्वारा उसने क्रांति के सिद्धान्‍तों की पूर्ति की परन्‍तु लोगों की स्‍वतंत्रता पर चोट करके उसने क्रांति को हानि पहुँचाई।

निष्‍कर्ष– उपरोक्‍त लिखित वर्णन से यह बात तो स्‍पष्‍ट हो जाती है कि इस कथन में परी सच्‍चाई नहीं। ग्रांट और टैम्‍परले लिखते हैं, ‘यद्यपि नेपोलियन क्रांति का पुत्र था, परन्‍तु उसने उन आन्‍दोलनों के उद्देश्‍यों और सिद्धान्‍तों को जिनसे उसका जन्‍म हुआ, उलट दिया था। वह क्रांति का पुत्र था किन्‍तु ऐसा पुत्र जिसने अपनी माता की हत्‍या कर दी थी’। वस्‍तुत: नेपोलियन ने पुरातन व्‍यवस्‍था और क्रांति का सम्मिश्रण कर दिया, लेकिन ज्‍यों–ज्‍यों समय बीतता गया उसके हाथों क्रांति की अधिकाधिक हत्‍या होती गयी।

नेपोलियन तथा वाटरलू का युद्ध

2 अप्रैल,1814 ई. को नेपोलियन को फ्रांस के सिंहासन से पृथक कर दिया गया और उसके स्‍थान पर तेलीरां की अध्‍यक्षता में फ्रांस मे एक अस्‍थायी सरकार का निर्माण किया गया था। 3 मई 1814 ई. को लुई 18वें ने पेरिस में प्रवेश कर क्रांति को स्‍वीकार कर लिया  था। 1814 ई. भी पेरिस की संधि के अनुसार उसे फ्रांस का शासक होने की मान्‍यता प्राप्‍त हो गई थी। नेपोलियन को एल्‍बा का द्वीप देकर उसकों वहीं का शासक बना दिया था तथा प्रतिवर्ष नेपोलियन व उसके परिवार के भरण-पोषण के लिये पेन्‍शन की व्‍यवस्‍था कर दी गई थी।

वियना कांग्रेस का प्रथम अधिनियम 1 नवम्‍बर 1814 ई. को हुआ था। वियना कांग्रेस में प्रत्‍येक राजा लड़ाई की लूट मे से अधिक से अधिक लेना चाहता था जिस कारण सम्‍मेलन मे मतभेद अधिक उत्‍पन्‍न हो गये। नेपोलियन को मित्र राष्‍ट्रों के इन मतभेदों का समाचार ज्ञात हुआ। इधर फ्रांस के शासक लुई 18वें के प्रति भी जनता की विरोध बढ़ रहा था। नेपोलियन को यह समाचार भी ज्ञात हुआ कि फ्रांस की जनता इस समय भी उसकों पसन्‍द करती है और याद कर रही है। इन अनेक कारणों से नेपोलियन के हृदय मे एक बार फिर फ्रांस का सम्राट बनने की इच्‍छा बलवती हुई। जब उसे अनुभव होने लगा कि जनता मुझ पर विश्‍वास कर लेगी तो वह 26 फरवरी 1815 ई. को अपने कुछ सैनिकों के साथ एल्‍बा द्वीप से फ्रांस की ओर चल पड़ा तथा 1 मार्च 1815 ई. को केने के निकट फ्रांस में पहुँच गया था। उसके उपरान्‍त लुई 18वें फ्रांस से भाग गया और नेपोलियन पुन: फ्रांस को सम्राट बन गया।

वाटरलू का युद्ध

नेपोलियन के पुन: फ्रांस का सम्राट बन जाने के कारण यूरोप की राजनीति मे एक बार पुन: सन्‍नाटा सा छा गया। वियना सम्‍मेलन चल ही रहा था अत: तुरन्‍त ही यूरोपीय शासकों ने अपना ध्‍यान नेपोलियन की ओर आकर्षित किया। नेपोलियन ने एक घोषणा द्वारा स्‍पष्‍ट किया कि अब  वह शांति एवं स्‍वतंत्रता का सेवक है अत: युद्ध मेरा ध्‍येय नहीं है। इस पर भी यूरोपीय राष्‍ट्रों को विश्‍वास नहीं हो सका, अत: शीघ्र ही उन्‍होनें नेपोलियन का दमन करने का निर्णय लिया और अपनी सम्मिलित सेना द्वारा फ्रांस पर आक्रमण करने की योजना बना ली गई। इधर नेपोलियन भी तैयार हो गया जिसके पास लगभग नौ लाख सैनिकों की सेना थी। लगभग एक लाख सैनिक वेलिंग्‍टन के नेतृत्‍व में ब्रुसेल्‍स में तथा दूसरी सेना एक लाख बीस हजार के लगभग थी, ब्लूचर के नेतृत्‍व में थी। ब्‍लूचर शीघ्र ही वेलिंग्‍टन से सम्‍पर्क स्‍थापित करना चाहता था किन्‍तु नेपोलियन ने ऐसा नहीं होने दिया। नेपोलियन ने मार्शल को वेलिंग्‍टन के विरूद्ध पहुँच चुका था। वाटरलू के मैदान मे दोनों सेनाओं के मध्‍य लगभग सात घण्‍टे तक युद्ध चला (18 जून 1815 ई.) युद्ध के दौरान ब्‍लूचर की सेना भी वाटरलू पहुँच गई और नेपोलियन सेना सहित ब्‍लूचर तथा वेलिंग्‍टन की सेना के मध्‍य फँस गया तथा नेपोलियन पराजित हुआ। फ्रांसीसी सेना भाग निकली। नेपोलियन पेरिस पहुँचा तथा उसने अपने पुत्र के लिये सिंहासन छोड़ने का निर्णय लिया। वह फ्रांस से कहीं दूर भाग जाना चाहता था किन्‍तु असफल रहा और अन्‍त में उसने आत्‍म-समर्णय कर दिया। यूरोपीय शासकों ने उसे अटलांटिक महासागर के मध्‍य में स्थित सेंट हेलेना द्वीप में छोड दिया। यह उसके लिये एक प्रकार का दण्‍ड था। वह कैन्‍सर से पीडित हो गया था और 5 मई 1821 ई. को मृत्यु को वह प्राप्‍त हुआ।

नेपोलियन का पुन: फ्रांस का सम्राट बनने के समय को ही नेपोलियन के सौ दिन कहलाते हैं।

नेपोलियन के पतन के कारणों का वर्णन कीजिए | nepoliyan ka patan

नेपोलियन का उत्‍थान और पतन चकाचौंध कर देने वाली उल्‍का के समान हुआ। इतिहास इस बात का साक्षी है कि जो लोग सैनिक शक्ति द्वारा दूसरो पर विजय प्राप्‍त करते हैं वे कुछ समय तो राजनैतिक आकाश में चकाचौंध पैदा कर सकते है किन्‍त्‍ुा उनकी विजयें चिरस्‍थायी नहीं होती। ऐसे विजेताओं को मानव सभ्‍यता के इतिहास में सम्‍मानित स्‍थान भी नहीं मिलता। नेपोलियन के पतन के कारणों का विश्‍लेषण इस प्रकार है।

नेपोलियन बोनापार्ट की असीम महत्‍वाकांक्षा

नेपोलियन का पतन उसकी असीमित महत्‍वाकांक्षाओं का परिणाम था। नेपोलियन की सबसे बड़ी महत्‍वाकांक्षा यह थी कि यूरोप के सब सम्राट राजा तथा राजनीतिज्ञ उसकी अधीनता स्‍वीकार करें। इसी महत्‍वाकांक्षा के कारण वह इंग्‍लैण्‍ड को पराजित करने के उद्देश्‍य से भारत पर आक्रमण करना चाहता था। उसका मिश्र पर आक्रमण भी इसी उद्देश्‍य से किया गया था। संक्षेप में उसने अपनी महत्‍वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिये यूरोप की शांति नष्‍ट कर दी थी। उसकी महत्‍वाकांक्षा उसके व्‍यक्तित्‍व पर भी निर्भर थी और जैसे ही नेपोलियन का व्‍यक्तित्‍व पराजित हुआ, उसका साम्राज्‍य भी नष्‍ट हो गया। वस्‍तुत: उसकी महत्‍वाकांक्षा अव्‍यावहारिक थी।

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नेपोलियन बोनापार्ट की चारित्रिक दुर्बलतायें

नेपोलियन के चरित्र में गुणों और दोषों का समन्‍वय था। असीम साहस संयम परिश्रम तथा शौर्य उसके स्‍वाभाविक गुण थे, किन्तु दूसरे के प्रति घृणा स्‍वार्थपरता प्रतिशोध और वचन भंग उसके  महान्‍ दुर्गुण थे। रूस के अभियान में असफल होने पर उसने अपने सैनिकों को कड़ी सर्दी और तूफान में छोड दिया था और अकेला पेरिस पहुँच गया। नेपोलियन के चरित्र की सबसे बड़ी दुर्बलता यह थी कि संधि की शर्तो को सम्‍मानित नहीं समझता था। वह राज्‍यों की मैत्री पर विश्‍वास नहीं करता था। क्‍योंकि उसके लिये मैत्री केवल राजनैतिक आवश्‍यकता थी। नेपोलियन यह समझता था कि वह कभी भूल नहीं कर सकता इसीलिये वह अपने निर्णयों पर अडिग रहता था।

नेपोलियन ने अपने भाइयों और सगे सम्‍बंधियों को अनुचित लाभ पहुँचाया और अयोग्‍य होने पर भ उन्‍हें ऊँचे पद दिये। किन्‍त्‍ुा उसके सम्‍बंधियों ने सदैव ही हानि पहुँचाई। जीवन के उत्‍तरार्द्ध में असफलताओं के कारण वह क्रोध में विवेकहीन कार्य करने लगा था।

नेपोलियन बोनापार्ट का सैन्‍यवाद

नेपोलियन का उत्‍कर्ष सैनिक चमत्‍कारों के बल पर ही हुआ था। एक बार फ्रांस की जनता को मुग्ध करने के पश्‍चात उसने यूरोप-विजय का सुनहरा चित्र उनके सम्‍मुख प्रस्‍तुत किया। फलस्‍वरूप फ्रांस के निवासी सैनिक बनने में गौरव अनुभव करने लगे। विशाल सेना का संगठन करके नेपोलियन एक बार यूरोप का सर्वेसवा बन गया किन्‍तु ज्‍यों ही उसका सैनिक तंत्र शिथिल पड़ा उसका पतन अनिवार्य हो गया। इसके अतिरिक्‍त नेपोलियन की विशाल सेना में फ्रांसीसियों के अलावा इटली, जर्मनी, स्‍पेन आदि देशों के सैनिक भी थे। ऐसी विदेशी सैनिको के हृदय के कोई राष्‍ट्रभक्ति या उत्‍सर्ग की भावना नहीं थी। इस प्रकार सैन्‍यवाद की कमजोरियों ने ही नेपोलियन का पतन किया।

यूरोप में राष्‍ट्रीय भावनाओं का विकास

फ्रांस की क्रांति की मूल भावना स्‍वतंत्रता और राष्‍ट्रीयता का प्रसार और विकास यूरोप के अन्‍य देशों में भी हुआ। जिन-जिन देशों को नेपोलियन ने जीता था, उन देशों में फ्रांस के दासत्‍व से मुक्ति प्राप्‍त करने के लिये संगठनकारी प्रवृत्तियाँ उत्‍पन्‍न हुई। इसी प्रवृत्ति के कारण स्‍पेन, इटली, जर्मनी आदि के नागरिकों ने नेपोलियन का नियंत्रण समाप्‍त करने के लिये राष्‍ट्रीय युद्ध किये। नेपोलियन राष्‍ट्रीय भावनाओं का सामना नहीं कर सका।

नेपोलियन का समय के साथ योजना शक्ति क्षीण होना

डॉ. स्‍लोन- ने लिखा- ‘उसके पतन के समस्‍त कारण एक ही शब्‍द में निहित है और वह है ‘थकान’। ज्‍यों-ज्‍यों तूफान बढ़ता गया, त्‍यों-त्‍यों वह क्‍लांत होता गया’। यह सत्‍य है कि मनुष्‍य की शक्ति सीमित होती है। नेपोलियन को यह भ्रम था कि वह सदैव ही एक जैसी शक्ति के साथ काम कर सका है। धीरे-धीरे उसके सोचने और योजना की शक्ति क्षीण होती गई।

नेपोलियन बोनापार्ट का पोप के प्रति दुर्व्‍यवहार

पोप समस्‍त यूरोप के कैथोलिकों का सर्वोच्‍य धर्म गुरू था। अपने राजनैतिक उद्देश्‍य की पूर्ति के लिये नेपोलियन ने पहले तो उससे समझौता किया, किन्‍तु बाद में उसे बन्‍दी बना लिया। नेपोलियन के इस कार्य से कैथोलिकों को विश्‍वास हो गया कि नेपोलियन न केवल राजनैतिक स्‍वतंत्रता को नष्‍ट करने वाला एक दानव है, बल्कि धर्म को नष्‍ट करने वाला एक अत्‍याचारी भी है। पोप के विरूद्ध किये गये कार्यो ने नेपोलियन को समस्‍त कैथोलिकों का शत्रु बना दिया था।

आन्‍तरिक प्रशासन के दोष

प्रथम कॉन्‍सल के रूप में नेपोलियन के सुधार आरम्‍भ में तो अत्‍यन्‍त उपयोगी सिद्ध हुए, किन्‍तु उसकी सेना का व्‍यय निरन्‍तर युद्धों के कारण इतना बढ़ चुका था कि शीघ्र ही फ्रांस की आय उसके खर्च की तुलना में कम पड़ने लगी। सैनिक व्‍यय की पूर्ति हेतु उसने अन्‍य देशों को खुले रूप में लूटा भी, किन्‍तु ऐसा कब तक चल सकता था। परिणामस्‍वरूप नेपोलियन फ्रांस की आर्थिक व्‍यवस्‍था में सन्‍तलन न रख सका। अतएव फ्रांस क आन्‍त‍रिक दुर्बलता भी उसके पतन का एक प्रमुख कारण थी।

नेपोलियन बोनापार्ट मे कूटनीतिक दूरदर्शिता का अभाव

नेपोलियन ने अन्‍य राष्‍ट्रों से सम्‍बंध रखने के लिये केवल एक ही उपाय शस्‍त्रों का प्रयोग से काम लिया। उसे चाहिए था कि वह यूरोपीय राष्‍ट्रों के पारस्‍परिक सम्‍बंधों में मतभेद या फूट उत्‍पन्‍न करता और कुछ राष्‍ट्रों को अपना विश्‍वसनीय मित्र बनाकर उनके विश्‍वास को प्राप्‍त करता। यदि रूस के साथ-साथ प्रशा को भी अपना मित्र बना लेता तो रूस और प्रशा दोनों की शक्ति का उपयोग करके इग्‍लैण्‍ड से युद्ध करता तो सम्‍भवत: उसका पतन इतना शीघ्र नहीं होता।

महाद्वीपीय प्रणाली मे अव्यवहारिक नीति

महाद्वीपीय प्रणाली एक नितान्‍त अव्‍यावहारि‍क नीति थी। इस प्रणाली द्वारा उसने यूरोप के सभी देशों के व्‍यापार-वाणिज्‍य को ठप्‍प कर दिया। फ्रांस समस्‍त यूरोप के लिये आवश्यक वस्‍तुओं की पूर्ति कर सका। इसके परिणामस्‍वरूप एक ओर तो उसे अलोकप्रियता मिली तथा दूसरी ओर प्रायद्वीपीय युद्धों मे दीर्घकाल तक उलझना पड़ा। इसी योजना के कारण नेपोलियन को रूस की मित्रता छोड़नी पड़ी और रूस से युद्ध करने में उसकी समस्‍त शक्ति का ही विनाश हो गया। अतएव महाद्वीपीय योजना एक ऐसा अस्‍त्र साबित हुआ। जो शत्रु के लिये बनाया गया था, किन्तु जिसने नेपोलियन का ही विनाश कर दिया।

महाद्वीपीय युद्ध

प्रायद्वीपीय युद्ध का आरम्‍भ पुर्तगाल और स्‍पेन से हुआ था। युद्ध में नेपोलियन को सेना के असंख्‍य सैनिक और श्रेष्‍ठ सेनापति काम आये। स्‍पेन के राष्‍ट्रवादियों ने नेपोलियन की सेना को बहुत पेरशान किया। इसी के परिणामस्‍वरूप नेपोलियन मास्‍कों अभियान के समय अपनी सेना को न बुला सका जिससे उसकी शक्ति विभाजित हो गई। निश्चित ही यदि नेपोलियन प्रायद्वीपीय युद्ध में न फँसता तो उसकी सैनिक शक्ति विभाजित न होती एवं उसका पतन इतना शीघ्र न होता।

नेपोलियन बोनापार्ट का रूस पर आक्रमण

रूस पर आक्रमण करना नेपोलियन की एक भारी भूल थी। रूस को पराजित करने के‍ लिये वह उपयुक्‍त रणनीति का संचालन नहीं कर सका। रूस के सैनिकों ने ध्‍वंस नीति द्वारा नेपोलियन को अपने उजाड़ देश में प्रविष्‍ट होने के लिये बाध्‍य किया। नेपोलियन का सारा युद्ध अनुभव वहाँ व्‍यर्थ सिद्ध हुआ। इसके परिणामस्‍वरूप उसके पाँच लाख सैनिकों में से बीस बीस हजार ही अपने प्राणों की रक्षा कर सके। इस अभियान के परिणामस्‍वरूप भी उसके विरूद्ध यूरोपीय राष्‍ट्रों ने चतुर्थ गुट की रचना की और नेपोलियन को अन्तिम रूप से पराजित किया।

निष्कर्ष – इस प्रकार नेपोलियन के पतन के लिये उसकी अत्‍यधिक महत्‍वाकांक्षाओं और उसके अलौकिक कार्यो के लिये किये गये प्रयत्‍न ही मुख्‍यत: उत्‍तरदायी थे। इस सम्‍बंध में फॉश ने लिखा था- ‘वह भूल गया था कि परमात्‍मा नहीं बन सकता। राष्‍ट्र व्‍यक्ति से ऊँचा है, नैतिक सिद्धान्‍त मानवता से बहुत ऊँचे हैं, बुद्ध जीवन का सर्वोच्‍च आदर्थ नहीं है, क्‍योंकि शांति युद्ध से बहुत ऊँची है’। वस्तुत: यह कथन ही उसके उत्‍थान और पतन की पूर्ण कहानी कह देता है।

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