सुंदरकांड पाठ के नियम
आज हम इस लेख के माध्यम से सुंदरकांड पाठ के नियम के बारे में जानेंगे। सुंदरकांड रामचरितमानस का एक अध्याय हैं इसका लेखन तुलसीदास महाराज जी ने किया है। रामचरितमानस को 7 कांडों में बांटा गया है और सुंदरकांड उनमें से एक अध्याय हैं।
ऐसा माना जाता है कि मंगलवार और शनिवार के दिन सुंदरकांड का पाठ करने से घर की सभी बुरी शक्तियां दूर होती है घर में सकारात्मक ऊर्जा आती है तथा धन के आगमन के नए स्रोत का जन्म होता है। रामचरितमानस का सुंदरकांड एक ऐसा अध्ययन है जहां पर राम भगवान के भक्त की जीत के बारे में वर्णन किया गया है। सुंदरकांड में हनुमान जी के बारे में बताया गया है कि वह समुद्र पार करके सीता माता को खोजने के लिए लंका जाते हैं और इस दौरान उन्हें कई बाधाओं का सामना करना पड़ता है और हर बाधा को हनुमान जी जीत लेते हैं। इस अध्याय में राम भक्त हनुमान जी के बुद्धि कौशल और शक्ति के बारे में तुलसीदास स्वामी ने वर्णन किया है। सुंदरकांड के पाठ से मन में शांति मिलती है तथा सुंदरकांड के पाठ करने वाले व्यक्ति को हर कार्य में सफलता मिलती है। उस व्यक्ति की सभी इच्छाएं पूर्ण होती है और समाज में उसका मान सम्मान बढ़ता है। सुंदरकांड पाठ के नियम निम्न प्रकार से है-
- सुंदरकांड को नियमित पाठ करने से बहुत लाभ होता है लेकिन अगर सुंदरकांड का पाठ नियमित रूप से नहीं हो पा रहा है तो कम से कम मंगलवार और शनिवार के दिन सुंदरकांड का पाठ जरूर करना चाहिए।
- सुंदरकांड का पाठ करने से पहले स्नानादि करके साफ-सुथरे कपड़े पहन कर ही सुंदरकांड का पाठ करना चाहिए।
- सुंदरकांड का पाठ सुबह 4:00 बजे के बाद से लेकर 12:00 बजे के पहले कर लेना चाहिए। या फिर शाम के समय 6:00 बजे से लेकर 9:00 बजे के बीच कर लेना चाहिए।
- सुंदरकांड करने के लिए एक चौकी में लाल कपड़े को बिछाकर उसमें राम दरबार की फोटो को रखकर धूप दीप दिखाकर, प्रसाद में बेसन का लड्डू गुड़ चना अर्पित करके सुंदरकांड का पाठ प्रारंभ करना चाहिए।
- सुंदरकांड का पाठ शुरू होने के बाद बीच में नहीं उठना चाहिए और ना ही किसी से बात करना चाहिए।
- एक बार सुंदरकांड का पाठ शुरू होने के बाद जब तक खत्म ना हो जाए तब तक पूजा की बेदी से नहीं उठना चाहिए।
- सुंदरकांड शुरू होने के पहले हनुमान जी और भगवान राम को स्मरण करके उनका आवाहन करना चाहिए।
- इसके बाद जब सुंदरकांड का पाठ समाप्त हो जाए तो भगवान को भोग लगाकर उनके आरती करके, उनको विदा करना चाहिए।
- सुंदरकांड पाठ लगभग 50 मिनट से लेकर डेढ़ घंटे में पूरा हो जाता है।
- सुंदरकांड का पाठ करने के लिए संभव हो तो भगवा रंग का कुर्ता एवं पजामा पहनना चाहिए।
सुंदरकांड से संबन्धित रोचक तथ्य
#1 | सुंदरकांड की रचना | गोस्वामी तुलसीदास जी ने की |
#2 | सुंदरकांड में कितने दोहा | 60 दोहा |
#3 | सुंदरकांड में क्या हुआ है | हनुमान जी लंका जाकर सीता माता की खोज की थी |
#4 | अक्षय कुमार की मृत्यु का वर्णन | सुंदरकांड में दिया गया हैं |
#5 | राम भगवान ने समुद्र से रास्ता किस कांड मे मांगा | सुंदरकांड में ही |
#6 | लंकादहन किस कांड मे हुआ था | सुंदरकांड में ही हुआ था। |
#7 | सुंदरकांड पाठ में कितना समय लगता हैं | लगभग 50 मिनट से लेकर 1:30 घंटे |
#8 | सुंदरकांड करने के फायदे | घर मे सुख-समृद्धि आती हैं, धन लाभ होता हैं, रोग-दोष दूर होता हैं। |
रामायण के सात सुंदरकाण्ड – मानव की उन्नति के सात सोपान
बालकाण्ड क्या हैं?
बालक प्रभु को प्रिय है क्योकि उसमेँ छल ,कपट , नही होता विद्या , धन एवं प्रतिष्ठा बढने पर भी जो अपना हृदय निर्दोष निर्विकारी बनाये रखता है , उसी को भगवान प्राप्त होते है बालक जैसा निर्दोष निर्विकारी दृष्टि रखने पर ही राम के स्वरुप को पहचान सकते है जीवन मेँ सरलता का आगमन संयम एवं ब्रह्मचर्य से होता है बालक की भाँति अपने मान अपमान को भूलने से जीवन मेँ सरलता आती है बालक के समान निर्मोही एवं निर्विकारी बनने पर शरीर अयोध्या बनेगा जहाँ युद्ध, वैर ,ईर्ष्या नहीँ है , वही अयोध्या है
अयोध्याकाण्ड क्या हैं?
यह काण्ड मनुष्य को निर्विकार बनाता है जब जीव भक्ति रुपी सरयू नदी के तट पर हमेशा निवास करता है, तभी मनुष्य निर्विकारी बनता है भक्ति अर्थात् प्रेम , अयोध्याकाण्ड प्रेम प्रदान करता है राम का भरत प्रेम , राम का सौतेली माता से प्रेम आदि ,सब इसी काण्ड मेँ है राम की निर्विकारिता इसी मेँ दिखाई देती है अयोध्याकाण्ड का पाठ करने से परिवार मेँ प्रेम बढता है उसके घर मेँ लडाई झगडे नहीँ होते उसका घर अयोध्या बनता है कलह का मूल कारण धन एवं प्रतिष्ठा है अयोध्याकाण्ड का फल निर्वैरता है सबसे पहले अपने घर की ही सभी प्राणियोँ मेँ भगवद् भाव रखना चाहिए
अरण्यकाण्ड क्या हैं?
यह निर्वासन प्रदान करता है इसका मनन करने से वासना नष्ट होगी बिना अरण्यवास (जंगल) के जीवन मेँ दिव्यता नहीँ आती रामचन्द्र राजा होकर भी सीता के साथ वनवास किया वनवास मनुष्य हृदय को कोमल बनाता है तप द्वारा ही कामरुपी रावण का बध होगा इसमेँ सूपर्णखा (मोह ) एवं शबरी (भक्ति) दोनो ही है भगवान राम सन्देश देते हैँ कि मोह को त्यागकर भक्ति को अपनाओ
किष्किन्धाकाण्ड में क्या हैं?
जब मनुष्य निर्विकार एवं निर्वैर होगा तभी जीव की ईश्वर से मैत्री होगी इसमे सुग्रीव और राम अर्थात् जीव और ईश्वर की मैत्री का वर्णन है जब जीव सुग्रीव की भाँति हनुमान अर्थात् ब्रह्मचर्य का आश्रय लेगा तभी उसे राम मिलेँगे जिसका कण्ठ सुन्दर है वही सुग्रीव है कण्ठ की शोभा आभूषण से नही बल्कि राम नाम का जप करने से है जिसका कण्ठ सुन्दर है , उसी की मित्रता राम से होती है किन्तु उसे हनुमान यानी ब्रह्मचर्य की सहायता लेनी पडेगी
सुन्दरकाण्ड में क्या हैं?
जब जीव की मैत्री राम से हो जाती है तो वह सुन्दर हो जाता है इस काण्ड मेँ हनुमान को सीता के दर्शन होते है सीताजी पराभक्ति है , जिसका जीवन सुन्दर होता है उसे ही पराभक्ति के दर्शन होते है ।संसार समुद्र पार करने वाले को पराभक्ति सीता के दर्शन होते है। ब्रह्मचर्य एवं रामनाम का आश्रय लेने वाला संसार सागर को पार करता है संसार सागर को पार करते समय मार्ग मेँ सुरसा बाधा डालने आ जाती है , अच्छे रस ही सुरसा है , नये नये रस की वासना रखने वाली जीभ ही सुरसा है। संसार सागर पार करने की कामना रखने वाले को जीभ को वश मे रखना होगा जहाँ पराभक्ति सीता है वहाँ शोक नही रहता , जहाँ सीता है वहाँ अशोकवन है
लंकाकाण्ड में क्या हैं?
जीवन भक्तिपूर्ण होने पर राक्षसो का संहार होता है काम क्रोधादि ही राक्षस हैँ जो इन्हेँ मात दे सकता है , वही काल को भी मात दे सकता है जिसे काम मारता है उसे काल भी मारता है , लंका शब्द के अक्षरो को इधर उधर करने पर होगा कालं काल सभी को मारता है किन्तु हनुमान जी काल को भी मार देते हैँ क्योँकि वे ब्रह्मचर्य का पालन करते हैँ पराभक्ति का दर्शन करते है
उत्तरकाण्ड में क्या हैं?
इस काण्ड मेँ काकभुसुण्डि एवं गरुड संवाद को बार बार पढना चाहिए इसमेँ सब कुछ है जब तक राक्षस , काल का विनाश नहीँ होगा तब तक उत्तरकाण्ड मे प्रवेश नही मिलेगा इसमेँ भक्ति की कथा है भक्त कौन है ? जो भगवान से एक क्षण भी अलग नही हो सकता वही भक्त है पूर्वार्ध मे जो काम रुपी रावण को मारता है उसी का उत्तरकाण्ड सुन्दर बनता है , वृद्धावस्था मे राज्य करता है जब जीवन के पूर्वार्ध मे युवावस्था मे काम को मारने का प्रयत्न होगा तभी उत्तरार्ध – उत्तरकाण्ड सुधर पायेगा अतः जीवन को सुधारने का प्रयत्न युवावस्था से ही करना चाहिए..
वीडियो के माध्यम से सुंदरकांड पाठ का नियम
Google FAQ :
सुंदरकांड का पाठ शाम को कितने बजे करना चाहिए?
सुंदरकांड का पाठ शाम को 6:00 से लेकर 9:00 के बीच में कर लेना चाहिए हालांकि सुंदरकांड का पाठ अगर सुबह 4:00 बजे से लेके 12:00 बजे के पहले कर लिया जाए तो उसके फल काफी प्रभाव कारी होते हैं।
सुंदरकांड का पाठ कितने दिन तक करना चाहिए?
अगर कोई व्यक्ति सुंदरकांड का पाठ प्रतिदिन कर रहा है तो उसे 11 21 51 या फिर 108 दिनों तक करना चाहिए।
सुंदरकांड कितने घंटे का होता है?
अगर सुंदर काम को साधारण रूप से पढ़कर किया जाए तो 45 मिनट से लेकर डेढ़ घंटे में सुंदरकांड पूर्ण हो जाता है लेकिन अगर गायन के रूप में सुंदरकांड का पाठ किया जाए तो 2 घंटे से लेकर 3 घंटे का समय लगता है।
क्या औरतें सुंदरकांड पढ़ सकती हैं?
हां बिल्कुल औरतें हनुमानचालीसा, संकटमोचन तथा सुंदरकांड आदि का पाठ कर सकते हैं।
सुंदर कांड का पाठ कब नहीं करना चाहिए?
अगर कोई व्यक्ति बीमार है तथा उसका स्वास्थ्य अच्छा नहीं है तो उसे सुंदरकांड का पाठ नहीं करना चाहिए तथा बिना नहाए और स्वच्छ कपड़ा पहने बिना सुंदरकांड का पाठ नहीं करना चाहिए।
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