यह लेख अजीत मिश्रा जी द्वारा लिखा गया है, जो की राष्ट्रीय चिंतक और इतिहास के शोधार्थी हैं। मिश्रा जी ने भारतीय समाज, संस्कृति और इतिहास पर गहन अध्ययन किया है, और उनके विचार विशेष रूप से राष्ट्रीयता और समाज सेवा के क्षेत्र में गहरी अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) केवल एक सांस्कृतिक संगठन नहीं है, बल्कि भारतीय समाज के संकट के समय मदद करने वाला एक महत्वपूर्ण स्तंभ भी है। संघ की कार्यशैली और अनुशासन ने इसे ऐसी संस्था के रूप में स्थापित किया है, जो आपदा या संकट के समय हमेशा तत्पर रहती है। आरएसएस के स्वयंसेवकों की सेवा भावना, राष्ट्रभक्ति और समर्पण समाज के लिए अनुकरणीय है। जब भी कोई आपदा या संकट का समय आता है, चाहे वह प्राकृतिक हो या मानव निर्मित, संघ के स्वयंसेवक अपने कर्तव्यों का निर्वाह करते हुए अग्रिम पंक्ति में खड़े दिखाई देते हैं। यह संगठन भारत की आत्मा को अपने सेवा कार्यों से प्रेरित करता है।
आरएसएस का संकट के समय सेवा कार्यों में योगदान अद्वितीय है। इस संगठन का लक्ष्य मात्र शब्दों में राष्ट्रसेवा का संकल्प लेना नहीं है, बल्कि इसे कर्मक्षेत्र में लागू करना है। संघ ने अपनी स्थापना के बाद से ही इस विचारधारा का पालन किया है कि “सेवा ही धर्म है।” यही कारण है कि देश में हर आपदा के समय आरएसएस के स्वयंसेवक निस्वार्थ भाव से पीड़ितों की सहायता करने के लिए आगे आते हैं।
संकट के समय संघ की सेवा के कई उदाहरण देखने को मिलते हैं, जो संघ के कर्तव्य और समर्पण का प्रतीक हैं। सबसे प्रमुख उदाहरणों में से एक 2013 में उत्तराखंड की आपदा का है। जब भीषण बाढ़ और भूस्खलन ने राज्य को तहस-नहस कर दिया था, तो हजारों लोग जीवन के लिए संघर्ष कर रहे थे। उस समय संघ के स्वयंसेवक किसी सरकारी सहायता का इंतजार किए बिना, अपनी पूरी शक्ति और साधनों के साथ मैदान में उतरे। संघ के स्वयंसेवकों ने बचाव कार्यों में भाग लिया, खाद्य सामग्री, पानी और आवश्यक वस्तुएं पीड़ितों तक पहुँचाई, और घायलों के इलाज में सहायता की। यह केवल एक बार का प्रयास नहीं था, बल्कि आरएसएस की लगातार उपस्थिति और तत्परता इस बात का संकेत देती है कि आपदा प्रबंधन संघ के कार्यों का एक अभिन्न हिस्सा है।
संघ की सेवा भावना का एक और प्रेरक उदाहरण 2001 में गुजरात में आए भूकंप के समय देखने को मिला। जब भुज और आस-पास के क्षेत्र भूकंप की चपेट में आए और हजारों लोग मलबे के नीचे दब गए, तब संघ के स्वयंसेवक बिना किसी भय के संकट में कूद पड़े। उन्होंने मलबे में फंसे लोगों को बाहर निकालने, घायलों को चिकित्सा सहायता दिलाने, और बेसहारा हुए परिवारों को भोजन और आश्रय प्रदान करने का कार्य किया। संघ के स्वयंसेवकों ने स्थानीय प्रशासन और अन्य सहायता एजेंसियों के साथ मिलकर राहत कार्यों को सुचारू रूप से अंजाम दिया। इन कार्यों के माध्यम से उन्होंने केवल सेवा भावना का प्रदर्शन नहीं किया, बल्कि संकट के समय लोगों के लिए सुरक्षा का एक महत्वपूर्ण स्तंभ बनकर उभरे।
आरएसएस की सेवा केवल प्राकृतिक आपदाओं तक ही सीमित नहीं रही है, बल्कि मानव निर्मित संकटों में भी संघ ने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए दंगों में, जब देश के कई हिस्सों में सांप्रदायिक हिंसा भड़क उठी थी, तब संघ के स्वयंसेवकों ने बिना किसी भेदभाव के पीड़ितों की सहायता की। उन्होंने शांति बहाल करने में मदद की, दंगों में फंसे लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुँचाया, और हिंसा को कम करने के प्रयास किए। इसी प्रकार, 2002 के गुजरात दंगों के दौरान भी संघ ने शांति और सामंजस्य बनाए रखने के लिए अपनी भूमिका निभाई।
आरएसएस की सेवा भावना को हाल ही में कोविड-19 महामारी के दौरान भी देखा गया। जब दुनिया एक वैश्विक संकट से जूझ रही थी और लोग लॉकडाउन, बीमारी और आर्थिक तंगी के बीच संघर्ष कर रहे थे, तब संघ के स्वयंसेवक हर जगह राहत कार्यों में जुटे हुए थे। उन्होंने देशभर में लाखों लोगों तक भोजन, चिकित्सा सामग्री, और अन्य आवश्यक वस्तुएं पहुँचाई। संघ के स्वयंसेवक अस्पतालों में भी मदद के लिए सक्रिय थे, जहाँ उन्होंने कोरोना मरीजों की देखभाल से लेकर रक्तदान तक हर संभव मदद की। इसके अलावा, उन्होंने जागरूकता अभियान चलाकर समाज को इस महामारी से लड़ने के लिए तैयार किया।
संघ की सेवा कार्यों की सफलता का सबसे बड़ा कारण उनकी संरचनात्मक अनुशासन और व्यापक संगठन है। प्रत्येक स्वयंसेवक न केवल शारीरिक रूप से सक्षम होता है, बल्कि उसकी मानसिक और आध्यात्मिक तैयारी भी उत्कृष्ट होती है। संघ के स्वयंसेवक अपने नियमित शाखाओं के माध्यम से शारीरिक और बौद्धिक प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं, जिससे वे किसी भी संकट का सामना करने के लिए पूरी तरह तैयार होते हैं। इस प्रकार का प्रशिक्षण उन्हें न केवल अपने कार्यों में निपुण बनाता है, बल्कि उनमें एक सच्चे राष्ट्रभक्त की भावना भी भरता है।
आरएसएस के सेवा कार्यों की जड़ें भारतीय संस्कृति में गहरे समाहित हैं, जहाँ “सेवा परमो धर्मः” का आदर्श हमेशा से भारतीय समाज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है। संघ ने इस आदर्श को अपने कार्यों में सजीव किया है। जब भी समाज संकट में होता है, संघ के स्वयंसेवक उस संकट से लड़ने के लिए अपनी जान की परवाह किए बिना आगे बढ़ते हैं। उनका उद्देश्य मात्र संकट से उबारना नहीं होता, बल्कि समाज में एकता, सहयोग, और भाईचारे की भावना को भी बढ़ावा देना होता है।
संकट के समय संघ के कार्यों का प्रभाव केवल तत्कालिक नहीं होता, बल्कि यह समाज में दीर्घकालिक सकारात्मक बदलाव लाने में भी सहायक होता है। संघ के स्वयंसेवकों की यह भावना कि वे राष्ट्र के हर नागरिक की सेवा कर रहे हैं, समाज में एक गहरी जागरूकता और समर्पण की भावना पैदा करती है। यही कारण है कि संघ का सेवा कार्य भारतीय समाज में इतनी गहराई से व्याप्त है और यह संगठन संकट के समय उम्मीद की किरण बनकर उभरता है।
संघ के सेवा कार्यों को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि आरएसएस ने भारतीय समाज को न केवल आपदाओं के समय एकजुट किया है, बल्कि समाज की बुनियादी संरचना में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उनके कार्य समाज को बेहतर बनाने, नैतिकता को बढ़ावा देने, और राष्ट्रभक्ति की भावना को सशक्त करने में सफल रहे हैं। संकट के समय संघ के सेवा कार्यों का यह उदाहरण न केवल प्रेरणादायक है, बल्कि यह भी साबित करता है कि संघ का उद्देश्य केवल एक विचारधारा का प्रचार नहीं है, बल्कि देश और समाज की भलाई के लिए निःस्वार्थ सेवा करना है।