बर्लिन की दीवार क्यों बनाई गई थी
बर्लिन की दीवार बनाने की प्रक्रिया दूसरे विश्व युद्ध के बाद प्रारंभ हुआ था।लगभग 1954 से 1960 के आसपास पूर्वी जर्मनी के लोग रोजगार और बेहतर शिक्षा की तलाश में पश्चिम जर्मनी जा रहे थे। इसकी वजह से पूर्वी जर्मनी से प्रतिभा का पलायन हो रहा था। इसलिए पूर्वी जर्मनी से पलायन को रोकने के लिए 1961 में बर्लिन की दीवार का निर्माण कराया गया था। इसलेख के माध्यम से आज ही बर्लिन की दीवार के बारे में पढ़ेंगे।
बर्लिन की दीवार बनाने का क्या कारण था?
पूर्वी जर्मनी जो की कम्यूनिस्ट के अधीन थी, वहां पर शिक्षा मुफ्त थी लेकिन पश्चिम जर्मनी में शिक्षा प्राप्त करने के लिए पैसे देना पड़ता था इसलिए जर्मनी के लोग खासकर पश्चिमी जर्मनी के लोग पूर्वी जर्मनी में शिक्षा प्राप्त करने के लिए जाया करते थे। क्योंकि पूर्वी जर्मनी में शिक्षा मुफ्त थी। लेकिन नौकरी करने के लिए पूर्वी बर्लिन से पश्चिमी जर्मनी में वापस लौट आते थे। पूर्वी जर्मनी के लोग भी बेहतर वेतन और रोजगार के लिए पश्चिमी जर्मनी चले जाया करते थे। दूसरे विश्व युद्ध के बाद जब जर्मनी का बंटवारा हुआ था तब सैकड़ों कारीगर, प्रोफेसर, डॉक्टर, इंजीनियर और व्यापारी पूर्वी बर्लिन को छोड़कर पश्चिमी बर्लिन में आ गए थे। कुछ इतिहासकारों के अनुमान के अनुसार 1954 से 1960 के बीच लगभग 738 यूनिवर्सिटी प्रोफेसर, 15885 अध्यापक, 4600 डॉक्टर और 15536 इंजीनियर और तकनीकी विशेषज्ञ पूर्वी बर्लिन से पश्चिमी बर्लिन की ओर चले गए थे। एक अनुमान के अनुसार लगभग 36,759 लोग पूर्वी बर्लिन से पश्चिम बर्लिन की ओर पलायन कर गए थे। इसके साथ ही 11000 के आसपास विद्यार्थी भी बेहतर भविष्य के लिए पूर्वी बर्लिन से पश्चिम बर्लिन की ओर पलायन कर गए थे।
इस प्रकार के पलायन से पूर्वी बर्लिन को नुकसान हो रहा था और इसके उलट पश्चिम बर्लिन को फायदा हो रहा था क्योंकि प्रतिभाशाली लोग पश्चिम जर्मनी में ही रोजगार करना चाहते थे। इसके साथ ही पूर्वी जर्मनी की राजनीतिक स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं थी, इसलिए भी लोग पूर्व बर्लिन से निकलकर पश्चिम बर्लिन जा रहे थे। पश्चिम बर्लिन से पश्चिम जर्मनी का रास्ता खुल जाता था और पश्चिम बर्लिन पहुंचने के बाद पूरे पश्चिम जर्मनी के लिए जाने के लिए लोग स्वतंत्र हो जाया करते थे।
इसके साथ-साथ 1950 और 1960 के दशक में शीत युद्ध का समय अभी चल रहा था, इसलिए कई जासूस पूर्वी बर्लिन जाकर वहां से खुफिया जानकारियों को पश्चिमी देशों तक पहुंचा रहे थे। क्योंकि पश्चिम बर्लिन से पूर्वी बर्लिन जाना आसान था, इसलिए 1950 से 1960 तक भारी मात्रा में जासूस भी पूर्वी बर्लिन जा रहे थे।
इसलिए पूर्वी बर्लिन इस पलायन और आवागमन को रोकना चाहता था, इसलिए वह कोई तरीका खोज रहा था कि वह इस पलायन को रोक सके। वह पश्चिम जर्मनी के लोगों को पूर्व में और पूर्वी बर्लिन के लोगों को पश्चिम में जाने से रोकना चाहता था। इन्हीं कारणों से पूर्वी जर्मनी की कम्युनिस्ट सरकार ने 12 और 13 अगस्त 1961 की रात में पूर्वी और पश्चिमी बर्लिन की सीमा को दीवार के माध्यम से बंद कर दिया था। बर्लिन की दीवार की लंबाई 155 किलोमीटर की थी पूर्व जर्मनी की सरकार ने हजारों सैनिकों को सीमा में तैनात किया और कामगारों की मदद से कटीले तारों को सीमा पर लगाना शुरू कर दिया था। जब इस दीवार को बनाया जा रहा था तो सड़कों की लाइटों को भी बंद कर दिया गया था। जिससे पश्चिम में रहने वाले लोगों को दीवार के बारे में कोई भनक ना लगने पाए और दीवार निर्माण के समय किसी भी प्रकार का कोई विरोध पूर्वी जर्मन के सैनिकों को ना झेलना पड़े। जब सुबह हुई तो बर्लिन दो हिस्सों में बंट चुका था इस दीवार के निर्माण की वजह से कई परिवार बंट चुके थे, दीवार की वजह से किसी का घर दीवार के उस तरफ तो किसी का घर दीवार के इस तरफ आ गया था। किसी को कुछ समझ में नहीं आया की आखिर यह सब क्या हो रहा है।
बर्लिन की दीवार को कब हटाया गया
जब जर्मनी को पूर्व और पश्चिम दो भाग के रूप में बांटा गया था तो पूर्वी हिस्से में सोवियत संघ का नियंत्रण था। 1980 के आसपास सोवियत संघ की शक्ति का पतन होने लगा, जिसकी वजह से पूर्वी जर्मनी की सरकार में लचीलापन और उदारीकरण का भाव आने लगा था। इसी दौरान पूर्वी जर्मनी के लोगों ने पूर्वी जर्मनी के सरकार के विरुद्ध विरोध प्रदर्शन करना प्रारंभ कर दिया। पूरे देश में विरोध की लहर चल पड़ी थी, इस विरोध की वजह से आखिरकार पूरी पूर्वी जर्मनी सरकार का अंत हो गया और 1 नवंबर 1989 को घोषणा करके बताया गया कि बर्लिन सीमा पर लगी रोक को हटा दिया गया है और दीवार को गिरा दिया गया। जर्मनी के लोगों ने बर्लिन की दीवार के टुकड़ों को उठाकर यादगार के रूप में अपने घर ले गए। बर्लिन की दीवार गिरने से जर्मनी में राष्ट्रवाद की लहर प्रारंभ हो गई और 3 अक्टूबर 1990 को दो हिस्सों में बंटा जर्मनी फिर से एक हो गया।